Friday, June 4, 2010

PUNJ NEWS

ईरान को उम्मीद है कि रूस परमाणु ईंधन सम्बन्धी ईरान,तुर्की और ब्राज़ील के बीच हुए समझौते का समर्थन करेगा ।

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ईरान को उम्मीद है कि रूस परमाणु ईंधन के आदान-प्रदान सम्बन्धी ईरान,तुर्की और ब्राज़ील के बीच हुए समझौते का समर्थन करेगा । यह बात ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने देश के मंत्रिमंडल की एक बैठक के बाद कही। ईरानी राष्ट्रपति ने ज़ोर देकर कहा कि ईरान और रूस दो पड़ोसी देश हैं जिनके बीच घनिष्ठ ऐतिहासिक और दोस्ताना संबंध मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि ईरान ने रूसी लोगों के ख़िलाफ़ कभी भी कोई कदम नहीं उठाया है और हम रूस को अपना एक मित्र राष्ट्र मानते हैं। महमूद अहमदीनेजाद ने आशा व्यक्त की कि रूस सहित ईरान के सभी पड़ोसी देश परमाणु ईंधन के आदान-प्रदान सम्बन्धी उस समझौते का समर्थन करेंगे जिस पर 17 मई को तेहरान में ईरान, तुर्की और ब्राज़ील के द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। ईरान के राष्ट्रपति के अनुसार इस समझौते ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर बातचीत के रास्ते की सभी बाधाओं को दूर कर दिया है और बातचीत को जारी रखने के लिए नई संभावनाएं उत्पन्न कर दी हैं।

भारत के पहले लड़ाकू हेलीकाप्टर का सफल परीक्षण किया गया।
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रविवार को भारत के पहले हलके लड़ाकू हेलीकाप्टर ने सफल उड़ान भरी। इस बात की जानकारी भारत के रक्षा मंत्रालय द्वारा दी गई है। इस हेलीकाप्टर का निर्माण राजकीय विमान विनिर्माण निगम हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड द्वारा किया गया है जिसका मुख्यालय बंगलौर नगर में स्थित है। यह हेलीकाप्टर लड़ाई में पैदल सेना का हवा से समर्थन कर सकता है और दुश्मन के बख्तरबंद वाहनों पर प्रहार कर सकता है। वह पहाड़ों में भी उड़ सकता है। भारतीय मीडिया के अनुसार वर्ष 2011 के अंत तक भारतीय सशस्त्र बलों को इस वर्ग के हेलिकॉप्टरों से लैस कर दिया जाएगा। इस बात की उम्मीद है कि इस हेलीकाप्टर पर 20 मिलीमीटर की एक गन, विभिन्न प्रकार की मिसाइलें और बम फिट किए जा सकते हैं।


अमरीका अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों और उपग्रहों के परीक्षण से पहले विश्व समुदाय को इसकी पूर्व जानकारी दिया करेगा।
अमरीका ने यह तय किया है कि वह अब अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों और उपग्रहों के परीक्षण से पहले विश्व समुदाय को इसकी पूर्व जानकारी दिया करेगा। बराक ओबामा की सरकार इस कदम को रूस के साथ हस्ताक्षरित रणनीतिक हमलावर हथियारों में कटौती की संधि से सम्बन्धित एक अतिरिक्त कदम मान रही है।
पूर्व सूचना देने की यह नीति इसलिए अपनाई जा रही है ताकि सन् 2002 में स्वीकृत उस अंतर्राष्ट्रीय नियमावली को और मज़बूत बनाया जा सके जो बैलिस्टिक मिसाइलों के प्रसार को रोकने से सम्बन्धित है। इस नियमावली को लोग आम तौर पर हेग कोडेक्स-2002 के नाम से जानते हैं। रूस, अमरीका, फ़्राँस और ब्रिटेन - परमाणविक हथियार सम्पन्न इन चार देशों के साथ-साथ 129 देशों ने इस नियमावली पर हस्ताक्षर किए थे। चीन, पाकिस्तान, भारत, उत्तरी कोरिया और ईरान ने, जिन के पास भी बैलिस्टिक रॉकेट और परमाणविक बम हैं, इस नियमावली पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था। अब उत्तरी कोरिया और ईरान जैसे देश अपने परमाणविक कार्यक्रमों का विकास कर रहे हैं, जिनके कारण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में चिन्ता पैदा हो रही है। इन दोनों देशो में से भी ईरान के परमाणविक कार्यक्रम को लेकर पूरी दुनिया में बेहद तनाव दिखाई दे रहा है। हालाँकि ईरान की सरकार ने घोषणा की है कि ईरान का परमाणविक कार्यक्रम शान्तिपूर्ण है, लेकिन इस सिलसिले में अभी तक स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुई है।...

