Monday, December 20, 2010

भारत में आसानी से घुस सकती है 'चीनी फ़ौज' !




बीजिंग. भारत की सीमा तक हाई-वे बनाने की राह में चीन ने आखिरी बाधा पार कर ली है। इस सड़क पर 3.3 किमी (3310मीटर) की आखिरी सुरंग का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है। चीन के सरकारी टेलीविजन ने बुधवार को सुरंग निर्माण स्थल से कुछ सीधी तस्वीरें प्रसारित कीं। इस सुरंग के बनते ही चीन कभी भी बड़ी ही आसानी से भारत में सेंध लगाने में सक्षम हो गया है।

विस्फोट के जरिए सुरंग का दूसरा छोर खुलने के बाद इसके निर्माण में जुटे मजदूरों को इन तस्वीरों में जश्न मनाते दिखाया गया। समुद्र तल से 3,750 मीटर की ऊंचाई पर बर्फ से ढंके गैलोंग्ला पर्वत पर यह सुरंग बनाई गई है। इसके निर्माण में पूरे दो साल लगे।

तिब्बत में मोशुओ काउंटी (तिब्बती में मेटोक) भारत के अरुणाचल प्रदेश से लगा वहां का आखिरी क्षेत्र है। यहां अब तक कोई हाई-वे नहीं है। इस स्थान का सामरिक महत्व है क्योंकि अरुणाचल को चीन दक्षिण तिब्बत का हिस्सा कहता है। यहीं से ब्रह्मपुत्र नदी भारत में प्रवेश करती है।

इस 117 किलोमीटर के हाई-वे के बन जाने के बाद मेटोक नजदीकी बोमी काउंटी से जुड़ जाएगा। बोमी काउंटी तक चीन को जोड़ने वाली सड़क पहले ही मौजूद है।
भारतीय गुप्तचरों का खुलासा, ब्रह्मपुत्र नदी पर 24 डैम बना रहा है चीन


नई दिल्ली. भारतीय गुप्तचरों ने खुलासा किया है कि चीन ब्रह्मपुत्र नदी और इसकी सहायक नदियों पर 24 नई जल-विद्युत परियोजनाओं पर काम कर रहा है। चीन की सीमा में चल रहे इन कामों से ब्रह्मपुत्र के बहाव पर विपरीत असर पड़ेगा। हाल ही में कैबिनेट सचिवों की समिति की नई दिल्ली में आयोजित बैठक में इस मुद्दे पर चिंता जताई गई और तय किया गया कि चीन द्वारा तैयार की जा रही परियोजनाओं पर लगातार निगाह रखी जाए।

भारतीय राष्ट्रीय तकनीकी शोध संस्थान (एनटीआरओ) ने भी अभी तक यही माना था कि चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर करीब 6 परियोजनाओं पर ही काम कर रहा है लेकिन नए खुलासे के अनुसार चीन 24 डैम बना रहा है।

हाल ही में चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ भारत आए थे। उस दौरान भी भारत ने ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन की निर्माणाधीन परियोजनाओं का मामला उठाया। लेकिन चीन ने दावा किया कि वहां कुछ एक परियोजनाओं पर ही काम चल रहा है और इससे नदी के बहाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन अब भारतीय गुप्तचर विभाग ने गृह विभाग को सौंपी रिपोर्ट में बताया है कि वहां एक या दो नहीं बल्कि दो दर्जन हाइड्रो-पॉवर परियोजनाओं पर काम हो रहा है।

भारतीय गुप्तचरों ने हालांकि कहा कि ये प्रोजेक्ट्स जांगमू प्रोजेक्ट जितने बड़े नहीं हैं। जांगमू प्रोजेक्ट चीन की सीमा में ब्रह्मपुत्र पर बनाया जा रहा सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है।

नई दिल्ली में हाल ही में कैबिनेट सचिवों की समिति की बैठक कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर की अध्यक्षता में हुई। बैठक में चीन की गतिविधियों पर लगातार नजर रखने पर बल दिया गया।

चीन और भारत के बीच हुई संधि के अनुसार दोनों देश बाढ़ के दौरान नदियों के जल स्तर संबंधी आंकड़ों का आदान-प्रदान करते हैं लेकिन नदियों पर किए जा रहे निर्माण कार्यों की जानकारी के लेन-देन संबंधी कोई संधि नहीं है। और इन जानकारियों के लिए भारत को पूरी तरह अपने सूत्रों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

हाल ही में चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ हाल ही में की गई अपनी भारत यात्रा के दौरान इस मुद्दे पर बचते रहे। चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर बनने वाले प्रोजेक्ट्स की कोई जानकारी भारत को नहीं दी। चीन ने बाढ़ के दौरान आंकड़ों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया को और मजबूत बनाने पर जोर दिया लेकिन ब्रह्मपुत्र पर बनने वाले प्रोजेक्ट्स की कोई चर्चा नहीं की।

भारतीय सीमा की परियोजनाओं पर लालफीताशाही हावी
भारतीय विशेषज्ञ लंबे समय से केंद्र सरकार से कहते आ रहे हैं कि भारतीय सीमा में भी अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र पर कुछ प्रोजेक्ट्स शुरू किए जाएं लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी पर बन रहे एक प्रोजेक्ट का केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय विरोध कर रहा है। इस वजह से इसका काम भी ठप्प हो गया है।

चीन आंकड़े देने के लिए लेता है फीस
सतलुज नदी का बहाव भारत से पाकिस्तान की तरफ है और भारत पाकिस्तान को बाढ़ के समय आंकड़े देने के एवज में कोई फीस नहीं लेता लेकिन चीन भारत को ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों से जुड़े आंकड़े देने के लिए बड़ी रकम लेता है।
फिर से रुलाने लगा प्‍याज, सरकार ने निर्यात पर लगाई 15 जनवरी तक रोक



नई दिल्ली. देश की जनता एक बार फिर प्याज के आंसू रोने पर मजबूर है। प्‍याज की आसमान छूती कीमतों ने रसोई का बजट बिगाड़ दिया है। कीमतों पर काबू पाने के लिए सरकार ने इसके निर्यात पर 1५ जनवरी तक रोक लगा दी है। सरकार ने यह कदम दिल्ली समेत देशभर में प्याज की कीमतें 70 से 8० रुपए प्रति किलो तक पहुंचने के बाद उठाया है। प्याज की बेकाबू होती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर विचार-विमर्श के लिए दिल्‍ली की मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित ने मंगलवार को आपात बैठक बुलाई है।

सरकार ने प्‍याज के निर्यात पर रोक लगाने के साथ ही इसका न्यूनतम निर्यात मूल्य 525 डॉलर से बढ़ाकर १,२०० डॉलर प्रति टन कर दिया है। इसके अलावा सहकारी एजेंसी नैफेड और 12 अन्‍य एजेंसियों द्वारा प्याज के निर्यात के लिए नए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने पर भी रोक लगाई गई है।

बढ़ती कीमत ने बिगाड़ा बजट
कभी प्याज और रोटी से अपनी भूख मिटाने वाले आम आदमी की पहुंच से प्याज का स्वाद दूर होने लगा है। प्‍याज देशभर में लगभग हर परिवार के किचन में रोजाना इस्‍तेमाल किया जाता है। इसकी बढ़ती कीमतों से गृहणियों के बजट पर सीधा असर पड़ता है। इससे पहले 1999 में प्‍याज की कीमतें इसी तरह बेकाबू हुई थीं। उस वक्‍त जनता का गुस्‍सा दिल्‍ली की भाजपा सरकार पर फूटा और सरकार चली गई जो अभी तक नहीं लौट सकी है।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में प्याज की खुदरा कीमतें 60-70 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई हैं। एशिया की सबसे बड़ी सब्‍जी मंडी आजादपुर सब्जी मंडी में सोमवार से इसकी थोक कीमतें भीं 30-60 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गईं।

पिछले हफ्ते देश में प्‍याज की थोक कीमतें 3000 रुपये प्रति क्विंटल थीं जो इस हफ्ते बढ़कर 4500 हजार रुपये हो गई हैं।

मुंबई में पिछले हफ्ते प्‍याज की कीमतें 40 रुपये प्रति किलो थीं जो इस हफ्ते 60 से 70 रुपये, चेन्‍नई में पिछले हफ्ते 48 रुपये प्रतिकिलो जो इस हफ्ते 75 रुपये, बेंगलुरू में पिछले हफ्ते 52 रुपये जो इस हफ्ते 60 से 70 रुपये प्रतिकिलो हो गई हैं।

पाकिस्‍तान ने भेजे 13 ट्रक प्‍याज
पाकिस्तान ने 13 ट्रक प्याज भेजे हैं। ये प्याज सोमवार को अटारी वाघा सीमा होते हुए अमृतसर पहुंच गए। एक ट्रक में पांच से 15 टन प्याज भरा है। इनकी आपूर्ति से दिल्ली समेत उत्तरी भारत के बाजारों में कीमतें थम जाने की उम्मीद है।

लहसुन में भी तेजी
निर्यात का असर लहसुन के दाम पर भी पड़ रहा है। ऊपर से तेज होती सर्दी ने इसकी मांग और बढ़ा दी है। वहीं, मांग की तुलना में आपूर्ति काफी घट गई है। इन सब कारणों से दिल्ली में लहुसन का थोक भाव १३५ से १७० रुपए प्रति किलो तक पहुंच गया है।

दिल्‍ली सरकार लगाएगी स्‍टाल
दिल्ली सरकार लोगों को थोक बाजार के भाव पर इसकी आपूर्ति के लिए राजधानी में विशेष बिक्री केन्द्रों खोलने पर विचार कर रही है। इस सिलसिले में खाद्य एवं आपूर्ति सचिव जयश्री रघुरमण ने विभाग के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक की और उनसे महाराष्ट्र के व्यापारियों से संपर्क में रहने को कहा। आपको बता दें कि दिल्ली में अधिकांश प्याज वहीं से आती है। हाल के दिनों तक दिल्ली में प्याज की खुदरा कीमत 35 से 40 रुपये प्रति किलोग्राम थी जो अब बढ़कर 60 से 70 रुपये प्रति किलोग्राम हो गयी।

क्‍यों बढ़ी कीमतें
बे-मौसम बारिश के कारण नाशिक की सब्जी कृषि उपज मंडियों में प्याज की आवक कम होने से प्याज के दाम आसमान पर हैं। नाशिक में पिछले माह हुई बे-मौसम बारिश के कारण प्याज की फसल का भारी नुकसान हुआ था। बेमौसम बारिश से नाशिक जिले में एक लाख हेक्टेयर पर की प्याज का नुकसान हुआ था। बेमौसम बारिश से प्याज का नुकसान होने से लासलगांव, पिंपलगांव, निफाड, सटाणा, सिन्नर इन कृषि उपज मंड़ियों में प्याज की आवक कम हुई है। प्याज की आवक कम होने से दाम दोबारा आसमान छू गए हैं।

प्याज के व्यापारियों का कहना है कि गुजरात और राजस्थान में पिछले दिनों आई बरसात से प्याज खराब हो गई है। कुछ खेतों में और कुछ बाहर प्याज काफी हद तक सड़ गई। इसका असर बाहर से प्याज की आवक पर पड़ा। यही वजह है कि प्याज की दरों में इतना इजाफा हुआ है। उनका कहना है कि पाकिस्तान से प्याज की खेप आने के बाद इसकी कीमतों 5 से 10 रुपये प्रति किलो कमी आ सकती है। हालांकि सरकार ने माना है कि जमाखोरी के चलते प्‍याज की कीमतें आसमान छूने लगी हैं।
कोट

'अगले पांच दिनों में प्‍याज की कीमतें बढ़ सकती हैं। इससे प्‍याज की खुदरा कीमतों पर असर पड़ेगा।'
रिश्तेदार भिड़े, बहा खून, एमएलए सिद्धू पर भी केस


मोहाली. शनिवार रात खरड़ के गांव बरियाली में रह रहे दो रिश्तेदार परिवारों के बीच मामूली झगड़े में गोलियां चलीं और एक की जान चली गई। गोलीबारी में छह लोग घायल हैं। पुलिस ने गांव के सरपंच सहित तीन लोगों के साथ ही खरड़ से विधायक बलबीर सिंह सिद्धू और उनके भाई अमरजीत सिंह जीती के खिलाफ भी केस दर्ज किया है। सिद्धू के खिलाफ साजिश रचने जबकि जीती के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास का केस दर्ज किया गया है।


शनिवार रात को गाड़ी खड़ी करने को लेकर जितेंदर तथा गुरप्रीत सिंह में झगड़ा हो गया। झगड़ा बढ़ा और थोड़ी ही देर में दोनों तरफ से एक-दूसरे पर गोलियां चलने लगीं। गोली लगने से रत्न सिंह की मौत हो गई। रत्न सिंह के बेटे हरजिंदर ने आरोप लगाया कि पिता पर गांव के सरपंच कुलवंत सिंह, जितेंदर सिंह तथा दिलबर सिंह ने अपने अन्य साथियों के साथ हमला किया। गोलीबारी में हरजिंदर, अमरीक सिंह, गुरप्रीत सिंह, कुलविंदर कौर तथा हरप्रीत सिंह घायल हुए हैं। इन्हें पीजीआई में दाखिल कराया गया है। दूसरी तरफ, सरपंच कुलवंत सिंह के परिवार वालों ने बताया कि रात को हरजिंदर और गुरप्रीत ने कुछ लोगों के साथ आकर दरवाजा खटखटाया।


जितेंदर के दरवाजा खोलते ही उन्होंने हमला कर दिया। घर में घुसकर दिलबर की जांघ में गोली मार दी। जान बचाने के लिए दिलबर पूरे घर में भागता रहा। दिलबर को फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया है। एसएसपी गुरप्रीत सिंह भुल्लर ने बताया कि हरजिंदर की शिकायत पर दिलबर, कुलवंत, जितेंदर और कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ कत्ल तथा आर्म्स एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है। ये दोनों परिवार आपस में रिश्तेदार है, जिनकी जमीन को लेकर पुरानी रंजिश चल रही है।


सफारी खड़ी करने को लेकर हुआ झगड़ा


गुरप्रीत ने अपनी टाटा सफारी गाड़ी जितेंदर के घर के पास खड़ी की थी। जितेंदर ने उसे गाड़ी खड़ी करने से रोका तो वह अपने परिवार को बुला लाया। इसके बाद दोनों परिवारों के बीच गोलियां चलीं और रत्न सिंह की मौत हो गई।


गांव में सन्नाटा, घर में खून


रात को हुई गोलीबारी की घटना का असर रविवार सुबह गांव में दिखाई दे रहा था। चारों ओर सन्नाटा पसरा था और लोग कम ही दिखाई दे रहे थे। जिस सफारी गाड़ी के पास झगड़ा हुआ वहां पर खून बिखरा हुआ था और दिलबर सिंह के घर के कई कमरे खून से सने हुए थे।


एसआईटी करेगी जांच


एसएसपी गुरप्रीत सिंह भुल्लर ने बताया कि इस कत्ल केस की जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) का गठन किया गया है। पांच सदस्यीय एसआईटी का प्रमुख एसपी डी प्रीतम सिंह को लगाया गया है। इस टीम में डीएसपी हेडक्वार्टर मनमिंदर सिंह, डीएसपी डी सतनाम सिंह, सीआईए मोहाली इंचार्ज गुरचरण सिंह तथा एसएचओ बलौंगी पलविंदर सिंह शामिल हैं।


मैं दिल्ली में हूं, चाहे मोबाइल चेक करा लो


गोलीकांड में सरपंच कुलवंत सिंह के परिवार के खिलाफ केस दर्ज होने के साथ ही शिकायतकर्ताओं ने क्षेत्रीय विधायक बलबीर सिंह सिद्धू और उनके भाई अमरजीत सिंह जीती का नाम भी लिया। कुलवंत सिंह उनका नजदीकी बताया जाता है। हालांकि पुलिस की एफआईआर में सिद्धू और जीती का नाम नहीं है। वहीं, विधायक बलबीर सिंह सिद्धू ने दिल्ली से जारी प्रेसनोट में बताया है कि उनका नाम इस केस में बिना वजह घसीटा जा रहा है, जो राजनीति से प्रेरित है।


उन्होंने कहा कि वह शनिवार दिन से ही कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने दिल्ली पहुंचे हुए हैं। उनका भाई शनिवार रात को काउंसिल अध्यक्ष रजिंदर सिंह राणा तथा सरपंच कुलवंत सिंह के साथ जीरकपुर के बेस्टवुड पैलेस में शादी में गए हुए थे।


सिद्धू ने कहा है कि सबूत के तौर पर उन सबकी मोबाइल फोन की लोकेशन चेक कराई जा सकती है। शादी के फोटोग्राफ्स व वीडियो की भी जांच की जा सकती है। उन्होंने कहा कि उनकी एंट्री दिल्ली में पंजाब भवन के रजिस्टर में भी दर्ज है।


अधिकारी छिपाते रहे बलबीर सिद्धू का नाम


बरियाली गोलीकांड को लेकर जो एफआईआर पुलिस ने दर्ज की है उसके अनुसार आईपीसी की धारा 120बी के तहत बलबीर सिंह सिद्धू को आरोपी बनाया गया है। उनके भाई अमरजीत सिंह जीती को आईपीसी की धारा 302 तथा 307 के तहत मुख्य आरोपियों में शािमल किया गया है। लेकिन पुलिस का कोई भी अधिकारी तथा एसएचओ सिद्धू और जीती का नाम नहीं बता रहे हैं। एसएसपी की ओर से जारी प्रेसनोट तथा जिला लोक संपर्क कार्यालय की ओर से जारी की गई सूचना में कहीं भी दोनों का नाम नहीं है।
चीन के हाथों बिका नेपाल, तिब्‍बतियों की गिरफ्तारी के बदले लेता है पैसे

दिल्‍ली. नेपाल में चीन के विरोध में होने वाले तिब्‍बतियों के प्रदर्शन को कुचलने के लिए ड्रैगन वहां की सरकार पर धन की बारिश करता है। इन प्रदर्शनकारियों को कुचलने के लिए नेपाल सरकार पर दबाव बनाने के साथ चीन ने वहां की पुलिस को पैसे बांटकर कई तिब्‍बतियों को गिरफ्तार भी करवाया है।

खोजी वेबसाइट विकीलीक्‍स की ओर से जारी किए गए अमेरिकी विदेश मंत्रालय के गोपनीय संदेशों में यह बात सामने आई है कि चीन की सरकार नेपाल के पुलिस अधिकारियों को नकद ईनाम देती है जो चीन छोड़कर भागने की कोशिश कर रहे तिब्‍बतियों को गिरफ्तार कर उन्‍हें ड्रैगन के हवाले कर देते हैं।

नई दिल्‍ली स्थित अमेरिकी दूतावास से 22 फरवरी 2010 को अमेरिकी प्रशासन को भेजे गए इस गोपनीय संदेश में अज्ञात सूत्र का हवाला देते हुए कहा गया है कि चीन के दबाव में नेपाल निर्वासित शरणार्थियों पर नियंत्रण कस रहा है। ‘दिल्‍ली डायरी’ नाम से भेजे गए इस संदेश को ‘गोपनीय’ संदेश की सूची में रखा गया जिसमें इस सूत्र की चार फरवरी को नई दिल्‍ली में हुई एक बैठक का जिक्र किया गया है। अमेरिकी राजदूतों के ढाई लाख संदेश जगजाहिर कर रही विकीलीक्‍स ने सूत्र के तौर पर जिस व्‍यक्ति का नाम लिया गया था उसका नाम हटा दिया है।

संदेश में नेपाल के एक अखबार के हवाले से कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में प्रवेश करने वाले तिब्‍बतियों की संख्‍या में कमी आई है। बीजिंग ने काठमांडू से नेपाल की सीमा पर चौकसी बढ़ाने के लिए कहा है जिससे तिब्‍बतियों के लिए नेपाल में घुसना मुश्किल हो गया है। इसमें कहा गया है कि मार्च 2008 के बाद भारत में प्रवेश करने वाले तिब्‍बतियों की संख्‍या कम हुई है।

नेपाल में करीब 20000 तिब्‍बती शरण लिए हैं और ल्‍हासा में 2008 में हुई हिंसा के बाद काठमांडू में चीन विरोधी प्रदर्शन होते रहते हैं। पश्चिमी देशों की ओर से नेपाल पर इन प्रदर्शनों को जारी रहने देने का दबाव है। हालांकि नेपाल मानता है कि तिब्‍बत चीन का अभिन्‍न हिस्‍सा है।
चीन के हाथों बिका नेपाल, तिब्‍बतियों की गिरफ्तारी के बदले लेता है पैसे

दिल्‍ली. नेपाल में चीन के विरोध में होने वाले तिब्‍बतियों के प्रदर्शन को कुचलने के लिए ड्रैगन वहां की सरकार पर धन की बारिश करता है। इन प्रदर्शनकारियों को कुचलने के लिए नेपाल सरकार पर दबाव बनाने के साथ चीन ने वहां की पुलिस को पैसे बांटकर कई तिब्‍बतियों को गिरफ्तार भी करवाया है।

खोजी वेबसाइट विकीलीक्‍स की ओर से जारी किए गए अमेरिकी विदेश मंत्रालय के गोपनीय संदेशों में यह बात सामने आई है कि चीन की सरकार नेपाल के पुलिस अधिकारियों को नकद ईनाम देती है जो चीन छोड़कर भागने की कोशिश कर रहे तिब्‍बतियों को गिरफ्तार कर उन्‍हें ड्रैगन के हवाले कर देते हैं।

नई दिल्‍ली स्थित अमेरिकी दूतावास से 22 फरवरी 2010 को अमेरिकी प्रशासन को भेजे गए इस गोपनीय संदेश में अज्ञात सूत्र का हवाला देते हुए कहा गया है कि चीन के दबाव में नेपाल निर्वासित शरणार्थियों पर नियंत्रण कस रहा है। ‘दिल्‍ली डायरी’ नाम से भेजे गए इस संदेश को ‘गोपनीय’ संदेश की सूची में रखा गया जिसमें इस सूत्र की चार फरवरी को नई दिल्‍ली में हुई एक बैठक का जिक्र किया गया है। अमेरिकी राजदूतों के ढाई लाख संदेश जगजाहिर कर रही विकीलीक्‍स ने सूत्र के तौर पर जिस व्‍यक्ति का नाम लिया गया था उसका नाम हटा दिया है।

संदेश में नेपाल के एक अखबार के हवाले से कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में प्रवेश करने वाले तिब्‍बतियों की संख्‍या में कमी आई है। बीजिंग ने काठमांडू से नेपाल की सीमा पर चौकसी बढ़ाने के लिए कहा है जिससे तिब्‍बतियों के लिए नेपाल में घुसना मुश्किल हो गया है। इसमें कहा गया है कि मार्च 2008 के बाद भारत में प्रवेश करने वाले तिब्‍बतियों की संख्‍या कम हुई है।

नेपाल में करीब 20000 तिब्‍बती शरण लिए हैं और ल्‍हासा में 2008 में हुई हिंसा के बाद काठमांडू में चीन विरोधी प्रदर्शन होते रहते हैं। पश्चिमी देशों की ओर से नेपाल पर इन प्रदर्शनों को जारी रहने देने का दबाव है। हालांकि नेपाल मानता है कि तिब्‍बत चीन का अभिन्‍न हिस्‍सा है।
चीन के हाथों बिका नेपाल, तिब्‍बतियों की गिरफ्तारी के बदले लेता है पैसे

दिल्‍ली. नेपाल में चीन के विरोध में होने वाले तिब्‍बतियों के प्रदर्शन को कुचलने के लिए ड्रैगन वहां की सरकार पर धन की बारिश करता है। इन प्रदर्शनकारियों को कुचलने के लिए नेपाल सरकार पर दबाव बनाने के साथ चीन ने वहां की पुलिस को पैसे बांटकर कई तिब्‍बतियों को गिरफ्तार भी करवाया है।

खोजी वेबसाइट विकीलीक्‍स की ओर से जारी किए गए अमेरिकी विदेश मंत्रालय के गोपनीय संदेशों में यह बात सामने आई है कि चीन की सरकार नेपाल के पुलिस अधिकारियों को नकद ईनाम देती है जो चीन छोड़कर भागने की कोशिश कर रहे तिब्‍बतियों को गिरफ्तार कर उन्‍हें ड्रैगन के हवाले कर देते हैं।

नई दिल्‍ली स्थित अमेरिकी दूतावास से 22 फरवरी 2010 को अमेरिकी प्रशासन को भेजे गए इस गोपनीय संदेश में अज्ञात सूत्र का हवाला देते हुए कहा गया है कि चीन के दबाव में नेपाल निर्वासित शरणार्थियों पर नियंत्रण कस रहा है। ‘दिल्‍ली डायरी’ नाम से भेजे गए इस संदेश को ‘गोपनीय’ संदेश की सूची में रखा गया जिसमें इस सूत्र की चार फरवरी को नई दिल्‍ली में हुई एक बैठक का जिक्र किया गया है। अमेरिकी राजदूतों के ढाई लाख संदेश जगजाहिर कर रही विकीलीक्‍स ने सूत्र के तौर पर जिस व्‍यक्ति का नाम लिया गया था उसका नाम हटा दिया है।

संदेश में नेपाल के एक अखबार के हवाले से कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में प्रवेश करने वाले तिब्‍बतियों की संख्‍या में कमी आई है। बीजिंग ने काठमांडू से नेपाल की सीमा पर चौकसी बढ़ाने के लिए कहा है जिससे तिब्‍बतियों के लिए नेपाल में घुसना मुश्किल हो गया है। इसमें कहा गया है कि मार्च 2008 के बाद भारत में प्रवेश करने वाले तिब्‍बतियों की संख्‍या कम हुई है।

नेपाल में करीब 20000 तिब्‍बती शरण लिए हैं और ल्‍हासा में 2008 में हुई हिंसा के बाद काठमांडू में चीन विरोधी प्रदर्शन होते रहते हैं। पश्चिमी देशों की ओर से नेपाल पर इन प्रदर्शनों को जारी रहने देने का दबाव है। हालांकि नेपाल मानता है कि तिब्‍बत चीन का अभिन्‍न हिस्‍सा है।

Sunday, December 19, 2010

ਕੁੜੀਆਂ ਤਾਂ ਕੁੜੀਆਂ ਨੇ ਕੁੜੀਆਂ ਦਾ ਕੀ ਏ,
ਕੁੜੀਆਂ ਤਾਂ ਚਿੜੀਆਂ ਨੇ ਕੁੜੀਆਂ ਦਾ ਕੀ ਏ.
ਬਾਬੁਲ ਦੀ ਪਗੜੀ ਵੀਰਾਂ ਦੇ ਰੱਖੜੀ,
ਮਾਵਾਂ ਦੀ ਅੱਖੀਆਂ ਦਾ ਨੂਰ ਨੇ ਕੁੜੀਆਂ,
ਸਮਝ ਨੀ ਆਉਦੀ ਫਿਰ ਵੀ ਏ ਕਾਤੋਂ
ਬੇਬੱਸ ਤੇ ਮਜ਼ਬੂਰ ਨੇ ਕੁੜੀਆਂ,
ਏ ਕਿਸ ਗੱਲ ਥੁੜੀਆਂ ਨੇ ਕੁੜੀਆਂ ਦਾ ਕੀ ਏ,
ਕੁੜੀਆਂ ਤਾਂ ਕੁੜੀਆਂ ਨੇ ਕੁੜੀਆਂ ਦਾ ਕੀ ਏ,
ਕੁੜੀਆਂ ਏ ਮਮਤਾ ਤੋਂ ਥੁੜੀਆਂ ਕੁੜੀਆਂ ਦਾ ਕੀ ਏ,
ਸਾਇੰਸ ਤਾ ਬਹੁਤ ਤਰੱਕੀ ਕਰ ਗਈ
ਪਰ ਕੁੱਝ ਅਣਹੋਣੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਵੀ ਨੇ,
ਕਈ ਬਦਕਿਸਮਤ ਕੁੜੀਆਂ ਇੱਥੇ
ਜਨਮ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮੋਈਆਂ ਵੀ ਨੇ
ਕੁੜੀਆਂ ਕਿਸਮਤ ਥੁੜੀਆਂ ਨੇ ਕੁੜੀਆਂ ਦਾ ਕੀ ਏ,
ਕੁੜੀਆਂ ਤਾਂ ਕੁੜੀਆਂ ਨੇ ਕੁੜੀਆਂ ਦਾ ਕੀ ਏ,
ਰਿਸ਼ੀ ਮੁਨੀ ਅਵਤਾਰ-ਔਲੀਏ
ਪੀਰ ਪੈਗੰਬਰ ਜਿਸਨੇ ਜਾਏ,
ਦੇਵਤਿਆਂ ਦੇ ਧਰਤੀ ਦੇ ਉੱਤੇ
ਫਿਰ ਵੀ ਏ ਕਿਉਂ ਕਾਸੀ ਅਖਵਾਏ,
ਰੱਬ ਦੀਆਂ ਲਿਖੀਆਂ ਨਾ ਮੁੜੀਆਂ ਨਾ ਮੁੜੀਆਂ ਦਾ ਕੀ ਏ,
ਕੁੜੀਆਂ ਤਾਂ ਕੁੜੀਆਂ ਨੇ ਕੁੜੀਆਂ ਦਾ ਕੀ ਏ,
ਬਲੀ ਦਹੇਜ ਦੀ ਚੜੀਆਂ ਨੇ ਕੁੜੀਆਂ,
ਇੱਕ ਹੀ ਨਹੀਂ ਇੱਥੇ ਬੜੀਆਂ ਨੇ ਕੁੜੀਆਂ.
ਆਪਣੇ ਸਿਰ ਦੇ ਸਾਈਆਂ ਦੇ ਹੱਥੋਂ,
ਵਿੱਚ ਤੰਦੂਰਾਂ ਦੇ ਸੜੀਆਂ ਨੇ ਕੁੜੀਆਂ,
ਏ ਹੋਕਿਆਂ ਚ ਰੁੜੀਆਂ ਨੇ ਰੁੜੀਆਂ ਦਾ ਕੀ ਏ,
-
५८ हजार करोड़ का अन्न सड़ गया, गरीब भूखे मर गया
देश में एक तरफ महंगाई बढ़ रही है, 40 प्रतिशत लोगों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा है। दूसरी ओर सरकारी गोदामों में एक साल में 58 हजार करोड़ रुपए का अनाज सड़ गया। अगले साल यह आंकड़ा 1 लाख टन अनाज तक पहुंचने की आशंका है। इसकी कीमत औसतन 1 लाख करोड़ रुपए होगी। यह कहना है भारतीय जनता पार्टी का।

भाजपा का दावा है कि सरकार ने खुद माना है कि 10 लाख टन अनाज सड़ा है, इससे 10 साल तक 6 लाख लोगों का पेट भरा जा सकता था। भाजपा के राष्ट्रीय सचिव एवं प्रदेश के सह प्रभारी किरीट सोमैया ने गुरुवार को मीडिया से बातचीत में आरोप लगाया कि सड़ा हुआ अनाज शराब कंपनियों को दिया जा रहा है। इतना ही नहीं 6 महीने पहले कानून बनाकर सड़े अनाज से शराब बनाने को मान्यता दी बल्कि शराब कंपनियों को सब्सिडी भी दी। सोमैया गुरुवार को यहां सरकारी गोदामों में सड़ रहे अनाज से संबधित दो दिवसीय चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन करने आए थे।

इस अवसर पर पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी, महामंत्री मदन दिलावर, विधायक कालीचरण सराफ और प्रदर्शनी संयोजक सुनील कोठारी एवं विमल कटियार भी थे। भाजपा प्रदेश मुख्यालय में यह प्रदर्शनी दो दिन तक चलेगी। इसके बाद इसे संभाग और जिला मुख्यालयों तक भी ले जाया जाएगा। भाजपा ने कहा कि इस लड़ाई को संसद, विधानसभाओं, सुप्रीम कोर्ट और नीचे ग्राम स्तर पर जाकर लड़ा जाएगा

Wednesday, December 15, 2010

मास्टर मोहन लाल के बयान से पंजाब सरकार मुश्किल में,या मास्टर मोहन लाल ?




