Sunday, January 30, 2011

पंजाब में तीन सौ करोड़ का गड़बड़झाला



 
 
 
 
 
चंडीगढ़. सिंगल गैस कनेक्शन के नाम पर मिलने वाला केरोसिन खुले बाजार में बेचकर डिपो होल्डर हर माह करोड़ों रुपए का घपला कर रहे हैं।

वैसे विभागीय अधिकारियों की मानें तो सिंगल गैस कनेक्शन के नाम पर तीन सौ करोड़ रुपए का हर साल घोटाला होता है। राज्य में जिन लोगों के पास गैस के दो सिलेंडर हैं उन्हें मिट्टी का तेल नहीं मिलता है, जबकि जिनके पास एक सिलेंडर है उन्हें तीन लीटर और जिनके पास नहीं हैं उन्हें पांच लीटर मिट्टी का तेल मिलता है।

चूंकि वर्षो पहले बने राशन कार्ड की किसी ने जांच नहीं की, इसलिए जिन्होंने गैस कनेक्शन ले लिए हैं, उनमें से ज्यादातर के राशन कार्ड में तो यह दर्ज कर के उनका केरोसिन कोटा बंद कर दिया गया है, लेकिन इसकी पूरी जानकारी विभाग को नहीं दी गई है। माना जाता है कि इसमें विभागीय अधिकारियों की भी मिलीभगत है, क्योंकि जिन राशन कार्ड धारकों को गैस कनेक्शन मिल गए हैं, उनके हिस्से का बचता केरोसीन खुले बाजार में 25 रुपए तक बिक रहा है, जबकि राशन कार्ड पर लेने पर इसकी कीमत 12 रुपए प्रति लीटर है।

पूरी कर ली है जांच : कैरों

मंत्री आदेश प्रताप सिंह कैरों का दावा है कि सभी राशन कार्ड धारकों की जांच पूरी कर ली है। अब केरोसिन केवल बीपीएल, नीला और लाल कार्ड धारकों को देने का प्रोग्राम शुरू किया है। राशन कार्ड और गैस कनेक्शन जैसी सुविधाओं को लेने के लिए यूआईडी लेना अनिवार्य किया जा रहा है।

किसी के पास जवाब नहीं

पंजाब में 25 लाख परिवारों को केरोसिन मिल रहा है, लेकिन राज्य में मात्र 4.50 लाख परिवार ही गरीबी रेखा के नीचे हैं। नीले कार्ड और दंगा पीड़ितों के कार्डो की संख्या 15.56 लाख से अधिक नहीं है। शेष परिवारों का केरोसिन कहां जा रहा है? इसका जवाब कोई भी विभागीय अधिकारी देने को तैयार नहीं है

Friday, January 7, 2011

दूरसंचार मंत्रालय को दूरसंचार घोटाले की जानकारी नहीं!
 

नई दिल्ली।
दूरसंचार मंत्रालय जो घोटाले का 2010 का प्रमुख अड्डा बना रहा कहता है कि उसे घोटाले की कोई जानकारी नहीं है। जी हां यह लिखित जवाब दिया है दूरसंचार मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने। जिस दूरसंचार घोटाले ने बड़े-बड़ों को नंगा कर दिया, जिसकी वजह से ए .राजा की कुर्सी चली गयी उसी विभाग और मंत्रालय के अधिकारी ने कहा है कि उसके पास घोटाले से जुड़ी जानकारी उपलब्ध नहीं है। इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है? दूर संचार के एक वरिष्ठ अधिकारी ए. के मित्तल, उप महानिदेशक (ए.एस) ने 'थर्ड आई वर्ल्ड न्यूज़' को दिए लिखित जवाब में कहा है कि दूरसंचार स्पेक्ट्रम घोटाले, घोटाले की कुल राशि आदि के बारे में मांगी गयी सूचना का जवाब देने के लिए उसके पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
 