अफ़गानिस्तान से नशीले पदार्थों की तस्करी के ख़तरे से अधिक दृढ़ता से लड़ना होगा।
रूस चाहता है कि अफ़गानिस्तान से नशीले पदार्थों की तस्करी के ख़तरे के विरुद्ध लड़ाई पहले से अधिक दृढ़ता से लड़ी जानी चाहिए। आज मास्को में रूस के विदेशमंत्री सर्गेय लवरोव और अफ़गानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष प्रतिनिधि स्टेफ़न डे मिस्तुरा के बीच आयोजित एक बैठक का यही मुख्य विषय है। इस सिलसिले में हमारे राजनीतिक पर्यवेक्षक विक्तर येनिकेयेव लिखते हैं-
इन परामर्शों का आयोजन अफ़गानिस्तान पर जुलाई माह में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की पूर्ववेला में किया गया है। मास्को एशिया के इस देश से नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहा है। पिछले हफ्ते विदेशमंत्री सर्गेय लवरोव और रक्षा मंत्री अनातोली सेर्दियुकफ़ ने रोम में अपने इतालवी समकक्षों के साथ मुलाकातों के दौरान इस समस्या पर चर्चा की थी। ऐसी मुलाकातों के आयोजनों का विचार रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेफ़ और इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी द्वारा पेश किया गया था।
रूस के नेता इस बात पर ज़ोर देते हैं कि अफगानिस्तान में अफीम की खेती करने के कार्यों और उस देश से नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ, नाटो और यूरोपीय संघ के देशों को पहले से अधिक दृढ़ता से लड़ाई लड़नी चाहिए। मास्को की राय में यह लड़ाई बहुत महत्वपूर्ण है और इसमें अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा सामूहिक सुरक्षा संधि और शंघाई सहयोग संगठन के साथ अपने सहयोग को बढ़ाने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है। पहले संगठन में रूस, अर्मीनिया, बेलारूस, कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान शामिल हैं जबकि दूसरे संगठन में भी अर्मीनिया को छोड़कर यही देश शामिल हैं। चीन और उज़्बेकिस्तान भी इसी संगठन के सदस्य देश हैं। इन सभी देशों को नशीले पदार्थों के ख़तरे से निपटने का काफ़ी गहरा अनुभव है।

उल्लेखनीय है कि रूस इस दिशा में द्विपक्षीय आधार पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है। वह अमरीकी-रूसी आयोग के अंतर्गत ऐसा काम कर रहा है। इस आयोग का गठन रूस के राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेफ़ और अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के आदेशों पर किया गया था। पिछले रविवार रूस ने अमरीका को अफ़गानिस्तान में रहने वाले उन नौ लोगों के बारे में जानकारी दी गई थी जो नशीले पदार्थों की तस्करी करते हैं। इससे पहले वॉशिंगटन को अफ़गानिस्तान में नशीली दवाइयां तैयार करने वाली 175 प्रयोगशालाओं के बारे में जानकारी प्रदान की गई थी।
अफ़गानिस्तान से नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने के काम में एक सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अमरीका और अफ़गानिस्तान में अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन सेना के अन्य देश अफ़ीम की खेती और मादक पदार्थों को तैयार करने वाली प्रयोगशालाओं को नष्ट करने से इनकार कर रहे हैं। ये देश समझते हैं कि ऐसा करने से स्थानीय आबादी की आर्थिक रूप से बर्बादी हो जाएगी और ये लोग गठबंधन सैनिकों के खिलाफ़ खड़े हो जाएँगे तथा तालिबान के समर्थकों की संख्या में वृद्धि करेंगे। अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन सेना की ऐसी नीति का लाभ कम और नुकसान ज़्यादा हो रहा है। अफ़गानिस्तान से नशीले पदार्थों की तस्करी में वृद्धि हुई है। इससे भी बुरी बात यह है कि आतंकवाद को इसका सबसे ज़्यादा लाभ पहुँच रहा है। गौरतलब है, कि इस देश में नाटो सेनाओं की तैनाती के दौर में अफ़ीम की खेती में चालीस गुना बढ़ौतरी हुई है।