चंडीगढ़ बस किराया बढ़ाने के मामले में परिवहन मंत्री मास्टर मोहन लाल के उस बयान ने सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है जिसमें उन्होंने कहा है कि प्राइवेट बस ऑपरेटर्स की लॉबी के चलते बस किराए बढ़ाए गए हैं और इस मामले में उनकी भी नहीं चली है। अबोहर से कांग्रेस के विधायक सुनील जाखड़ और विधायक जस्सी खंगूड़ा ने परिवहन मंत्री से सवाल किया है कि वे उन प्राइवेट बस आपरेटर्स का नाम बताएं जिनकी वजह से जनता पर किराये का बोझ डाला गया है।

जाखड़ ने यह भी सवाल उठाया कि आखिर किसी विभाग की नीति निर्धारित करते समय संबंधित मंत्री को जब भरोसे में नहीं लिया जा रहा है तो पता किया जाए कि सरकार को कौन सी छिपी शक्तियां चला रही हैं। जाखड़ ने कहा कि सरकार के ट्रांसपोर्ट मंत्री ही बयान दे रहे हैं कि किराया बढ़ाने के अलावा और भी उपाय हो सकते थे लेकिन जब कुछ दिन पहले ऐसा ही बयान वित्तमंत्री मनप्रीत बादल ने दिया था तो उन्हंे पंजाब विरोधी बताते हुए मंत्रिमंडल से ही नहीं बल्कि पार्टी से भी बाहर कर दिया गया था।

अब सुखबीर बादल ने अपनी निजी ट्रांसपोर्ट कंपनी को और लाभ पहुंचाने के लिए जनता पर बस किरायों का बोझ लाद दिया है। जाखड़ ने कहा कि मास्टर मोहन लाल के बयान से साफ जाहिर है कि सरकार के विभिन्न विभागों में कोई तालमेल नहीं है। जाखड़ ने मांग की कि मंत्री का कहा न मानने वाले अधिकारियों के खिलाफ जांच होनी चाहिए।

उन्होंने मंत्री के उन उपायों को भी सार्वजनिक करने की मांग की जिनमें पीआरटीसी और रोडवेज के घाटे से उभारा जा सकता था।
अवैध कब्जे कराने वाले पुलिस कर्मचारियों पर होगी कार्रवाई


चंडीगढ़। उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने जिला पुलिस प्रमुखों को निर्देश दिए हैं कि वे अपना ध्यान जुर्म रोकने और पुलिस संबधी लोगों की धारणा बदलने की ओर ध्यान केंद्रित करें। उन्होंने कहा कि पंजाब पुलिस को स्नैचिंग, चोरी और लूटखसोट जैसे छोटे जुर्मो के अलावा किसी भी प्रकार की जायदाद, नाजायज कब्जों के खिलाफ विशेष ध्यान देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि यदि कोई भी पुलिस अधिकारी या कर्मचारी नाजायज कब्जों को बढ़ावा देगा या फर्जी केस दर्ज करने का दोषी पाया गया तो उसे कड़ी सजा दी जाएगी। राज्य के प्रमुख सचिव गृह एआर तलवार और डीजीपी पीएस गिल के साथ जिला पुलिस प्रमुखों की मासिक कारगुजारी की समीक्षा करते हुए बादल ने कहा कि उन्होंने गृह मंत्री के नाते पंजाब पुलिस को हर सुविधा, पदोन्नतियों के अलावा विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा प्रदान करने का हरसंभव यत्न किया है और इसके लिए वे किसी भी जिला पुलिस प्रमुख द्वारा अपने जिले मंे अमन और कानून व्यवस्था को कायम रखने में किसी प्रकार की लापरवाही को सहन नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि विभिन्न गिरोहों की शिनाख्त और उन्हें काबू कर, अपराधी प्रवृत्ति वाले लोगों पर नजर रखकर, सूचना तंत्र को मजबूत बनाकर और अति आधुनिक टेक्नोलॉजी का प्रयोग करते हुए जुर्म को घटित होने से रोकने की दिशा में बड़ी प्राप्ति की जा सकती है

Tuesday, December 14, 2010

सुधांशु महाराज उर्फ यशपाल का असली चेहरा

यशपाल नाम के एक आदमी के खिलाफ चोरी, ठगी और आयकर घोटालों के कई मामले दर्ज हैं। एक मामले में गैर जमानती वारंट जारी हो चुका है लेकिन बंदा ताकतवर हैं और दिल्ली में एक विराट आश्रम चलाता है और धार्मिक चैनलों पर अक्सर प्रकट होता है और उसने अपना नाम आचार्य श्री सुधांशु जी महाराज रख लिया है। सुधांशु महाराज के नाम से परिचित इस आदमी के बारे में बहुत सारी सरकारी फाइलों में बहुत सारे रहस्य छिपे हुए हैं।

बहुत सारी अदालतों में इसके खिलाफ मामले दर्ज हैं मगर भारत में धर्म को ले कर जो नौटंकिया चलती है उनका एक सबसे शानदार उदाहरण यही सुधांशु महाराज है जो नई दिल्ली में विश्व जागृति विषय के नाम से आश्रम चलाता है और दस दस साल पुराने मामले अब उसके खिलाफ निकल कर आ रहे हैं। यह ऐसा धर्म गुरु हैं जो फर्जी रसीदों से चंदा लेता हैं और जब शिकायत के बाद वारंट निकलते हैं तो उनमें एक दो नहीं, कई नाम होते हैं जिनमें उन रिचा सुधांशु का भी वर्णन होता है जिनसे यशपाल ने सुधांशु महाराज बनने के पहले 23 साल की उम्र में किसी गुरुकुल में ही शादी कर ली थी।

जब दूसरे धर्म गुरु चर्चित होने लगे और आसाराम बापू की तरह माल और गले काटने लगे तो सुधांशु जी महाराज के नाम से इस यशपाल ने विश्व जागृति मिशन एक भक्त से जमीन दान ले कर दिल्ली के एकदम बाहरी इलाके में बना दिया है। दान आता रहे इसके लिए इस सोसायटी को एनजीओ भी बना दिया गया और इसमें तमाम तरह के उद्देश्यों की पूर्ति कर दी गई ताकि दान देने वालों को सहूलियत हो और सुधांशु बाबा देश और विदेश में काली रकम को सफेद करते रहे। टीवी चैनल आज तक ने सुधांशु को ऐसे प्रस्ताव करते हुए रंगे हाथों पकड़ा था और यशपाल उर्फ सुधांशु के पास जवाब नहीं था।

सुधांशु के भक्त कहते हैं कि महाराज ने हिमालय में तपस्या की है और फिर योगी सदानंद ने उन्हें भगवान के दर्शन करवाए। इसके बाद तो सुधांशु जी खुद ही भगवान हो गए। सत्संग करना सीखा, नरेंद्र चंचल की तरह गाने भी लगे और जब बाबा रामदेव का योग मशहूर हो गया तो योग की कलाएं भी दिखाने लगे। जाहिर है कि यशपाल सुपर मार्केट में सब कुछ मिलता है। दिल्ली, मुंबई और मध्य प्रदेश में उन पर करोड़ों लुटाने वाले कम नहीं हैं लेकिन यह किसी को पता नहीं कि जिस आदमी को पुलिस और अदालतें तलाश रही हो वह आखिर उनको मोक्ष कैसे दिलवा सकता है?

Thursday, December 9, 2010

ਪੰਜਾਬੀ ਸਾਹਿਤ ਦੇ ਮਹਾਨ ਲੇਖਕ ਓਮ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਗਾਸੋ ਦੀ ਪੋਤੀ ਦਾ ਵਿਆਹ

ਵਿਆਹ ਸ਼ਬਦ ਹੀ ਅਜਿਹਾ ਹੈ, ਜਿਸਨੂੰ ਸੁਣਦਿਆਂ ਹੀ ਹਰੇਕ ਦੇ ਕੰਨਾਂ ਵਿਚ ਸਹਿਨਾਈਆਂ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਗੂੰਜਣ ਲੱਗਦੀ ਹੈ। ਮੈਨੂੰ ਹਾਲ ਹੀ ਵਿਚ ਇਕ ਅਜਿਹੇ ਵਿਆਹ 'ਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਦਾ ਸੁਭਾਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ ਹੈ, ਜਿਸ ਦੀਆਂ ਕੁਝ ਵਿਲੱਖਣ ਤੇ ਦਿਲਚਸਪ ਗੱਲਾਂ ਪਾਠਕਾਂ ਨਾਲ ਸਾਂਝੀਆਂ ਕਰਨ ਨੂੰ ਮਨ ਕਰ ਆਇਆ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਵਿਆਹ ਪੰਜਾਬੀ ਸਾਹਿਤ ਦੇ ਮਹਾਨ ਲੇਖਕ ਓਮ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਗਾਸੋ ਦੀ ਪੋਤੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਅਜਿਹੀਆਂ ਯਾਦਾਂ ਛੱਡ ਗਿਆ, ਜੋ ਆਮ ਵਿਆਹਾਂ ਨਾਲੋਂ ਹਟਵੀਆਂ ਤਾਂ ਹਨ ਹੀ, ਸਗੋਂ ਆਪਣੇ-ਆਪ ਵਿਚ ਕਈ ਮਿਸਾਲਾਂ ਅਤੇ ਨਵੀਆਂ ਲੀਹਾਂ ਵੀ ਸਿਰਜਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਸ ਵਿਆਹ ਤੋਂ ਕਈ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਮੈਨੂੰ ਸ੍ਰੀ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਫੋਨ ਆਇਆ ‘‘ਪੁੱਤਰਾ! ਕਿਥੇ ਐ ਤੂੰ, ਮੈਂ ਤੈਨੂੰ ਹੁਣੇ ਮਿਲਣੈ''। ਮੈਂ ਕਿਸੇ ਕੰਮ ਕਾਰਨ ਬਜ਼ਾਰ ਵਿਚ ਗਿਆ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਕਿਹਾ ‘‘ਬਾਪੂ! ਮੈਂ ਪੰਦਰਾਂ ਕੁ ਮਿੰਟਾਂ 'ਚ ਆਪਣੇ ਦਫ਼ਤਰ ਪਹੁੰਚਦਾ, ਹਾਂ ਤੁਸੀਂ ਉਥੇ ਆ ਜਾਓ''। ਫੋਨ ਕਰਨ ਤੋਂ ਕਰੀਬ ਅੱਧੇ ਘੰਟੇ ਉਪਰੰਤ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਮੋਢੇ ਝੋਲਾ ਪਾਈ ਮੇਰੇ ਦਫ਼ਤਰ ਆ ਪਹੁੰਚੇ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਆਏ ਲੋਕ ਗਾਇਕ ਰੰਗੀਲਾ, ‘ਜੋ ਰੋਜੀ ਰੋਟੀ ਲਈ ‘ਰੰਗੀਲਾ ਸਟੂਡੀਓ' ਨਾਮ ਦੀ ਫੋਟੋਗ੍ਰਾਫਰੀ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਨੇ ਕੁਝ ਵਿਆਹ ਦੇ ਕਾਰਡ ਅਤੇ ਇਕੱਲੀਆਂ-ਇਕੱਲੀਆਂ ਪੈਕਿੰਗ ਕੀਤੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦਾ ਥੱਬਾ ਮੇਰੇ ਮੇਜ਼ 'ਤੇ ਲਿਆ ਧਰਿਆ। ਮੇਰੇ ਦੁਆ ਸਲਾਮ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਕਹਿਣ ਲੱਗੇ ‘‘ਪੁੱਤਰਾ! ਤੇਰੀ ਡਿਊਟੀ ਲਾਉਣੀ ਐ, ਆਹ ਮੇਰੀ ਪੋਤੀ ਦੇ ਵਿਆਹ ਦੇ ਕਾਰਡ ਨੇ, ਇਹਨਾਂ ਨਾਲ ਆਹ ਇਕ-ਇਕ ਕਿਤਾਬ ਤੇ ਇਕ-ਇਕ ਮਿਠਿਆਈ ਦਾ ਡੱਬਾ ਸਾਰੇ ਕਲਾਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਤੂੰ ਦੇ ਕੇ ਆਉਣੈ, ਮਿਠਿਆਈ ਦੇ ਡੱਬੇ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਘਰੋਂ ਚੁੱਕ ਲਵੀਂ''। ਮੈਂ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ ‘‘ਬਾਪੂ! ਕਿਹੜੇ ਕਲਾਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਡੱਬੇ ਵੰਡਣੇ ਨੇ'' ਤਾਂ ਅੱਗੋਂ ਉਹਨਾਂ ਹੱਸ ਕੇ ਕਿਹਾ ‘‘ਪੁੱਤਰਾ! ਮੈਂ ਪੱਤਰਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਕਲਾਕਾਰ ਈ ਸਮਝਦਾ, ਤੇਰੇ ਕੋਲੇ ਸਾਰਿਆਂ ਦੇ ਪਤੇ-ਪੂਤੇ ਹੈਗੇ ਨੇ, ਵੰਡੇ ਆ ਸ਼ੇਰ ਬਣਕੇ'' ਕੁਝ ਇਧਰਲੀ-ਉਧਰਲੀਆਂ ਗੱਲਾਂ-ਬਾਤਾਂ ਕਰਕੇ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਤੇ ਰੰਗੀਲਾ ਜਦੋਂ ਚਲੇ ਗਏ ਤਾਂ ਮੈਂ ਕਾਰਡ ਖੋਲ ਕੇ ਦੇਖਿਆ, ਜੋ ਪੂਰਾ ਠੇਠ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਚ ਲਿਖਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਕਾਰਡ ਦੀ ਇਬਾਰਤ ਪੜ ਕੇ ਦਿਲ ਅਸ਼-ਅਸ਼ ਕਰ ਉਠਿਆ ਤੇ ਮੈਂ ਪੰਜਾਬੀ ਦੇ ਮਹਾਨ ਸਪੂਤ ਬਾਬਾ ਗਾਸੋ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਸੀਟ ਤੋਂ ਖੜਾ ਹੋ ਕੇ ਸਲੂਟ ਕੀਤਾ। ਕਾਰਡ ਵਿਚ ਗਾਸੋ ਵੱਲੋਂ ਵਿਆਹ ਦੀ ਪ੍ਰੀਭਾਸ਼ਾ ਲਈ ਲਿਖੀਆਂ ਸਤਰਾਂ ‘ਵਿਆਹ ਤਾਂ ਜਿੰਦਗੀ ਦਾ ਮੁਬਾਰਕਵਾਦ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਵਿਆਹ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਉਤਸਵ ਨੂੰ ਜਿੰਦਗੀ ਦੀ ਮੁਸਕਾਨ ਅਤੇ ਮਹਿਕ ਦਾ ਰੁਤਬਾ ਹਾਸਲ ਹੈ, ਵਿਆਹ ਦੋ ਰੂਹਾਂ ਦੀ ਆਤਮਿਕ ਸਾਂਝ ਦੇ ਸਦੀਵੀ ਸੁਰ ਦਾ ਗੀਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਵਿਆਹ ਦੇ ਰਮਣੀਕ ਰੰਗਾਂ ਵਿਚੋਂ ਕੁਦਰਤੀ ਕਰਮ ਦਾ ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਸੁਰਜੀਤ ਹੁੰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਵਿਆਹ ਸਮਾਜਿਕ-ਰਿਸ਼ਤਿਆਂ ਦਾ ਮਿੱਠਾ-ਮਿੱਠਾ, ਪਿਆਰਾ-ਪਿਆਰਾ, ਸਹਿਜ ਤੇ ਸੁੰਦਰ ਅਲਾਪ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਥੇ ਵਿਆਹ ਦੇ ਬੰਧਨ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਲਈ ਦਿਮਾਗ ਦੇ ਦਰਵਾਜਿਆਂ ਨੂੰ ਖੋਲ ਗਈਆਂ, ਉਥੇ ਪਵਿੱਤਰ ਦੋ ਰੂਹਾਂ ਦੇ ਸੁਮੇਲ ਭਰੇ ਰਿਸਤੇ ਵਾਰੇ ਖਿਆਲਾਂ ਨੂੰ ਧੁਰ ਅੰਦਰ ਤੱਕ ਲੈ ਕੇ ਉਤਰ ਗਈਆਂ। ਬਾਪੂ ਗਾਸੋ ਵੱਲੋਂ ਆਪਣੀ ਪੋਤੀ ਦੇ ਸੁਮੀਤ ਗਾਸੋ ਅਤੇ ਪ੍ਰਿਯਮ ਸੁਨਾਮੀ ਦੇ ਵਿਆਹ ਬਾਰੇ ਠੇਠ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਚ ਛਾਪੇ ਕਾਰਡ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀ ਦੇ ਲੇਖਕਾਂ, ਪਾਠਕਾਂ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬੀ ਪਿਆਰਿਆਂ ਨੂੰ ਇਕ ਨਵਾਂ ਸੁਨੇਹਾ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਮਨ ਦੇ ਭਾਵਾਂ ਨੂੰ ਜਿੰਨਾ ਸਹੀ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਮਾਂ ਬੋਲੀ ਪੰਜਾਬੀ ਰਾਹੀਂ ਦੂਜਿਆਂ ਨਾਲ ਸਾਂਝਾ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਉਹਨਾਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਦੇ ਪ੍ਰੇਮੀਆਂ ਦੇ ਵੱਸ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਖੈਰ ਇਹ ਤਾਂ ਵਿਆਹ ਦੇ ਕਾਰਡ ਬਾਰੇ ਗੱਲ ਹੋਈ, ਹੁਣ ਅੱਗੇ ਕਾਰਡ ਵੰਡਣ ਦੀਆਂ ਕੁਝ ਗੱਲਾਂ ਕਰਦੇ ਹਾਂ, ਜੋ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਸਾਦਗੀ, ਦਿਲਲਗੀ, ਫੱਕਰਤਾ ਅਤੇ ਦਰਵੇਸੀ ਨੂੰ ਤਾਂ ਦਰਸਾਉਂਦੀਆਂ ਹੀ ਹਨ, ਸਗੋਂ ਇਹ ਪਾਠਕਾਂ ਲਈ ਦਿਲਚਸਪ ਤੇ ਰੋਚਕ ਵੀ ਹਨ। ਕਾਰਡਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਕਿਤਾਬਾਂ ਅਤੇ ਮਿਠਿਆਈ ਦੇ ਡੱਬੇ ਵੰਡਦੇ-ਵੰਡਦੇ ਬਜ਼ਾਰ ਵਿਚ ਮੇਰਾ ਮੇਲ ਦੁਬਾਰਾ ਰੰਗੀਲੇ ਨਾਲ ਹੋਇਆ, ਜਿਸਨੂੰ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਕਾਰਡ ਵੰਡ ਰਹੇ ਸਨ। ਰੰਗੀਲਾ ਹੱਸ ਕੇ ਕਹਿਣ ਲੱਗਿਆ ‘‘ਬਾਈ ਜੀ! ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਵੀ ਕਮਾਲ ਦੇ ਆਦਮੀ ਨੇ'' ਤਾਂ ਮੈਂ ਕਿਹਾ ‘‘ਕੀ ਗੱਲ ਹੋਗੀ, ਛੋਟੇ ਭਾਈ! ਲੱਗਦੈ ਤੈਨੂੰ ਤੰਗ ਕਰਤਾ ਹੋਣੈ ਗਾਸੋ ਬਾਬੇ ਨੇ'' ਅੱਗੋਂ ਹੱਸ ਕੇ ਰੰਗੀਲਾ ਬੋਲਿਆ ‘‘ਬਾਈ ਜੀ! ਅੱਜ ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਕਾਰਡ ਵੰਡਦੇ-ਵੰਡਦੇ ਸਦਰ ਬਜ਼ਾਰ ਦੀ ਨੁਕਰ 'ਤੇ ਗਏ ਤਾਂ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਕਹਿਣੇ ਲੱਗੇ, ਰੰਗੀਲੇ ਰੁਕ! ਆਪਾਂ ਆਹ ਰੇਹੜੀ ਵਾਲੇ ਤੋਂ ਜੂਸ ਪੀਂਦੇ ਹਾਂ'। ਜਦੋਂ ਰੇਹੜੀ ਵਾਲੇ ਨੇ ਦੋ ਗਲਾਸ ਜੂਸ ਦੇ ਬਣਾ ਕੇ ਦੇ ਦਿੱਤੇ ਤਾਂ ਜੂਸ ਪੀਂਦੇ-ਪੀਂਦੇ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਫੇਰ ਬੋਲੇ ‘ਰੰਗੀਲੇ! ਮੈਂ ਪਿਛਲੇ ਕਈ ਸਾਲਾਂ ਤੋਂ ਇਸ ਰੇਹੜੀ ਵਾਲੇ ਕੋਲੋਂ ਜੂਸ ਪੀਂਦਾ ਹਾਂ, ਇਸ ਲਈ ਆਪਣੀ ਇਸ ਰੇਹੜੀ ਵਾਲੇ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਸਮਾਜਿਕ ਤੇ ਪਰਿਵਾਰਿਕ ਸਾਂਝ ਬਣਦੀ ਐ ਤੇ ਤੂੰ ਇਉਂ ਕਰ ਪੁੱਤਰਾ! ਇਕ ਡੱਬਾ ਤੇ ਕਾਰਡ ਇਹਨੂੰ ਵੀ ਦੇ ਯਾਰ''। ਰੇਹੜੀ ਵਾਲੇ ਨੂੰ ਵਿਆਹ ਦਾ ਕਾਰਡ ਤੇ ਡੱਬਾ ਦੇ ਕੇ ਉਥੋਂ ਅਸੀਂ ਪਿੰਡ ਸੇਖੇ ਨੂੰ ਤੁਰੇ ਤਾਂ ਰਾਹ 'ਚ ਕੱਖ ਖੋਤ ਕੇ ਲਿਆਉਂਦੀਆਂ ਦੋ ਔਰਤਾਂ ਕੋਲ ਰੁਕਗੇ, ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਕਿਰਤ ਦੀ ਸ਼ਲਾਘਾ ਕਰਕੇ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇਕ ਕਾਰਡ ਤੇ ਡੱਬਾ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਦੇ ਦਿੱਤਾ, ਤਾਂ ਡੱਬਾ ਮਿਠਿਆਈ ਵਾਲਾ ਡੱਬਾ ਤੇ ਕਾਰਡ ਫੜਕੇ ਉਹਨਾਂ ਔਰਤਾਂ ਨੇ ਹੱਸਦਿਆਂ-ਹੱਸਦਿਆਂ ਹੌਲੀ ਦੇਣੇ ਆਪਸ ਵਿਚ ਗੱਲ ਕੀਤੀ ‘ਇਹ ਬਾਬੇ ਦੇ ਤਾਂ ਭੈਣੇ ਦਿਮਾਗ 'ਚ ਫਰਕ ਲੱਗਦੈ'। ਰੰਗੀਲੇ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਇਸ ਤਰਾਂ ਅਸੀਂ ਕਾਰਡ ਅਤੇ ਮਿਠਿਆਈ ਵਾਲੇ ਡੱਬੇ ਰਾਹ 'ਚ ਵੰਡ ਦਿੰਦੇ, ਤੇ ਜਿਥੇ ਜਾਣਾ ਹੁੰਦਾ, ਉਥੋਂ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਦੇ ਹੀ ਨਾ। ਰੰਗੀਲੇ ਨੇ ਕਈ ਹੋਰ ਵੀ ਇਹੋ ਜਿਹੇ ਕਿੱਸੇ ਸੁਣਾਏ ਕਿ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਵੱਲੋਂ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਸਹੀ ਥਾਂ ਪਹੁੰਚਣ ਦੀਆਂ ਹਦਾਇਤਾਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ, ਪਰ ਉਹ ਰਾਹ ਵਿਚ ਹੋਰ ਥਾਂ ਹੀ ਹਾਜ਼ਰੀ ਭਰ ਕੇ (ਡੱਬੇ ਵੰਡਕੇ) ਵਾਪਸ ਆ ਜਾਂਦੇ ਸਨ। ਇਹ ਤਾਂ ਹੋਈਆਂ ਕਾਰਡ ਵੰਡਣ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ, ਪਰ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਜੋ ਮਸਤੀ ਵਿਆਹ ਦੌਰਾਨ ਦੇਖੀ, ਉਹ ਵੀ ਪਾਠਕਾਂ ਨਾਲ ਸਾਂਝੀ ਕਰਨੀ ਜਰੂਰੀ ਹੈ। ਸਥਾਨਿਕ ਸੂਦ ਪੈਲੇਸ ਵਿਚ ਹੋਇਆ ਇਹ ਵਿਆਹ, ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਰਹਿਣੀ-ਸਹਿਣੀ ਅਤੇ ਮਿਲਵਰਤਣ ਕਰਕੇ ਅਜਿਹਾ ਵਿਆਹ ਸੀ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਸਮਾਜ ਦੇ ਹਰ ਵਰਗ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਸ਼ਮੂਲੀਅਤ ਸੀ, ਮਜ਼ਦੂਰ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਕਰੋੜਪਤੀ, ਚਪੜਾਸੀ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਆਈ.ਏ.ਐਸ. ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚੀ ਬਿਊਰੋਕਰੇਸੀ ਅਤੇ ਰਿਕਸ਼ਾ ਯੂਨੀਅਨ ਦੇ ਅਹੁਦੇਦਾਰਾਂ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਅਤੇ ਮੈਂਬਰ ਪਾਰਲੀਮੈਂਟ ਤੱਕ ਜਨਤਕ ਨੁਮਾਇੰਦੇ, ਇਸ ਵਿਆਹ 'ਚ ਕੌਫੀ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਵਿਸਕੀ ਤੱਕ ਦੀਆਂ ਚੁਸਕੀਆਂ ਲੈ ਰਹੇ ਸਨ। ਦੂਸਰੇ ਪਾਸੇ ਬਾਪੂ ਗਾਸੋ ਆਪਣੇ ਰਵਾਇਤੀ ਅੰਦਾਜ 'ਚ ਕੁੜਤਾ-ਪਜਾਮਾ ਪਾਈ, ਸਿਰ 'ਤੇ ਢਿੱਲੀ ਜਿਹੀ ਪੱਗ ਬੰਨੀ, ਮੋਢੇ 'ਚ ਝੋਲਾ ਲਟਕਾਈ ਪੂਰੇ ਸੂਦ ਪੈਲੇਸ ਵਿਚ ਪੈਲਾਂ ਪਾਉਂਦਾ ਫਿਰ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਹਰੇਕ ਨਾਲ ਖੜ ਕੇ ਫੋਟੋ ਖਿਚਾਉਂਦਾ ‘‘ਓ ਆ ਜਾ ਤੂੰ ਕਿਹੜਾ ਮਤਰੇਈ ਮਾਂ ਦਾ ਐ'' ਟਿਚਰਾਂ ਕਰਦਾ ਗਾਸੋ ਹਰ ਆਉਣ-ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਦਾ ਪੂਰਾ ਵੇਰਵਾ ਵੀ ਇਕੱਠਾ ਕਰਦਾ ਲੱਗਦਾ ਸੀ ਕਿ ਕਿਸ ਦੇ ਨਾਲ ਕਿੰਨੇ ਜਣੇ ਵਾਧੂ ਆਏ ਹੋਏ ਹਨ। ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸ਼ਰਾਬ ਵਾਲੀ ਸਟਾਲ ਉਪਰ ਵੀ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਗੇੜੀਆਂ ਮਾਰ ਕੇ ਬਾਪੂ ਗਾਸੋ ਪੀਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦਾ ਪੂਰਾ ਰਿਕਾਰਡ ਇਕੱਠਾ ਕਰਦਾ ਫਿਰ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਮੈਂ ਇਸ ਵਿਆਹ 'ਚ ਤਿੰਨ ਵਾਰ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਨੂੰ ਮਿਲਿਆ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਮੇਰੀ ਜੇਬ ਵਿਚ ਪਾਏ ਸ਼ਗਨ ਵਾਲੇ ਲਿਫ਼ਾਫੇ 'ਤੇ ਹਰ ਵਾਰ ਪੈਂਦੀ ਸੀ, ਪਰ ਮੇਰੀ ਸੋਚ ਸੀ ਕਿ ਸ਼ਗਨ ਜਾਣ ਸਮੇਂ ਦੇ ਕੇ ਜਾਵਾਂਗਾ। ਅਖੀਰ ਜਦੋਂ ਚੌਥੀ ਵਾਰ ਮੇਰੇ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਨਾਲ ਸਾਹਮਣਾ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਮੈਨੂੰ ਬੜੇ ਪਿਆਰ ਨਾਲ ਕਿਹਾ ‘‘ਓ ਪੁੱਤਰਾ! ਰੋਟੀ ਔਹ ਸਾਹਮਣੇ ਪੰਜਾਬੀ ਢਾਬੇ ਵਾਲੀ ਲੱਗੀ ਸਟਾਲ ਤੋਂ ਖਾਈਂ, ਉਥੇ ਮੱਕੀ ਦੀ ਰੋਟੀ ਤੇ ਸਰੋਂ ਦਾ ਸਾਗ ਬਹੁਤ ਸੁਆਦ ਬਣਿਆ ਹੋਇਐ, ਨਾਲੇ ਆਹ ਸ਼ਗਨ ਵਾਲਾ ਲਿਫ਼ਾਫਾ ਦੇਣਾ ਨਾ ਕਿਤੇ ਭੁੱਲ ਜਾਈਂ'' ਇਹਨਾਂ ਕਹਿ ਕੇ ਗਾਸੋ ਮੇਰੀ ਜੇਬ ਨੂੰ ਹੱਥ ਲਾ ਕੇ ਹੱਸ ਪਿਆ। ਬਾਪੂ ਗਾਸੋ ਦੀ ਇਸ ਮਸਤ ਮਲੰਗੀ 'ਤੇ ਹਸਦਿਆਂ ਮੇਰਾ ਅਤੇ ਕੋਲ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਢਿੱਡ ਦੁਖਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ਤੇ ਮੈਂ ਹਸਦਿਆਂ-ਹਸਦਿਆਂ ਸ਼ਗਨ ਵਾਲਾ ਲਿਫ਼ਾਫਾ ਆਪਣੀ ਜੇਬ 'ਚੋਂ ਕੱਢ ਕੇ ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਝੋਲੇ ਵਿਚ ਪਾ ਦਿੱਤਾ। ਥੋੜੀ ਦੇਰ ਬਾਅਦ ਮੇਰੇ ਇਕ ਸਾਥੀ ਪੱਤਰਕਾਰ ਨੇ ਮੇਰੇ ਕੋਲ ਆ ਕੇ ਜਦੋਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ‘ਗਾਸੋ ਸਾਹਿਬ ਕਿੱਥੇ ਨੇ, ਉਸਨੇ ਸ਼ਗਨ ਦੇਣਾ ਐ' ਤਾਂ ਮੈਂ ਉਸਨੂੰ ਬਾਂਹੋਂ ਫੜ ਬਾਪੂ ਗਾਸੋ ਦੇ ਕੋਲ ਲੈ ਗਿਆ ਅਤੇ ਮੈਂ ਸਰਾਰਤ ਵਸ ਕਿਹਾ ‘‘ਬਾਪੂ ਇਹ ਖਾ-ਪੀ ਕੇ ਖਿਸਕ ਚੱਲਿਆ ਸੀ, ਮੈਂ ਫੜ ਕੇ ਲਿਆਂਦਾ, ਇਹਤੋਂ ਸ਼ਗਨ ਲੈ ਲਵੋ'' ਤਾਂ ਅੱਗੋਂ ਬਾਪੂ ਗਾਸੋ ਨੇ ਫੇਰ ਨਹਿਲੇ 'ਤੇ ਦਹਿਲਾ ਮਾਰਿਆ ‘‘ਪੁੱਤਰਾ! ਇਹ ਪੱਤਰਕਾਰ ਹੋਣੈ, ਜਿਹੜਾ ਖਾ-ਪੀ ਕੇ ਖਿਸਕਣ ਨੂੰ ਫਿਰਦੈ''। ਬਾਪੂ ਗਾਸੋ ਦੀ ਮਸਤੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਇਸ ਵਿਆਹ 'ਚ ਡਾ. ਸੰਪੂਰਨ ਸਿੰਘ ਟੱਲੇਵਾਲੀਆ ਅਤੇ ਜਗਰਾਜ ਧੌਲਾ ਵਰਗੇ ਲੇਖਕਾਂ ਨੇ ਵਿਸਕੀ ਦੇ ਲੋਰ ਵਿਚ ਸਪੈਸ਼ਲ ਤੌਰ 'ਤੇ ਪਹੁੰਚੇ ਨਕਲੀਆਂ ਤੇ ਨਚਾਰਾਂ ਨਾਲ ਨੱਚ ਕੇ ਉਹ ਰੰਗ ਬੰਨਿਆ ਕਿ ਦੇਖਣ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਆਹਾਂ ਦੇ ਪੁਰਾਤਨ ਵਿਰਸੇ ਦੀ ਯਾਦ ਤਾਜ਼ਾ ਹੋ ਗਈ। ਪੈਲੇਸਾਂ ਵਿਚ ਹੁੰਦੇ ਵਿਆਹਾਂ ਦੇ ਕਲਚਰ 'ਚ ਹੀ ਹੋਇਆ ਇਹ ਵਿਆਹ ਬਾਪੂ ਗਾਸੋ ਦੀ ਮਸਤੀ, ਫਕੀਰੀ ਜਿੰਦਾਦਿਲੀ, ਹਰ ਵਰਗ ਦੀ ਸਾਂਝ, ਸ਼ਮੂਲੀਅਤ ਕਰਕੇ ਇਕ ਵੱਖਰੀ ਹੀ ਕਿਸਮ ਦੀਆਂ ਯਾਦਾਂ ਛੱਡ ਗਿਆ, ਜੋ ਸਾਇਦ ਹੀ ਮੁੜ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਵਿਆਹ 'ਚੋਂ ਦੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲਣੀਆਂ।
ਮੱਕੜ ਸਾਬ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਦੀ ਨਈਂ ਬਾਦਲ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਈ ਸੱਚਾ ਸਿੱਖ ਲੱਗਦੈ