 जिस दूरसंचार घोटाले को लेकर संसद की पूरी शीतकालीन सत्र हंगामे की भेट चढ़ गयी और करोड़ों रूपयों का नुकसान हुआ। जिस घोटाले को लेकर पूरा विपक्ष एक जुट हो गया, जिस घोटाले को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद संसद की लोक लेखा समिति के सामने पेश होने की बात कह डाली उस घोटाले पर दूरसंचार मंत्रालय का एक वरिष्ठ अधिकारी कहता है कि उसके पास घोटाले से संबंधित जानकारी देने के लिए कोई जवाब नहीं है इससे बड़ा बेहूदापन जवाब और क्या हो सकता है। हमने यह जानकारी आरटीआई कानून के तहत मांगी थी। जिसपर मंत्रालय का इस तरह का जवाब मिला है।
 
दूरसंचार मंत्रालय जो सन् 2010 का घोटाले का मुख्यकेंद्र बिंदु था के जिम्मेदार सूचना अधिकारियों का यह जवाब कई सवाल खड़े कर देते हैं। पौने दो लाख करोड़ के इस घोटाले की जानकारी मंत्रालय के उन सूचना अधिकारियों के पास क्यों नहीं है जिनकी नियुक्त ही सूचना देने के लिए हुई है और वह जिसके लिए कानून रूप से अधिकृत हैं। क्यो संबंधित मंत्रालय ने संबंधित अधिकारियों को इस तरह की मांगी गयी जानकारी देने से रोक रखा है? हमें ए.के. मित्तल साहब ने जवाब तो नहीं दिया लेकिन सलाह जरूर दे डाली कि आप यह जानकारी वित्त मंत्रालय और सीबीआई से प्राप्त करें जो जांच कर रही है।
 
देश के इतने बड़े घोटाले की जानकारी प्राप्त करने के लिए आरटीआई का सहारा लेना पड़ा लेकिन उसका भी समुचित जवाब नहीं दिया गया। जबकि घोटाले से संबंधित जो भी जानकारियां मांगी गयी थी वह बहुत सामान्य थीं। जिसके कुछ अंश दिए जा रहे हैं।
सवाल कुछ इस तरह थे- टेलीकॉम घोटाले (स्पेक्ट्रम) घोटाले में किन लोगों को हाथ है, कुल कितने करोड़ का घोटाला हुआ है। घोटाले की जांच कौन-कौन सी एजेंसियां कर रही हैं। घोटाले की जांच कब शुरू की गयी। नीरा राडिया का नाम किस प्रकार से घोटाले में शामिल हुआ, राडिया के अलावा और किन लोगों के नाम इस घोटाले से जुड़े हुए हैं। क्या इस घोटाले में किसी रूप में किसी मीडिया घराने का नाम भी शामिल है? या कोई मीडिया कर्मी किसी न किसी रूप में इस घोटाले में शामिल हुआ है। ये पूछे गये सवालों के कुछ अंश हैं। जिनके जवाब में कहा गया कि आप ये सवाल वित्त मंत्रालय और सीबीआई से पूछे। यह तो वही बात हुई कि घर में चोरी हुई बात पड़ोसी से पूछने को कह दी जाए।
 

प्याज पर हाहाकर लेकिन 400 रुपए किलो के लहसुन पर सब चुप हैं?


 

नई दिल्ली।
प्याज की मंहगाई पर सब लोग गुहार मचाए हुए हैं लेकिन 400 रूपए किलो बिक रहे लहसुन पर किसी की नज़र नही है सब चुप हैं। इन दिनों लहसुन के खुदरा मूल्य 30-40 रूपए प्रति सौ ग्राम बिक रही है, लेकिन लहसुन की इस महंगाई पर मीडिया से लेकर सरकार भी कुछ नहीं बोल रही है। जबकि भारतीय रसोईं के लिए जितना प्याज का महत्व है उतना ही महत्व लहसुन का भी है। लहुसन भारतीय रसोईंये के अलावा कई आयुर्वेदिक दवाओं में भी इसका बड़ी मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है। फिलहाल बाजार में लहसुन की औसत कीमत 400 रूपए प्रति किलो है। पिछले कुछ महीनों से भारतीय खुदरा बाजार पर जैसे किसी तरह की कोई नियंत्रण सरकार का नहीं रह गया है। फिलहाल दिसंबर माह में खाद्य पदार्थों के जारी मुद्रास्फीति की दर से भी यही पता चलता है कि सरकार ने शायद यही ठान लिया है कि बढ़ने दो मंहगाई और लहसुन प्याज के दामों को!
 