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में किया जा रहा काम अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का एक सबसे अच्छा उदाहरण है।

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में किया जा रहा काम अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का एक सबसे अच्छा उदाहरण है। यह बात शुक्रवार को रूस के उप प्रधानमंत्री सेर्गेय इवानोव ने केप कनैवरल में अमरीकी अंतरिक्ष अड्डे पर कही जहाँ पर उनको रूसी प्रतिनिधिमंडल के अन्य सदस्यों के साथ माननीय मेहमान के रूप में आमंत्रित किया गया था। वहाँ से अंतरिक्ष यान अटलांटिस का प्रक्षेपण किया गया जो रूसी मॉड्यूल "रस्सवेत" यानी "प्रभात" को लेकर अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में पहुँचाएगा। सेर्गेय इवानोव ने कहा कि इस स्टेशन के प्रोग्राम की बदौलत रूस और अमरीका की तकनीकी और वित्तीय क्षमताओं को मिलाकर आपसी सहयोग के एक नए स्तर तक पहुँचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि चांद, मंगल ग्रह और सौर मंडल के अन्य ग्रहों के अन्वेषण के लिए भविष्य के कार्यक्रमों के संदर्भ में ऐसी सम्भावनाओं के बारे में नासा और रोसकोस्मोस द्वारा सोच-विचार किया जा रहा है।
तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति भारत में तेल, गैस और अन्य क्षेत्रों में सहयोग के सवालों पर चर्चा करेंगे।

तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति गुर्बानगुली बेर्दिमोहम्मदोव आज से अपनी भारत की पहली राजकीय यात्रा शुरू कर रहे हैं। तुर्कमेनिस्तान के नेता भारतीय नेताओं से तेल, गैस और अन्य क्षेत्रों में सहयोग के सवालों पर चर्चा करेंगे। आशा है कि इस यात्रा के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग के बारे में कुछ समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। इस बात की जानकारी भारतीय विदेश मंत्रालय के यूरेशियन विभाग के निदेशक अजय बिसारिया ने दी। तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति भारत की अपनी तीन दिवसीय यात्रा के दौरान भारत की राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल, उपराष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी और प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से मिलेंगे। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधि ने बताया कि इन मुलाकातों के दौरान भारत-तुर्कमेन सहयोग के कई सवालों के अलावा महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर सोचविचार किया जाएगा।

से निपटने के लिए के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष प्रतिनिधि से चर्चा करेंगे।
रूस के विदेशमंत्री सर्गेय लवरोव और अफ़गानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के विशेष प्रतिनिधि स्टेफ़न डे मिस्तुरा आज मास्को में अफ़गानिस्तान से नशीले पदार्थों की तस्करी के ख़तरे से निपटने के लिए नए उपायों पर सोचविचार करेंगे। इन परामर्शों का आयोजन अफ़गानिस्तान पर जुलाई माह में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की पूर्ववेला में किया गया है। मास्को अफ़गानिस्तान से नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास कर रहा है। पिछले सप्ताह सर्गेय लवरोव ने रोम में इटली के विदेश और रक्षा मंत्रियों से अपनी बैठकों के दौरान इसी विषय पर चर्चा की थी। तब उन्होंने नाटो देशों से अपील की थी कि अफ़गानिस्तान में अफ़ीम की खेती करने और खेती कराने वाले लोगों के ख़िलाफ़ कड़े कदम उठाए जाएँ।