‘‘ਬਾਬਾ ਜੀ! ਮੱਕੜ ਸਾਬ ਕਹਿੰਦੇ ਨੇ ਬਈ ਬਾਬਾ ਦਾਦੂਵਾਲ ਕਾਂਗਰਸ ਦਾ ਏਜੰਟ ਐ ਤੇ ਉਹਦਾ ਸਨਮਾਨ ਕਰਨ ਆਲੇ ਵੀ ਬਹੁਤ ਗਲਤ ਕੰਮ ਕਰ ਰਹੇ ਨੇ'' ਬਿੱਕਰ ਨੇ ਗੱਲ ਤੋਰੀ। ‘‘ਆਹੋ ਭਾਈ! ਮੱਕੜ ਸਾਬ ਲਈ ਤਾਂ ਬਾਦਲ ਪਰਵਾਰ ਦੀ ਭਗਤੀ ਈ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਚੀਜ਼ ਐ, ਉਹਦੇ ਲਈ ਤਾਂ ਜਿਹੜਾ ਬਾਦਲ ਪਰਵਾਰ ਦਾ ਭਗਤ ਐ ਉਹੀ ਸੱਚਾ ਸਿੱਖ ਐ, ਬਾਕੀ ਤਾਂ ਸਾਰੇ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਏਜੰਟ ਈ ਦਿਸਦੇ ਨੇ ਮੱਕੜ ਸਾਬ ਨੂੰ'' ਬਾਬਾ ਲਾਭ ਸਿੰਘ ਨੇ ਜਵਾਬ ਦਿੱਤਾ। ‘‘ਫੇਰ ਤਾਂ ਮੱਕੜ ਸਾਬ ਨੇ ਠੀਕ ਈ ਕਿਹੈ, ਕਿਉਂ ਅਮਲੀਆ?'' ਸ਼ਿੰਦੇ ਨੇ ਬਿੱਕਰ ਨੂੰ ਸੈਨਤ ਮਾਰੀ। ‘‘ਆਹੋ ਕਾਮਰੇਡਾ! ਫੇਰ ਤਾਂ ਮੱਕੜ ਸਾਬ ਦੇ ਹਿਸਾਬ ਨਾਲ ਸਾਨੂੰ ਸੌਦਾ ਸਾਧ ਦਾ ਤੇ ਉਹਦੇ ਚੇਲਿਆਂ ਦਾ ਸਨਮਾਨ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦੈ, ਜੋ ਸਿੱਖੀ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨ ਤੇ ਡੇਰਾਵਾਦ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਬੋਲਣ ਕਰਕੇ ਸੰਤ ਦਾਦੂਵਾਲ ਦੀ ਜਾਨ ਦੇ ਦੁਸ਼ਮਣ ਬਣੇ ਹੋਏ ਨੇ ਜਾਂ ਫਿਰ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਸਨਮਾਨ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦੈ, ਜਿਹਨਾਂ ਨੇ ਪਿਛਲੇ ਸਾਲ ਲੁਧਿਆਣੇ ਨੂਰਮਹਿਲੀਏ ਦੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰਦੇ ਸਿੱਖਾਂ 'ਤੇ ਗੋਲੀਆਂ ਚਲਾਈਆਂ ਸੀ'' ਬਿੱਕਰ ਨੇ ਵੀ ਅੱਗੋਂ ਠੋਕ ਕੇ ਜਵਾਬ ਦਿੱਤਾ। ‘‘ਪੁੱਤਰੋ! ਰਾਜਨੀਤੀ 'ਚ ਹਰ ਕਿਸੇ ਆਗੂ ਨੂੰ ਦੂਜਿਆਂ ਦੀ ਨੁਕਤਾਚੀਨੀ ਕਰਨੀ ਈ ਪੈਂਦੀ ਐ, ਪਰ ਇਹ ਨੁਕਤਾਚੀਨੀ ਵੀ ਤਾਂ ਕਿਸੇ ਹੱਦ ਤੱਕ ਈ ਚੰਗੀ ਲੱਗਦੀ ਐ, ਮੱਕੜ ਸਾਬ ਦਿੱਲੀ ਆਲੇ ਸਰਨੇ ਨੂੰ ਕਾਂਗਰਸ ਦਾ ਏਜੰਟ ਕਹੀ ਜਾਣ ਜਾਂ ਕਾਂਗਰਸ ਦਾ ਚਮਚਾ ਕਹੀ ਜਾਣ, ਇਹ ਗੱਲ ਕਿਸੇ ਹੱਦ ਤੱਕ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਖੱਟਕਦੀ ਨਈਂ, ਪਰ ਭਾਈ ਸੰਤ ਬਾਬਾ ਬਲਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾਦੂਵਾਲਿਆਂ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ ਬੋਲਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮੱਕੜ ਸਾਬ ਨੂੰ ਇਹ ਵੀ ਸੋਚਣਾ ਚਾਹੀਦੈ, ਬਈ ਉਹ ਸਿਰਫ਼ ਬਾਦਲ ਪਰਵਾਰ ਦੀਆਂ ਖੁਸ਼ੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਨਈਂ ਬੋਲਦੇ, ਸਗੋਂ ਉਹ ਜਦੋਂ ਬੋਲਦੇ ਨੇ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਪਾਰਲੀਮੈਂਟ ਵਜੋਂ ਜਾਣੀ ਜਾਂਦੀ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਕਮੇਟੀ ਦਾ ਮੁਖੀ ਬੋਲਦੈ, ਤੇ ਇਕ ਸਿਰਮੌਰ ਸਿੱਖ ਸੰਸਥਾ ਦਾ ਮੁਖੀ ਇਕ ਉਸ ਸਿੱਖ ਸੰਤ ਮਹਾਂਪੁਰਸ਼ ਬਾਰੇ ਇਹੋ ਜਿਹੀ ਘਟੀਆ ਗੱਲ ਕਰੇ, ਜਿਹਨੇ ਸਾਰਾ ਜੀਵਨ ਹੀ ਸਿੱਖੀ ਲਈ ਲਾ ਦਿੱਤਾ ਹੋਵੇ ਤੇ ਹਰ ਸਿੱਖ ਸੰਘਰਸ਼ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖੀ ਦੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਨੂੰ ਮੂਹਰਲੀ ਕਤਾਰ 'ਚ ਖੜ ਕੇ ਲਲਕਾਰਦਾ ਹੋਵੇ'' ਬਾਬਾ ਲਾਭ ਸਿੰਘ ਨੇ ਐਨਕਾਂ ਲਾਹ ਕੇ ਪਰਨੇ ਨਾਲ ਸਾਫ਼ ਕਰਨੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ। ‘‘ਬਾਬਾ ਜੀ! ਪਤਾ ਨਈਂ ਕਿਉਂ ਸਾਡੇ ਧਾਰਮਿਕ ਆਗੂ ਵੀ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਤੋੜ ਕੇ ਬਿਆਨਬਾਜੀ ਕਰਨ ਲੱਗ ਜਾਂਦੇ ਨੇ'' ਸ਼ਿੰਦੇ ਨੇ ਬਾਬਾ ਲਾਭ ਸਿੰਘ ਦੇ ਕਹੇ ਦੀ ਪੁਸ਼ਟੀ ਕੀਤੀ। ‘‘ਓ ਕਾਮਰੇਡਾ! ਇਹ ਕਹਿਣ ਨੂੰ ਧਾਰਮਿਕ ਆਗੂ ਕਹੇ ਜਾਂਦੇ ਨੇ, ਧਰਮ ਤਾਂ ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਕੋਲ ਦੀ ਨਈਂ ¦ਘਦਾ, ਧਰਮ ਦੀ ਗੱਲ ਤਾਂ ਇਹ ਐ ਬਈ ਇਹਨਾਂ ਨੇ ਕੀ ਰਾਜਨੀਤੀ ਤੋਂ ਟੀਂਡੇ ਲੈਣ ਨੇ, ਜੇ ਗੁਰੂ ਮਹਾਰਾਜ ਦੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਾਲ ਪ੍ਰਧਾਨਗੀ ਮਿਲੀ ਐ ਤਾਂ ਸੱਚੇ ਦਿਲ ਨਾਲ ਸਿੱਖੀ ਦੀ ਚੜਦੀ ਕਲਾ ਲਈ ਕੌਮ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰਨ'' ਬਿੱਕਰ ਨੂੰ ਟੋਕਦਿਆਂ ਸ਼ਿੰਦੇ ਨੇ ਕਿਹਾ ‘‘ਓ ਅਮਲੀਆ! ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਤਾਂ ਇਹੀ ਭਰਮ ਐ, ਬਈ ਪ੍ਰਧਾਨਗੀ ਦੀ ਗੁਰੂ ਮਹਾਰਾਜ ਦੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਮਿਲੀ, ਸਗੋਂ ਬਾਦਲ ਪਰਵਾਰ ਦੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਾਲ ਮਿਲੀ ਐ, ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਮੱਕੜ ਸਾਬ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਦੀ ਨਈਂ ਬਾਦਲ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਈ ਸੱਚਾ ਸਿੱਖ ਲੱਗਦੈ'' ਸ਼ਿੰਦੇ ਦੀ ਗੱਲ 'ਤੇ ਹੱਸਦਿਆਂ ਬਾਬਾ ਲਾਭ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਿਹਾ ‘‘ਤਾਂਹੀ ਭਾਈ! ਇਹਨਾਂ ਲਈ ਬਾਦਲ ਸੇਵਾ ਈ ਪਰਮ ਧਰਮ ਬਣੀ ਹੋਈ ਐ'' ਬਾਬਾ ਲਾਭ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਲ 'ਤੇ ਸਾਰੇ ਹੱਸ ਪਏ।
ਫਿਰ ਚਰਚਾ ’ਚ ਹੈ ਸੁਖਬੀਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਬਣਨਾ?

ਅਕਾਲੀ ਹਲਕਿਆਂ ਵਿੱਚ ਇਕ ਵਾਰ ਫਿਰ ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਬਣਾਏ ਜਾਣ ਦੀ ਚਰਚਾ ਜ਼ੋਰ-ਸ਼ੋਰ ਦੇ ਨਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ ਹੋਈ ਹੈ। ਭਾਵੇਂ ਪ੍ਰਤੱਖ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇਸ ਸਬੰਧੀ ਕੋਈ ਜਾਣਕਾਰੀ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਗਈ, ਪ੍ਰੰਤੂ ਜਾਣਕਾਰ ਹਲਕਿਆਂ ਅਨੁਸਾਰ ਬੀਤੇ ਦਿਨੀਂ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਵਿੱਖੇ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ (ਬਾਦਲ) ਦੇ ਸਿਆਸੀ ਮਾਮਲਿਆਂ ਦੀ ਕੋਰ ਕਮੇਟੀ ਦੀ ਜੋ ਬੈਠਕ ਹੋਈ ਸੀ, ਉਸ ਵਿੱਚ ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਲਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਨੇ ਉਪ-ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਵਜੋਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਵਾਗ-ਡੋਰ ਸੁਚਜੇ ਢੰਗ ਦੇ ਨਾਲ ਸੰਭਾਲ ਕੇ, ਆਪਣੀ ‘ਅਦੁਤੀ' ਯੋਗਤਾ ਸਬੂਤ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਹੈ, ਇਸ ਗਲ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਰਖਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਹੁਣ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਦੀਆਂ ਜ਼ਿਮੇਂਦਾਰੀਆਂ ਸੌਂਪ ਦਿਤੀਆਂ ਜਾਣੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਹ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਦਲ ਦੀ ਹਾਈ-ਕਮਾਂਡ (ਸ. ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ) ਦੀ ਸਹਿਮਤੀ ਨਾਲ ਲਿਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਫੈਸਲੇ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਜਾਮਾ ਪਹਿਨਾਉਣ ਦੀ ਕਾਰਵਾਈ ਅਗਲੇ ਕੁਝ ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਮੁਕੰਮਲ ਕਰ ਲਈ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ।
ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਅਕਾਲੀ ਰਾਜਨੀਤੀ ਪੁਰ ਤਿੱਖੀ ਨਜ਼ਰ ਰਖਣ ਵਾਲੇ ਰਾਜਸੀ ਮਾਹਿਰਾਂ ਅਨੁਸਾਰ, ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ, ਭਾਵੇਂ ਉਪ-ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਤੇ ਹਨ, ਫਿਰ ਵੀ ਉਹ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਦੇ ਸਮੁਚੇ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ, ਸ਼ੁਰੂ ਤੋਂ ਹੀ ਕਰਦੇ ਚਲੇ ਆ ਰਹੇ ਹਨ। ਸ. ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ, ਜੇ ‘ਤਕਨੀਕੀ' ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਿਹਾ ਜਾਏ ਤਾਂ ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪਨੂੰ ਕੇਵਲ ‘ਸਲੀਪਿੰਗ' ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਬਣਕੇ ਰਹਿ ਗਏ ਹੋਏ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕਾਰਜ-ਖੇਤ੍ਰ ਬਿਆਨ ਦੇਣ ਅਤੇ ਰੁੱਸੇ ਹੋਏ ਅਕਾਲੀ ਮੁੱਖੀਆਂ ਤੇ ਵਰਕਰਾਂ ਨੂੰ ਮੰਨਾਉਣ ਤਕ ਸਿਮਟ ਗਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ।
ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਾਜਸੀ ਮਾਹਿਰਾਂ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨਹੀਂ ਕਿ ਅਜਿਹੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਸ. ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਛੇਤੀ ਕੀਤੇ ਹੀ, ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਥਾਪਕੇ, ਆਪਣੀਆਂ ਪੂਰੀਆਂ ਜ਼ਿਮੇਂਦਾਰੀਆਂ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸੌਂਪ ਦੇਣਗੇ ਤੇ ਆਪ ਜ਼ਿਮੇਂਦਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੁਰਖਰੂ ਹੋ ਜਾਣਾ ਚਾਹੁਣਗੇ। ਇਸਦਾ ਕਾਰਣ ਇਹ ਹਲਕੇ ਇਹ ਦਸਦੇ ਹਨ ਕਿ ਸ. ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਕਦੀ ਵੀ ਨਹੀਂ ਚਾਹੁਣਗੇ ਕਿ ਉਹ ਪਾਰਟੀ ਪ੍ਰਧਾਨਗੀ ਦੀਆਂ ਜ਼ਿਮੇਂਦਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਮੁਕਤ ਹੋ ਜਾਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ, ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਦੀਆਂ ਜ਼ਿਮੇਂਦਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਵੀ ਮੁਕੱਤ ਹੋ ਕੇ, ਆਪਣੇ ਘਰ ਦੇ ਇਕ ਕਮਰੇ ਵਿੱਚ ਹੀ ‘ਬੰਦ' ਹੋ ਕੇ ਬੈਠ ਜਾਣ। ਉਹ ਇਕ ਹੰਡੇ-ਵਰਤੇ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦੇ ਮਾਹਿਰ ਖਿਡਾਰੀ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਬੀਤੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚਲੀ ਰਾਜਨੀਤਕ ਉਥਲ-ਪੁਥਲ ਨੂੰ ਨਾ ਕੇਵਲ ਆਪਣੀ ਅੱਖੀਂ ਵੇਖਿਆ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਉਹ ਆਪ ਵੀ ਇਸ ਉਥਲ-ਪੁਥਲ ਵਿੱਚ ਮੁਖ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਂਦੇ ਚਲੇ ਆਏ ਹਨ। ਜੇ ਰਾਜਨੀਤਕ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਿਹਾ ਜਾਏ ਤਾਂ ਇਹ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਇਸ ਉਥਲ-ਪੁਥਲ ਵਿੱਚ ਨਾਇਕ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਅਦਾ ਕਰਦੇ ਰਹੇ ਹਨ। ਇਸ ਕਰਣ ਉਹ ਸਮਝਦੇ ਹਨ ਕਿ ਜੇ ਉਹ ਸਾਰੀਆਂ ਰਾਜਸੀ ਸਰਗਰਮੀਆਂ ਤੋਂ ਮੁਕੱਤ ਹੋ ਗਏ, ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਨੇ ਵੀ ਨਹੀਂ ਪੁਛਣਾ। ਦਸਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਭਾਵੇਂ ਹੁਣ ਵੀ ਸ. ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਦੀ ਕੋਈ ਬਹੁਤੀ ਨਹੀਂ ਚਲਦੀ, ਕਿਉਂਕਿ ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਸਵੇਰੇ ਜਲਦੀ ਹੀ ਤਿਆਰ ਹੋ ਕੇ, ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ, ਸ. ਬਾਦਲ ਦੀ ਕੋਠੀ ਪੁਜ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ (ਸ. ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ) ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਆਉਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਨਾਲ ਆਪ ਹੀ ਗਲਬਾਤ ਕਰ, ਵਾਪਸ ਮੋੜ ਦਿੰਦੇ ਹਨ। ਕੋਈ ਵਿਰਲਾ ਤੇ ਹੱਠੀ ਹੀ ਸ. ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਤਕ ਪਹੁੰਚ ਕਰ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਮੁਲਾਕਾਤ ਕਰਨ ਦਾ ‘ਸੁਭਾਗ' ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਸਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਉਹ ਇਕ ਅਜਿਹੇ ਥੰਮ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਹਾਰੇ ਪਾਰਟੀ ਖੜੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰ ਚਲ ਰਹੀ ਹੈ।
ਇਨ੍ਹਾਂ ਰਾਜਸੀ ਮਾਹਿਰਾਂ ਅਨੁਸਾਰ, ਭਾਵੇਂ ਦਲ ਦੇ ਕਈ ਮੁੱਖੀ, ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਰ ਜੂਨੀਅਰ ‘ਜੀ ਹਜੂਰੀਏ', ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਦਾ ਗੁਣ-ਗਾਨ ਕਰਦੇ ਜ਼ਮੀਨ-ਅਸਮਾਨ ਇਕ ਕਰ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਕ ਯੋਗ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕ ਤੇ ਆਗੂ ਕਰਾਰ ਦੇਣ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਕਸਰ ਨਹੀਂ ਛੱਡ ਰਹੇ। ਫਿਰ ਵੀ ਰਾਜਸੀ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਕ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ, ਅਜੇ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਹੀ ਰਖਦੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੰਨਣਾ ਹੈ ਕਿ ਅਜੇ ਇਸ ਖੇਤ੍ਰ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਸਿਖਣਾ ਬਾਕੀ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਜੋ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਗਿਣੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ, ਮੁਖ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਸ. ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤੀ ਅਤੇ ਸ਼ਖਸੀਅਤ ਹੀ ਕੰਮ ਕਰਦੀ ਚਲ਼ੀ ਆ ਰਹੀ ਹੈ।
ਜੇ ਬੀਤੇ ਵਲ ਝਾਤ ਮਾਰੀ ਜਾਏ ਤਾਂ ਇਹ ਗਲ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਨੋਂ ਇਨਕਾਰ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਕਿ ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਵਲੋਂ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ (ਬਾਦਲ) ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਅਤੇ ਉਪ-ਮੁੱਖ ਮੰਤ੍ਰੀ ਦੇ ਅਹੁਦਿਆਂ ਦੀਆਂ ਜ਼ਿਮੇਂਦਾਰੀਆਂ ਸੰਭਾਲਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦਲ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਕਈ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਆਈਆਂ ਹਨ। ਇਹੀ ਨਹੀਂ ਪਾਰਟੀ ਵਿੱਚ ਅਣਗੌਲਿਆਂ ਅਤੇ ਅਪਮਾਨਤ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਕੇ ਸ. ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਵਰਗੇ ਸੂਝਵਾਨ ਮੰਤ੍ਰੀ ਤਕ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਚਾਚੇ ਦੀ ਪਾਰਟੀ ਤੇ ਸਰਕਾਰ ਵਿੱਚ ਟਿਕਣ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ। ਜਿਸ ਕਾਰਣ ਕਈ ਸੀਨੀਅਰ ਮੁੱਖੀ, ਭਵਿਖ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਉਪਰ ਗਾਜ਼ ਡਿਗਣ ਦੇ ਡਰੋਂ ਆਪ ਹੀ ਨਿਰਾਸ਼ ਹੋ ਕੇ ਪਾਰਟੀ ਛੱਡਣ ਬਾਰੇ ਸੋਚਣ ਤੇ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ, ਕੁਝ ਤਾਂ, ਸ.ਬੀਰਦਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਵਰਗੇ ਪਾਰਟੀ ਨੂੰ ਅਲਵਿਦਾ ਕਹਿ ਵੀ ਗਏ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸ. ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਵਲੋਂ ਮਨਾਏ ਜਾਣ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਆਪਣਾ ਪੈਰ ਪਿੱਛੇ ਨਹੀਂ ਖਿਚਿਆ। ਕਈ ਹੋਰ ਵੀ ਇਸ ਪਾਸੇ ਕਦਮ ਵਧਾਣ ਦੀਆਂ ਤਿਆਰੀਆਂ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਲਗ ਗਏ ਹੋਏ ਨਜ਼ਰ ਆ ਰਹੇ ਹਨ। ਜੇ ਕੁਝ ਮਨ ਮਾਰ ਤੇ ਦਿਲ ਸਖਤ ਕਰਕੇ ਦਲ ਵਿੱਚ ਟਿੱਕੇ ਹੋਏ ਹਨ, ਤਾਂ ਉਹ ਸਿਰਫ ਸੱਤਾ-ਸੁਖ ਦੀ ਲਾਲਸਾ ਵਿੱਚ ਫਸੇ ਹੀ ਦਲ ਦੇ ਨਾਲ, ਦਲ ਦੇ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਸ਼. ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਅਤੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਦੇ ਵਫਾਦਾਰ ਹੋਣ ਦਾ ਦੰਮ ਭਰਨ ਦਾ ਨਾਟਕ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ।
ਖਿਸਕਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਬਚਾਣ ਦੀ ਚਿੰਤਾ: ਖਬਰਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਬੀਤੇ ਦਿਨੀਂ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਵਿਖੇ ਦਲ ਦੇ ਸਿਆਸੀ ਮਾਮਲਿਆਂ ਦੀ ਕੋਰ ਕਮੇਟੀ ਦੀ ਜੋ ਬੈਠਕ ਹੋਈ ਸੀ। ਉਸ ਵਿੱਚ ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਬਣਾਏ ਜਾਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਜੋ ਹੋਰ ਫੈਸਲੇ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਨ, ਭਾਵੇਂ ਦਲ ਦੇ ਮੁੱਖੀ ਸਵੀਕਾਰ ਨਾ ਕਰਨ, ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਫੈਸਲਿਆਂ ਦੀ ਘੋਖ ਕਰਦਿਆਂ, ਇਸ ਗਲ ਦਾ ਪ੍ਰਤੱਖ ਸੰਕੇਤ ਮਿਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸ. ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਦੀ ਬਗ਼ਾਵਤ ਕਾਰਣ ਦਲ ਵਿੱਚ ਜੋ ਵਿਰੋਧੀ ਸੁਗਬੁਗਾਹਟ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ ਹੋਈ ਹੈ, ਉਸਨੇ ਦਲ ਦੇ ਸੀਨੀਅਰ ਆਗੂਆਂ ਨੂੰ ਝਿੰਜੋੜ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਉਹ ਇਹ ਸੋਚਣ ਤੇ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਗਏ ਹਨ, ਕਿ ਜੇ ਸਮਾਂ ਰਹਿੰਦਿਆਂ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਨਾ ਸੰਭਾਲਿਆ ਗਿਆ ਤਾਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਸਮੇਂ ਦਲ ਵਿੱਚ ਭਾਰੀ ਧਮਾਕਾ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ।
ਇਸੇ ਕਾਰਣ ਹੀ ਇਸ ਬੈਠਕ ਵਿੱਚ ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਕਿ ਅਗਲੇਰੇ ਵਰ੍ਹੇ (ਸੰਨ 2012) ਦੇ ਅਰੰਭ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਪੰਜਾਬ ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਦੀਆਂ ਚੋਣਾਂ ਲਈ ਹੁਣ ਤੋਂ ਹੀ ਤਿਆਰੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿਤੀਆਂ ਜਾਣ। ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਲਈ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਤੇ ਦਲ ਦੇ ਰੁਸਿੱਆਂ ਨੂੰ ਮੰਨਾਉਣ ਦਾ ਸਿਲਸਿਲਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਜਾਏ ਅਤੇ ਜੁਝਾਰੂ ਆਗੂਆਂ ਅਤੇ ਵਰਕਰਾਂ ਨੂੰ ਪਾਰਟੀ ਵਿੱਚ ਅਹੁਦੇ ਦੇ ਕੇ ਸਨਮਾਨਤ ਕੀਤਾ ਜਾਏ। ਸ. ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਵਲੋਂ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਮਲਿਆਂ ਦਾ ਜਵਾਬ ਦੇਣ ਦੇ ਲਈ, ਰਣਨੀਤੀ ਬਣਾਈ ਜਾਏ। ਸਬਸਿਡੀਆਂ ਬਾਰੇ ਲੋਕਾਂ ਤਕ ਇਹ ਸੁਨੇਹਾ ਪਹੁੰਚਾਇਆ ਜਾਏ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਬੰਦ ਕਰ ਦੇਣ, ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਸ. ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਮੰਗ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ, ਦੇ ਨਾਲ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਵੇਗਾ।
ਜਾਣਕਾਰ ਹਲਕਿਆਂ ਅਨੁਸਾਰ, ਭਾਵੇਂ ਦਲ ਦੇ ਮੁੱਖੀ ਸਬਸਿਡੀਆਂ ਨੂੰ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਦੀ ਮਦੱਦ ਕਰਾਰ ਦੇ ਕੇ, ਇਹ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ਕਿ ਸਬਸਿਡੀਆਂ ਬੰਦ ਕਰ ਦੇਣ ਨਾਲ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਵੇਗਾ। ਪਰ ਆਮ ਲੋਕੀ ਜਾਣਦੇ ਹਨ ਕਿ ਇਹ ਸਭ ਕੁਝ, ਉਹ ਕੇਵਲ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਭੁਚਲਾਣ ਲਈ ਹੀ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਇਹ ਗਲ ਹਰ ਕੋਈ ਜਾਣਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਬਸਿਡੀਆਂ ਦਾ ਬਹੁਤਾ ਲਾਭ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਅਮੀਰਾਂ ਤਕ ਪੁਜ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਜੋ ਕਿਸੇ ਵੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਬਸਿਡੀਆਂ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰੀ ਨਹੀਂ ਹਨ। ਜੇ ਸ. ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਦੇ ਬਿਆਨਾਂ ਨੂੰ ਗੌਰ ਨਾਲ ਵੇਖਿਆ ਜਾਏ ਤਾਂ ਇਹ ਸਮਝਦਿਆਂ ਦੇਰ ਨਹੀਂ ਲਗਦੀ ਕਿ ਉਹ ਸਬਸਿਡੀਆਂ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬੰਦ ਕਰਨ ਦੀ ਗਲ ਨਹੀਂ ਕਰ ਰਹੇ, ਸਗੋਂ ਉਹ ਸਮਰਥਾਵਾਨਾਂ ਦੀਆਂ ਸਬਸਿਡੀਆਂ ਬੰਦ ਕਰ, ਉਸਦਾ ਲਾਭ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਣ ਦੀ ਗਲ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਜੇ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਅਨੁਸਾਰ ਸਬਸਿਡੀਆਂ ਬੰਦ ਕਰਨ ਨਾਲ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਦਾ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਵੇਗਾ ਤਾਂ ਉਸਨੂੰ ਅੰਕੜੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਤ ਕਰ ਇਹ ਗਲ ਸਾਬਤ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਕਿ ਸਬਸਿਡੀਆਂ ਦਾ ਕਿਤਨਾ ਲਾਭ ਸਮਰਥਾਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਅਤੇ ਕਿਤਨਾ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਨੂੰ ਮਿਲ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਜਿਥੋਂ ਤਕ ਰੁਸਿੱਆਂ ਨੂੰ ਮੰਨਾਉਣ ਦੀ ਗਲ ਹੈ, ਕੀ ਲੋਕੀ ਇਹ ਨਹੀਂ ਜਾਣਦੇ ਕਿ ਰੁਸਣ ਵਾਲੇ ਇਸ ਕਰਕੇ ਨਹੀਂ ਸੀ ਰੁੱਸੇ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸੱਤਾ ਦਾ ਕੋਈ ਲਾਭ ਨਹੀਂ ਮਿਲ ਰਿਹਾ, ਸਗੋਂ ਉਹ ਇਸ ਕਰਕੇ ਰੁੱਸੇ ਸਨ ਕਿ ਸੱਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਣਗੋਲਿਆਂ ਕਰ ਦਿਤਾ ਗਿਆ, ਜਦਕਿ ਦਲ ਨੂੰ ਸੱਤਾ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਣ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਭੂਮਿਕਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਸਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਉਹ ਸਨਮਾਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ, ਜਿਸਦੇ ਉਹ ਅਧਿਕਾਰੀ ਸਨ।
...ਅਤੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ : ਬੀਤੇ ਦਿਨੀਂ ਰਾਹ ਚਲਦਿਆਂ ਹੀ ਇਕ ਟਕਸਾਲੀ ਅਕਾਲੀ ਵਰਕਰ ਦੇ ਨਾਲ ਮੁਲਾਕਾਤ ਹੋ ਗਈ। ਉਸਨੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਨਿਮੋਝੂਣਿਆਂ ਹੁੰਦਿਆਂ, ਨਿਰਾਸ਼ਾ ਭਰੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਿਹਾ ਕਿ ਹੁਣ ਤਾਂ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ ਵਰਕਰਾਂ ਅਤੇ ਵਫਾਦਾਰਾਂ ਦੀ ਪਾਰਟੀ ਨਾ ਰਹਿ ਕੇ ਸਰਮਾਇਦਾਰਾਂ ਦੀ ਪਾਰਟੀ ਬਣਕੇ ਰਹਿ ਗਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ‘ਪੰਥਕ' ਆਗੂਆਂ ਨੂੰ ਇਸ ਗਲ ਦੀ ਕੋਈ ਚਿੰਤਾ ਨਹੀਂ ਕਿ ਜੋ ਸਰਮਾਇਦਾਰ ਦਲ ਦੇ ਨਾਲ ਆ ਜੁੜਿਆ ਹੈ, ਉਸਦਾ ਪਿਛੋਕੜ ਕੀ ਹੈ? ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਜੁੜਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਉਹ ਕਿਸੇ ਅਜਿਹੀ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਨਾਲ ਤਾਂ ਸਬੰਧਤ ਨਹੀਂ ਰਿਹਾ, ਜੋ ਵਿਚਾਰਧਾਰਕ ਤੋਰ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ਦੀ ਵਿਰੋਧੀ ਹੈ? ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਗਲ ਦੀ ਵੀ ਕੋਈ ਪਰਵਾਹ ਨਹੀਂ ਕਿ ਜਿਸ ਸਰਮਾਇਦਾਰ ਨੂੰ ਉਹ ਆਪਣੇ ਦਲ ਵਿੱਚ ਸਨਮਾਨ ਦੇ ਰਹੇ ਹਨ, ਕਿਧਰੇ ਉਹ ਅਜਿਹੇ ਕੰਮਾਂ ਦਾ ਸਿਰਜਕ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਸੀ ਰਿਹਾ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੰਥ ਨੇ ਅਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਦਿਤਾ ਹੋਵੇ? ਉਸਨੇ ਦਰਦ ਭਰੇ ਲਹਿਜੇ ਵਿੱਚ ਕਿਹਾ ਕਿ ਅਜਿਹੇ ਸਰਮਾਇਦਾਰਾਂ ਦੇ ਲਈ ਪਾਰਟੀ ਪ੍ਰਤੀ ਵਫਾਦਾਰ ਹੋਣ ਦੀ ਕੋਈ ਸ਼ਰਤ ਨਹੀਂ। ਦਲ ਵਿੱਚ ਅਜਿਹੇ ਸਰਮਾਇਦਾਰਾਂ ਦਾ ਹੀ ਬੋਲਬਾਲਾ ਹੈ, ਜੋ ਆਗੂਆਂ ਨੂੰ ਥੈਲੀਆਂ ਭੇਂਟ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹੋਣ, ਭਾਵੇਂ ਉਹ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਰੋਧੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਥੈਲੀਆਂ ਭੇਂਟ ਕਰਦੇ ਚਲੇ ਆ ਰਹੇ ਹੋਣ।
ਚੱਪੜ ਚਿੜੀ ਦੀ ਲੜਾਈ

ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੀ ਲੜਾਈ 22 ਮਈ, 1710 ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ। ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਇਹ ਇਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਬੜਾ ਹੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ। ਇਸ ਵਿਚ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੇ ਅਸਥਾਨ ਤੇ ਸਰਹਿੰਦ ਪਰਾਂਤ ਦੀਆਂ ਮੁਗਲ ਫੌਜਾਂ ਨੂੰ ਲੱਕ-ਤੋੜਵੀਂ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਸੀ ਅਤੇ ਖਾਲਸਾ ਦਲਾਂ ਦੀ ਸਪਸ਼ਟ ਰੂਪ ਵਿਚ ਜਿੱਤ ਹੋਈ ਸੀ। ਮਹਿਮੂਦ ਗਜ਼ਨਵੀ ਅਤੇ ਮੁਹੰਮਦ ਗੌਰੀ ਦੇ ਹਮਲਿਆਂ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਵਿਚ ਸਥਾਪਤ ਹੋਏ ਇਸਲਾਮੀ ਰਾਜ ਦੇ ਲੰਮੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਉਤਰੀ- ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਇਹ ਲੜਾਈ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ਜਿਸ ਵਿਚ ਇਸਲਾਮੀ ਫੌਜਾਂ ਨੂੰ ਸਪਸ਼ਟ ਰੂਪ ਵਿਚ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ। ਉਤਰੀ-ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਅਨੇਕਾਂ ਹੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਜਿਹਲਮ, ਭੇਰਾ ਅਤੇ ਪਾਣੀਪਤ ਦੇ ਮੈਦਾਨ, ਲਾਹੌਰ, ਦੀਪਾਲਪੁਰ ਅਤੇ ਮੁਲਤਾਨ ਆਦਿ ਖੇਤਰਾਂ ਦੇ ਮੈਦਾਨ। ਪਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੈਦਾਨਾਂ ਵਿਚ ਲੜੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਭ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿਚ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀ ਤਾਕਤਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਹੋਈ ਸੀ ਅਤੇ ਬਾਹਰੋਂ, ਉਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸਰਹੱਦ ਨੂੰ ਪਾਰ ਕਰ ਕੇ ਆਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਇਸਲਾਮੀ ਤਾਕਤਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਜਿੱਤਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਈਆਂ ਸਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਿੱਤਾਂ ਸਦਕਾ ਹੀ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਵਿਚ ਇਸਲਾਮੀ ਸਾਮਰਾਜ ਸਥਾਪਤ ਹੋਇਆ ਸੀ।
ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗਿਆਰਵੀਂ ਸਦੀ ਤੋਂ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਵਿਚ ਸਥਾਪਤ ਹੋਇਆ ਇਸਲਾਮੀ ਸਾਮਰਾਜ 1710 ਵਿਚ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੇ ਅਸਥਾਨ ਤੇ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲਿਤਾੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ। ਇਹ ਲੜਾਈ ਖਾਲਸਾ ਦਲਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗਲ ਫੌਜਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ। ਖਾਲਸਾ ਦਲਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਸੀ ਅਤੇ ਮੁਗਲ ਫੌਜਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਸਰਹਿੰਦ ਦਾ ਸੂਬੇਦਾਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਸੀ। ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿਚ ਇਤਨੀਆਂ ਸਦੀਆਂ ਬਾਅਦ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਜੇਤੂ ਇਸਲਾਮੀ ਸੈਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਇਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਤਾਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਅਸਥਾਨ ਹੋਣਾ ਹੀ ਹੋਣਾ ਹੈ ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਇਸ ਦਾ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਵੀ ਆਪਣਾ ਇਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਸਥਾਨ ਹੈ। ਇਸ ਲੜਾਈ ਦੇ ਬੜੇ ਹੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਿੱਟੇ ਹਨ। ਇਕ, ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿਚ ਹੋਈ ਜਿੱਤ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਅਤੇ ਜਮੁਨਾ ਦਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਫੈਲੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਪਰਾਂਤ ਸਰਹਿੰਦ ਵਿਚੋਂ ਮੁਗਲ ਹਕੂਮਤ ਦਾ ਖਾਤਮਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਅਤੇ ਇਸ ਦੀ ਥਾਂ ਖ਼ਾਲਸੇ ਦਾ ਰਾਜ ਸਥਾਪਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ। ਦੋ, ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਗਿਆਨ ਹੋ ਗਿਆਨ ਸੀ ਕਿ ਜੇਕਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਯੋਗ ਲੀਡਰਸ਼ਿਪ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਉਹ ਤਕੜੀਆਂ ਤੋਂ ਤਕੜੀਆਂ ਫੌਜਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਹਰਾ ਸਕਦੇ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋ ਗੱਲਾਂ ਨੇ ਖ਼ਾਲਸੇ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਪ੍ਰਭੂਸੱਤਾ ਸਥਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਲਗਾਤਾਰ ਹਥਿਆਰਬੰਦ-ਸੰਘਰਸ਼ ਨੂੰ ਚਾਲੂ ਰੱਖਣ ਲਈ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਪਰੇਰਨਾ ਦਿੱਤੀ ਸੀ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਸਾਡੇ ਲਈ ਇਹ ਮਹਾਨ ਪਰੇਰਨਾ- ਸਰੋਤ ਇਤਿਹਾਸਕ ਘਟਨਾ ਹੈ। ਇਸ ਮਹਾਨ ਪਰੇਰਨਾ-ਸਰੋਤ ਇਤਿਹਾਸਕ ਘਟਨਾ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਲੜਾਈ ਦਾ ਇਹ ਮੈਦਾਨ ਵੀ ਸਾਡੇ ਲਈ ਮਹਾਨ ਇਤਿਹਾਸਕ ਯਾਦਗਾਰ ਹੈ। ਇਹ ਹੀ ਇਕੋ-ਇਕ ਲੜਾਈ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਹੈ ਜਿਸ ਬਾਰੇ ਪੂਰੇ ਮਾਣ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦੇ ਸਕਦੇ ਹਾਂ। ਇਸ ਲੜਾਈ ਦਾ ਅਤੇ ਇਸ ਮੈਦਾਨ ਦਾ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲਾਂ, ਕਾਲਜਾਂ ਅਤੇ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਸਿਲੇਬਸ ਵਿਚ ਕੋਈ ਥਾਂ ਨਹੀਂ ਹੈ ਇਹ ਗੱਲ ਸਾਡੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਅਫ਼ਸੋਸਨਾਕ ਹੈ।
ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਸਿਰਫ ਇਕੋ ਲੜਾਈ ਤਕ ਹੀ ਸੀਮਤ ਨਹੀਂ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਲੜੀਆਂ ਗਈਆਂ ਕਈ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਸਿਖਰ ਸੀ। ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਕੈਂਥਲ, ਸਮਾਣਾ, ਸਢੌਰਾ, ਘੁੜਾਮ, ਕਪੂਰੀ ਅਤੇ ਬਨੂੜ ਆਦਿ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨੂੰ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲਿਤਾੜ ਸੁੱਟਿਆ ਸੀ। ਇਹ ਸ਼ਹਿਰ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਪਰਗਨਿਆਂ ਦੇ ਕੇਂਦਰ ਸਨ ਜਿਥੇ ਕਿ ਮੁਗਲ ਫੌਜਾਂ ਰੱਖੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨੂੰ ਜੇਕਰ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਪਰਾਂਤ ਦੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਛਾਉਣੀਆਂ ਵੀ ਕਹਿ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਕੋਈ ਅੱਤਕਥਨੀ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗੀ। ਇਹ ਸੈਨਿਕ ਛਾਉਣੀਆਂ ਸਰਹਿੰੰਦ ਲਈ ਇਕ ਬੁੱਲਵਰਕ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੀਆਂ ਸਨ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਜਦੋਂ ਇਹ ਛਾਉਣੀਆਂ ਜਾ ਪਰਗਨੇ ਇਕ-ਇਕ ਕਰਕੇ ਬਰਬਾਦ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਸਨ ਤਾਂ ਇਸ ਨਾਲ ਸਰਹਿੰਦ ਦੀ ਸੈਨਿਕ ਤਾਕਤ ਵੀ ਉਸੇ ਤਰ•ਾਂ ਘਟਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਸੀ। ਸਰਹਿੰਦ ਦਾ ਗਵਰਨਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਇਸ ਸਭ ਕੁਝ ਨੂੰ ਬੜੇ ਗੋਹ ਨਾਲ ਦੇਖ ਰਿਹਾ ਸੀ ਪਰ ਉਹ ਕਰ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਸਕਿਆ ਸੀ। ਉਸ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਮਾਸੂਮ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਦਾ ਪਾਪ ਘਰ ਕਰੀ ਬੈਠਾ ਸੀ। ਇਹ ਪਾਪ ਉਸ ਨੂੰ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਲਗਾਤਾਰ ਦੇ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਕਦੇ ਨਾ ਕਦੇ ਉਸ ਤੋਂ ਬਦਲਾ ਜ਼ਰੂਰ ਲੈਣਾ ਹੈ। ਆਪਣੀਆਂ ਛਾਉਣੀਆਂ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਹੁੰਦਾ ਦੇਖ ਕੇ ਉਹ ਸਰਹਿੰਦ ਵਿਚ ਹੀ ਬੰਦ ਹੋ ਕੇ ਰਹਿ ਗਿਆ ਸੀ। ਉਹ ਇਕ ਵਾਰ ਵੀ ਉਕਤ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਦੇ ਹੁਕਮਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਤੇ ਨਹੀਂ ਪਹੁੰਚ ਸਕਿਆ ਸੀ।
ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਨਿਸ਼ਾਨਾ ਸਰਹਿੰਦ ਉਪਰ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ ਦੇਣ ਦਾ ਸੀ ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇਹੋ ਕੰਮ ਹੀ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਇਸ ਕੰਮ ਨੂੰ ਕਰਨ ਲਈ ਪਹਿਲਾਂ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਨੇ ਇਸ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਤਾਣੇ-ਬਾਣੇ ਨੂੰ ਤੋੜਨ ਦੀ ਗੱਲ ਸੋਚੀ ਸੀ। ਸਮਾਣਾ ਅਤੇ ਸਢੌਰਾ ਆਦਿ ਪਰਗਾਨਿਆਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਕੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਬੁੱਲਵਰਕ ਨੂੰ ਤੋੜਿਆ ਸੀ। ਇਸ ਨੂੰ ਤੋੜਨ ਬਾਅਦ ਹੀ ਸਰਹਿੰਦ ਉਪਰ ਚੜ•ਾਈ ਕੀਤੀ ਸੀ।
ਜਦੋਂ ਸਰਹਿੰਦ ਉਪਰ ਚੜਾਈ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ਤਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਬਿਲਕੁਲ ਲੁੰਜਾ ਜਾਂ ਨਿਹੱਥਾ ਹੋ ਚੁੱਕਿਆ ਸੀ। ਜਨਵਰੀ, 1709 ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਜਨਵਰੀ, 1710 ਤਕ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰਲੇ ਇਕ ਸਾਲ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਵਲੋਂ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਪਰਗਨਿਆਂ ਦੀ ਜੋ ਦੁਰਦਸ਼ਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ਉਸ ਦਾ ਖੁਲਾਸਾ ਉਸ ਖ਼ਬਰ ਵਿਚ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਨਾਮਾ-ਨਿਗਾਰਾਂ ਨੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਹਾਦੁਰ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਭੇਜੀ ਸੀ। ਇਸ ਵਿਚ ਦੱਸਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ਕਿ ''ਸਿੱਖ ਪੰਜਾਬ ਪਰਾਂਤ ਵਿਚ ਅਤੇ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਗੜਬੜ ਪੈਦਾ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗੜਬੜ ਵਾਲੀਆਂ ਥਾਵਾਂ ਦਾ ਕਿੰਨਾ ਕੁ ਵਿਸਥਾਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ? ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਪਰਗਨਿਆਂ ਨੂੰ ਉਜਾੜ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਖ਼ਬਰਾਂ ਮਿਲ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਬੂੜੀਆਂ ਅਤੇ ਸਢੌਰੇ ਦੇ ਪਰਗਨਿਆਂ ਨੂੰ ਲੁੱਟ ਲਿਆ ਹੈ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਦੇ ਬੰਦੇ ਮਾਰੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ। ਵਾਮਲਾ (ਦਾਮਲਾ) ਪਠਾਣ ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਤਿਕਾਰਵਾਲਾ ਦਰਜਾ ਰੱਖਦੇ ਹਨ ਮਿੱਟੀ ਵਿਚ ਮਿਲਾ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਹਨ। ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਦੇ ਵਕੀਲ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਫਿਰਕੇ (ਸਿੱਖਾਂ) ਦੇ ਫਸਾਦਾਂ ਨੂੰ ਮਹੱਤਵਹੀਣ ਨਹੀਂ ਸਮਝਣਾ ਚਾਹੀਦਾ। ਉਹ ਸੱਤਰ ਹਜ਼ਾਰ ਦੇ ਕਰੀਬ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਸਢੌਰੇ ਵਿਖੇ ਇਕੱਠੇ ਹੋਏ ਖੜੇ ਹਨ। ਇਸ ਮੌਕੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਗੁਰੂ ਦਾ ਨਾਮ ਜਪਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇਹ ਵੀ ਪਤਾ ਲਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਇਕ ਮੁਸਲਮਾਨ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਤ (ਸ਼ਾਇਦ ਪੀਰ ਬੁੱਧੂ ਸ਼ਾਹ ਦਾ ਕੋਈ ਉਤਰ-ਅਧਿਕਾਰੀ) ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਗਿਆ ਹੈ। ਉਹ ਦੁਆਬੇ ਦੇ ਪਰਗਨਿਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਉਜਾੜ ਚੁੱਕੇ ਹਨ ਅਤੇ ਦਰਿਆ ਫਤਿਹਾਬਾਦ (ਘੱਗਰ-ਸਰਸਵਤੀ) ਤਕ ਵੀ ਫੈਲ ਚੁੱਕੇ ਹਨ। ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਵੱਲੋਂ ਭੇਜੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵੇਰਵਿਆਂ ਤੋਂ ਜਾਣੂੰ ਹੋਣ ਉਪਰੰਤ ਨਿਜ਼ਾਮ-ਉਲ-ਮੁਲਕ (ਮੁਲਕ ਦੇ ਪਰਧਾਨ ਵਜ਼ੀਰ) ਨੇ ਇਸ ਖੇਤਰ ਦੇ ਕਿਲ•ੇਦਾਰਾਂ ਨੂੰ ਹਿਦਾਇਤਾਂ ਭੇਜੀਆਂ ਹਨ ਕਿ ਉਹ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਨਾਲ ਰਲ ਕੇ ਉਸ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰਨ। ਇਹ ਲੋਕ ਵੀ ਸੱਤਾਹੀਣ ਹੋ ਗਏ ਹਨ। ਹੁਣ ਰੱਬ ਹੀ ਜਾਣਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕਿਸਮਤ ਵਿਚ ਕੀ ਵਾਪਰਨਾ ਲਿਖਿਆ ਹੈ।''
ਇਸ ਰਿਪੋਰਟ ਤੋਂ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਦੀ ਹਾਲਤ ਦਾ ਭਲੀ-ਭਾਂਤ ਪਤਾ ਲਗ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਰਿਪੋਰਟ 25 ਫਰਵਰੀ, 1710 ਨੂੰ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ਅਤੇ 28 ਅਪਰੈਲ ਨੂੰ ਬਦਸ਼ਾਹ ਵੱਲੋਂ ਇਸ ਰਿਪੋਰਟ ਦੇ ਜਵਾਬ ਵਿਚ ਹੁਕਮ ਜਾਰੀ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ਕਿ ਨੇਜਾ ਬਰਦਾਰ, ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਫੁਰਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਸੂਬੇਦਾਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਪਾਸ ਪਹੁੰਚਾ ਦੇਣ। ਐਮਨਾਬਾਦ ਦੇ ਫੌਜਦਾਰ ਨੂੰ ਵੀ ਤੁਰੰਤ ਫੁਰਮਾਨ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਦੀਵਨ ਰੁਸਤਮ ਖਾਨ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਲੇਵਾ ਸਾਰੇ ਪੈਰੋਕਾਰਾਂ ਨੂੰ ਪਕੜ ਲੈਣ। 12 ਮਈ, 1710 ਨੂੰ ਜੋ ਰਿਪੋਰਟ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਨੇ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ ਉਸ ਵਿਚ ਦੱਸਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ਕਿ 'ਸਰਹਿੰਦ ਅਤੇ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਨੇੜਲੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ, ਇਕ ਬੰਦੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਬੰਦੇ ਇਕੱਠੇ ਕਰ ਲਏ ਹਨ। ਮੁਸਲਮਾਨ ਨਾਮਾ-ਨਿਗਾਰਾਂ ਨੂੰ ਜਾਂ ਆਮ ਆਦਮੀ ਨੂੰ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕਿ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਨ•ਾਂ ਦੇ ਉਤਰ-ਅਧਿਕਾਰੀ ਵਿਚ ਕੀ ਵਖਰੇਵਾਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਹਰ ਸਿੱਖ ਨੇਤਾ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਦੇ ਤਖੱਲਸ ਨਾਲ ਹੀ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦੇ ਸਨ।
ਜਿਵੇਂ ਉਪਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਖੁਫ਼ੀਆ ਰਿਪੋਰਟ ਵਿਚ ਦੱਸਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਦੀਆਂ ਮੁੱਢਲੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਦੀਆਂ ਖ਼ਬਰਾਂ ਸਾਰੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਜੰਗਲ ਦੀ ਅੱਗ ਵਾਂਗ ਫੈਲ ਗਈਆਂ ਸਨ। ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਪਰਾਂਤ ਵਿਚ ਹਾਲਾਤ ਬੇਯਕੀਨੀ ਵਾਲੇ ਬਣੇ ਹੋਏ ਸਨ। 27 ਮਈ ਦੀ ਖਬਰ ਵਿਚ ਦੱਸਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਸਫ਼ਸ਼ਿਕਨ ਖਾਨ ਨੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਪਾਸ ਇਹ ਪੇਸ਼ਕਸ਼ ਕੀਤੀ ਹੈ ਕਿ ਜੇਕਰ ਉਸ ਨੂੰ ਸਰਹਿੰਦ ਦਾ ਫੌਜਦਾਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ਅਤੇ ਤਕੜੀ ਸੈਨਾ ਤੇ ਅਸਲਾ ਵਗੈਰਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਉਹ ਬੰਦੇ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ ਦੇ ਸਕਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨੇ ਸਭ ਪਾਸੇ ਗੜਬੜ ਫੈਲਾ ਰੱਖੀ ਹੈ। ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਨੇ ਪੁੱਛਿਆ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਕਿੰਨੀ ਸੈਨਾ ਅਤੇ ਅਸਲੇ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ।
ਇਸ ਨਾਲ ਮਾਝੇ ਅਤੇ ਦੁਆਬੇ ਵਿਚ ਵੀ ਸਿੰਘ ਇਕੱਠੇ ਹੋਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ ਸਨ। ਜਿਥੇ ਵੀ ਸਿੰਘ ਜੱਥਿਆਂ ਦਾ ਜ਼ੋਰ ਪੈਂਦਾ ਸੀ ਉਹ ਉਥੇ ਹੀ ਆਪਣੇ ਸਥਾਨਕ ਹਾਕਮਾਂ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਬਗ਼ਾਵਤ ਕਰ ਦਿੰਦੇ ਸਨ। ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਵੱਲੋਂ ਸਿੱਖ ਸੰਗਤਾਂ ਨੂੰ ਭੇਜੇ ਗਏ ਹੁਕਮਨਾਮੇ ਵੀ ਸਿੰਘ ਜੱਥਿਆਂ ਨੂੰ ਖੜ੍ਹੇ ਹੋਣ ਲਈ ਪਰੇਰ ਰਹੇ ਸਨ। ਇਸ ਸਭ ਕੁਝ ਦਾ ਸਿੱਟਾ ਇਹ ਹੋਇਆ ਸੀ ਕਿ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵੀ ਇਹ ਹੀ ਇੱਛਾ ਸੀ ਕਿ ਜੇਕਰ ਸਰਹਿੰਦ ਉਪਰ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਿੰਘ ਜੱਥਿਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਤਕੜੀ ਹੋ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਨੂੰ ਹਰਾਉਣਾ ਸੌਖਾ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ। ਇਸ ਲਈ ਜਦੋਂ ਕਿ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸਢੌਰੇ ਤੋਂ ਸਰਹਿੰਦ ਵੱਲ ਚੜ੍ਹਾਈ ਕਰਨ ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਸੁਨੇਹੇ ਮਿਲੇ ਸਨ ਕਿ ਮਾਝੇ ਅਤੇ ਦੁਆਬੇ ਦੇ ਸਿੰਘਾਂ ਦਾ ਇਕ ਤਕੜਾ ਦਲ ਉਸ ਨਾਲ ਮਿਲਣ ਲਈ ਸਤਲੁਜ ਦਰਿਆ ਦੇ ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਵਾਲੇ ਘਾਟ ਤੇ ਰੁਕਿਆ ਖੜ੍ਹਾ ਹੈ। ਰੁਕਣ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ਦਲ ਦੇ ਰਵਾਨਾ ਹੋਣ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਨੂੰ ਵੀ ਮਿਲ ਗਈ ਸੀ। ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ ਇਸ ਦਲ ਨੂੰ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਨਾਲ ਆ ਕੇ ਮਿਲਣ ਤੋਂ ਰੋਕਣ ਲਈ ਮਲੇਰਕੋਟਲੇ ਅਤੇ ਰੋਪੜ ਦੇ ਫੌਜਦਾਰਾਂ ਦੀ ਡਿਊਟੀ ਲਗਾਈ ਸੀ। ਮਾਲੇਰਕੋਟਲੇ ਦੀ ਫੌਜ ਸ਼ੇਰ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਨ, ਖਿਜ਼ਰ ਖਾਨ ਅਤੇ ਨਸ਼ਤਰ ਖਾਨ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਸਤਲੁਜ ਦਾ, ਰੋਪੜ ਦੇ ਨੇੜਿਓਂ ਉਰਲਾ ਕੰਢਾ ਰੋਕ ਕੇ ਖੜੋ ਗਈ ਸੀ। ਸਿੰਘ ਸਤਲੁਜ ਨੂੰ ਪਾਰ ਕਰਕੇ ਆਪਣੇ ਨੇਤਾ ਨਾਲ ਮਿਲਣ ਲਈ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ ਸਨ ਅਤੇ ਮਾਲੇਰਕੋਟਲੇ ਦੀ ਫੌਜ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਦ੍ਰਿੜ ਸੀ। ਇਸ ਲਈ ਰੋਪੜ ਨੇੜੇ ਸਤਲੁਜ ਦੇ ਪੱਤਣ ਤੇ ਦੋਵੇਂ ਧਿਰਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਗਹਿਗੱਚਵੀਂ ਲੜਾਈ ਹੋਈ। ਪਹਿਲੇ ਦਿਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੁਪਹਿਰ ਦੇ ਬਾਅਦ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈ ਸੀ ਜਿਹੜੀ ਰਾਤ ਪੈਣ ਤਕ ਚਲਦੀ ਰਹੀ ਸੀ। ਰਾਤ ਦਾ ਹਨੇਰਾ ਪੈ ਜਾਣ ਕਰਕੇ ਜਦੋਂ ਇਕ ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਦਿਖਾਈ ਦੇਣੋ ਬੰਦ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ਤਾਂ ਲੜਾਈ ਬੰਦ ਹੋ ਗਈ ਸੀ। ਰਾਤੋਂ-ਰਾਤ ਦੋਵੇਂ ਧਿਰਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ-ਆਪ ਨੂੰ ਸੰਭਾਲਿਆ। ਪਿੱਛੋਂ ਹੋਰ ਵੀ ਸਿੰਘ ਜੱਥੇ ਜੈਕਾਰੇ ਗੂੰਜਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਆਪਣੇ ਸਾਥੀਆਂ ਨਾਲ ਆ ਕੇ ਮਿਲ ਰਹੇ ਸਨ। ਜਿਉਂ ਹੀ ਦੂਸਰਾ ਦਿਨ ਚੜ੍ਹਿਆ ਤਾਂ ਦੋਵੇਂ ਧਿਰਾਂ ਫਿਰ ਗੁੱਥਮਗੁੱਥਾ ਹੋ ਗਈਆਂ। ਸਿੰਘ ਜਥਿਆਂ ਦੀ ਦ੍ਰਿੜ•ਤਾ ਸਾਹਮਣੇ ਮੁਗਲ ਸੈਨਿਕ ਖੜੋ ਨਹੀਂ ਸਕੇ ਸਨ। ਇਸ ਸਮੇਂ ਖ਼ਬਰਾਂ ਪਹੁੰਚ ਗਈਆਂ ਸਨ ਕਿ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਨੇ ਬਨੂੜ ਨੂੰ ਵੀ ਤਬਾਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਨੇੜੇ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ ਹੈ। ਇਸ ਗੱਲ ਨੇ ਸਿੰਘਾਂ ਦੇ ਜੋਸ਼ ਅਤੇ ਜ਼ੋਰ ਨੂੰ ਤਿਗੁਣਾ-ਚੌਗੁਣਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ। ਖਿਜ਼ਰ ਖਾਨ, ਨਸ਼ਤਰ ਖਾਨ ਅਤੇ ਵਲੀ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਨ, ਤਿੰਨ ਮੁੱਖੀ ਜਰਨੈਲ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ। ਇਸ ਨਾਲ ਸ਼ੇਰ ਮੁਹੰਮਦ ਖਾਨ ਦਾ ਲੱਕ ਟੁੱਟ ਗਿਆ ਸੀ। ਬਨੂੜ ਦੀ ਬਰਬਾਦੀ ਨੇ ਵੀ ਉਸ ਨੂੰ ਹੌਂਸਲਾਹੀਣ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ। ਮਾਲੇਰਕੋਟਲੇ ਦੀ ਫੌਜ ਭੱਜ ਗਈ ਸੀ। ਸਿੰਘ ਦਲ ਰੋਪੜ ਵਿਚੋਂ ਦੀ ਹਥਿਆਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਇਕੱਠੇ ਕਰਦਾ ਹੋਇਆ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਵਲ ਨੂੰ ਵੱਧਦਾ ਆ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਉਧਰੋਂ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਵੀ ਸਿੰਘਾਂ ਦੇ ਵਧਦੇ ਆਉਣ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲ ਗਈ ਸੀ, ਉਹ ਵੀ ਬਨੂੜ ਤੋਂ ਚੱਲ ਕੇ ਸਿੰਘ ਜੱਥਿਆਂ ਦੇ ਸੁਆਗਤ ਲਈ ਅਗੇ ਵਧ ਆਇਆ ਸੀ। ਦੋਵੇਂ ਧਿਰਾਂ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਆ ਇਕੱਠੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ।
ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਾਰੇ ਸਾਡੇ ਮੁੱਢਲੇ ਲੇਖਕ ਲਿਖਦੇ ਹਨ ਜ਼ਰਾ ਇਸ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਕਰਮ ਸਿੰਘ ਹਿਸਟੋਰੀਅਨ ਨੂੰ ਤਾਂ ਇਸਦੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਹੀ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਉਹ ਲਿਖਦਾ ਹੈ ਕਿ ''ਇਹ ਨਾਮ (ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ) ਰਤਨ ਸਿੰਘ ਭੰਗੂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੰਥ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਵਿਚ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਪਰ ਇਸ ਨਾਮ ਦਾ ਪਿੰਡ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਆਸ ਪਾਸ ਕੋਈ ਨਹੀਂ, ਘਨੌਰ ਤੇ ਤਅੱਲਕੇ ਵਿਚ ਰਾਜ-ਪੁਰਿਓਂ ਦਸ ਕੁ ਮੀਲ ਚਪੜ ਪਿੰਡ ਹੈ ਅਤੇ ਸਰਹਿੰਦੋਂ ਬਾਰਾਂ ਕੋਹ ਚੜੀ ਪਿੰਡ ਹੈ। ਪਰ ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਹੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੇ।'' ਡਾ. ਗੰਡਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵੀ ਇਸ ਥਾਂ ਬਾਰੇ ਕਿਸੇ ਦੂਸਰੇ ਵਿਅਕਤੀ ਕੋਲੋਂ ਸੁਣ ਕੇ ਹੀ ਲਿਖਿਆ ਹੈ। ਖੁਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਵੀ ਇਸ ਮੈਦਾਨ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਦੇਖਿਆ। ਹੋਰ ਵੀ ਕਿਸੇ ਲੇਖਕ ਨੇ ਇਹ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਨਹੀਂ ਦੇਖਿਆ। ਬਿਨਾਂ ਦੇਖੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਬਾਰੇ ਸਹੀ ਰੂਪ ਵਿਚ ਬਿਆਨ ਕਰਨਾ ਅਸੰਭਵ ਹ। ਲੜਾਈ ਦੀ ਸਹੀ ਵਿਆਖਿਆ ਉਸ ਮੈਦਾਨ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਸਹੀ ਗਿਆਨ ਨਾਲ ਹੀ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ ਇਸ ਕਰਕੇ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਬਿਆਨ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਗਿਆਨ ਰੱਖਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ।
ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਸਰਹਿੰਦ ਤੋਂ ਲਿੰਕ ਸੜਕਾਂ ਰਾਹੀਂ 18-19 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਦੀ ਵਿੱਥ ਤੇ ਪੂਰਬ ਵਾਲੇ ਪਾਸੇ ਹੈ। ਇਸ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਇਹ ਬਨੂੜ-ਖਰੜ ਸੜਕ ਦੇ ਉਪਰ ਬਨੂੜ ਵਲੋਂ ਲਾਂਡਰਾ ਲੰਘ ਕੇ ਸਵਰਾਜ ਫੈਕਟਰੀ ਦੇ ਕੋਲ ਮੁੱਖ ਸੜਕ ਤੋਂ ਤਕਰੀਬਨ ਡੇਢ ਕੁ ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਦੀ ਵਿੱਥ ਤੇ ਹੈ। ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਖੁਰਦ (ਛੋਟਾ)। ਖੁਰਦ ਪਹਿਲਾਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਕਲਾਂ ਪਿੱਛੋਂ। ਦੋਹਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਵੀ ਡੇਢ ਦੋ ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਦਾ ਫਾਸਲਾ ਹੈ। ਜੰਗ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਦੋਹਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਤੋਂ ਹੱਟ ਕੇ ਹੈ। ਭਾਵੇਂ ਅੱਜ ਇਹ ਮੈਦਾਨ ਨਿੱਜੀ ਜਾਇਦਾਦ ਹੈ ਅਤੇ ਕੁਝ ਕੁ ਰਕਬਾ ਵੱਡੇ ਪਿੰਡ ਦੀ ਪੰਚਾਇਤ ਦਾ ਵੀ ਹੈ। ਉਹ ਟਿੱਬਾ, ਜਿਥੇ ਕਿ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਬੈਠ ਕੇ ਸਮੁੱਚੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਨਿਗਾਹ ਰੱਖ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਅਜੇ ਵੀ ਕੁਝ ਹਾਲਤ ਵਿਚ ਕਾਇਮ ਹੈ। ਇਥੋਂ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਦੱਸਣ ਅਨੁਸਾਰ ਇਹ ਟਿੱਬਾ ਅਜ ਤੋਂ ਕੋਈ ਚਾਲੀ-ਪੰਤਾਲੀ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ 35-40 ਫੁੱਟ ਉਚਾ ਸੀ। ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਇਥੋਂ ਆਮ ਲੋਕ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਮਿੱਟੀ ਚੁੱਕਦੀਆਂ ਰਹੀਆਂ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਅੱਜ ਇਹ ਇਕ ਉਚੇ-ਟਿੱਬੇ ਦਾ ਰੂਪ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਸਗੋਂ ਬਾਕੀ ਮੈਦਾਨ ਨਾਲੋਂ ਥੋੜ•ਾ ਜਿਹਾ ਹੀ ਉਚਾ ਹੈ। ਇਸ ਟਿੱਬੇ ਦੇ ਪਿਛਲੇ ਪਾਸੇ 'ਪਟਿਆਲਾ ਕੀ ਰਾਓ' ਨਾਂ ਦੀ ਨਦੀ ਵਗਦੀ ਸੀ। ਇਸ ਵਿਚ ਬੜਾ ਸਾਫ਼ ਪਾਣੀ ਵਹਿੰਦਾ ਸੀ। ਅੱਜ ਭਾਵੇਂ ਇਹ ਨਦੀ ਬੰਦ ਹੋ ਗਈ ਹੈ। ਇਸ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਅਨੇਕਾਂ ਹੀ ਛੱਪੜ (ਢਾਬਾਂ) ਸਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਛੱਪੜਾਂ ਕਰਕੇ ਹੀ ਇਸ ਖੇਤਰ ਦਾ ਨਾਂ ਛੱਪੜਾਂ ਵਾਲਾ ਜੰਗਲ ਜਾਂ ਛੱਪੜਾਂ ਵਾਲੀ ਝਿੜੀ ਪਰਚੱਲਤ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਇਸੇ ਹੀ ਭਾਵ ਵਾਲਾ ਨਾਂ ਹੈ। ਇਹ ਪਹਾੜ ਦੀ ਤਰਾਈ ਵਾਲਾ ਖੇਤਰ ਹੈ। ਇਥੋਂ ਦੀ ਕਈ ਬਰਸਾਤੀ ਨਦੀਆਂ ਨਾਲੇ ਨਿਕਲਣ ਕਾਰਨ ਹੀ ਇਹ ਸਾਰਾ ਖੇਤਰ ਉਚਾ ਨੀਵਾਂ ਹੈ। ਧਰਤੀ ਹੇਠਲਾ ਪਾਣੀ ਥੋੜ੍ਹਾ ਹੈ ਅਤੇ ਡੂੰਘਾ ਹੈ। ਕੁਝ ਛੱਪੜ ਕੁਦਰਤੀ ਤੌਰ 'ਤੇ ਬਣੇ ਹੋਏ ਹਨ ਅਤੇ ਕੁਝ ਲੋਕਾਂ ਰਾਹੀਂ ਆਪਣੀ ਲੋੜ ਮੁਤਾਬਕ ਪੁੱਟ ਕੇ ਬਣਾਏ ਗਏ ਹਨ। ਇਕ ਵੱਡਾ ਪੁਰਾਤਨ ਛੱਪੜ ਇਸ ਸਮੇਂ ਸ. ਬਲਵੰਤ ਸਿੰਘ, ਸਾਬਕਾ ਸਰਪੰਚ, ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਕਲਾਂ ਦੇ ਰਕਬੇ ਵਿਚ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਪੂਰ ਕੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਰਲਾ ਲਿਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਇਕ ਹੋਰ ਪੁਰਾਤਨ ਛੱਪੜ ਵਰਤਮਾਨ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਵਾਲੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਸੀ। ਇਸ ਨੂੰ ਵੀ ਮਿੱਟੀ ਨਾਲ ਭਰ ਕੇ ਬਾਕੀ ਜ਼ਮੀਨ ਵਿਚ ਮਿਲਾ ਲਿਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਇਕ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਪੁਰਾਤਨ ਛੱਪੜ (ਢਾਬ) ਬਨੂੜ-ਲਾਂਡਰਾਂ ਸੜਕ ਉਪਰ ਸਥਿਤ ਪਿੰਡ ਮੋਟੇ ਮਾਜਰਾ ਦੀ ਜੂਹ ਵਿਚ ਹੈ। ਇਹ ਬਹੁਤ ਵਿਸ਼ਾਲ ਢਾਬ ਸੀ। ਇਸੇ ਹੀ ਸੜਕ ਉਪਰ ਵਸੇ ਪੁਰਾਣੇ ਇਕ ਹੋਰ ਪਿੰਡ ਸਨੇਟਾ ਵਿਚ ਵੀ ਇਕ ਬਹੁਤ ਵਿਸ਼ਾਲ ਟੋਬਾ ਹੈ। ਇਹ ਟੋਬੇ ਜਾਂ ਛੱਪੜ ਹੀ ਇਸ ਇਲਾਕੇ ਦੀ ਪਛਾਣ ਸਨ।
'ਪਟਿਆਲਾ ਕੀ ਰਾਓ' ਨਦੀ ਦਾ ਉਸ ਵੇਲੇ ਭਾਵੇਂ ਨਾਂ ਕੁਝ ਹੋਰ ਹੋਣਾ ਹੈ (ਸ਼ਾਇਦ ਹੰਸਾਲੀ ਜਾਂ ਹੰਸਲਾ ਨਦੀ) ਪਰ ਇਹ ਨਦੀ ਇਸ ਖੇਤਰ ਨੂੰ ਮੁਸਲਮਾਨ ਅਤੇ ਗ਼ੈਰ-ਮੁਸਲਮਾਨ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਵੰਡਦੀ ਸੀ। ਇਸ ਨਦੀ ਦੇ ਉਤਰ-ਪੂਰਬ ਵਾਲੇ ਪਾਸੇ, ਭਾਵ ਕਿ ਵਰਤਮਾਨ ਮੁਹਾਲੀ ਵਾਲੇ ਪਾਸੇ ਕੁਝ ਗੈਰ-ਮੁਸਲਮਾਨ ਆਬਾਦੀ (ਹਿੰਦੂ-ਸਿੱਖ) ਵਾਲੇ ਪਿੰਡ ਸਨ। ਇਹ ਸਨ : ਕੁੰਭੜਾ, ਸੁਹਾਣਾ, ਮਟੌੜ, ਮਨੌਲੀ ਜਾਂ ਮੌਲੀ ਅਤੇ ਮਾਣਕ ਮਾਜਰਾ ਆਦਿ। ਇਹ ਸਾਰੇ ਵੈਦਵਾਨ ਜੱਟਾਂ ਦੇ ਪਿੰਡ ਸਨ। ਨਦੀ ਦੇ ਪੱਛਮ ਵੱਲ, ਭਾਵ ਕਿ ਲਾਂਡਰਾਂ ਅਤੇ ਖਰੜ ਵਾਲੇ ਪਾਸੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਆਬਾਦੀ ਵਾਲੇ ਪਿੰਡ ਸਨ। ਖਾਸ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੇ ਦੋਵੇਂ ਪਿੰਡ ਮੁਸਲਮਾਨ ਅਬਾਦੀ ਵਾਲੇ ਪਿੰਡ ਸਨ।' ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਵੇਂ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਮਸਜਿਦਾਂ ਸਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਹੁਣ ਉਸੇ ਹਾਲਤ ਵਿਚ ਸੰਭਾਲੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ, ਕੈਲੋਂ, ਸੈਦਪੁਰ, ਮਾਣਕ ਪੁਰ ਆਦਿ ਪਿੰਡ ਸਨ। ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਦੀ ਛਾਉਣੀ 'ਪਟਿਆਲਾ ਕੀ ਰਾਓ' ਨਦੀ ਉਪਰ ਅਤੇ ਉਕਤ ਦੱਸੇ ਗਏ ਸਿੱਖ-ਹਿੰਦੂ ਆਬਾਦੀ ਵਾਲੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ ਜੂਹ ਵਿਚ ਸੀ। ਬਨੂੜ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਤੱਕ ਦਾ ਸਾਰਾ ਖੇਤਰ ਖਾਲਸਾ ਦਲਾਂ ਦੇ ਕਬਜ਼ੇ ਵਿਚ ਸੀ। 'ਪਟਿਆਲਾ ਕੀ ਰਾਓ' ਨਦੀ ਦੇ ਪਾਸ (ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਵਾਲੇ ਪਾਸੇ) ਉਹ ਉਚਾ ਟਿੱਬਾ ਸੀ ਜਿਸ ਉਪਰ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਬੈਠਾ ਸੀ। ਚੱਪੜ ਚਿੜੀ, ਲਾਂਡਰਾਂ ਅਤੇ ਕੈਲੋਂ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਵਿਚੋਂ ਦੀ ਜੋ ਲਾਇਨ ਮੁਸਲਮਾਨ ਆਬਾਦੀ ਵਾਲੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ, ਸਰਹਿੰਦ ਤੀਕ ਪਹੁੰਚਦੀ ਸੀ ਉਸ ਪਾਸੇ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਦੀਆਂ ਫੌਜਾਂ ਸਨ।
ਸਵਾਲ ਇਥੇ ਇਹ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਰਹਿੰਦ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਅਤੇ ਲੜਾਈ ਕਰਨ ਲਈ, ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਨੂੰ ਬਨੂੜ ਤੋਂ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਵਾਲੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਆਉਣ ਦੀ ਕੀ ਲੋੜ ਸੀ ਜਦੋਂ ਕਿ ਸਰਹਿੰਦ ਉਪਰ ਹਮਲਾ ਤਾਂ ਬਨੂੜ ਤੋਂ ਵੀ ਹੋ ਸਕਦਾ ਸੀ। ਬਨੂੜ ਤੋਂ ਜਿੰਨੀ ਦੂਰ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਸੀ ਉਤਨੀ ਹੀ ਦੂਰ ਸਰਹਿੰਦ ਸੀ। ਅੱਗੇ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਤੋਂ ਵੀ ਸਰਹਿੰਦ 18-19 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਦੀ ਵਿੱਥ 'ਤੇ ਸੀ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬਨੂੜ ਤੋਂ ਹੀ ਸਰਹਿੰਦ ਉਪਰ ਹਮਲਾ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ? ਕੀ ਕਾਰਨ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਆਉਣਾ ਪਿਆ ਸੀ। ਇਸਦਾ ਇਕ ਸੰਭਵ ਕਾਰਨ ਇਹ ਹੀ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜਿਹੜਾ ਇਕ ਤਕੜਾ ਖਾਲਸਾ ਦਲ ਮਾਝੇ ਅਤੇ ਦੁਆਬੇ ਤੋਂ ਇਕੱਠਾ ਹੋ ਕੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਰਲਣ ਲਈ ਕੀਰਤਪੁਰ ਸਾਹਿਬ-ਰੋਪੜ ਦੇ ਰਸਤੇ ਆ ਰਿਹਾ ਸੀ ਪਹਿਲਾਂ ਤਾਂ ਇਸ ਨੂੰ ਰੋਪੜ ਵਿਖੇ ਹੀ ਮਾਲੇਰਕੋਟਲੇ ਤੇ ਰੋਪੜ ਦੀਆਂ ਫੌਜਾਂ ਨੇ ਰੋਕ ਕੇ ਰੱਖਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਸੀ ਪਰ ਉਹ ਰੋਕ ਨਹੀ ਸਕੇ ਸਨ। ਇਹ ਖਾਲਸਾ ਦਲ ਰੋਪੜ ਲੰਘ ਕੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਵੱਲ ਆ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਉਸ ਸਮੇਂ ਬਨੂੜ ਵਿਖੇ ਸੀ। ਜਿਉਂ ਹੀ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਨੂੰ ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਮਿਲੀ ਕਿ ਰੋਪੜ ਤੋਂ ਖਾਲਸਾ ਦਲ ਮੁਗ਼ਲ ਫੌਜਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਕੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਵੱਲ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ ਅਤੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਵੱਲ (ਬਨੂੜ ਵੱਲ) ਆਉਣ ਦਾ ਰੋਪੜ ਦਾ ਰਸਤਾ ਕੁਰਾਲੀ ਅਤੇ ਖਰੜ ਵਿਚੋਂ ਦੀ ਹੀ ਸੀ। ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਇਸ ਖਿਆਲ ਨਾਲ ਕਿ ਦੋਹਾਂ ਦਲਾਂ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਨਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ, ਇਕ ਦਮ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਮਾਝੇ-ਦੁਆਬੇ ਦੇ ਖਾਲਸਾ ਦਲਾਂ ਦਾ ਰਸਤਾ ਕੱਟਣ ਲਈ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀਵੱਲ ਰਵਾਨਾ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ। ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਮਾਝੇ-ਦੁਆਬੇ ਵੱਲੋਂ ਆ ਰਹੇ ਖਾਲਸਾ ਦਲ ਦੀ ਰਵਾਨਗੀ ਤੇਜ਼ ਸੀ। ਇਸ ਲਈ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਤੁਰੰਤ ਪੂਰੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਖਾਲਸਾ ਦਲ ਨਾਲ ਮਿਲਣ ਲਈ ਲਾਂਡਰਾਂ ਤੇ ਖਰੜ ਵੱਲ ਨੂੰ ਚੱਲ ਪਿਆ ਸੀ। ਦੋਵਾਂ ਦਲਾਂ ਦਾ ਮੇਲ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਵਾਲੇ ਅਸਥਾਨ 'ਤੇ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ। ਦੋਵੇਂ ਦਲਾਂ ਦੀ ਸੁਮੇਲਤਾ ਨਾਲ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਹਮਲਾਕਰੂ ਤਾਕਤ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਈ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੀ ਨੀਤੀ ਪੱਖੋਂ, ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਹਿੱਸਾ ਰੋਕ ਕੇ ਬੈਠ ਗਿਆ ਸੀ। ਇਹ ਪਾਸਾ ਸਾਰਾ ਹੀ ਹਿੰਦੂ-ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਾਲਾ ਸੀ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਬਹੁਤਾਤ ਵਾਲਾ ਸੀ। ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਮੁਸਲਮਾਨ ਆਬਾਦੀ ਵਾਲੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀ ਜੂਹ ਵਿਚ ਮੋਰਚੇ ਬਣਾ ਕੇ ਬੈਠ ਗਿਆ ਸੀ। ਲੜਾਈ ਸਮੇਂ ਫੌਜਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦੀ ਅਤੇ ਬਣੇ-ਬਣਾਏ ਭੋਜਨ ਦੀ ਸਪਲਾਈ ਦੀ ਅਤਿਅੰਤ ਜ਼ਰੂਰਤ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ਇਹ ਸਪਲਾਈ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚੋਂ ਹੀ ਹੋ ਸਕਦੀ ਸੀ। ਹਰ ਧਿਰ ਆਪਣੀ ਮਦਦ ਵਾਲੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚੋਂ ਹੀ ਅਜਿਹੀ ਟੇਕ ਰੱਖਦੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।

ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਦਾ ਨਾ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਵਿਲੀਅਮ ਇਰਵਿਨ (William Irvine) ਨੇ ਲਿਖਿਆ ਹੈ। ਇਰਵਿਨ ਨੇ ਲਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਦੇ ਪਾਸ 'ਫਾਰੂਖ਼ਸ਼ੀਅਰਨਾਮਾ' ਦਾ ਖਰੜਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਲਿਖਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਸਰਹਿੰਦ ਦੀ ਫਤਹਿ ਦੀ ਲੜਾਈ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ। ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਇਉਂ ਦੱਸੀ ਗਈ ਹੈ : 'ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਨਾਂ ਦੇ ਦੋ ਪਿੰਡ ਹਨ, ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਕਲਾਂ ਅਤੇ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਖੁਰਦ। ਇਹ ਇੰਡੀਅਨ ਐਟਲਸ ਦੀ ਸ਼ੀਟ ਨੰ. 48 ਤੇ ਸਥਿਤ ਹਨ। ਇਹ ਸਰਹਿੰਦ ਤੋਂ 16 ਮੀਲ ਉਤਰ-ਪੂਰਬ ਵਲ ਪਟਿਆਲੀ ਰਾਓ ਉਪਰ ਅਤੇ ਬਨੂੜ ਤੋਂ 10 ਮੀਲ ਉਤਰ-ਪੱਛਮ ਵਲ ਹਨ। ਮੇਜਰ ਜੇਮਜ਼ ਬ੍ਰਾਊਨ ਨੇ ਇਸ ਥਾਂ ਨੂੰ ਸਰਹਿੰਦ ਤੋਂ 12 ਮੀਲ ਪੂਰਬ-ਦੱਖਣ ਵਲ ਅਲਵਾਂ ਸਰਾਏ ਦੇ ਨੇੜੇ ਦੱਸਿਆ ਹੈ। ਗੁਰਮੁਖੀ ਦੀਆਂ ਮੁੱਢਲੀਆਂ ਲਿਖਤਾਂ ਵਿਚ, ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੇ ਸਬੰਧ ਵਿਚ ਲਿਖਣ ਵਾਲੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਲੇਖਕ ਨੇ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਬਾਰੇ ਕੁਝ ਵੀ ਨਹੀਂ ਲਿਖਿਆ।
ਦੋਵਾਂ ਧਿਰਾਂ ਦੀ ਸੈਨਿਕ-ਸ਼ਕਤੀ ਵੀ ਇਤਿਹਾਸ ਦਾ ਅਹਿਮ ਤੱਥ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ: ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਪਾਸ ਖਾਫ਼ੀ ਖਾਨ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪੰਜ-ਛੇ ਹਜ਼ਾਰ ਘੋੜ-ਸੁਆਰ, ਸਤ-ਅੱਠ ਹਜ਼ਾਰ ਪੈਦਲ ਸਿਪਾਹੀ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਪਾਸ ਤੋੜੇਦਾਰ ਬੰਦੂਕਾਂ ਅਤੇ ਤੀਰ ਕਮਾਲ ਸਨ। ਕੁਝ ਤੋਪਾਂ ਅਤੇ ਹਾਥੀ ਵੀ ਸਨ। 'ਇਉਂ ਉਸ ਪਾਸ 12000 ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 15000 ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਤਕ ਦੀ ਫੌਜ ਸੀ। ਇਹ ਤਾਂ ਸੀ ਉਹ ਫੌਜ ਜੋ ਉਸ ਕੋਲ ਸਰਕਾਰੀ ਰਿਕਾਰਡਾਂ ਮੁਤਾਬਕ ਉਪਲਬਧ ਜਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਰੱਖਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ। ਬਾਕੀ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਉਹ ਲੋਕ ਸਨ ਜਿਹੜੇ ਉਸ ਨੇ ਇਸਲਾਮ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਛੇੜੇ ਗਏ ਜਿਹਾਦ ਹੇਠ ਭੜਕਾ ਕੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕੱਠੇ ਕੀਤੇ ਸਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਅਠ ਹਜ਼ਾਰ ਗਾਜ਼ੀ ਸਨ। ਇਹ ਗਾਜ਼ੀ ਸਾਡੇ ਨਿਹੰਗ ਜਾਂ ਅਕਾਲੀ ਸਿੰਘਾਂ ਵਾਂਗ ਬਿਨਾ ਕਿਸੇ ਜ਼ਾਬਤੇ ਤੋਂ ਸਨ। ਇਹ ਆਪਣੀ ਹੀ ਮਰਜ਼ੀ ਅਨੁਸਾਰ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਹੀ ਯੁੱਧ-ਨੀਤੀ ਅਨੁਸਾਰ ਲੜਾਈ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਂਦੇ ਸਨ। ਇਹ ਸਿਰਫ਼ ਮਰਨ ਲਈ ਜਾਂ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਹੀ ਲੜੇ ਸਨ। ਜੰਗ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚੋਂ ਇਹ ਭੱਜ ਦੇ ਨਹੀਂ ਸਨ। ਇਸ ਤਰ•ਾਂ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਪਾਸ 25-30 ਹਜ਼ਾਰ ਤੋਂ ਉਪਰ ਸੈਨਾ ਸੀ। ਜਿਥੋਂ ਤੱਕ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਪਾਸ ਖਾਲਸਾ ਦਲਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਇਹ ਵੀ ਅਣਗਿਣਤ ਸੀ। ਸਾਰਾ ਸਿੱਖ ਜਗਤ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਦੇ ਨਾਲ ਸੀ। ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਪਿੱਛੇ ਵੀ ਲਿਖਿਆ ਜਾ ਚੁੱਕਿਆ ਹੈ ਕਿ ਸਾਰੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਆਉਣ ਨਾਲ ਇਕ ਕਿਸਮ ਦਾ ਇਨਕਲਾਬ ਹੀ ਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਹਰ ਉਹ ਆਦਮੀ ਕੋਈ ਨਾ ਕੋਈ ਹਥਿਆਰ ਲੈ ਕੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਆ ਰਲਿਆ ਸੀ ਜਿਹੜਾ ਲੜਨ ਦੇ ਸਮਰੱਥ ਸੀ। ਇਸ ਲਈ ਸਮਝਿਆ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਕਮਾਂਡ ਹੇਠ ਪੂਰੀ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸਿੱਖ ਕੌਮ ਆ ਖੜੀ ਹੋਈ ਸੀ। ਇਸ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਮਿਣ ਕੇ ਦੱਸਣਾ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਭਾਵੇਂ ਕਿ ਖਾਫੀ ਖਾਨ ਨੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਪਾਸ ਚਾਲੀ ਹਜ਼ਾਰ ਸਿੰਘਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਦੱਸੀ ਹੈ। ਇਸ ਵਿਚ ਕੋਈ ਅੱਤ-ਕਥਨੀ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸਮਝਣੀ ਚਾਹੀਦੀ। ਸਰਹਿੰਦ ਉਪਰ ਹਮਲਾ ਸਿੱਖਾਂ ਲਈ ਇਕ ਸਭ ਤੋਂ ਅਹਿਮ ਮਸਲਾ ਸੀ। ਸਰਹਿੰਦ ਦੀ ਜਿੱਤ ਲਈ ਉਹ ਹਰ ਕਿਸਮ ਦੀ ਕੁਰਬਾਨੀ ਕਰਨ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਸਨ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਸਮਝਿਆ ਤਾਂ ਇਹ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਪਾਸ ਚਾਲੀ ਹਜ਼ਾਰ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵੀ ਥੋੜ੍ਹੀ ਸੀ ਉਸ ਪਾਸ ਤਾਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹਰ ਆਦਮੀ ਦੇ ਹੋਣ ਦੀ ਉਮੀਦ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਸੀ। ਇਸ ਰੌਸ਼ਨੀ ਵਿਚ ਦੇਖਿਆਂ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਬੱਚਾ-ਬੱਚਾ ਲੜਨ-ਮਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਸੀ। ਸਿੱਖਾਂ ਸਾਹਮਣੇ ਇਕੋ-ਇਕ ਨਿਸ਼ਾਨਾ ਸਰਹਿੰਦ ਨੂੰ ਤਬਾਹ ਕਰਨ ਦਾ ਸੀ। ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਉਤਾਵਲੇ ਸਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਾਹਮਣੇ ਨਾ ਹੀ ਰਾਜਨੀਤਕ ਸੋਚ-ਵਿਚਾਰਾ ਦੀ ਗੱਲ ਸੀ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਯੁੱਧ-ਨੀਤੀ ਦਾ ਕੋਈ ਪੈਂਤੜਾ ਅਖ਼ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਦੀ। ਉਹ ਤਾਂ ਬੱਸ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਹੁਕਮ ਉਡੀਕ ਰਹੇ ਸਨ। ਇਹ ਹਮਲਾ ਭਾਵੇਂ ਰਾਤ ਨੂੰ ਹੋਵੇ ਤੇ ਭਾਵੇਂ ਦਿਨ ਨੂੰ। ਇਸ ਤਰ•ਾਂ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਪਾਸ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਨਾਂ ਉਤੋਂ ਦੀ ਮਰ-ਮਿਟਣ ਵਾਲੇ ਸਿੰਘ ਸਨ। ਹਥਿਆਰਾਂ ਦੇ ਪੱਖੋਂ ਭਾਵੇਂ ਇਹ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਤੋਂ ਘੱਟ ਸਨ ਪਰ ਹੌਂਸਲੇ ਅਤੇ ਪਹਿਲ-ਕਦਮੀ ਵਜੋਂ ਸਿੰਘ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਾ ਤੋਂ ਅਗੇ ਸਨ ਕਿਉਂਕਿ ਸਿੰਘਾਂ ਸਾਹਮਣੇ ਰਾਜਨੀਤਕ ਨਫ਼ੇ-ਨੁਕਸਾਨ ਦੀ ਤਾਂ ਕੋਈ ਗੱਲ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਇਸੇ ਹੀ ਇਕ ਗੱਲ ਨੇ ਸਿੰਘਾਂ ਨੂੰ ਨਿਧੜਕ ਯੋਧੇ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ। ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਦੇ ਸੱਜੇ-ਖੱਬੇ ਭਾਈ ਬਾਜ ਸਿੰਘ, ਭਾਈ ਫਤਹਿ ਸਿੰਘ, ਆਲੀ ਸਿੰਘ, ਮਾਲੀ ਸਿੰਘ, ਭਾਈ ਕਰਮ ਸਿੰਘ, ਭਾਈ ਧਰਮ ਸਿੰਘ, ਬਾਵਾ ਬਿਨੋਦ ਸਿੰਘ, ਬਾਵਾ ਕਾਨ• ਸਿੰਘ, ਭਾਈ ਰਾਮ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਆਦਿ ਸੂਰਮੇ ਸਿੰਘ ਘੋੜਿਆਂ ਤੇ ਅਸਵਾਰ ਹੋਏ ਖੜ੍ਹੇ ਸਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਹੀ ਲਾਗਲੇ ਪਿੰਡ ਸਨੇਟੇ ਦਾ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਭਾਈ ਨਿਗਾਹੀਆਂ ਸਿੰਘ ਭੁੱਲਰ ਵੀ ਸੀ।
ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦੀ ਸੈਨਾ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਹਾਥੀ ਸੀ। ਉਸ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਪੈਦਲ ਫੌਜ ਸੀ। ਇਹ ਪੈਦਲ ਫੌਜ ਹਾਥੀਆਂ ਦੇ ਸਹਾਰੇ ਨਾਲ ਅੱਗੇ ਵੱਧ ਰਹੀ ਸੀ। ਦੋਹਾਂ ਪਾਸਿਆਂ ਤੇ ਘੋੜ-ਸਾਵਰ ਸੈਨਾ ਸੀ ਜਿਹੜੀ ਆਪਣੀ ਆਪਣੀ ਸਮੁੱਚੀ ਫੌਜੀ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਕੇ ਰੱਖਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੀ ਸੀ। ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਆਪਣੀ ਫੌਜ ਦੇ ਬਿਲਕੁਲ ਵਿਚਕਾਰ ਹਾਥੀ ਉਪਰ ਅਸਵਾਰ ਸੀ। ਪਰ ਵਜੀਰ ਖਾਨ ਦੀ ਮੁਗਲੀਆ ਫੌਜ ਵਿਚ ਪਹਿਲ-ਕਦਮੀ ਦੀ ਘਾਟ ਸੀ। ਸਮਾਣਾ, ਸਢੌਰਾ, ਅਤੇ ਬਨੂੜ ਨੂੰ ਲਿਤਾੜੇ ਜਾਣ ਨਾਲ ਵੈਸੇ ਹੀ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਦੇ ਪਰ ਕੱਟੇ ਜਾ ਚੁੱਕੇ ਸਨ ਅਤੇ ਬੁੱਲਵਰਕ ਤੋੜਿਆ ਜਾ ਚੁੱਕਿਆ ਸੀ।
ਇਸ ਲੜਾਈ ਦੀ ਮਿਤੀ ਬਾਰੇ ਕੁਝ ਮੱਤ-ਭੇਦ ਹਨ। ਹੁਣ ਤਕ ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਦੀ ਲੜਾਈ 12 ਮਈ, 1710 ਈ. ਦਸਦਾ ਹੈ।'' ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਲੇਖਕ ਹੀ ਭਾਵੇਂ ਮੁੱਖ ਲੇਖਕ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਮਿਤੀਆਂ ਨੂੰ ਵਿਚਾਰਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਕਰਮ ਸਿੰਘ ਹਿਸਟੋਰੀਅਨ ਅਤੇ ਗਿਆਨੀ ਗਿਆਨ ਸਿੰਘ ਵੱਲੋਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਮਿਤੀਆਂ ਉਕਾ ਹੀ ਮੰਨਣਯੋਗ ਨਹੀਂ ਹਨ। ਕਰਮ ਸਿੰਘ ਹਿਸਟੋਰੀਅਨ ਲਿਖਦਾ ਹੈ, ''ਮੈਂ ਜੋ ਤਰੀਕ ਮੰਨੀ ਹੈ, ਇਹ ਰਤਨ ਸਿੰਘ ਭਿੜੀ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਨੇ ਵੀ ਮੰਨੀ ਹੈ, ਇਹ ਰਤਨ ਸਿੰਘ ਭਿੜੀ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਨੇ ਵੀ ਮੰਨੀ ਹੈ। ਇਹ ਤਰੀਕ ਹਾੜ• ਦੀ ਸੰਗਰਾਂਦ ਸੰਮਤ 1767 ਬਿਕ੍ਰਮੀ, ਮੰਗਲਵਾਰ 30 ਮਈ, 1710 ਈ. ਤੇ 12 ਰੱਬੀ-ਉਲ-ਆਖਰ ਸੰਨ 1112 ਹਿਜਰੀ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਹੈ। ਇਥੇ ਮੈਂ ਇਹ ਦੱਸ ਦੇਣਾ ਵੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਰਤਨ ਸਿੰਘ ਦੇ 'ਪੰਥ ਪ੍ਰਕਾਸ਼' ਦੀਆਂ ਤਰੀਕਾਂ ਸਭ ਦੀਆਂ ਸਭ ਹੀ ਠੀਕ ਹਨ।'' ਗਿਆਨੀ ਸਿੰਘ ਅਨੁਸਾਰ ''ਜੇਠ ਵਦੀ 14 ਸੰਮਤ 1765 ਬਿ. (ਮੁਤਾਬਕ ਮਈ, 1708 ਈ.) ਨੂੰ ਸਿੰਘ ਸਰਹਿੰਦ ਸ਼ਹਿਰ ਵਿਚ ਜਾ ਵੜੇ।'' ਸੋਹਣ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵੀ ਆਪਣੀ ਪੁਸਤਕ ਵਿਚ ਇਸ ਲੜਾਈ ਦੀ ਮਿਤੀ ਕਰਮ ਸਿੰਘ ਹਿਸਟੋਰੀਅਨ ਵਾਲੀ 30 ਮਈ, 1710 ਈ. ਹੀ ਦਿੱਤੀ ਹੈ।
ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਕਤ ਸਾਰੇ ਲੇਖਕਾਂ ਦੀਆਂ ਮਿਤੀਆਂ ਗਲਤ ਹਨ। ਅਖ਼ਬਾਰ-ਏ-ਦਰਬਾਰ-ਏ-ਮੁਅੱਲਾ, ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਖ਼ਬਰਾਂ ਦਾ ਸੰਗ੍ਰਹਿ ਹੈ ਜਿਹੜੀਆਂ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਦੀਆਂ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦੇਣ ਲਈ ਖੁਫ਼ੀਆਂ ਖ਼ਬਰਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਭੇਜੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ, ਇਸ ਲੜਾਈ ਦੀ ਮਿਤੀ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸਪਸ਼ਟ ਰੂਪ ਵਿਚ 22 ਮਈ, 1710 ਈ. ਦੀ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਗੁਰਦੇਵ ਸਿੰਘ ਦਿਉਲ ਵੀ ਆਪਣੀ ਪੁਸਤਕ ਵਿਚ ਇਸੇ ਮਿਤੀ ਦੀ ਪਰੋੜਤਾ ਕਰਦਾ ਹੈ।
12 ਮਈ, 1710 ਨੂੰ ਤਾਂ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਪਾਸ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਇਲਾਕੇ ਵਿਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪਰਗਟ ਹੋਣ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ। ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਪਿਛੇ ਇਸ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ ਜਾ ਚੁੱਕਿਆ ਹੈ। ਇਸੇ ਹੀ ਲਿਖਤ ਵਿਚ 27 ਮਈ ਦੀ ਖ਼ਬਰ ਤੋਂ ਇਹ ਪਤਾ ਲਗਦਾ ਹੈ ਕਿ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਸਰਹਿੰਦ ਜਿੱਤਿਆ ਜਾ ਚੁੱਕਿਆ ਹੈ। ਕਿਉਂਕਿ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ ਖ਼ਬਰ ਵਿਚ ਦੱਸਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਕਿਸੇ ਸਫ਼-ਸਿਕਨ ਖਾਨ ਨੇ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਬੇਨਤੀ ਕੀਤੀ ਹੈ ਕਿ ਜੇਕਰ ਉਸ ਨੂੰ ਸਰਹਿੰਦ ਦਾ ਫੌਜਦਾਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਉਹ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕਾਬੂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮੰਨਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਰਹਿੰਦ ਨੂੰ 12 ਮਈ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 27 ਮਈ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਫਤਹਿ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ। ਇਸ ਪੱਖ ਤੋਂ ਇਰਵਿਨ ਦੀ ਮਿਤੀ 22 ਮਈ, 1710 ਜ਼ਿਆਦਾ ਠੀਕ ਮਾਲੂਮ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਅਖ਼ਬਾਰ-ਏ-ਦਰਬਾਰ-ਏ-ਮੁਅੱਲਾ ਵਿਚ ਇਕ ਥਾਂ ਤੇ ਬਾਦਸਾਹ ਨੂੰ ਇਹ ਰਿਪੋਰਟ ਵੀ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ਜਾਣ ਬਾਰੇ ਲਿਖਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਵੱਲੋਂ ਸਰਹਿੰਦ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਦੀ ਪੂਰੀ ਵਿਸਥਾਰ ਸਹਿਤ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ਸੀ। ਇਸ ਜਾਣਕਾਰੀ ਅਨੁਸਾਰ ''ਸ਼ਾਹੂਕਾਰਾਂ ਦੇ ਪੱਤਰਾਂ ਤੋਂ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਵਿਚਕਾਰ ਲੜਾਈ 22 ਮਈ ਨੂੰ ਹੋਈ ਸੀ। ਇਹ ਲੜਾਈ ਸਵੇਰ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਸ਼ਾਮ ਤੱਕ ਹੁੰਦੀ ਰਹੀ ਸੀ। ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਤੀਰ ਨਾਲ ਅਤੇ ਬੰਦੂਕ ਦੀ ਗੋਲੀ ਨਾਲ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਕੁਝ ਲੋਕ ਦਸਦੇ ਸਨ ਕਿ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਜ਼ਨਾਨੀ ਵੀ ਲੜਾਈ ਵਿਚ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ ਪਰ ਕੁਝ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਸੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜਿਊਂਦਿਆਂ ਨੂੰ ਹੀ ਪਕੜ ਲਿਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਾਥੀ ਅਤੇ ਦੋਸਤ-ਮਿੱਤਰ ਵੀ ਮਾਰੇ ਗਏ ਅਤੇ ਜ਼ਖਮੀ ਹੋ ਗਏ ਸਨ। ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਪੂਰੀ ਤਰ•ਾਂ ਸਰਹਿੰਦ ਉਪਰ ਕਬਜਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ।''
ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ 22 ਮਈ ਦੀ ਚੜ•ਦੀ ਸਵੇਰ ਨੂੰ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ 'ਬੋਲੇ ਸੋ ਨਿਹਾਲ' ਦਾ ਜੈਕਾਰਾ ਬੁਲਾ ਕੇ ਸਿੰਘਾਂ ਨੂੰ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦੇ ਦਿੱਤਾ। ਦੇਖਦਿਆਂ ਹੀ ਦੇਖਦਿਆਂ ਸਿੰਘਾਂ ਦੇ ਦਲ ਦੁਸ਼ਮਣ ਉਪਰ ਟੁੱਟ ਕੇ ਪੈ ਗਏ। ਇਸੇ ਘੜੀ ਨੂੰ ਤਾਂ ਸਿੰਘ ਉਡੀਕ ਰਹੇ ਸਨ। ਨਾ ਉਨ•ਾਂ ਨੂੰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦੇ ਹਾਥੀ ਰੋਕ ਰਹੇ ਸਨ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦੀਆਂ ਤੋਪਾਂ। ਸਿੰਘਾਂ ਲਈ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਦਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਹੋਣਾ ਵੀ ਕਾਫੀ ਸੀ। ਇਹ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਹਾਥੀਆਂ ਦੀ ਲਾਈਨ ਨੂੰ ਤੋੜਨਾਂ ਸਿੰਘਾਂ ਲਈ ਬਹੁਤ ਮੁਸ਼ਕਲ ਸੀ ਪਰ ਜਿਥੇ ਲੜ-ਮਰਨ ਦਾ ਜਜ਼ਬਾ ਹੋਵੇ ਉਥੇ ਕੋਈ ਵੀ ਚੀਜ਼ ਰਸਤੇ ਦਾ ਰੋੜਾ ਨਹੀਂ ਬਣ ਸਕਦੀ। ਇਹ ਹੱਥੋਂ-ਹੱਥ ਦੀ ਗਹਿਗੱਚਵੀਂ ਲੜਾਈ ਸੀ। ਸਿੰਘਾਂ ਲਈ ਭੱਜਣ ਦਾ ਤਾਂ ਸਵਾਲ ਹੀ ਪੈਦਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਹੀ ਤਾਂ ਪਹਿਲ ਕਰਕੇ ਆਏ ਸਨ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਗੁਰੂ ਦੇ ਦੋ ਛੋਟੇ ਨਾਬਾਲਗ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਦਰਦਭਰੀ ਮੌਤ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਆਏ ਸਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਭੱਜਣ ਨਾਲੋਂ ਲੜ ਕੇ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਜਾਣਾ ਜ਼ਿਆਦਾ ਚੰਗਾ ਸੀ। ਇਸ ਲਈ ਸਿੰਘ ਸਿਰਫ਼ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਜਾਂ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਣ ਲਈ ਹੀ ਲੜ ਰਹੇ ਸਨ।

ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਾ ਸੀ ਜਿਹੜੀ ਸਿਰਫ਼ ਬਚਾਓ ਦੀ ਲੜਾਈ ਲੜ ਰਹੀ ਸੀ। ਉਸ ਲਈ ਇਹ ਖ਼ਾਹਮਖ਼ਾਹ ਦੀ ਬਿਪਤਾ ਸੀ। ਦੋਵਾਂ ਧਿਰਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਲੜਾਈ ਪ੍ਰਤੀ ਜਦੋਂ ਇਤਨਾ ਫ਼ਰਕ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਲੜਾਈ ਦੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਦਾ ਪਤਾ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਸਵੇਰ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਸ਼ਾਮ ਤੀਕ ਲੜਾਈ ਹੁੰਦੀ ਰਹੀ। ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਇਕ ਭੁੱਖੇ ਸ਼ੇਰ ਵਾਂਗ ਦੁਸ਼ਮਣ ਉਪਰ ਝਪਟਾਂ ਲੈ ਲੈ ਕੇ ਪੈਂਦਾ ਸੀ। ਭਾਈ ਬਾਜ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਫਤਹਿ ਸਿੰਘ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਮੋਢੇ ਨਾਲ ਮੋਢਾ ਜੋੜ ਕੇ ਲੜ ਰਹੇ ਸਨ। ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਵੀ ਆਪਣੇ ਸਹਾਇਕ ਕਮਾਂਡਰਾਂ ਨਾਲ ਘਿਰਿਆ ਖਾਲਸਾ ਦਲ ਦੇ ਅੱਗੇ ਸੀ ਅਤੇ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਵੀ ਅੱਗੇ ਹੋ ਕੇ ਆਪਣੀ ਫੌਜ ਨੂੰ ਲੜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਹੱਥੋ-ਹੱਥੀ ਦੀ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਲਲਕਾਰ ਕੇ ਕਿਹਾ ''ਪਾਪੀਆਂ : ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਦਾ ਦੁਸ਼ਮਣ ਹੈਂ। ਤੂੰ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਯਥਾਯੋਗ ਸਨਮਾਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ, ਬਲਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦੋ ਮਾਸੂਮ ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦਿਆਂ ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ। ਇਹ ਕਾਰਾ ਕਰਕੇ ਤੂੰ ਇਕ ਬੱਜਰ ਅਤੇ ਮੁਆਫ਼ ਨਾ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਣ ਵਾਲਾ ਗੁਨਾਹ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਮੈਂ ਹੁਣ ਤੈਨੂੰ ਇਸੇ ਗੁਨਾਹ ਦੀ ਸਜ਼ਾ ਦੇਣ ਲੱਗਿਆ ਹਾਂ। ਤੇਰੀ ਫੌਜ ਅਤੇ ਤੇਰਾ ਮੁਲਕ ਹੁਣ ਮੇਰੇ ਹੱਥੋਂ ਤਬਾਹ ਹੋ ਜਾਣਗੇ।'' ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਤਲਵਾਰ ਦੇ ਇਕੋ ਭਰਵੇਂ ਵਾਰ ਨਾਲ ਉਸ ਦਾ ਸਿਰ ਧੜ ਨਾਲੋਂ ਅਲੱਗ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਇਹ ਦੇਖ ਕੇ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਾ ਮੈਦਾਨ ਛੱਡ ਕੇ ਨੱਠ ਗਈ। ਸਿੰਘਾਂ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪਿੱਛਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਘੋੜੇ, ਹਥਿਆਰ, ਤੰਬੂ, ਤੋਪਾਂ ਅਤੇ ਦੂਜਾ ਜੰਗੀ ਸਮਾਨ ਆਪਣੇ ਕਬਜ਼ੇ ਵਿਚ ਕਰ ਲਿਆ। ਤਦ ਸਿੰਘ ਜੇਤੂ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸਰਹਿੰਦ ਵੱਲ ਵਧੇ।

ਭਾਵੇਂ ਲੇਖਕਾਂ ਵਿਚ ਇਸ ਤੱਥ ਬਾਰੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਰਾਵਾਂ ਹਨ ਕਿ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਨੂੰ ਕਿਸ ਨੇ ਮਾਰਿਆ ਸੀ। ਇਹ ਰਾਵਾਂ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਨ : ਸਰੂਪ ਦਾਸ ਭੱਲਾ ਅਨੁਸਾਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦੀ ਮੌਤ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹੱਥੋਂ ਹੀ ਹੋਈ ਸੀ। ਖ਼ਾਫ਼ੀ ਖਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਇਕ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੋਲੀ ਨਾਲ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਅਹਿਵਾਲਿਸਲਾਤੀਨ-ਏ-ਹਿੰਦ ਅਨੁਸਾਰ 'ਸਿੰਘ ਤੇ ਮੁਸਲਿਮ ਫੌਜੀ ਇਕ ਦੂਜੇ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਹੋ ਕੇ ਹੱਥੋ-ਹੱਥ ਲੜਾਈ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ। ਮੁਸਲਿਮ ਫੌਜਾਂ ਦੇ ਕਮਾਂਡਰ ਇਤਨੀ ਦਲੇਰੀ ਨਾਲ ਲੜ ਰਹੇ ਸਨ ਕਿ ਕਾਫਰਾਂ ਦੀਆਂ ਲਾਸ਼ਾਂ ਦੇ ਢੇਰ ਲੱਗ ਗਏ ਸਨ। ਸਾਰੇ ਪਾਸੇ ਕਿਆਮਤ ਦੇ ਦਿਨਾਂ ਦੀ ਕੁਰਲਾਹਟ ਸੀ। ਅੰਤ ਵਿਚ ਸਾਰੀ ਮੁਸਲਿਮ ਸੈਨਾ ਤਬਾਹ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ। ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਬਾਜ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ। ਉਸ ਨੇ ਬਾਜ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਲਕਾਰ ਕੇ ਕਿਹਾ 'ਓ ਗੰਦੇ ਕੁੱਤੇ! ਹੁਸ਼ਿਆਰ ਹੋ ਜਾ।' ਇਹ ਕਹਿੰਦਿਆਂ ਉਸ ਨੇ ਨੇਜੇ ਨਾਲ ਵਾਰ ਕੀਤਾ। ਬਾਜ ਸਿੰਘ ਨੇ ਨੇਜਾ ਆਪਣੇ ਹੱਥ ਵਿਚ ਪਕੜ ਲਿਆ। ਫਿਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਨੇ ਇਕ ਤੀਰ ਬਾਜ ਸਿੰਘ ਦੀ ਬਾਂਹ ਵਿਚ ਮਾਰਿਆ। ਫਿਰ ਉਹ ਆਪਣੀ ਤਲਵਾਰ ਨਾਲ ਬਾਜ ਸਿੰਘ ਉਤੇ ਝਪਟਿਆ। ਫਤਹਿ ਸਿੰਘ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਉਸ ਨੇ ਪੂਰੇ ਜ਼ੋਰ ਨਾਲ ਤਲਵਾਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦੇ ਮੋਢੇ ਵਿਚ ਮਾਰੀ ਅਤੇ ਤਲਵਾਰ ਉਸ ਦੇ ਮੋਢੇ ਨੂੰ ਚੀਰਦੀ ਹੋਈ ਕਮਰ ਤੱਕ ਚਲੀ ਗਈ। ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਵਿਲੀਅਮ ਇਰਵਿਨ ਲੜਾਈ ਦਾ ਹਾਲ ਦੱਸਦਿਆਂ ਲਿਖ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ 'ਪਹਿਲਾਂ ਪਹਿਲਾਂ' ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਦੀ ਸੈਨਾ ਅਗੇ ਵਧਦੀ ਪਰਤੀਤ ਹੋ ਰਹੀ ਸੀ ਪਰ ਜਿਉਂ ਹੀ ਬੰਦੇ ਨੇ ਮੁਗਲ ਫੌਜ ਦੇ ਪਿਛਲੇ ਹਿੱਸੇ ਤੇ ਇਕ ਦਮ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਉਸ ਦੇ ਪੈਰ ਹਿੱਲ ਗਏ ਸਨ। ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਤੋੜੇਦਾਰ ਬੰਦੂਕਾਂ ਨਾਲ ਹਾਥੀਆਂ ਦੇ ਦਸਤੇ ਉਪਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਮਾਲੇਰਕੋਟਲੇ ਦੇ ਨਵਾਬ ਹੋਰਨਾਂ ਜਰਨੈਲਾਂ ਸਮੇਤ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ। ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ 80 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਦਾ ਸੀ। ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੀ ਫੌਜ ਨੂੰ ਲੜਾਉਣ ਲਈ ਬੜੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਪਰ ਅਖੀਰ ਨੂੰ ਉਹ ਵੀ ਇਕ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੋਲੀ ਨਾਲ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਨੂੰ ਮਾਰੇ ਜਾਣ ਸਬੰਧੀ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਿਚਾਰ ਹਨ। ਵੈਸੇ ਮਹੱਤਤਾ ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਨਹੀਂ ਕਿ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਕਿਸੇ ਨੇ ਮਾਰਿਆ ਸੀ ਜਾਂ ਕਿਸ ਨੇ ਨਹੀਂ ਮਰਿਆ ਸੀ। ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਗੱਲ ਤਾਂ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਜਿੱਤ ਸਿੰਘਾਂ ਦੀ ਹੋਈ ਅਤੇ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਮਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਸੰਭਵਤਾ ਇਹ ਹੀ ਹੈ ਕਿ ਇਕ ਨੇਤਾ ਨੇ ਦੂਜੇ ਨੇਤਾ ਨੂੰ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ। ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦੁਰ ਨਾ ਹੀ ਤਾਂ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਤੋਂ ਪਰ੍ਹੇ ਹੋ ਕੇ ਖੜ• ਸਕਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਉਸ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਹੋ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਮਾਰੇ ਬਗੈਰ ਰਹਿ ਸਕਦਾ ਸੀ। ਖਾਫ਼ੀ ਖਾਂ ਮਿਲਖਦਾ ਹੈ ਕਿ 'ਧਨ-ਮਾਲ, ਘੋੜੇ, ਹਾਥੀ ਬੇਦੀਨਿਆਂ ਦੇ ਹੱਥ ਆਏ ਅਤੇ ਇਸਲਾਮੀ ਸੈਨਾ ਦਾ ਇਕ ਵੀ ਬੰਦਾ ਜਾਨ ਤੇ ਤਨ ਦੇ ਕੱਪੜਿਆਂ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕੁਝ ਵੀ ਬਚਾਅ ਨਾ ਸਕਿਆ। ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਪਿਆਦੇ ਤੇ ਘੋੜ-ਚੜ੍ਹੇ, ਕਾਫਰਾਂ ਦੀਆਂ ਤਲਵਾਰਾਂ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਬਣੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਰਹਿੰਦ ਤੱਕ ਪਿੱਛਾ ਕੀਤਾ। ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦੀ ਫੌਜ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਾਰ ਗਈ ਸੀ। ਜੇਤੂ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਸਿੰਘ ਜੰਗ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਦੇ ਮਾਲਕ ਸਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਿੱਤ ਕੇ ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਦਾ ਸ਼ੁਕਰਾਨਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ 'ਫਤਹਿ' 'ਫਤਹਿ' ਦੇ ਆਵਾਜ਼ਿਆਂ ਨਾਲ ਅਕਾਸ਼ ਗੂੰਜਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ।

ਇਥੇ ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਵਿਖੇ ਵਰਤਮਾਨ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਫਾਊਂਡੇਸ਼ਨ ਪਬਲਿਕ ਸੂਕਲ ਦੀ ਹੱਦ ਅੰਦਰ ਇਕ ਪੁਰਾਣਾ ਜੰਡ ਦਾ ਦਰੱਖਤ ਹੈ। ਦੱਸਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਜੰਡ ਉਸ ਜੰਡ ਦੀ ਜੜ• ਵਿਚੋਂ ਉਗਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਨੇ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਦੀ ਲਾਸ਼ ਨੂੰ ਪੁੱਠਾ ਟੰਗ ਕੇ ਰੱਖਿਆ ਸੀ। ਫਿਰ ਜਦੋਂ ਖਾਲਸਾ ਦਲ ਸਰਹਿੰਦ ਵੱਲ ਰਵਾਨਾ ਹੋਇਆ ਸੀ ਤਾਂ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦੀ ਮੁਰਦਾ ਲਾਸ਼ ਨੂੰ ਇਥੋਂ ਲਾਹ ਕੇ ਘੋੜੇ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਜਾਂ ਬਲਦਾਂ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਰੱਸਿਆਂ ਨਾਲ ਬੰਨ• ਕੇ ਸਰਹਿੰਦ ਤੀਕ ਘੜੀਸ ਕੇ ਲਿਆਂਦਾ ਗਿਆ ਸੀ। ਚੱਪੜ-ਚਿੜੀ ਤੋਂ ਸਰਹਿੰਦ ਤਕੀਰਬਨ 18-19 ਕਿਲੋਮਟੀਰ ਹੋਵੇਗੀ। ਭਾਵੇਂ ਇਥੇ ਵੀ ਸ਼ਹਿਰ ਦੀ ਅਤੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੀ ਪੂਰਬੀ ਮੋਰਚਾਬੰਦੀ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਸੀ ਅਤੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਤੋਂ ਸਿੰਘਾਂ ਉਪਰ ਤੋਪਾਂ ਤੇ ਗੋਲੇ ਵੀ ਸੁੱਟੇ ਗਏ ਸਨ ਪਰ ਸਿੰਘ ਜਿਸ ਜੋਸ਼ ਨਾਲ ਲੜ ਰਹੇ ਸਨ ਉਸ ਨੂੰ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੀਆਂ ਤੋਪਾਂ ਵੀ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕੀਆਂ ਸਨ। ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦੇ ਹਿੰਦੂ ਅਧਿਕਾਰੀ ਦੀਵਾਨ ਸੁੱਚਾ ਨੰਦ ਨੂੰ ਫੜ ਲਿਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਇਸ ਦੇ ਨੱਕ ਵਿਚੋਂ ਗਲੀ ਕੱਢ ਕੇ ਲੋਹੇ ਦਾ ਕੁੰਡਾ ਪਾਇਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਇਸ ਕੁੰਡੇ ਨੂੰ ਰੱਸੀ ਨਾਲ ਬੰਨ• ਕੇ ਸਰਹਿੰਦ ਦੀਆਂ ਗਲੀਆਂ ਵਿਚ ਫਿਰਾਇਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਹਰ ਘਰ ਅਤੇ ਦੁਕਾਨ ਤੋਂ ਭੀਖ ਮੰਗਵਾ ਕੇ ਅਖੀਰ ਸੁੱਚਾ ਨੰਦ ਨੂੰ ਛਿੱਤਰ ਮਾਰ ਮਾਰ ਕੇ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ। ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦਾ ਇਕ ਪੁੱਤਰ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਦਿੱਲੀ ਨੂੰ ਭੱਜ ਗਿਆ ਸੀ।

ਲੜਾਈ ਵਿਚ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਏ ਸਿੰਘਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਦਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਰਸਮਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਸੰਸਕਾਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਮੁਗਲ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੂੰ ਇਥੇ ਹੀ ਮੁਸਲਮਾਨੀ ਪਿੰਡਾਂ ਦੀਆਂ ਕਬਰਾਂ ਵਿਚ ਦਫ਼ਨਾਇਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਜਿਥੋਂ ਤੱਕ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਸੂਬੇਦਾਰ, ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦੇ ਦਫ਼ਨਾਉਣ ਦਾ ਮਸਲਾ ਹੈ ਉਸ ਨੂੰ ਦਫ਼ਨਾਇਆ ਨਹੀਂ ਗਿਆ ਸੀ। ਇਸ ਦੀ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਦੀਵਾਨ ਸੁੱਚਾ ਨੰਦ ਦੀਆਂ ਲਾਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਕੱਟ-ਕੱਟ ਕੇ ਕੁੱਤਿਆਂ ਨੂੰ ਖੁਆਇਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਸਰਹਿੰਦ ਵਿਚ ਕਿਧਰੇ ਵੀ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਨ ਦੀ ਕਬਰ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਜਦੋਂ ਕਿ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋਏ ਸਿੰਘਾਂ ਨੂੰ ਸੁਹਾਣਾ, ਚੰਡੀਗੜ• ਦੇ ਸੈਕਟਰ 44 ਦੇ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਵਾਲੀ ਥਾਂ ਅਤੇ ਮਾਣਕ ਮਾਜਰਾ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਸੰਸਕਾਰਿਆ ਗਿਆ ਸੀ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਤਿੰਨਾਂ ਥਾਵਾਂ ਤੇ ਹੀ ਅਜ ਕੱਲ• ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਬਾਦਲ ਬਨਾਮ ਬਾਦਲ ਟਕਰਾਉ ਕੀ ਗੁਲ ਖਿਲਾਇਗਾ?

ਦਸਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਅਜਕਲ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ (ਬਾਦਲ) ਦੇ ਮੁੱਖੀ, ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਰਕੇ ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ‘ਰੁੱਸੇ' ਵਰਕਰਾਂ ਤੇ ਸੀਨੀਅਰ ਅਕਾਲੀ ਮੁੱਖੀਆਂ ਨੂੰ ਮੰਨਾਉਣ ਵਿੱਚ ਜੁੱਟੇ ਹੋਏ ਹਨ। ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਿਤਨੀ-ਕੁ ਸਫਲਤਾ ਮਿਲਦੀ ਹੈ, ਇਹ ਤਾਂ ਵਕਤ ਹੀ ਦਸੇਗਾ। ਪਰ ਇਕ ਗਲ ਜ਼ਰੂਰ ਵਿਖਾਈ ਦੇ ਰਹੀ ਹੈ, ਉਹ ਇਹ ਕਿ ‘ਰੁੱਸਿਆਂ' ਨੂੰ ਮੰਨਾਉਣਾ ਜਿਤਨਾ ਆਸਾਨ ਸਮਝਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਉਹ ਉਤਨਾ ਆਸਾਨ ਨਹੀਂ ਜਾਪ ਰਿਹਾ। ਇਸਦਾ ਕਾਰਣ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਰੁੱਸੇ ਮੁੱਖੀ ਤੇ ਵਰਕਰ ਸਮਝਦੇ ਹਨ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਕਰਕੇ ਨਹੀਂ ਮੰਨਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਕਿ ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਦੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਸੋਚ ਬਦਲ ਗਈ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਇਸਦਾ ਕਾਰਣ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਗਲ ਦਾ ਡਰ ਭਾਸਣ ਲਗਾ ਹੈ ਕਿ ਕਿਧਰੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਲੋਂ ਅਣਗੌਲੇ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਚਲੇ ਆ ਰਹੇ ਵਰਕਰ ਤੇ ਮੁੱਖੀ ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾ ਚਲੇ ਜਾਣ? ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਵਲ ਜਾਣ ਤੋਂ ਰੋਕਣ ਲਈ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮੰਨਾਉਣ ਦੀ ਲੋੜ ਸਮਝੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ।
ਇਹ ਵੀ ਦਸਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਸ. ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਅਤੇ ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਲਈ ਮੁਸ਼ਕਲ ਇਹ ਬਣ ਗਈ ਹੋਈ ਹੈ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਕ ਪਾਸੇ ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਦੇ ਬਾਗ਼ੀ ਤੇਵਰਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ, ਅਕਾਲੀ ਕੈਡਰ, ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਉਸਦੇ ਵੱਧ ਰਹੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੇ ਪ੍ਰੇਸ਼ਾਨ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਹੈ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਕੈਪਟਨ ਅਮਰਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਕਾਂਗ੍ਰਸ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਬਣਨ ਨਾਲ ਪੰਜਾਬ ਕਾਂਗ੍ਰਸ ਵਿੱਚ ਪੈਦਾ ਹੋਇਆ ਜੋਸ਼ ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਦਾ ਕਾਰਣ ਬਣਨ ਲਗ ਪਿਆ ਹੈ।
ਭਾਵੇਂ ਸੁਖਬੀਰ ਵਲੋਂ ਇਹ ਦਾਅਵਾ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ (ਬਾਦਲ) ਨੂੰ ਨਾ ਤਾਂ ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਪਾਸੋਂ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕੈਪਟਨ ਪਾਸੋਂ ਕੋਈ ਖਤਰਾ ਹੈ, ਫਿਰ ਵੀ ਅੰਦਰੋਂ-ਅੰਦਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਡਰ ਵੀ ਖਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇ ਇਹੀ ਸਥਿਤੀ ਬਣੀ ਰਹੀ ਤਾਂ ਸਾਲ-ਕੁ ਬਾਅਦ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਚੋਣਾਂ ਵਿੱਚ ਅਕਾਲੀ-ਭਾਜਪਾ ਗਠਜੋੜ ਲਈ ਸੱਤਾ ਵਿੱਚ ਮੁੜਨਾ ਸੰਭਵ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਜਾਇਗਾ। ਇਹੀ ਕਾਰਣ ਹੈ ਕਿ ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਦੀ ਛਵੀ ਖਰਾਬ ਕਰਨ ਲਈ ਇਕ ਪਾਸੇ ਤਾਂ ਸ. ਗੁਰਦਾਸ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਦੇ ਸੋਦਾ ਸਾਧ ਦੇ ਪਰਚੇ ਵਿੱਚ ਛਪੇ ਇੰਟਰਵਿਊ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ, ਉਸਦੇ ਵਿਰੁਧ ਮੁਹਿੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾ ਦਿਤੀ ਗਈ ਹੈ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਉਸ ਪੂਰ ਦੋਸ਼ ਲਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਕੇਂਦਰ ਵਲੋਂ ਕਰਜ਼ਾ ਮਾਫ ਕਰਨ ਲਈ ਰਖੀਆਂ ਸ਼ਰਤਾਂ ਦੇ ਮਾਮਲੇ ਵਿੱਚ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਗੁਮਰਾਹ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਸ. ਸੁਖਬੀਰ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਇਹ ਬਿਆਨ ਦੇਣ ਤੇ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ ਕਿ ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਦੀ ਸੋਚ ਅਨੁਸਾਰ ਜੇ ਸਾਰੀਆਂ ਸਬਸਿਡੀਆਂ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿਤੀਆਂ ਜਾਣ ਤਾਂ ਗ਼ਰੀਬ ਵਰਗ ਦਾ ਲੱਕ ਟੁਟ ਜਾਇਗਾ। ਜਦਕਿ ਅੰਕੜੇ ਇਸ ਗਲ ਦੀ ਗੁਆਹੀ ਭਰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਦਿਤੀਆਂ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਸਬਸਿਡੀਆਂ ਦਾ ਲਾਭ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਅਮੀਰਾਂ ਦੀਆਂ ਤਜੋਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਜਦਕਿ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਤਕ ਤਾਂ ਕੇਵਲ ‘ਝੂੰਗਾ' ਹੀ ਪੁਜਦਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇ ਕੇਂਦਰ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਸ਼ਰਤ ਅਨੁਸਾਰ ਸਬਸਿਡੀਆਂ ਨੂੰ ਤਰਕ ਸੰਗਤ ਬਣਾ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਲਾਭ ਕੇਵਲ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਇਆ ਜਾਏ ਤਾਂ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਲਗਭਗ ਦੋ ਹਜ਼ਾਰ ਕਰੋੜ ਰੁਪਏ ਦੀ ਸਾਲਾਨਾ ਬਚਤ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ। ਪਰ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਅਕਾਲੀ-ਭਾਜਪਾ ਸਰਕਾਰ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਦੇ ਮੁਲ ਤੇ ਅਮੀਰ ਵਰਗ ਨੂੰ ਲਾਭ ਪਹੁੰਚਾਣਾ ਜਾਰੀ ਰਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦੀ ਹੈ।
ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਰਥਕ ਮਾਹਿਰਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਦਿਹਾਤੀ ਤੇ ਸ਼ਹਿਰੀ ਵਿਕਾਸ ਤੇ ਕੀਤੇ ਰਹੇ ਖਰਚਿਆਂ ਪ੍ਰਤੀ ਈਮਾਨਦਾਰੀ ਵਰਤ ਰਹੀ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸਨੂੰ ਕੇਂਦਰੀ ਮਹਾ-ਲੇਖਾਕਾਰ ਪਾਸੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਡਿਟ ਕਰਵਾਉਣ ਤੋਂ ਸੰਕੋਚ ਨਹੀਂ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ। ਘਾਟੇ ਵਿੱਚ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਇਕਾਈਆਂ ਵਿਚੋਂ ਆਪਣਾ ਹਿਸਾ ਕਢ ਲੈਣਾ, ਟਰਾਂਸਪੋਰਟ ਵਿਚਲੇ ਘਾਟੇ ਨੂੰ ਘਟਾਉਣਾ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਆਪਣੇ ਹਿਤ ਵਿੱਚ ਤਾਂ ਹੈ ਹੀ, ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਪ੍ਰਾਵੀਡੈਂਟ ਫੰਡ ਵਿਚੋਂ ਪੈਸਾ ਕਢਾਉਣ ਤੇ ਰੋਕ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਵੀ ਹਿਤ ਵਿੱਚ ਹੋਵੇਗਾ। ਇਤਨਾ ਕਰ ਲੈਣ ਦੇ ਨਾਲ ਜੋ ਪੈਂਤੀ ਹਜ਼ਾਰ ਕਰੋੜ ਦਾ ਕਰਜ਼ਾ ਮਾਫ਼ ਹੋ ਜਾਇਗਾ, ਉਸਦਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਿਰ ਤੋਂ ਭਾਰ ਉਤਰਨ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ, ਇਤਨੇ ਮੋਟੇ ਕਰਜ਼ੇ ਤੇ ਦਿਤਾ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਵਿਆਜ ਵੀ ਬਚੇਗਾ, ਜੋ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਤੇਜ਼ੀ ਲਿਅਉਣ ਅਤੇ ਉਸਦਾ ਲਾਭ ਗ਼ਰੀਬਾਂ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਣ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੇ।
ਅਕਾਲੀ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦਾ ਦੁਖਾਂਤ: ਅਕਾਲੀ ਰਾਜਨੀਤੀ ਦਾ ਇਹ ਦੁਖਾਂਤ ਹੀ ਮੰਨਿਆ ਜਾਇਗਾ ਕਿ ਜਦੋਂ ਕੋਈ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਅਕਾਲੀ ਦਲ (ਬਾਦਲ) ਦੇ ਆਗੂਆਂ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁਧ ਆਵਾਜ਼ ਉਠਾਣ ਦੀ ਦਲੇਰੀ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਸਨੂੰ ਕਾਂਗ੍ਰਸ ਦਾ ਏਜੰਟ ਕਰਾਰ ਦੇ ਕੇ ਪੰਥ-ਦੁਸ਼ਮਣ ਪ੍ਰਚਾਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਜਦੋਂ ਉਹੀ ਮੁੜ ਉਨ੍ਹਾਂ ਹੀ ਆਗੂਆਂ ਦੀ ਅਧੀਨਗੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਗੁਣ ਗਾਣ ਲਗਦਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਉਹ ਦੁੱਧ ਦਾ ਧੌਤਾ ਤੇ ਪੱਕਾ ਪੰਥਕ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਹੀ ਕੁਝ ਜ. ਗੁਰਚਰਨ ਸਿੰਘ ਟੋਹੜਾ ਵਰਗਿਆਂ ਦੇ ਨਾਲ ਹੋਇਆ ਸੀ ਤੇ ਇਹੀ ਕੁਝ ਹੁਣ ਸ. ਮਨਪ੍ਰੀਤ ਸਿੰਘ ਬਾਦਲ ਦੇ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਣ ਲਗਾ ਹੈ। ਵੇਖਣਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਵਾਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਇਹ ਵਾਰ ਕਿਤਨਾ ਕਾਰਗਰ ਸਾਬਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ?
ਇਹ ਜੇ ਦਿੱਲੀ ਦਾ ਪੰਜਾਬ ਇੰਮਪੋਰੀਅਮ : ਕੁਝ ਦਿਨ ਹੋਏ, ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸਭਿਆਚਾਰ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਕੁਝ ਵਸਤਾਂ ਵੇਖਣ ਤੇ ਖ੍ਰੀਦਣ ਦਾ ਮਨ ਬਣ ਆਉਣ ਤੇ ਨਵੀਂ ਦਿੱਲੀ ਦੇ ਬਾਬਾ ਖੜਕ ਸਿੰਘ ਮਾਰਗ ਸਥਿਤ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਰਾਜਾਂ ਦੇ ਇੰਮਪੋਰੀਅਮਾਂ ਵਿੱਚਲੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇੰਮਪੋਰੀਅਮ ਜਾ ਪੁਜੇ। ਦੁਪਹਿਰ ਦੇ ਕੋਈ ਦੋ-ਕੁ ਵਜੇ ਦਾ ਸਮਾਂ ਸੀ। ਬਾਕੀ ਰਾਜਾਂ ਦੇ ਇੰਮਪੋਰੀਅਮ ਤਾਂ ਖੁਲ੍ਹੇ ਹੋਏ ਸਨ, ਪਰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇੰਮਪੋਰੀਅਮ ਦੇ ਬੰਦ ਦਰਵਾਜ਼ੇ ਤੇ ‘1.30 ਤੋਂ 2.30 ਤਕ ਲੰਚ' ਦੀ ਤਖਤੀ ਲਟਕ ਰਹੀ ਸੀ। ਬੜੀ ਉਤਸੁਕਤਾ ਨਾਲ ਉਥੇ ਜਾਣ ਦਾ ਮਨ ਬਣਾਇਆ ਸੀ, ਇਸ ਕਾਰਣ ਮੁੜਨ ਦੀ ਬਜਾਏ, ਸਮਾਂ ਬਿਤਾਣ ਲਈ ਉਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸਥਿਤ ਮਨੀਪੁਰ ਇੰਮਪੋਰੀਅਮ ਵਿੱਚ ਦਾਖਲ ਹੋ ਗਏ। ਉਥੇ ਕਿਉਂਕਿ ਸਮਾਂ ਬਿਤਾਣ ਦੀ ਗਲ ਸੋਚ ਕੇ ਗਏ ਸਾਂ, ਜਿਸ ਕਾਰਣ ਉਥੋਂ ਕੁਝ ਵੀ ਖ੍ਰੀਦਣ ਦਾ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਫਿਰ ਵੀ ਉਥੋਂ ਦੇ ਸੇਲਜ਼-ਮੈਨਾਂ ਤੇ ਦੂਜੇ ਕਰਮਚਾਰੀਆਂ ਦੇ ਵਿਹਾਰ ਤੋਂ ਅਸੀਂ ਇਤਨੇ ਪ੍ਰਭਾਵਤ ਹੋਏ ਕਿ ਨਾ ਚਾਹੁੰਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਵੀ ਉਥੋਂ ਤਕਰੀਬਨ ਪੰਜ-ਕੁ ਹਜ਼ਾਰ ਦਾ ਸਾਮਾਨ ਖ੍ਰੀਦਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਗਏ।
ਜਦੋਂ ਉਥੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲੇ, ਪੰਜਾਬ ਇੰਮਪੋਰੀਅਮ ਦਾ ਦਰਵਾਜ਼ਾ ਖੁਲ੍ਹ ਗਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਅੰਦਰ ਦਾਖਲ ਹੋਏ ਤਾਂ ਕੁਝ ਬੀਬੀਆਂ ਬੱੈਡ ਸ਼ੀਟਾਂ ਬਾਰੇ ਪੁੱਛ ਰਹੀਆਂ ਸਨ, ਸੇਲਜ਼-ਗਰਲ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸੀਟ ਤੇ ਬੈਠਿਆਂ ਹੀ ਸਾਹਮਣੇ ਪਾਸੇ ਇਸ਼ਾਰਾ ਕਰਦਿਆਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਉੱਧਰ ਇੱਕੀ ਸੌ ਤੋਂ ਇੱਕੀ ਹਜ਼ਾਰ ਤਕ ਦੀਆਂ ਬੈੱਡ ਸ਼ੀਟਾਂ ਹਨ, ਜਾ ਕੇ ਵੇਖ ਲਉ। ਹੈਰਾਨੀ ਹੋਈ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਬੀਬੀਆਂ ਨੂੰ ਆਪ ਨਾਲ ਜਾ ਕੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪੁੱਛ ਅਨੁਸਾਰ ਸਾਮਾਨ ਵਿਖਾ, ਖਰੀਦਣ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਨ ਦੀ ਬਜਾਏ ਸੀਟ ਤੇ ਬੈਠਿਆਂ-ਬੈਠਿਆਂ ਹੀ ਇਸ਼ਾਰਾ ਕਰਕੇ ਇਉਂ ਜਵਾਬ ਦਿਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਜਿਵੇਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਇੰਮਪੋਰੀਅਮ ਵਿੱਚ ਦਾਖਲ ਹੋਣਾ ਸਟਾਫ-ਮੈਂਬਰਾਂ ਨੂੰ ਪਸੰਦ ਨਾ ਆਇਆ ਹੋਵੇ। ਖੈਰ, ਸਾਡਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਕੋਈ ਮਤਲਬ ਨਹੀਂ ਸੀ, ਇਸ ਕਾਰਣ ਅਸਾਂ ਆਪਣੀ ਪਸੰਦ ਲਭਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ। ਮਿਸੇਜ਼ ਨੂੰ ਢੋਅ ਵਾਲੀ ਪੀੜੀ ਪਸੰਦ ਆ ਗਈ। ਉਸਨੇ ਪੁਛ ਲਿਆ ਕਿ ਕੀ ਇਸਦਾ ਜੋੜਾ ਮਿਲ ਜਾਇਗਾ? ਜਵਾਬ ਕੋਰਾ ਸੀ, ਜੇ ਹੋਵੇਗਾ ਤਾਂ ਮਿਲ ਜਾਇਗਾ। ਸੋਚਣ ਵਾਲੀ ਗਲ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਜੇ ਸੇਲ ਦੀ ਜ਼ਿਮੇਂਦਾਰੀ ਨਿਭਾਉਣ ਵਾਲੇ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਨੂੰ ਹੀ ਨਹੀਂ ਪਤਾ ਕਿ ਉਸ ਦੀ ਦੁਕਾਨ ਵਿੱਚ ਕਿਹੜਾ ਮਾਲ ਹੈ ਤੇ ਕਿਹੜਾ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਉਹ ਦੁਕਾਨਦਾਰੀ ਕੀ ਕਰੇਗਾ? ਉਥੋਂ ਅਗੇ ਵੱਧ ਚਾਂਦੀ ਦੀ ਇਕ ਤਸ਼ਤਰੀ ਪਸੰਦ ਆਈ, ਉਸਦੀ ਕੀਮਤ ਪੁੱਛਣ ਤੇ ਸੇਲਜ਼-ਮੈਨ ਨੇ ਸਾਡੇ ਵਲ ਹਿਕਾਰਤ ਭਰੀਆਂ ਨਜ਼ਰਾਂ ਨਾਲ ਵੇਖਦਿਆਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਇੱਕੀ ਹਜ਼ਾਰ ਦੀ ਏ! ਅਜੀਬ ਗਲ ਸੀ ਜੇ ਗਾਹਕ ਚਾਂਦੀ ਦੀ ਤਸ਼ਤਰੀ ਦੀ ਕੀਮਤ ਪੁਛ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਘਟੋ-ਘਟ ਉਸਨੂੰ ਇਸ ਗਲ ਦਾ ਤਾਂ ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਹੋਵੇਗਾ ਹੀ ਕਿ ਇਹ ਮਹਿੰਗੀ ਹੋਵੇਗੀ? ਉਸ ਅਤੇ ਪਹਿਲੇ ਸ਼ਖਸ ਨੇ ਜਿਸ ਢੰਗ ਨਾਲ ਵਿਹਾਰ ਕੀਤਾ, ਉਸਨੂੰ ਵੇਖਦਿਆਂ ਇਕ ਮਿਨਟ ਵੀ ਉਥੇ ਠਹਿਰਨ ਨੂੰ ਦਿਲ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕਰ ਰਿਹਾ। ਪਰ ਮਿਸੇਜ਼ ਨੇ ਸੂਟ ਲੈਣ ਦੀ ਇੱਛਾ ਪ੍ਰਗਟਾਈ ਤਾਂ ਕੁਝ ਦੇਰ ਹੋਰ ਠਹਿਰਨਾ ਪੈ ਗਿਆ। ਉਥੇ ਵੀ ਗਲ ਨਾ ਬਣੀ। ਇਹ ਵੇਖ-ਸੁਣ ਬਰਬਸ ਹੀ ਮੂੰਹ ਵਿੱਚੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ‘ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਹ ਬੰਦੇ ਕਿਤਨੀ ‘ਸਮਰਪਤ' ਭਾਵਨਾ ਨਾਲ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ‘ਸੇਵਾ' ਵਿੱਚ ਜੁੱਟੇ ਹੋਏ ਹਨ? ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਘਾਲ ਥਾਂਏ ਪਾਏ'!
ਗਲ ਸਨਮਾਨ ਦੀ : ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਇਕ ਅਕਾਲੀ ਮਿਤ੍ਰ ਦਾ ਫੋਨ ਆਇਆ। ਉਹ ਪੈਂਦੀ ਸਟੇ ਹੀ ਮੈਨੂੰ ਪੁਛਣ ਲਗਾ ‘ਪੰਜਾਬ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਭਾਗ ਦਾ ਐਵਾਰਡ ਲੈਣਾ ਈ'? ਅਚਾਨਕ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਇਹ ਸੁਆਲ ਸੁਣ ਮੈਂ ਕੁਝ ਸਕਪਕਾ ਜਿਹਾ ਗਿਆ। ਥੋੜਾ ਸੰਭਲਕੇ ਬੋਲਿਆ ਕਿ ਕੌਣ ਨਹੀਂ ਚਾਹੁੰਦਾ ਕਿ ਉਸਦੇ ਕੰਮ ਨੂੰ ਮਾਨਤਾ ਮਿਲੇ। ਪਰ ਬੀਤੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਤਜਰਬਿਆਂ ਨੇ ਮੇਰੇ ਦਿਲ ਵਿਚੋਂ ਸਰਕਾਰੀ ਐਵਾਰਡਾਂ ਦੀ ਲਾਲਸਾ ਮੁਕਾ ਦਿਤੀ ਹੋਈ ਹੈ। ‘ਕਿਉਂ'? ਇਹ ਸੁਆਲ ਸੁਣ ਮੈਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਪਿੱਛੇ ਜਿਹੇ ਖਬਰਾਂ ਆਈਆਂ ਸਨ ਕਿ ਪੰਜਾਬ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਭਾਗ ਦੀ ਐਵਾਰਡ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਮੈਂਬਰ, ਪਹਿਲਾਂ ਤਾਂ ਆਪੋ ਵਿੱਚ ਐਵਾਰਡ ਵੰਡਦੇ ਹਨ, ਫਿਰ ਜੋ ਬਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਉਹ ਆਪਣੇ ਚਹੇਤਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡ ਦਿੰਦੇ ਹਨ। ਮੈਂ ਨਾ ਤਾਂ ਕਮੇਟੀ ਦਾ ਮੈਂਬਰ ਹਾਂ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਮੈਂਬਰ ਦਾ ਚਹੇਤਾ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਮੈਂ ਉਸਤੋਂ ਕਦੀ ਐਵਾਰਡ ਦੀ ਕਾਮਨਾ ਨਹੀਂ ਰਖੀ। ਇਸਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਕਈ ਵਰ੍ਹੇ ਪਹਿਲਾਂ, ਦਿੱਲੀ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਇਕ ਅਕਾਦਮੀ ਦੇ ਇਕ ਮੈਂਬਰ ਨੇ ਮੈਂਨੂੰ ਫੋਨ ਤੇ ਦਸਿਆ ਕਿ ਅਕਾਦਮੀ ਦੀ ਗਵਰਨਿੰਗ ਕੌਂਸਿਲ ਨੇ ਇਸ ਵਾਰ ਤੈਨੂੰ ਪਤ੍ਰਕਾਰਤਾ ਦੇ ਖੇਤ੍ਰ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਯੋਗਦਾਨ ਲਈ ਐਵਾਰਡ ਦੇਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਇਹ ਜਾਣ ਮੈਨੂੰ ਖੁਸ਼ੀ ਹੋਈ। ਪਰ ਸਵੇਰੇ ਮੈਂ ਹਾਲਾਂ ਉਠਿਆ ਹੀ ਸਾਂ, ਕਿ ਉਸੇ ਸਜਣ ਦਾ ਫੌਨ ਆ ਗਿਆ। ਉਸਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਮੈਂਨੂੰ ਦੁੱਖ ਹੈ ਕਿ ‘3-ਡਬਲਯੂ' ਦੀ ਕਰਾਮਾਤ ਨੇ ਤੇਰਾ ਨਾਂ ਐਵਾਰਡਾਂ ਦੀ ਸੂਚੀ ਵਿਚੋਂ ਕਟਵਾ ਦਿਤਾ ਹੈ। ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਸਨੇ ਇਹ ਵੀ ਦਸਿਆ ਕਿ ਤੇਰਾ ਨਾਂ ਕਟਣ ਵਿੱਚ ਮੁਖ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਣ ਵਾਲੇ, ਰਾਤ ਐਕਸੀਡੈਂਟ ਹੋ ਜਾਣ ਕਾਰਣ ਹਸਪਤਾਲ ਵਿੱਚ ਹਨ। ਜਿਥੇ ਰਾਤੋ-ਰਾਤ ਨਾਂ ਕੱਟੇ ਤੇ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹੋਣ, ਉਥੋਂ ਕੁਝ ਮਿਲਣ ਦੀ ਆਸ ਰਖਣਾ ਖੁਸਰਿਆਂ ਤੋਂ ਮੁਰਾਦਾਂ ਰਖਣ ਤੋਂ ਵੱਧ ਕੀ ਹੋਵੇਗਾ? ਇਤਨਾ ਸੁਣ ਉਨ੍ਹਾਂ ਹੋਰ ਕੁਝ ਕਹੇ ਬਿਨਾਂ ਫੋਨ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿਤਾ।
...ਅਤੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ : ਜਿਵੇਂ ਚੜ੍ਹਦੀਕਲਾ ਟਾਈਮ ਟੀਵੀ ਚੈਨਲ ਤੋਂ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਬੰਗਲਾ ਸਾਹਿਬ, ਨਵੀਂ ਦਿੱਲੀ ਅਤੇ ਪੀਟੀਸੀ (ਪੰਜਾਬੀ) ਚੈਨਲ ਤੋਂ ਸ੍ਰੀ ਹਰਿਮੰਦਿਰ ਸਾਹਿਬ, ਸ੍ਰੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਤੋਂ ਸਵੇਰੇ ਸ਼ਾਮ ਕਥਾ-ਕੀਰਤਨ ਦਾ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਸਿੱਧਾ ਪ੍ਰਸਾਰਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਇਸੇਤਰ੍ਹਾਂ ਸੀਐਨਈਬੀ ਵਲੋਂ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਸੀਸਗੰਜ ਸਾਹਿਬ, ਦਿੱਲੀ ਤੋਂ ਸਵੇਰੇ-ਸ਼ਾਮ ਕੀਰਤਨ ਦਾ ਸਿੱਧਾ ਪ੍ਰਸਾਰਣ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਦੇਖਣ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦਾ ਹੇ ਕਿ ਜਿਥੇ ਚੜ੍ਹਦੀਕਲਾ ਟਾਈਮ ਟੀਵੀ ਅਤੇ ਪੀਟੀਸੀ (ਪੰਜਾਬੀ) ਚੈਨਲਾਂ ਵਲੋਂ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਦੀ ਸਮਾਪਤੀ ਕਰਦਿਆਂ, ਇਸ ਗਲ ਦਾ ਖਾਸ ਖਿਆਲ ਰਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜੋ ਸ਼ਬਦ ਪੜ੍ਹਿਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਜਾਂ ਅਰਦਾਸ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ, ਉਸਦੇ ਪੂਰਿਆਂ ਹੋਣ ਤੇ ਹੀ ਪ੍ਰਸਾਰਣ ਖਤਮ ਕੀਤਾ ਜਾਏ, ਉਥੇ ਸੀਐਨਈਬੀ ਚੈਨਲ ਵਲੋਂ ਇਸ ਗਲ ਦਾ ਕੋਈ ਖਿਆਲ ਨਹੀਂ ਰਖਿਆ ਜਾਂਦਾ। ਸ਼ਬਦ ਚਲ ਰਿਹਾ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਅਰਦਾਸ ਹੋ ਰਹੀ ਹੋਵੇ, ਉਸਦੀ ਸਮਾਪਤੀ ਦਾ ਇੰਤਜ਼ਾਰ ਉਸਨੇ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ, ਉਸਨੇ ਤਾਂ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਵੀ ਦੋ ਮਿਨਟ ਪਹਿਲਾਂ ਪ੍ਰਸਾਰਣ ਬੰਦ ਕਰ ਦੇਣਾ ਹੈ। ਜੋ ਕਿ ਸਿੱਖੀ ਵਿੱਚ ਅਰਦਾਸ ਤੇ ਗੁਰ-ਸ਼ਬਦ ਨੂੰ ਅਣਗੋਲਿਆਂ ਕਰਨ ਦਾ ਗੁਨਾਹ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਪੂਹਲੇ ਦੀਆਂ ਕਰਤੂਤਾਂ ਦੀ ਕਹਾਣੀ ਸਵਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਜ਼ੁਬਾਨੀ

( ਨੋਟ- ਪਾਠਕਾਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਲਈ ਦੱਸਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਇਹ ਇੰਕਸ਼ਾਫ ਸਵਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਵਲੋਂ ਉਦੋਂ ਕੀਤੇ ਗਏ ਸਨ ਜਦੋਂ ਪੂਹਲਾ ਜੀਉਂਦਾ ਸੀ । )



ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਤਰਨਾ ਦਲ ਦਾ ਮੁਖੀ ਅਖਵਾਉਣ ਵਾਲਾ ਮਾਫੀਆ ਸਰਗਣਾ ਅਜੀਤ ਪੂਹਲਾ ਹੁਣ ਭਾਵੇਂ ਸਲਾਖਾਂ ਅੰਦਰ ਹੋ ਚੁੱਕਾ ਹੈ , ਪਰ ਕਈ ਦਿਲਾਂ ਵਿੱਚ ਅਜੇ ਵੀ ਉਸ ਦੀ ਦਹਿਸ਼ਤ ਬਰਕਰਾਰ ਹੈ।ਵੈਸੇ ਇੱਕ ਵਾਰ ਉਸ ਦੇ ਚੰਗੇਜੀ ਜ਼ੁਲਮਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਇੱਕ ਜਥੇਬੰਦਕ ਮਹਿੰਮ ਅਰੰਭ ਹੋ ਜਾਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਉਸ ਦੇ ਜ਼ੁਲਮਾਂ ਨੂੰ ਹੰਢਾਉਣ ਵਾਲੇ ਤੇ ਨੇੜੇ ਤੋਂ ਵੇਖਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕ ਉਸ ਦੇ ਕੀਤੇ ਜ਼ੁਲਮਾਂ ਤੇ ਚਾਨਣਾ ਪਾਉਣ ਲਈ ਅੱਗੇ ਆਉਣ ਲੱਗੇ ਹਨ।ਅਸੀਂ ਉਸ ਦੇ ਜ਼ੁਲਮਾਂ ਦੇ ਗਵਾਹ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਇਕ-ਇਕ ਕਰਕੇ ਮਿਲਣ ਅਤੇ ਲੜੀਵਾਰ ਉਸ ਦੇ ਜ਼ੁਲਮਾਂ ਦੀ ਕਹਾਣੀ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਿਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਹੈ।ਇਸ ਲੜੀ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਸੱਤ ਸਾਲ ਉਸ ਦਾ ਪੀ.ਏ ਰਹੇ ਨੌਜੁਵਾਨ ਨਿਹੰਗ ਸਿੰਘ ਭਾਈ ਸਵਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ,ਨਾਲ ਇੱਕ ਲੰਮੀ ਮੁਲਾਕਾਤ ਕੀਤੀ ।ਉਸ ਨੇ ਅੱਖੀਂ ਵੇਖੀਆਂ ਕਈ ਸਨਸਨੀਖੇਜ ਵਾਰਦਾਤਾਂ ਦਾ ਜੋ ਬਿਉਰਾ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ,ਉਹ ਹਿੰਦਸਤਾਨ ਦੀ ਸਰਕਾਰੀ ਮਸ਼ੀਨਰੀ ਲਈ ਡੁੱਬ ਮਰਨ ਦਾ ਮੁਕਾਮ ਹੈ ਕਿਉਂ ਕਿ ਉਸਦੇ ਹਰ ਇੱਕ ਵਹਿਸ਼ੀ ਜ਼ੁਲਮ ਵਿੱਚ ਇਹ ਸਮੁੱਚੀ ਸਰਕਾਰੀ ਮਸ਼ੀਨਰੀ ਪੂਹਲੇ ਦੀ ਕਾਰਜ ਸ਼ੈਲੀ ਵਿੱਚ ਇਹ ਤੱਥ ਵੀ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਭਰ ਦੇ ਡੇਰਿਆ ਤੇ ਨਿਹੰਗ ਛਾਉਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਅਕਸਰ ਆਉਂਦਾ ਜਾਂਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ ।ਜਿਥੋਂ ਵੀ ਕੋਈ ਕੰਮ ਦਾ ਬੰਦਾ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦਾ ਬੜੇ ਪਿਆਰ ਨਾਲ ਪੁਚਕਾਰ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਲੈ ਆਉਂਦਾ।ਸਵਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਪਿਤਾ ਬੁੱਢਾ ਦਲ ਵਿੱਚ ਸਨ ਸੁਲਤਾਨਪੁਰ ਲੋਧੀ ਦੇ ਇੱਕ ਨਿਹੰਗ ਸੰਤੋਖ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੂਹਲੇ ਦੀਆਂ ਕਾਫੀ ਸਿਫਤਾਂ ਕਰਕੇ ਉਸ ਨਾਲ ਮਿਲਾਇਆ।ਫਿਰ ਕੁਹਾੜ ਕਲਾਂ ਪਿੰਡ ਜਿਥੇ ਕਿ ਸਵਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਪਰਵਾਰ ਇੱਕ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਸਾਹਿਬ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ ,ਉਥੇ ਪੂਹਲਾ ਇੱਕ ਰਾਤ ਆ ਕੇ ਠਹਿਰਿਆ।ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਵੇਲੇ ਉਠ ਕੇ ਨਿੱਤਨੇਮ ਤੇ ਕਥਾ-ਕੀਰਤਨ ਦੀ ਮਰਯਾਦਾ ਤੋਂ ਉਸ ਨੇ ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਲਗਾ ਲਿਆ ਕੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਲੜਕਾ ਮੇਰੇ ਕੰਮ ਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂ ਕਿ ਉਸ ਦੇ ਜਥੇ ਵਿੱਚ ਤਾਂ ਸਾਰੇ ਸਾਥੀ ਉਹ ਦੇ ਆਪਣੇ ਵਰਗੇ ਹੀ ਕਈ ਕਿਸਮ ਦੇ ਨਸ਼ੇ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸਨ ।ਉਹ ਪਿਆਰ ਨਾਲ ਭਾਈ ਸਵਰਨ ਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਰੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨੂੰ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ ਸੈਕਟਰ 39 ਸੀ ਦੇ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਜਿਥੇ ਉਸ ਨੇ ਹੋਰ ਥਾਵਾਂ ਵਾਂਗ ਕਬਜ਼ਾ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਸੀ,ਲੈ ਗਿਆ ਅਤੇ ਸਵਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਆਪਣਾ ਪੀ.ਏ ਰੱਖ ਲਿਆ,ਸਵਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੰਗਲਿਸ਼ ਮੀਡੀਅਮ ਵਿੱਚ ਮੈਟ੍ਰਿਕ ਪਾਸ ਅਤੇ ਕੋਈ ਨਸ਼ਾ ਨਾਂ ਕਰਦਾ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਉਸ ਦੇ ਕੰਮ ਦਾ ਸੀ ।
ਪੂਹਲੇ ਕੋਲ ਆ ਕੇ ਸਵਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਜਦੋਂ ਪੂਹਲੇ ਦਾ ਅਸਲੀ ਰੂਪ ਦੇਖਿਆ ,ਉਹ ਹੈਰਾਨ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਸੀ ।ਉਹ ਰੋਜ਼ ਰਾਤ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਕਿਸੇ ਨਾਂ ਕਿਸੇ ਕਿਲੇ ਦੇ ਬੇਸਮੈਂਟ ਵਿੱਚ ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਂਦਾ। ਲਗਭੱਗ ਇੱਕ ਲੀਟਰ ਸ਼ਰਾਬ ਰੋਜ਼ਾਨਾਂ ਹੀ ਉਸ ਦਾ ਕੋਟਾ ਸੀ ।ਫਿਰ ਉਹ ਡੈਕ ਲਾ ਕੇ ਨੱਚਣ ਲੱਗ ਪੈਂਦਾ।ਲਵਲੀ ਨਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਖੁਸਰੀ ਲਿਆਂਦੀ ਜਾਂਦੀ ,ਉਸ ਨੂੰ ਉਹ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਨਚਾਉਂਦਾ ਆਪਣੇ ਸਾਥੀਆਂ ਨੂੰ ਵੀ ਗਾਲ੍ਹਾਂ ਕੱਢਦਾ ਹੋਇਆ ਨਾਲ ਨੱਚਣ ਲਈ ਕਹਿੰਦਾ।ਫਿਰ ਕੁਝ ਚਿਰ ਬਾਅਦ ਖੁਸਰੀ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਪੂਹਲਾ ਕਮਰੇ ਵਿੱਚ ਬੰਦ ਹੋ ਜਾਂਦਾ।ਉਹ ਕੇਵਲ ਖੁਸਰਿਆਂ ਆਦਿ ਨਾਲ ਹੀ ਕੁਕਰਮ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕਰਦਾ ਜਿਹੜੀ ਵੀ ਔਰਤ ਜਾਂ ਲੜਕੀ ਉਸ ਦੇ ਸੰਪਰਕ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦੀ ,ਉਸ ਨੂੰ ਹੱਥ ਪਾ ਲੈਣਾ ਉਸ ਦੀ ਆਦਤ ਸੀ ।ਸਵਰਨਜੀਤ ਨੇ ਏਥੋਂ ਭੱਜ ਜਾਣ ਦਾ ਇਰਾਦਾ ਕੀਤਾ ਪਰ ਉਸ ਨੂੰ ਛੇਤੀ ਹੀ ਪਤਾ ਲੱਗ ਗਿਆ ਕੇ ਪੂਹਲੇ ਦੇ ਗਿਰੋਹ ਵਿੱਚ ਆਏ ਕਿਸੇ ਬੰਦੇ ਲਈ ਨਿਕਲਣ ਬਾਰੇ ਸੋਚਣਾ ਵੀ ਮੌਤ ਨੂੰ ਸੱਦਾ ਦੇਣ ਦੇ ਤੁੱਲ ਹੈ।ਥਾਨ ਸਿੰਘ ਨਿਹੰਗ ,ਸਪੁੱਤਰ ਭਾਈ ਕਪੂਰ ਸਿੰਘ ਦਾ ਕਸੂਰ ਕੇਵਲ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੀ ਕੇ ਉਹ ਇਸ ਦੇ ਗਰੁੱਪ'ਚੋਂ ਛੁੱਟੀ ਲੈ ਕੇ ਘਰ ਜਾਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ ਇਜ਼ਾਜਤ ਮੰਗੇ ਜਾਣ ਤੇ ਸ਼ਰਾਬੀ ਪੂਹਲਾ ਕਹਿਣ ਲੱਗਾ,
ਅੱਛਾ! ਇਹ ਜਾਣਾ ਚਾਹੁੰਦੈ ?3.ਅੱਗੇ ਪਹੁਚਾ ਦਿਓ।
ਤੇ ਨਿਹੰਗ ਥਾਨ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕਰਤਾਰ ਪੁਰ ਝੂਠਾ ਡੇਰੇ ਵਿਖੇ ਕਾਫੀ ਕੁੱਟ ਮਾਰ ਕਰਨ ਪਿਛੋਂ ਜਿਊਂਦੇ ਹੀ ਸਾੜ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ।
ਇਸੇ ਹੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਰਿਆਲੀ ਭੰਗਾਲੀ ਪਿੰਡ ਦਾ ਇਸ ਦਾ ਸਾਥੀ ਸਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਉਰਫ ਥੱਥਾ ਫੌਜੀ ਵੀ ਇਸ ਨੇ ਇਸ ਹੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਾਰਿਆ।ਗੁਰਦਿਆਲ ਸਿੰਘ ਰਾਗੀ ਨਾਲ ਵੀ ਇਹੀ ਹੀ ਕੁਝ ਹੋਇਆ,ਉਸ ਨੂੰ ਪੂਹਲੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਚਹੇਤੇ ਪੁਲੀਸ ਅਫਸਰ ਪਰਮਰਾਜ ਉਮਰਾਨੰਗਲ ਨੂੰ ਦੇ ਕੇ ਮਰਵਾਇਆ।
ਸਵਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਅਤੇ ਕੁਝ ਹੋਰ ਗਵਾਹਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਪੁਲੀਸ ਅਫਸਰ ਸੁਮੇਧ ਸੈਣੀ,ਪਰਮਰਾਜ ਉਮਰਾਨੰਗਲ ,ਅਜੀਤ ਸੰਧੂ,ਜਸਮਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਆਦਿ ਅਕਸਰ ਇਸ ਦੇ ਕੋਲ ਆਉਂਦੇ ਜਾਦੇ ਸਨ ਤੇ ਇਸ ਸਾਰੀ ਇਸ ਨਾਲ ਬੈਠ ਕੇ ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਂਦੇ ਸਨ ।ਕਈ ਵਾਰ ਪੁਲੀਸ ਮੁਕਾਬਲਾ ਬਣਾਉਣ ਵੇਲੇ ਕੋਈ ਨਾ ਕੋਈ ਪੁਲੀਸ ਅਫਸਰ ਪੂਹਲੇ ਨੂੰ ਸਨੇਹਾ ਭੇਜਦਾ ਸੀ
ਬੰਦੇ ਘੱਟ ਨੇ ਹੋਰ ਬੰਦੇ ਭੇਜ .।
ਤੇ ਪੂਹਲਾ ਆਪਣੇ ਕੋਲੋਂ ਬੰਦੇ ਭੇਜ ਦਿੰਦਾ ਕਈ ਵਾਰੀ ਕਈ-ਕਈ ਭਈਏ ਹੀ ਪੂਹਲੇ ਨੇ ਪੁਲੀਸ ਮੁਕਾਬਲੇ 'ਚ ਮਾਰਨ ਲਈ ਭੇਜ ਦਿੱਤੇ ਤਾਂ ਕੇ ਉਸ ਦੇ ਚਹੇਤੇ ਪੁਲੀਸ ਅਫਸਰਾਂ ਨੂੰ ਫੀਤੀਆ ਹੋਰ ਲੱਗਣ ,ਤੇ ਬਦਲੇ ਵਿੱਚ ਉਹ ਉਹ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਵੀ ਕੰਮ ਲੈਂਦਾ ਰਹੇ।ਇਸ ਦੇ ਬਦਲੇ ਵਿੱਚ ਕਈ ਪੁਲਿਸ ਅਫਸਰ ਪੂਹਲੇ ਨੂੰ ਖਾੜਕੂਆਂ ਤੋਂ ਫੜੇ ਗਏ ਹਥਿਆਰ ,ਟ੍ਰੈਕਟਰ ,ਗੱਡੀਆਂ ਖਾੜਕੂਆਂ ਦੀ ਯਾਦ 'ਚ ਚੜਾਏ ਗਏ ਨਿਸ਼ਾਨ ਸਾਹਿਬ ਵੱਢ ਕੇ ਪਹੁੰਚਾ ਦਿੰਦੇ ।ਇਹ ਸਮਾਨ ਪੂਹਲਾ ਅੱਗੋਂ ਵੇਚ ਦਿੰਦਾ ।ਪੁਲਿਸ ਅਫਸਰ ਫੜੀ ਗਈ ਨਜ਼ਾਇਜ ਸ਼ਰਾਬ ਤੇ ਪੋਸਤ ਵੀ ਸਰਕਾਰੀ ਗੱਡੀਆਂ ,ਚ ਭਰ ਕੇ ਪੂਹਲੇ ਨੂੰ ਭੇਜਦੇ। ਬਾਬਾ ਚਰਨ ਸਿੰਘ ਜੀ ਕਾਰ ਸੇਵਾ ਬੀੜ ਸਾਹਿਬ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ ਪੂਹਲੇ ਨੇ ਹੀ ਐਸ.ਐਸ.ਪੀ ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਸੰਧੂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਉਸ ਤੋਂ ਮਰਵਾਇਆ। ਪੈਸੇ ਦੀ ਵੰਡ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸ ਦੇ ਡੇਰੇ ਦਾ ਸਾਰਾ ਸਮਾਨ ਪੂਹਲਾ ਗਿਰੋਹ ਨੇ ਹੀ ਲੁੱਟਿਆ ਸਵਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਨੁਸਾਰ ਇਸ ਦਾ ਇੱਕ ਸਾਥੀ ਨਕਲੀ ਨਿਹੰਗ,ਉਸ ਲੁੱਟ ਉਪਰੰਤ ਪੂਹਲੇ ਨੂੰ ਕਹਿ ਰਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਜਥੇਦਾਰ ਜੀ ਬਾਕੀ ਸਾਰਾ ਸਮਾਨ ਤਾਂ ਚੁੱਕ ਲਿਐ3.(ਗੁਰੂ) ਗਰੰਥ (ਸਾਹਿਬ) ਰਹਿ ਗਿਐ,ਉਹ ਵੀ ਕੱਛੇ ਮਾਰ ਲਿਆਵਾਂ.?
ਸਵਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੱਸਦਾ ਹੈ ਪੂਹਲੇ ਨੇ ਸਵਰਾਜ ਮਾਜ਼ਦਾ ਗੱਡੀ ਨੂੰ ਸਿੰਗਾਰ ਕੇ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਪਾਲਕੀ ਦਾ ਰੂਪ ਦਿੱਤਾ ਸੀ,ਪਰ ਉਸ ਦਾ ਗੁਰੂ ਗਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਇਹ ਸਤਿਕਾਰ ਕੇਵਲ ਵਿਖਾਵਾ ਹੀ ਸੀ ।ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਉਹ ਇਸ ਗੱਡੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਸ਼ਰਾਬ ਅਤੇ ਹੋਰ ਨਸ਼ਿਆ ਦੀ ਢੋਆ-ਢੁਆਈ ਲਈ ਕਰਦਾ ਸੀ ।ਇਸ ਗੱਡੀ ਵਿੱਚ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਗਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਦੀ ਹਜ਼ੂਰੀ ਵਿੱਚ ਪੂਹਲਾ ਖੁਦ ਸ਼ਰਾਬ ਪੀ ਕੇ ਇਸ ਦੀ ਡਰਾਈਵਿੰਗ ਕਰਦਾ ਸੀ।
ਸਵਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੱਸਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਕ ਵਾਰ ਪੂਹਲਾ ਆਪਣੇ ਪੂਰੇ ਗਰੋਹ ਸਮੇਤ ਸ਼ਰਾਬ ਨਾਲ ਟੁੰਨ ਹੋਇਆ ਸ੍ਰੀ ਦਰਬਾਰ ਸਾਹਿਬ ਜਾ ਵੜਿਆ ਸਵਰਨਜੀਤ ਸਿੰਘ ਵੀ ਇਸ ਵੇਲੇ ਨਾਲ ਸੀ ।ਨਾਕੇ ਤੇ ਤਾਇਨਾਤ ਪੁਲਸ ਮੁਲਾਜ਼ਮਾਂ ਨੇ ਹਥਿਆਰਾਂ ਸਮੇਤ ਅੰਦਰ ਦਾਖਲ ਹੋਣ ਤੋਂ ਰੋਕਿਆ ਤਾਂ ਪੂਹਲੇ ਉਸ ਨੂੰ ਗਾਂਲ੍ਹਾਂ ਕੱਢ ਕੇ ਧੱਕਾ ਮਾਰਿਆ ।ਫਿਰ ਉਹ ਪੂਰੇ ਸਰਕਾਰੀ ਹਥਿਆਰਾਂ ਸਮੇਤ ਸ਼ਰਾਬੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਸ੍ਰੀ ਦਰਬਾਰ ਸਾਹਿਬ ਤੇ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ ਤਖਤ ਸਾਹਿਬ ਹੋ ਕੇ ਵਾਪਸ ਪਰਤਿਆ ।
ਜਿਸ ਵੀ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਤੇ ਇਹ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਕੇ ਪੂਹਲਾ ਉਥੇ ਕਿਲ੍ਹੇਨੁਮਾਂ ਕੰਪਲੈਕਸ ਉਸਾਰਦਾ ,ਉਥੇ ਕਾਰ ਸੇਵਾ ਦੇ ਨਾਂ ਤੇ ਰਾਹ 'ਚ ਨਾਕੇ ਲਾ ਕੇ ਬੱਸਾਂ,ਟਰੱਕ ਰੋਕਦਾ,ਉਨ੍ਹਾ ਦੇ ਕਾਗਜ਼ ਆਪਣੇ ਕਬਜ਼ੇ ਵਿੱਚ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਿੰਡਾਂ'ਚੋਂ ਕਾਰ ਸੇਵਾ ਲਈ ਸੰਗਤ ਲਿਆਉਣ ਲਈ ਭੇਜ ਦਿੰਦਾ।ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਵੀ ਤੇਲ ਦੇ ਜਾਂ ਦਿਹਾੜੀ ਦੇ ਪੈਸੇ ਨਾਂ ਮਿਲਦੇ ।ਪੀੜਤਾਂ ਦੀ ਕਿਤੇ ਵੀ ਪੁਕਾਰ ਨਹੀ ਸੀ ਸੁਣੀ ਜਾਂਦੀ ,ਕਿਉਂ ਕਿ ਸਾਰੀ ਸਰਕਾਰੀ ਮਸ਼ੀਨਰੀ ਪੂਹਲੇ ਦੇ ਨਾਲ ਸੀ ਇਸ ਤੋਂ ਉਤਸ਼ਾਹਤ ਹੋ ਕੇ ਪੁਹਲੇ ਦੇ ਭਰਾ ਮਲਕੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਤਾਂ ਸਰਕਾਰੀ ਗਾਰਦ ਨਾਲ ਨਾਕੇ ਲਾ ਕੇ ਸ਼ਰ੍ਹੇਆਮ ਕਈ ਬੱਸਾਂ ਵੀ ਰੋਕ ਕੇ ਲੁੱਟ ਲਈਆਂ, ਫਿਰ ਵੀ ਕੋਈ ਕਾਰਵਾਈ ਨਾਂ ਹੋਈ ।