 प्याज के बढ़ते दामों पर जहां चारों तरफ एक तरह से हाहाकार मचा हुआ है वहीं 30-40 रूपये किलों बिकने वाला लहुसन 300-400 रूपए किलो के भाव से बिक रहा है। देश के कई प्रमुख थोक सब्जी के बाजारों में दिसंबर माह में मुंबई के वाशी के मंडी में लहसुन का थोक भाव करीब 450-500 रुपए किलो बिका। जबकि इसी लहसुन को खुदरा विक्रेताओं ने करीब 650 से 750 रुपए प्रति किलो दिसंबर माह में बेचा गया। दिल्ली के कई खुदरा बाजारों में लहसुन के भाव करीब 450 रूपए किलो रहे। इस समय भी लहसुन के भाव इतना ज्यादा है कि आम आदमी लहसुन को खरीदकर खाने की बात तो छोड़ दे उसे सूंघ भी नहीं सकते हैं।
 
लहसुन की बड़ी पैदावार उत्तर भारत के किसान करते हैं। बढ़े हुए लहसुन के दामों के बारे में तर्क दिया जा रहा है कि इस बार उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश. राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार और पंजाब में लहुसन की पैदावर कम हुई है जिसकी वजह से लहुसन के दाम और चांदी के दाम किसी न किसी रूप में बराबर चल रहा है। इस समय थोक मंडी में सुपर बंपर लहसुन 140 रुपये से बढ़कर 350 रुपये से 400 रुपये तक, लंबा लहसुन 160 रुपये से बढ़कर 375 रुपये से 425 रुपये और मोटा लहसुन 200 रुपये से बढ़कर 450 रुपये तक हो चुका है। इस तरह अगर हम प्याज से लहसुन की तुलना करें तो प्याज के वर्तमान दामों से लहुसन के दाम 10 गुना से अधिक है।
 
उधर सूत्रों का कहना है कि किसी भी खाद्य चीजों का दाम बढ़ाने में दो कारक काम करते हैं। एक तो सरकार का इसमें कोई हाथ होता है दूसरा जमाखोरी और कालाबाजारी इसका सबसे बड़ा कारण है। सरकार की इसमें एक सबसे बड़ी चाल होती है कि पहले किसी चीज के दामों को बेताहासा वृद्धि करना इसका सीधा उपाय बाजार में जितनी खपत है उसका 50-60 प्रतिशत को रोक देना उसके बाद दामों में बेतहासा वृद्धि होती है। जैसे बाजार में प्याज की कीमत जहां 15 रूपए किलो थी वही प्याज 70-80 रूपए प्रति किलो बढ़ा दी गयी। अब उसे सस्ता बताकर 40-45 रूपए किलो बेचा जा रहा है। यह लोगों को बेवकूफ बनाने की सबसे बड़ी चाल होती है। यही हाल लहसुन की है 35-40 रूपये किलो का लहसुन करीब 400 रूपए किलो बेचा जा रहा है। लेकिन इस तरफ किसी की कोई नज़र नहीं जा रही है। सबसे बड़ी बात तो है कि इसका फायदा छोटे और मझले किसानों को न के बराबर मिल पाता है जबकि सबसे बड़ा फायदा दलालों और बड़े व्यापारियों का होता है। इसमें भी सबसे बड़ी भूमिका स्थानीय और कुछ बड़े नेताओं की होती है। जो बढ़ाने वाले मूल्यों को जमकर खेलते हैं और आम जनता हाय-हाय करती रह जाती है

news

Thursday, January 6, 2011

खुशप्रीत खाकी राजनीति की बलि चढ़ा

चंडीगढ़. चंडीगढ़ पुलिस के अफसरों में को-ऑर्डिनेशन की कमी और एक-दूसरे को नीचा दिखाने की भावना खुशप्रीत की मौत का कारण बनी है।