अखिल यूरोपीय वित्तीय स्थिरीकरण कोष की स्थापना।
यूरोपीय संघ के 27 देशों के वित्तमंत्रियों की एक नियमित बैठक में अखिल यूरोपीय वित्तीय स्थिरीकरण कोष की स्थापना करने का फ़ैसला किया गया है। माना जाता है कि इस कोष की सहायता से यूरोपीय संघ की वर्तमान और भविष्य की सभी वित्तीय समस्याओं का समाधान निकाला जा सकेगा। इसकी प्रारम्भिक धनराशि 60 अरब यूरो है जोकि बढ़ाकर 500 अरब किए जाने की सम्भावना है।
इन देशों के वित्तमंत्रियों ने आख़िरकार यूरो क्षेत्र और पूरे यूरोपीय संघ के देशों की वित्तीय सुरक्षा के तंत्र की स्थापना कर दी है। पिछले कुछ महीनों से यूरोपीय संघ के नेता पूरे यूरोप में वित्तीय संकट को पैदा होने से रोकने के लिए उपायों पर सोचविचार कर रहे थे।
इन नेताओं की यह व्यस्तता भी इस बात का एक कारण बनी कि यूरोपीय संघ के कुछ महत्त्वपूर्ण नेता विजय दिवस की 65वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष पर मास्को में आयोजित समारोह में शामिल नहीं हो सके थे। इस तंत्र का एक घटक 60 अरब यूरो वाला स्तिरीकरण कोष है। यह धनराशि उस सहायता का एक हिस्सा है जो यूरोपीय संघ के उन देशों को उपलब्ध कराई जाएगी जो अपने ऋण का भुगतान नहीं कर सकने के कग़ार पर खड़े हैं। कुल ऋण राशि 750 अरब यूरो बनती है जिसका ऐसे देशों को सहायता प्रदान करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इस धनराशि का एक तिहाई अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा आवंटित किया जाएगा। यूरोपीय संघ के कुछ देशों के नेता अपने आंतरिक मामलों में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की इस भागीदारी को अस्वीकार्य मानते हैं। वे इस तथ्य का हवाला देते हैं कि इस मुद्रा कोष में मुख्य भूमिका अमरीका द्वारा निभाई जाती है। अमरीका के अपने आर्थिक हित हौं जो यूरोपीय संघ के आर्थिक हितों से हमेशा मेल नहीं खाते हैं।
देखने को तो ऐसा लगता है कि 750 अरब यूरो की धनराशि बहूत ज़्यादा है। लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है। बात दरअसल यह है कि यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था का पैमाना बहुत विशाल है और इसके कई देशों में वित्तीय घाटा महसूस किया जा रहा है। उदाहरण के लिए यूरोपीय संघ के एक देश यूनान को ऋण का भुगतान नहीं कर सकने की स्थिति से बचाने के लिए 300 अरब यूरो की आवश्यकता है लेकिन इस धनराशि का केवल एक तिहाई हिस्सा ही यूरोपीय संघ और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा उपलब्ध कराया जाएगा। सस्ते ऋण उपलब्ध करवाने के लिए स्थापित इस तंत्र से ऐसे देशों की कुछ रक्षा तो की जा सकती है लेकिन इससे उनकी आर्थिक समस्याओं के समाधान करने की गारंटी नहीं दी जा सकती है। वर्तमान समय में यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इस बात का एक सबूत तो यह है कि पिछले कुछ समय से डॉलर की तुलना में यूरो के मूल्य में भारी गिरावट आई है। कुछ प्रमुख यूरोपीय नेताओं की इन अपीलों का भी कोई ठोस असर नहीं पड़ रहा है कि यूरो के बचाव के लिए एकजुट हो जाना चाहिए।
यूरोप में फैले संकट से यूरो पर बहुत ज़यादा दबाव पड़ रहा है। फ़िलहाल तो ऐसा ही दिखाई दे रहा है कि यूरोपीय मुद्रा की बहाली के लिए काफ़ी लम्बा समय लगेगा। इस साल के दैरान यूरो-डॉलर विनिमय दर में काफ़ी बड़ी अस्थिरता रहेगी। इस बात की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि कुछ सकारात्मक ख़बरों की पृष्ठभूमि में यूरो के मूल्य में उछाल आ सकता है। लेकिन यूरोपीय मुद्रा के मुकाबले में डॉलर का हाथ ऊपर ही रहेगा क्योंकि यूरोपीय मुद्रा वाले देशों में घट रहीं नकारात्मक घटनाओं के प्रभाव दूरगामी होंगे।
विश्व बाज़ार यूरोप और खास तौर पर यूनान की स्थिति के प्रति अति संवेदनशील दिखाई दे रहा है। और इस प्रकार की प्रतिक्रिया से केवल उन लोगों के हाथ मज़बूत हो रहे हैं जो यूरोपीय मुद्रा की कमज़ोर स्थिति का लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। यूरो की अस्थिरता का एक सबसे बड़ा कारण यह भी है कि यूरोपीय नेता लम्बे समय तक संकट को दूर करने के ठोस उपायों के बारे में कोई एकमत निर्णय नहीं कर सके थे।