यदि चंडीगढ़ पुलिस के क्राइम ब्रांच, इंटेलीजेंस और अन्य अफसर मिल-जुलकर काम करते तो खुशप्रीत को अपहर्ताओं के चंगुल से छुड़ाया जा सकता था और उसकी जान बच सकती थी। लेकिन इंटेलीजेंस अभी तक अपहर्ताओं के मोबाइल तक ट्रेस नहीं करवा पाई। चंडीगढ़ पुलिस में राजनीति पूरी तरह हावी है। बड़े अफसर एक-दूसरे को एसएसपी के सामने नीचा दिखाने के लिए कुछ भी कर जाते हैं।

खुशप्रीत के केस में भी को-ऑर्डिनेशन से काम न होने के पीछे यही राजनीति कारण बनी रही। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चंडीगढ़ पुलिस के एक अफसर से बात करने पर उन्होंने कहा कि यदि केस उनके पास होता तो आसानी से हल हो जाता और खुशप्रीत की जान भी बच जाती।

क्राइम ब्रांच की भूमिका पर सवालिया निशान

खुशप्रीत केस में चंडीगढ़ क्राइम ब्रांच की भूमिका पर सवालिया निशान लग गया है। जब से खुशप्रीत किडनैप हुआ, तब से क्राइम ब्रांच न तो अपहर्ताओं के मोबाइल फोन ट्रेस करके उन तक पहुंच सकी और न ही यह तक पता लगा सकी कि अपहर्ता बुड़ैल के ही हैं या किसी बाहरी क्षेत्र के। अब पुलिस को इस बारे में कोई जवाब देते नहीं बन रहा।

राज्यों को लेकर मतभेद

चंडीगढ़ में पंजाब और हरियाणा दोनों प्रदेशों के पुलिस अफसर हैं। कई जगह तो हरियाणा के अफसर पंजाब के अफसरों को पसंद ही नहीं करते। बताया जाता है कि हरियाणा के अफसर चंडीगढ़ में अपना दबदबा कायम रखना चाहते हैं और पंजाब के अफसरों को नीचा दिखाने में लगे रहते हैं। इन दोनों राज्यों के पुलिस अफसरों में तालमेल की कमी होने का असर कई केसों पर पड़ता है

खुशप्रीत को चाहिए इंसाफः न आंसू थमे, न आक्रोश

चंडीगढ़. खुशप्रीत की मौत पर न आंसू थमे हैं, न आक्रोश। वीरवार को बुड़ैल से लेकर सेक्टर 16 के अस्पताल तक पुलिस के खिलाफ लोगों का गुस्सा दिखा। पुलिस ने भी अपनी सारी ताकत पब्लिक से निपटने में लगा दी है। हत्यारों की तलाश के मामले में उसके हाथ अब भी खाली हैं। इस बीच होम सेक्रेटरी राम निवास ने केस की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दे दिए हैं। जांच का जिम्मा डायरेक्टर ट्रांसपोर्ट एमएल शर्मा (पीसीएस) को दिया गया है। उन्हें दस दिन के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है।

बुड़ैल में स्थिति तनावपूर्ण बनी रही। धारा 144 बेअसर रही और लोगों ने इकट्ठे होकर पुलिस के खिलाफ नारेबाजी की। लोगों ने ईंट, पत्थर बरसाए तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया। पब्लिक के गुस्से से बुड़ैल चौकी को बचाने के लिए पुलिस ने सड़क पर बैरिकेड लगाकर रास्ता बंद रखा। गुस्साए लोगों ने सेक्टर 33-45 की डिवाइडिंग रोड पर भी तोड़फोड़ की। लोगों ने पुलिस बीट बॉक्स, लाइटों, लेटर बॉक्स को तोड़ डाला।

नहीं खुली एक भी दुकान

स्थानीय दुकानदारों ने वीरवार को रोष स्वरूप बुड़ैल की सभी दुकानें बंद रखी। सेक्टर 46 मार्केट में भी दुकानदारों ने दोपहर दो बजे तक दुकानें बंद रखी। मार्केट की पार्किग में काले झंडे लगाकर पुलिस की निंदा की।

एसपी की गाड़ी पर मारी ईंट

एसपी ऑपरेशन आरएस घुम्मप वीरवार शाम खुद जिप्सी चलाकर बुड़ैल पहुंचे। उनके साथ एमएल शर्मा व कुछ मुलाजिम भी थे। जिप्सी को देखकर कुछ महिलाएं आगे खड़ी हो गईं। जिप्सी रुकी तो किसी ने ईंट दे मारी। इस पर एसपी ने लाठीचार्ज के आदेश दे दिए। लाठियां बरसते ही लोग भाग खड़े हुए, आसू गैस भी छोड़ी गई।

जवाब से भागती रहीं पुलिस

जीएमएसएच में पुलिस और प्रशासन के अधिकारी मौजूद थे। लेकिन सभी मीडिया का सामना करने से भागते रहे। एसपी ट्रैफिक एंड सिक्योरिटी एचएस दून ने बस इतना ही कहा, केस की जांच चल रही है।

सुनने पड़े तीखे कमेंट

जीएमएसएच-16 में पुलिस को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा। बुड़ैल से आए लोगों व खुशी के परिजनों ने पुलिस को नाकामी के लिए कोसा। मीडिया की मौजूदगी में पुलिस चुपचाप सब सुनती रही। कुछ महिलाओं ने पुलिस को चूड़ियां पहनने को कहा।

पहले कार्रवाई, फिर पोस्टमॉर्टम

खुशप्रीत के शव का वीरवार को पोस्टमॉर्टम नहीं हो पाया। जीएमएसएच-16 में खुशप्रीत के परिजन और बुड़ैल के लोग दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की मांग पर अड़े रहे। पिता लखबीर सिंह ने भी केस की जांच में लापरवाही बरतने वाले अफसरों पर कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए पोस्टमॉर्टम करवाने से इंकार कर दिया। सुबह से बुड़ैल के लोग और परिजन हॉस्पिटल पहुंचने लगे। तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए यहां भारी संख्या में पुलिस तैनात की गई। 12 बजे तक हॉस्पिटल पुलिस छावनी में बदल चुका था।

पुलिस और परिजनों के बीच नोकझोंक भी होती रही। एसपी ट्रैफिक एंड सिक्योरिटी एचएस दून, डीएसपी क्राइम सतबीर सिंह, डीएसपी ऑपरेशन जगबीर सिंह समेत कई पुलिस अधिकारी हॉस्पिटल पहुंचे। एडीसी पीएस शेरगिल भी मौजूद रहे। करीब एक बजे खुशप्रीत के पिता लखबीर सिंह हॉस्पिटल आए। तभी परिजनों ने पोस्टमॉर्टम नहीं करवाने की बात उठाई। लखबीर पुलिस के साथ अंदर चले गए।

इसके बाद खुशप्रीत के चाचा सुखविंदर सिंह अंदर गए। इसके फौरन बाद लखबीर बाहर आ गए और केस सुलझाने में नाकाम रहे जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई की मांग की। यह मांग पूरी होने न होने तक परिजनों ने पोस्टमार्टम न करवाने का फैसला लिया और हॉस्पिटल से वापस चले गए

जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों का वर्ष

जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों का वर्ष




आधुनिक विकास के साथ-साथ आधुनिक बीमारियां भी धीरे-धीरे अपनी जगह बना रही हैं। 2010 में इस जीवन शैली से उत्पन्न बीमारियों से निपटना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती होगी। निश्चित तौर पर तनाव बढ़ेगा, काम के लंबे घंटे होंगे। बोझ व चिंताएं दुगुनी होंगी। ऐसे में पुरानी बीमारियों के बढ़ने के साथ नई बीमारियों के पैदा होने का खतरा भी होगा। इस चुनौती से निपटने के लिए जरूरी है जीवन शैली में बुनियादी बदलाव।