चीन भारत राजनयिक संबंधों की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में पारस्परिक समझ व विश्वास बढाया जाए
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता च्यांग यू ने 25 मई को पेइचिंग में कहा कि चीन भारतीय राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल की आसन्न चीन यात्रा का स्वागत करता है ।चीन की आशा है कि दोनों देशों के राजनयिक संबंधों की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में दोनों पक्ष पारस्परिक समझ व विश्वास को मजबूत कर रणनीतिक सहयोग के नये व बडे विकास को बढावा देंगे ।
नियमित पत्रकार वार्ता में च्यांग यू ने कहा कि चीन भारत संबंध एक परिपक्व व स्थिर विकास के दौर में दाखिल हुआ है ।इधर कुछ साल से चीन भारत संबंधों का चतुर्मुखी व तेज विकास हो रहा है ।दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय आवाजाही बनी हुई है ।दोनों पक्षों का राजनीतिक विश्वास निरंतर बढ रहा है और विभिन्न जगतों का व्यावहारिक सहयोग अधिक घनिष्ठ हो रहा है । महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय व क्षेत्रीय मामलों में दोनों पक्ष घनिष्ठ संपर्क बनाए हुए हैं ।
चीन भारत सीमा सवाल की चर्चा करते हुए च्यांग यू ने कहा कि चीन और भारत ने मतैक्य प्राप्त किया है कि सीमा सवाल के समाधान से पहले दोनों पक्ष सीमांत इलाकों की शांति व अमन चैन बनाए रखने की पूरी कोशिश करेंगे ।

अमेरिकी पाट्रिओट मिसाइल की पहली खेप पोलैंड पहुंची
पोलैंड स्थित अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता एंड्रयू पॉल ने कहा कि पहली खेप वाले पाट्रिओट मिसाइल व सौ अमेरिकी सैनिक 23 मई को उत्तर पोलैंड के मोराग सैन्य ठिकाने तक पहुंच गये। यह क्षेत्र राजधानी वारसॉ से 250 किलोमीटर है, और पोलैंड व रूस की कालिनिंगराद सीमा से केवल 60 किलोमीटर दूर है। पोलैंड के अनुसार रूस के नज़दीक क्षेत्र में मिसाइल की तैनाती रणनीतिक वजह से नहीं है। क्योंकि वहां की बुनियादी सुविधाएं अच्छी हैं, जो अमेरिकी सेना को काफ़ी तकनीकी समर्थन दे सकती हैं। पोलैंड स्थित अमेरिकी दूतावास के अधिकारी ने 24 मई को इसकी जानकारी दी।
अमेरिकी सरकार ने वर्ष 2008 के अगस्त में पोलैंड सरकार के साथ पोलैंड में एंटी मिसाइल व्यवस्था की स्थापना करने पर समझौता किया था। ओबामा ने राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद पोलैंड में मध्य व कम दूरी वाली एंटी मिसाइल व्यवस्था की स्थापना करने का फैसला किया, जिसने पहले की लंबी दूरी वाली एंटी मिसाइल व्यवस्था की जगह ली। वर्ष 2009 के दिसंबर में अमेरिका व पोलैंड ने पोलैंड स्थित अमेरिकी सेना के स्थान से जुड़े एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें एंटी मिसाइल व्यवस्था की स्थापना की तैयारी की।
फ़िलीस्तीन व इज़राइल की प्रत्यक्ष वार्ता की अपील
जॉर्डन की यात्रा कर रहे जर्मन विदेश मंत्री गीडो वेस्टरवेले ने 23 मई को फ़िलीस्तीन और इज़राइल से अप्रत्यक्ष वार्ता को प्रत्यक्ष वार्ता में तब्दील करने की अपील की।उन्होंने कहा कि अगले कई महीने मध्य-पूर्व की शांति प्रक्रिया के लिये अहम साबित होंगे। जॉर्डन के विदेश मंत्री नस्सेर जुडेह के साथ आयोजित संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने यह बात कही। वेस्टरवेले के अनुसार मध्य-पूर्व में शांति व स्थिरता हासिल करने के लिये एक मात्र तरीका फ़िलीस्तीन व इज़राइल की प्रत्यक्ष वार्ता है।
वेस्टरवेले ने कहा कि जर्मन सरकार यहूदी बस्तियों की रणनीति और हिंसक कार्रवाई का विरोध करने के साथ साथ शांति अमल करने के लिये उदारवादी ताकत का समर्थन करती है।जर्मन सरकार संबंधित पक्षों से समन्वय कर शांति प्रक्रिया बढ़ाने के लिये अपना योगदान भी देगी।
जुडेह ने अपने भाषण में मध्य-पूर्व की शांति प्रक्रिया आगे बढ़ाने में जर्मनी व यूरोपीय संघ की महत्वपूर्ण भूमिका कही। अप्रत्यक्ष वार्ता की चर्चा में उन्होंने कहा कि अभी तक वह सही रास्ते में चल रही है।
जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला II ने वेस्टरवेले के साथ वार्ता में कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मिलना-जुलना चाहिये।ताकि फ़िलीस्तीन और अज़राइल के बीच गंभीर व प्रभावी प्रत्यक्ष वार्ता की जाएगी,और यथार्थ प्रगति हासिल की जाएगी।वार्ता का अखिरी उद्देश्य यह है कि इज़राइल के पास शांति व सुरक्षा का आनंद लेने वाला स्वतंत्र फ़िलीस्तीन स्थापित किया जाए।



पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने चीनी रक्षा मंत्री के साथ मुलाकात की
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसुफ रज़ा गिलानी ने 24 मई को राजधानी इस्लामाबाद में पाकिस्तान की यात्रा पर गए चीनी स्टेट कांसुलर, चीन के रक्षा मंत्री लांग क्वांग लिए के साथ मुलाकात की।
श्री गिलानी ने कहा कि वर्तमान में विश्व जटिल है लेकिन पाकिस्तान चीन मैत्री रणनीतिक है, यह मैत्री किसी भी स्थिति में नहीं बदलेगी। विभिन्न क्षेत्रों में पाकिस्तान व चीन के बीच सभी मौसमों के अनुरूप मैत्री का विकास हो रहा है। पाकिस्तान इस पर संतुष्ट है। श्री गिलानी ने कहा कि पाकिस्तान व चीन की सेनाओं के बीच मैत्रिपूर्ण सहयोगी संबंध दोनों देशों के बीच मैत्री के दीर्घकालीन व सतत् विकास के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
श्री लांग क्वांग लिए ने कहा कि चीन व पाकिस्तान के बीच मैत्री दोनों देशों के बीच मैत्रिपूर्ण सहयोगी संबंध के विकास के लिए बड़ी प्रेरक शक्ति है। चीन व पाकिस्तान की सेनाओं ने इधर के सालों में विभिन्न क्षेत्रों में कारगर आदान-प्रदान व सहयोग किया है। चीन पाकिस्तान के साथ मिलकर दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदार संबंध के विकास व दोनों देशों की जनता की भलाई के लिए कोशिश करने को तैयार है।
24 मई को श्री लांग क्वांग लिए ने इस्लामाबाद में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री चौधरी अहमद मुख्तार के साथ बातचीत की। दोनों पक्षों ने मैत्रिपूर्ण वातावरण में दोनों सेनाओं के बीच संबंध व समान रुचि वाले सवालों पर गहन रूप से विचारों का आदान-प्रदान किया और अनेक सहमतियां भी प्राप्त कीं।(वनिता)
चीनी और विदेशी ने पेइचिंग में जलवायु परिवर्तन पर चर्चा की
यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है। श्रोता दोस्तो, साप्ताहिक कार्यक्रम चीन में सुधार और विकास अब आरंभ होता है। मैं हू आप की दोस्त रूपा। कार्यक्रम में आप का हार्दिक स्वागत। दोस्तो, सुपर टैंक कहा जाने वाले चीनी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक आवाजाही केंद्र ने पिछले हफ्ते में हरी अर्थव्यवस्था के विकास व जलवायु परिवर्तन के मुकाबले संबंधी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सम्मेलन की अध्यक्षता की। दुनिया के विभिन्न देशों से आये सरकारी अधिकारियों व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने जलवायु परिवर्तन सवाल पर वार्ता की और विचार विमर्श भी किया। सम्मेलन में उपस्थितों के विचार में जलवायु परिवर्तन सवाल पर विकसित देशों व विकासमान देशों को सकारात्मक भूमिका अदा करनी चाहिये और साझी किंतु विभेदीकृत दायित्व की सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा किफायत व कम निकासी व हरी अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ाना चाहिये।
वर्तमान में दुनिया के विभिन्न देशों द्वारा आम तौर पर पता किया गया कि ऊर्जा किफायत व कम निकासी के जरिये पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन से पैदा कुप्रभाव कम करना एक आपात मिशन है।
मौजूदा हरी अर्थव्यवस्था के विकास व जलवायु परिवर्तन के मुकाबले संबंधी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग सम्मेलन में ग्रेनेडा के पर्यावरण मंत्री मैकेल चुर्च ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से ग्रेनेडा जैसे द्वीप देशों को अभूतपूर्व नुक्सान पहुंच रहा है। उन्होंने कहा
मेरी मातृभूमि ग्रेनेडा जलवायु परिवर्तन से पैदा अभूतपूर्व नुक्सान का सामना कर रहा है। अतीत में चक्रवात हर 50 साल एक बार घटित होता है। लेकिन इधर वर्षों से चक्रवात अधिक से अधिक तीव्र है। ग्रेनेडा अन्य द्वीप देशों के साथ जलवायु परिवर्तन से पैदा सब से गंभीर कुप्रभाव पड़ने वाला देश है। हमारी संसाधनों का आभाव है, इसलिये विकास के सामने बहुत गंभीर बाधा खड़े हुए हैं। इस पृष्ठभूमि पर हम केवल वैश्विक कार्रवाई कर सकते हैं, कोई भी विकल्प नहीं है।