हमारे जीवन में शारीरिक श्रम के लिए कोई स्थान नहीं है। हम ज्यादा काम दिमाग या हाथ से करते हैं। बाकी समय हम या तो कुर्सी पर बैठे होते हैं या अपनी गाड़ियों में। शारीरिक निष्क्रियता नई जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा है। व्यायाम न करने के कारण पेट, आंतों और ब्रेस्ट का कैंसर होने की संभावना होती है। विभिन्न शोधों में यह बात उभरकर आई है कि शारीरिक व्यायाम न करने वाली स्त्रियां ज्यादा ब्रेस्ट कैंसर की शिकार होती हैं।

पुराने समय में स्त्रियां घरों में और पुरुष बाहर शारीरिक श्रम करते थे, इसलिए वे इन बीमारियों से बचे रहते थे। व्यायाम न करने के कारण हाई ब्लडप्रेशर, हाइपरटेंशन, ऑस्टियोपोरोसिस, डायबिटीज जैसी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक भारत में इन बीमारियों की संख्या पश्चिम की तुलना में बहुत ज्यादा है। इस जीवन शैली से उपजा है आधुनिक खान-पान, जंक फूड और ऐसी चीजें, जिनमें वसा की मात्रा बहुत ज्यादा है।

घरों में भी भोजन में आमतौर पर ज्यादा तेल-मसाले का इस्तेमाल होता है। इससे भी पेट और आंतों का कैंसर हो सकता है। ज्यादा तेल-घी का सेवन कोलेस्ट्रॉल बढ़ाता है, जिससे हार्ट अटैक की आशंका बढ़ जाती है। आजकल शराब और सिगरेट सोशलाइट होने का एक जरिया बन गया है, जिसके बगैर आप आधुनिक नहीं कहलाते। शराब के सेवन से गैस्ट्रिक और लीवर कैंसर का खतरा होता है। शराब के साथ अक्सर लोग चिप्स या तली-भुनी चीजें खाते हैं।

यह सेहत के लिए खतरनाक है। तंबाकू और पान मसाले के सेवन से मुंह का कैंसर हो सकता है। भारत में मुंह का कैंसर आम बीमारी है, जबकि लंदन या यूरोप के देशों में मुंह का कैंसर नहीं होता, क्योंकि वहां पान मसाले जैसी चीजें खाने का प्रचलन नहीं है। वहां सिगरेट पीने के कारण फेफ ड़ों का कैंसर काफी होता है।

नई पीढ़ी आधुनिक दिखने के लिए जो सिगरेट, शराब अपना रही है, वह उनके लिए बीमारियों की खान है। इन बीमारियों को दूर रखने और स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है कि हम आधुनिकता को अपनाएं, लेकिन आधुनिक निष्क्रियता से दूर रहें। दिनचर्या व खानपान प्रकृति के निकट हों। नए साल में अगर हम स्वस्थ मन व मस्तिष्क के साथ जीना चाहते हैं तो कुछ बातें ध्यान में रखनी जरूरी हैं।

प्रतिदिन कम से कम आधा घंटा व्यायाम करें। अगर सुबह समय के अभाव के कारण संभव न हो तो दिन में किसी भी समय व्यायाम किया जा सकता है।
खाने में तेल, घी, मसाले का सेवन न के बराबर करें। ज्यादातर भोजन उबला और सादा हो।
खाने में फल व हरी सब्जियों का उपयोग करें। कच्ची सब्जियां, सलाद और फाइबर वाले पदार्थो का सेवन करें।

पिछले कुछ समय में भारत में लड़कियों में सरवाइकल कैंसर भी काफी तेजी के साथ बढ़ा है। इस बीमारी की वजह भी आधुनिक जीवन शैली ही है, लेकिन इसका इलाज भी मौजूद है। सरवाइकल कैंसर का एक टीका बाजार में है। 14 से 22 साल की उम्र के बीच लड़कियों को यह टीका जरूर लगवाया जाना चाहिए। इससे सरवाइकल कैंसर की संभावना खत्म हो जाती है। सिर्फ थोड़ी सी जानकारी और सावधानी से बीमारियों से मुक्त स्वस्थ जीवन यापन किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है प्रकृति से जुड़ी और वैज्ञानिक जीवन शैली।