जलवायु परिवर्तन से पैदा कुप्रभाव अधिक तीव्र होने की पृष्ठभूमि में ऊर्जा किफायत व कम निकासी दुनिया के विभनन्न देशों की फौरी मिशन बना है। लेकिन कम निकासी की कर्तव्य पर जिम्मेदार लेने के बारे में विकसित देशों व विकासमान देशों के बीच बड़ा मतभेद पैदा है। विकसित देशों ने विकासमान देशों से कम निकासी पर जिम्मेदार लेने की मांग की, जब कि व्यापक विकासमान देशों ने बलपूर्वक कहा कि साझी किंतु विभेदीकृत दायित्व की सिद्धांत के अनुसार विकसित देशों को जलवायु परिवर्तन पर अधिक कर्त्तव्य व जिम्मेदारी लेनी चाहिये। मौजूदा सम्मेलन में चीनी राष्ट्रीय विकास और रूपांतरण कमेटी के प्रभारी श्ये चेन ह्वा ने फिर एक बार उक्त बात पर जोर दिया। उन का कहना है
200 सालों की औद्योगीकरण प्रक्रिया में विकसित देशों ने ग्रीन हाउस गैस की निकासी की, जो वर्तमान जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण है, इसलिये विकसित देशों को अधिक जिम्मेदार लेनी चाहिये। जब कि व्यापक विकासमान देश औद्योगिकीकरण की प्रारंभिक अवस्था में गुजर रहे हैं, उन के विकास को सीमित करना न तो न्यायपूर्ण है और न ही उचित। विकसित देशों ने मजबूत आर्थिक ताकत के साथ उन्नत कम कार्बन प्रौद्योगिकियां मास्टर की है, जब कि विकासमान देश वित्त व तकनीक का आभाव हीं नहीं, बल्कि उन के सामने आर्थिक के विकास, गरीब उम्मूलन आदि सवाल खड़े हुए हैं।
एलजीरियाई भूमि सुधार, पर्यावरण व पर्यटन मंत्री राहमानी श्ये चेन ह्वा के विचार पर बहुत सहमत हुए। उन्होंने बलपूर्वक कहा कि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण हरी अर्थव्यवस्था के विकास व जलवायु परिवर्तन के मुकाबले में अफ्रीकी देशों के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग व प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को और बढ़ाया जाना चाहिये। क्योंकि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण अफ्रीकी देशों के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। विभिन्न देशों के बीच आवाजाही प्रोत्साहित किया जाना चाहिये ताकि सभी विकासमान देशों को हरी अर्थव्यवस्था के विकास में मदद दी जा सके।
जलवायु परिवर्तन कार्वाई योजना के सक्रिय प्रमोटर के रूप में ब्रिटिश पूर्व उपप्रधान मंत्री प्रेस्कोट ने मौजूदा सम्मेलन में कहा कि जलवायु परिवर्तन के मुकाबले की कार्यवाही में विभिन्न देशों को अपने देश की वास्तिव स्थिति के अनुसार अलग जिम्मेदार लेना चाहिये। उन का कहना है
हमें साझी किंतु विभेदीकृत दायित्व पर जोर देना चाहिये। जलवायु परिवर्तन के मुकाबले में विकसित देशों को सब से अधिक दायित्व निभाने की जरूरत है, क्योंकि उन की कार्यवाही जलवायु परिवर्तन पैदा होने का प्रमुख कारण है। किसी भी नये समझौते में विभिन्न देशों की गरीबी स्थिति को प्रतिबिंबित किया जाना चाहिये। वह अवश्य ही सामाजिक न्याय का समर्थन दे सकेगा।
जलवायु परिवर्तन से पैदा कुप्रभाव दूर करने के लिये हरी अर्थव्यवस्था का विकास करना पारिस्थितिकी पर्यावरण सुंरक्षण व आर्थिक दक्षता में सुधार के साथ साथ मानव समाज के लिए एक ही रास्ता बना है। नाइजीरियाई पूर्व राष्ट्रपति ओबासांजो ने हरी अर्थव्यवस्था के विकास का मुल्याकंन करते हुए कहा
क्या हम हमारी पर्यावरण को बचा सकते हैं, क्या हम अनवरत आर्थिक विकास कर सकते हैं?हमें जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया रोकने के लिये कदम उठाना चाहिये। यह हरी अर्थव्यवस्था का प्रयोजन है।
हरी अर्थव्यवस्था की भूमिका पर चर्चा करते हुए संयुक्त राष्ट्र उपमहासचिव जुखांग शा के ख्याल में वर्तमान में केवल सरकार की कोशिश हरी अर्थव्यवस्था नहीं बढ़ सकेगी। विभिन्न देशों की सरकारों को उद्यमों के साथ सहयोग करना चाहिये ताकि उद्यमों को हरे सुधार के महत्वपूर्ण प्रमोटर बनाया जा सके। उन का कहना है
सरकारों को उद्यमों को हरे तकनीकी अनुसंधान के लिये पूंजी लगाना और उद्यमों के साथ हरी अर्थव्यवस्था के विकास के दौरान उद्यमों के लिये अधिक जोखिम बांटना चाहिये।

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