Tuesday, December 7, 2010

ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਬਾਰੇ ਛਿੜਿਆ ਵਿਵਾਦ
ਇਤਿਹਾਸਕ ਤੱਥਾਂ ਦੀ ਰੋਸ਼ਨੀ ਵਿਚ
(Rajinder Singh Rahi)

ਇਸ ਲਿਖਤ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਸਮੇਂ ਮੇਰੇ ਕਈ ਦੋਸਤਾਂ ਮਿੱਤਰਾਂ ਅਤੇ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੇ ਮੇਰੀ ਸਹਾØਿੲਤਾ ਕੀਤੀ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਭ ਦਾ ਧੰਨਵਾਦ। ਖ਼ਾਸ ਕਰਕੇ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਖੋਜ ਵਿਭਾਗ, ਖਾਲਸਾ ਕਾਲਜ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦਾ ਜਿਸ ਨੇ 80 ਸਾਲਾਂ ਤੋਂ ਸਾਂਭ ਕੇ ਰੱਖੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਅਖ਼ਬਾਰ ‘ਅਕਾਲੀ ਤੇ ਪ੍ਰਦੇਸੀ‘ ਦੀਆਂ ਫਾਈਲਾਂ ਮੈਨੂੰ ਦੇਖਣ ਦੀ ਇਜਾਜ਼ਤ ਦਿੱਤੀ। ਧੰਨਵਾਦ ਹੈ ਪੰਜਾਬੀ ਸਾਹਿਤ ਅਕੈਡਮੀ ਲੁਧਿਆਣਾ ਦੀ ਰੈਫਰੈਂਸ ਲਾਇਬਰੇਰੀ ਦੇ ਕਾਰਜਕਰਤਾ ਸ. ਬੁੱਧ ਸਿੰਘ ਨੀਲੋਂ ਦਾ ਜਿਸ ਨੇ ਮੇਰੀ ‘ਆਰਸੀ’ ਮੈਗਜ਼ੀਨ ਦਾ ਉਹ ਅੰਕ ਲੱਭਣ ਵਿਚ ਮੱਦਦ ਕੀਤੀ ਜਿਸ ਵਿਚੋਂ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਵੱਲੋਂ ਮਾਂਡਲੇ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿਚੋਂ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਲਿਖੇ ਪੱਤਰ ਛਪੇ ਸਨ। ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਰਿਸਰਚ ਬੋਰਡ ਸ੍ਰੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸਿੱਖ ਰੈਫਰੈਂਸ ਲਾਇਬਰੇਰੀ ਤੋਂ ਮੈਨੂੰ ਪ੍ਰੋ. ਹਜ਼ਾਰਾ ਸਿੰਘ ਦਾ ਉਹ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੇਖ ਮਿਲਿਆ ਜਿਸ ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਦੇ ਦਿਨ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਮੌਤ ਦੇ ਦਿਨ ਤੱਕ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੀਆਂ ਸਰਗਰਮੀਆਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹੋਰ ਕਈ ਅਹਿਮ ਤੱਥ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੇ ਹਨ। ਸ. ਗੁਰਬਚਨ ਸਿੰਘ (ਦੇਸ ਪੰਜਾਬ) ਤੋਂ ਮੈਨੂੰ ਇਕ ਡੀਵੀਡੀ ਮਿਲੀ ਜਿਸ ਵਿਚ ਫਰਵਰੀ 1926 ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਮਈ 1930 ਦੇ ‘ਕਿਰਤੀ‘ ਰਸਾਲੇ ਦੇ 30 ਅੰਕ ਸਨ। ਮੈਂ ਪ੍ਰੋ: ਮਲਵਿੰਦਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਵੜੈਚ ਦਾ ਵੀ ਸ਼ੁਕਰਗੁਜ਼ਾਰ ਹਾਂ ਜਿੰਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਹੋਈ ਲੰਮੀ ਚੌੜੀ ਗੱਲਬਾਤ ‘ਚੋਂ ਮੈਨੂੰ ਦੇਸ਼ਭਗਤੀ ਦੀਆਂ ਲਹਿਰਾਂ ਤੇ ਦੇਸ਼ਭਗਤਾਂ ਦੀਆਂ ਜੀਵਨੀਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ਰਧਾਮਈ ਅੰਦਾਜ਼ ਵਿਚ ਲਿਖਣ ਵਾਲੇ ਸਥਾਪਤ ਲੇਖਕਾਂ ਦੇ ਮਨੋ-ਜਗਤ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਵਿਚ ਭਰਪੂਰ ਮੱਦਦ ਮਿਲੀ। -ਰਾਜਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਰਾਹੀ
ਲਾਲ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿਚ ਬੱਬੂ ਮਾਨ ਵੱਲੋਂ ਗਾਏ ਇਕ ਗੀਤ ਨੂੰ਼ ਲੈ ਕੇ ਤਿੱਖਾ ਵਾਦ-ਵਿਵਾਦ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ। ਇਸ ਵਿਵਾਦ ਵਿਚ ਜਿਹੜਾ ਮੁੱਖ ਸੁਆਲ ਉਭਰ ਕੇ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਹੈ ਉਹ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੀ ਮੌਤ ਦੀ ਅਸਲੀ ਵਜ੍ਹਾ ਕੀ ਬਣੀ ਸੀ? ਭਾਵ ਕੀ ਇਹ ਮੌਤ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਵੱਜੀਆਂ ਕਹੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਲਾਠੀਆਂ ਦੀ ਵਜ੍ਹਾ ਕਰਕੇ ਹੋਈ ਸੀ ਜਾਂ ਕਈ ਦਿਨਾਂ ਬਾਅਦ ਜਾ ਕੇ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਪਏ ਦਿਲ ਦੇ ਦੌਰੇ ਕਰਕੇ ਹੋਈ ਸੀ? ਇਸ ਮਾਮਲੇ ਵਿਚ ਸਮਝਣ ਵਾਲੀ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਵਿਵਾਦ ਲਈ ਨਿਰੋਲ ਬੱਬੂ ਮਾਨ ਨੂੰ ਦੋਸ਼ੀ ਕਰਾਰ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ। ਜੇਕਰ ਇਸ ਵਿਵਾਦ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਕੋਈ ਨਿੱਗਰ ਅਧਾਰ ਮੌਜੂਦ ਨਾ ਹੁੰਦਾ, ਅਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਜੇਕਰ ਇਸ ਦੀ ਵਰਤਮਾਨ ਰਾਜਸੀ ਯਥਾਰਥ ਨਾਲ ਤੰਦ ਨਾ ਜੁੜੀ ਹੁੰਦੀ, ਤਾਂ ਮਹਿਜ਼ ਇਕ ਗੀਤ ਨੇ ਏਡਾ ਤੂਫ਼ਾਨ ਖੜ੍ਹਾ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕਰ ਦੇਣਾ। ਮੇਰੀ ਜਾਚੇ ਸਾਡੇ ਦਾਨਸ਼ਵਰ ਵਰਗ ਦੀ ਇਤਿਹਾਸਕ ਤੱਥਾਂ ਬਾਰੇ ਅਗਿਆਨਤਾ ਇਸ ਵਿਵਾਦ ਦਾ ਇਕ ਵੱਡਾ ਕਾਰਨ ਹੋ ਨਿਬੜੀ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਤੀਕਰਮ ਇਤਿਹਾਸਕ ਤੱਥਾਂ ਉਤੇ ਅਧਾਰਤ ਨਹੀਂ, ਬਲਕਿ ਨਿਰੋਲ ਮਨੋ-ਭਾਵਾਂ ਉਤੇ ਅਧਾਰਤ ਹੈ। ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਖੇਡ ਲਿਖਾਰੀ ਪ੍ਰਿੰਸੀਪਲ ਸਰਵਣ ਸਿੰਘ ਦਾ ‘ਪੰਜਾਬੀ ਟ੍ਰਿਬਿਊਨ’ ਵਿਚ ਛਪਿਆ ਲੇਖ ਇਸ ਦੀ ਸਟੀਕ ਉਦਾਹਰਣ ਹੈ। ਇਤਿਹਾਸ ਦੇ ਅਜਿਹੇ ਪੇਚੀਦਾ ਮਸਲੇ ਕਦੇ ਵੀ ਨਿਰੋਲ ਮਨੋ-ਭਾਵਾਂ ਨਾਲ ਹੱਲ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਕਰਦੇ। ਖਾਸ ਕਰਕੇ ਉਦੋਂ ਜਦੋਂ ਮਨੋ-ਭਾਵਾਂ ਵੀ ਪੂਰੀਆਂ ਸ਼ੁੱਧ ਨਾ ਹੋਣ, ਸਗੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਗਰਜ਼ਾਂ ਦੀ ਜੂਠ ਰਲੀ ਹੋਵੇ। ਇਹ ਗੱਲ ਜਸਵੰਤ ਸਿੰਘ ਕੰਵਲ ਦੇ ਹਥਲੀ ਲਿਖਤ ਵਿਚ ਦਿਤੇ ਗਏ ਇਕ ਹਵਾਲੇ ਤੋਂ ਸਵੈ ਪ੍ਰਤੱਖ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ।
ਇਸ ਵਿਵਾਦ ਦੇ ਪ੍ਰਸੰਗ ਵਿਚ ਸਮਝਣ ਵਾਲੀ ਸਭ ਨਾਲੋਂ ਅਹਿਮ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਜਿੰਨਾ ਚਿਰ ਭਾਰਤ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਸੰਗਰਾਮ ਅੰਦਰ ਲਾਲ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ਰਾਜਸੀ ਰੋਲ ਦਾ ਸਹੀ ਮੁਲਾਂਕਣ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ, ਉਨਾ ਚਿਰ ਉਸਦੀ ਮੌਤ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਬਾਰੇ ਵਿਵਾਦ ਦੀ ਸਹੀ ਸਮਝ ਨਹੀਂ ਪੈ ਸਕਦੀ। ਲਾਲੇ ਬਾਰੇ ਹੁਣ ਤਕ ਸਰਕਾਰੀ ਪੱਧਰ ‘ਤੇ ਜੋ ਪ੍ਰਚਾਰਿਆ ਗਿਆ ਹੈ (ਪਾਠ ਪੁਸਤਕਾਂ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਇਤਿਹਾਸ ਦੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਤਕ), ਉਹ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਭਾਰਤ ਦੇ ਆਜ਼ਾਦੀ ਸੰਗਰਾਮ ਦੇ ਮੋਢੀ ਆਗੂਆਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ, ਅਡੋਲ ਦੇਸ਼ਭਗਤ, ਸੁ਼ੱਧ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀ ਤੇ ਨਿਧੜਕ ਸੰਗਰਾਮੀਆ ਸੀ। ਪਰ ਇਸ ਸਰਕਾਰੀ ਦਾਅਵੇ ਨੂੰ ਅੱਖਾਂ ਮੀਚ ਕੇ ਪਰਵਾਨ ਕਰ ਲੈਣ ਦੀ ਬਜਾਇ, ਇਸ ਨੂੰ ਇਤਿਹਾਸਕ ਸੱਚ ਦੀ ਰੋਸ਼ਨੀ ਵਿਚ ਪਰਖਣਾ ਜਰੂਰੀ ਹੈ। ਸੋ ਆਓ ਇਤਿਹਾਸਕ ਤੱਥਾਂ ਉਤੇ ਇਕ ਉਡਦੀ ਨਜ਼ਰ ਮਾਰੀਏ।
ਪਗੜੀ ਸੰਭਾਲ ਜੱਟਾ ਲਹਿਰ ਅਤੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ
1907 ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ ਇਕ ਤਕੜੀ ਕਿਸਾਨ ਲਹਿਰ ਉਠ ਖੜ੍ਹੀ ਹੋਈ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ‘ਪਗੜੀ ਸੰਭਾਲ ਜੱਟਾ‘ ਲਹਿਰ ਵਜੋਂ ਵੀ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਹਿਰ ਸਮੇਂ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫਤਾਰ ਕਰਕੇ ਬਰਮਾ ਅੰਦਰ ਮਾਂਡਲੇ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿਚ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ਸੀ। ਇਸ ਗੱਲ ਵਿਚ ਕੋਈ ਸ਼ੱਕ ਨਹੀਂ ਕਿ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੇ ਇਕ ਦੋ ਥਾਵਾਂ ‘ਤੇ ਕਿਸਾਨ ਇਕੱਠਾਂ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਿਤ ਕੀਤਾ ਸੀ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੱਥਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਕੁਝ ਲੋਕ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੂੰ ਇਸ ਲਹਿਰ ਦੇ ਨਾਇਕ ਵਜੋਂ ਪੇਸ਼ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪੈਂਦੇ ਹਨ। ਪਰ ਇਸ ਲਹਿਰ ਦੇ ਹਕੀਕੀ ਨਾਇਕ ਸ. ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ (ਚਾਚਾ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ) ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਲਕੁਲ ਵੱਖਰੇ ਹਨ। ਸ. ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸਵੈ-ਜੀਵਨੀ ਵਿਚ ਲਿਖਿਆ ਹੈ :
‘….ਰਾਵਲਪਿੰਡੀ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਵਿਚ ਜ਼ਮੀਨ ਦਾ ਮਾਲੀਆ ਬਹੁਤ ਵਧਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ। ਦੁਆਬ ਬਾਰੀ ਐਕਟ ਅਤੇ ਕਾਲੋਨਾਈਜੇਸ਼ਨ ਐਕਟ ਨੇ… ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ ਜੱਦੋਜਹਿਦ ਕਰਨ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਨੂੰ ਬਰਤਾਨਵੀ ਹਕੂਮਤ ਖਿਲਾਫ਼ ਮੁਹਿੰਮ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਮੌਕਾ ਮੁਹੱਈਆ ਕੀਤਾ। ਜਨਤਾ ਨੂੰ ਜਗਾਉਣ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਅੰਦਰ ਰਾਜਨੀਤਕ ਚੇਤਨਾ ਜਗਾ ਕੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਨੂੰ ਰੱਦ ਕਰਵਾਉਣਾ ਸੀ। ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਵੱਡੇ ਭਰਾ ਕਿਸ਼ਨ ਸਿੰਘ ਤੇ ਘਸੀਟਾ ਰਾਮ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚਾਰਾਂ ਬਾਰੇ ਜਾਣੂ ਕਰਾਇਆ….। ਮੇਰੇ ਭਰਾ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਅਤੇ ਹੋਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨੇਤਾਵਾਂ ਦੀ ਵੀ ਸਹਾਇਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ। ਮੈਨੂੰ ਇਸ ਵਿਚਾਰ ‘ਤੇ ਯਕੀਨ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਸਹਾਇਤਾ ਦੇਣਗੇ। ਫਿਰ ਸੋਚਿਆ ਘੱਟੋ ਘੱਟ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਨ ਵਿਚ ਤਾਂ ਹਰਜ਼ ਕੋਈ ਨਹੀਂ। ਮੇਰੇ ਭਰਾ ਕਿਸ਼ਨ ਸਿੰਘ ਨੇ ਲਾਲ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਦੀ ਜਿੰਮੇਵਾਰੀ ਲਈ ਅਤੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨਾਲ ਸੰਪਰਕ ਕਰਕੇ ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕੀਤੀ ਕਿ ਕਿਵੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਦੀਆ ਜੜ੍ਹਾਂ ਹਿਲਾਉਣ ਲਈ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਜਾਗਰਤ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇਗਾ। ਲਾਲ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬਣਤਰ ਨਾ ਸਮਝ ਸਕਿਆ। ਉਸ ਨੂੰ ਡਰ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ਨਾਲ ਮੁਸੀਬਤਾਂ ਵਧਣਗੀਆਂ ਅਤੇ ਸਾਰੇ ਹੀ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਨੇਤਾ ਜੇਲ੍ਹ ਭੇਜ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣਗੇ। ਉਹ ਇਸ ਨੂੰ ਕਾਹਲੀ ਦਾ ਕਦਮ ਮੰਨਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਮੈਨੂੰ ਗਰਮ ਮਿਜ਼ਾਜ ਵਿਅਕਤੀ।…. ਉਸ ਨੇ ਮੇਰੇ ਭਰਾ ਨੂੰ ਨਿਰਉਤਸ਼ਾਹ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ‘। (ਸਫ਼ੇ 40-41)
ਲਾਲਾ ‘ਬੁਜ਼ਦਿਲ’ ਹੈ-ਸ: ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ
ਸ. ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਯਕੀਨ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕਿ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਹਾਇਤਾ ਦੇਣਗੇ? ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਸ. ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸਵੈ ਜੀਵਨੀ ਵਿਚ ਸਪੱਸ਼ਟ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ। ਪਰ ਇਹ ਘੁੰਡੀ ਗੋਪਾਲ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਗੋਖ਼ਲੇ ਨੇ ਜ਼ਰੂਰ ਖੋਲ੍ਹ ਦਿੱਤੀ ਹੈ। ਉਸ ਨੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੀ ਮਾਂਡਲੇ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿਚੋਂ ਰਿਹਾਈ ਦੀ ਮੰਗ ਕਰਦੀ ਇਕ ਚਿੱਠੀ 10 ਜੂਨ 1907 ਨੂੰ ਵਾਇਸਰਾਏ ਦੇ ਪ੍ਰਾਈਵੇਟ ਸੈਕਟਰੀ ਨੂੰ ਭੇਜੀ ਸੀ ਜਿਸ ਵਿਚ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਸੀ ਕਿ, ‘ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੂੰ ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਬਰੈਕਟ (ਨੱਥੀ) ਕਰਨਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨਾਲ ਘੋਰ ਅਨਿਆਂ ਹੈ। ਜਦੋਂ ਪਿਛਲੀ ਫਰਵਰੀ ਵਿਚ ਮੈਂ ਲਾਹੌਰ ਆਇਆ ਸੀ ਤਾਂ ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਬੁਜ਼ਦਿਲ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰ ਪੱਖੀ ਕਹਿ ਕੇ ਨਿਖੇਧੀ ਕਰਨੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਸੀ…‘
ਜਿਸ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਸ. ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬੁਜ਼ਦਿਲ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰ ਪੱਖੀ ਸਮਝਦਾ ਸੀ, ਉਹ ਉਸ ਕੋਲੋਂ ਸਰਕਾਰ ਵਿਰੋਧੀ ਜੱਦੋਜਹਿਦ ਵਿਚ ਸਹਾਇਤਾ ਦੀ ਆਸ ਕਿਵੇਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ?
ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਬਾਰੇ ਇਸ ਸਮਝ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸ. ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਹੋਰੀਂ ਉਸ ਨੂੰ ਲਹਿਰ ਅੰਦਰ ਘਸੀਟਣ ਵਿਚ ਕਿਵੇਂ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਏ, ਇਹ ਇਕ ਦਿਲਚਸਪ ਕਹਾਣੀ ਹੈ। ਲਓ, ਸ. ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹੀ ਜਬਾਨੀ ਸੁਣੋ :
‘ਸਾਡੀ ਇਹ ਇੱਛਾ ਸੀ ਕਿ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਅਤੇ ਹੋਰ ਦੂਸਰੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨੇਤਾ (3 ਮਾਰਚ 1907 ਨੂੰ ਲਾਇਲਪੁਰ ਵਿਖੇ ਹੋਣ ਜਾ ਰਹੀ) ਮੀਟਿੰਗ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਣ, ਪ੍ਰੰਤੂ ਅਸੀਂ ਜਾਣਦੇ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦੇਣਗੇ, ਜਦੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਕਿ ਇਹ ਮੀਟਿੰਗ ਮੈਂ ਜਥੇਬੰਦ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਇਸ ਲਈ ਅਸੀਂ ਰਾਮ ਭਜ ਦੱਤ ਨੂੰ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੂੰ ਮਨਾਉਣ ਭੇਜਿਆ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਲਾਇਲਪੁਰ ਆਉਣ ਅਤੇ ਮੀਟਿੰਗ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਨ। ਲਾਹੌਰ ਤੱਕ ਲਾਲੇ ਨੇ ਅਤੇ ਮੈਂ ਇਕੋ ਹੀ ਗੱਡੀ ਵਿਚ ਸਫ਼ਰ ਕੀਤਾ ਪਰ ਮੈਂ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਧਿਆਨ ਰੱਖਿਆ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਪਤਾ ਨਾ ਲੱਗੇ। ਅਸੀਂ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕੀਤਾ ਸੀ ਕਿ ਲਾਇਲਪੁਰ ਸਟੇਸ਼ਨ ‘ਤੇ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦਾ ਉਤਸ਼ਾਹਪੂਰਨ ਨਿੱਘਾ ਸਵਾਗਤ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ….। ਉਸ ਨੂੰ ਹੱਥਾਂ ‘ਤੇ ਚੁੱਕ ਲਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਫੁੱਲਾਂ ਦੇ ਹਾਰਾਂ ਨਾਲ ਲੱਦ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਜਲੂਸ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਵਿਚ ਲਿਜਾਇਆ ਗਿਆ। ਉਸ ਦੀ ਗੱਡੀ ਨੂੰ ਬੈਲਾਂ ਦੀ ਬਜਾਏ ਬੰਦਿਆਂ ਵੱਲੋਂ ਖਿੱਚਿਆ ਗਿਆ… ਮੈਂ ਸਟੇਸ਼ਨ ਤੋਂ ਸਿੱਧਾ ਮੀਟਿੰਗ ਵਿਚ ਗਿਆ ਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕੀਤਾ। ਜਿਉਂ ਹੀ ਲਾਲਾ ਜੀ ਪਹੁੰਚੇ ਮੈਂ ਆਪਣਾ ਭਾਸ਼ਣ ਖਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਲਾਲਾ ਜੀ ਮੈਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਹੈਰਾਨ ਹੋ ਗਏ…….।
ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੇ ਮੀਟਿੰਗ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਨ ਵਿਚ ਪਹਿਲਾਂ ਝਿਜਕ ਦਿਖਾਈ। ਪ੍ਰੰਤੂ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਰੌਲਾ ਪਾਇਆ ਕਿ ਉਹ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਸੁਣਨ ਲਈ ਉਤਸੁਕ ਹਨ। ਅਸਲ ਵਿਚ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਬੋਲਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਕਿਉਂਕਿ ਮੈਂ ਰਾਮ ਭਜ ਦੱਤ ਨੂੰ ਅੱਖ ਦਾ ਇਸ਼ਾਰਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਉਹ ਉਠ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋਇਆ ਤੇ ਉਸ ਨੇ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਕਿ ਹੁਣ ਲਾਲਾ ਜੀ ਮੀਟਿੰਗ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਨਗੇ। ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ‘ਤੇ ਕਾਬੂ ਰੱਖਿਆ ਪ੍ਰੰਤੂ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਉਤਸ਼ਾਹ ਦੇਖ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਭਾਸ਼ਣ ਕੀਤਾ….।‘
ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਲ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੂੰ 9 ਮਈ 1907 ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫਤਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਸ. ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 2 ਜੂਨ ਨੂੰ। ਦੋਹਾਂ ਨੂੰ ਬਰਮਾ ਦੀ ਮਾਂਡਲੇ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿਚ ਡੱਕ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ। ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੇ ਰਿਹਾਈ ਲਈ ਕੀ ਕੁਝ ਕੀਤਾ, ਉਹ ਇਸ ਲਿਖਤ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਛਪੀਆਂ ਉਸ ਦੀਆਂ ਦੋ ਚਿੱਠੀਆਂ ਤੋਂ ਸਾਫ਼ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਨਕਲਾਬੀ ਹਲਕੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਚਿੱਠੀਆਂ ਨੂੰ ਲਹਿਰ ਨਾਲ ‘ਗ਼ੱਦਾਰੀ’ ਅਤੇ ‘ਮੁਆਫ਼ੀਨਾਮੇ’ ਦਾ ਨਾਂ ਦੇਂਦੇ ਸਨ।
(ਦੇਖੋ ੰਅਟੇਅ ੰ ੍ਰਅ,ਿ ਫੁਨਜਅਬ ੍ਹਿੲਰੋਚਿ ਠਰਅਦਟਿੋਿਨ, ਪ।22)
ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਅਤੇ ਸ. ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 11 ਨਵੰਬਰ 1907 ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਸ. ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸਵੈ ਜੀਵਨੀ ਵਿਚ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕੀਤਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਰਿਹਾਈ ਹਾਸਲ ਕਰਨ ਲਈ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਵਾਲੇ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕੀਤੇ।
ਗ਼ਦਰ ਪਾਰਟੀ ਅਤੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ
ਭਾਰਤੀ ਜਨਤਾ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਆਗੂ ਲਾਲ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਅਡਵਾਨੀ ਵਲੋਂ ਲਿਖੀ ਬਹੁ ਚਰਚਿਤ ਸਵੈ ਜੀਵਨੀਨੁਮਾ ਕਿਤਾਬ ‘ਮਾਈ ਕੰਟਰੀ, ਮਾਈ ਲਾਈਫ਼’, (ਜਿਹੜੀ ਸੰਨ 2008 ਵਿੱਚ ਛਪੀ) ਵਿੱਚ ਉਸ ਨੇ ਗ਼ਦਰ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰਦਿਆਂ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੂੰ ਇਸ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਆਗੂ ਦੱਸਿਆ ਸੀ। ਲਾਲ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਅਡਵਾਨੀ ਦਾ ਇਹ ਦਾਅਵਾ ਹਕੀਕਤਾਂ ਤੋਂ ਕਿੰਨੀ ਦੂਰ ਹੈ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਗ਼ਦਰੀ ਬਾਬਿਆਂ ਦੀਆਂ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਬਾਰੇ ਅੱਗੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਰਾਵਾਂ ਤੋਂ ਪਤਾ ਚੱਲ ਜਾਵੇਗਾ। ਸ਼ੁਰੂ ਵਿਚ ਅਸੀਂ ਪਹਿਲੀ ਸੰਸਾਰ ਜੰਗ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਣ ਤੋਂ ਅਗਲੇ ਹੀ ਦਿਨ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਵੱਲੋਂ ਰਤਨ ਟਾਟਾ, ਮੁਹੰਮਦ ਅਲੀ ਜਿਨਾਹ ਵਰਗੇ 54 ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨਾਲ ਰਲ ਕੇ ਜਾਰੀ ਕੀਤੇ ਉਸ ਸਾਂਝੇ ਬਿਆਨ ਕੇ ਕੁਝ ਅੰਸ਼ ਪੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਾਂ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਲਾਲੇ ਹੋਰਾਂ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਅੰਦਰ ਸ਼ਾਂਤੀ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਦੀ ਅਪੀਲ ਕੀਤੀ ਸੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਮਾਤਮਾ ਤੋਂ ਬਰਤਾਨਵੀ ਸਲਤਨਤ ਦੀ ਜਿੱਤ ਲਈ ਆਸ਼ੀਰਵਾਦ ਮੰਗੀ ਸੀ, ਜਦੋਂ ਕਿ ਗ਼ਦਰੀ ਬਾਬਿਆਂ ਨੇ ਸੁਨਹਿਰੀ ਮੌਕਾ ਹੱਥ ਆਇਆ ਸਮਝ ਕੇ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਘੋਲ ਦਾ ਬਿਗਲ ਵਜਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਅਤੇ ਸਿਰਾਂ ‘ਤੇ ਕੱਫ਼ਣ ਬੰਨ੍ਹ ਕੇ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਚਾਲੇ ਪਾ ਦਿੱਤੇ ਸਨ।
ਬਿਆਨ ਵਿਚ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਸੀ, ‘ਅਸੀਂ, ਮਹਾਮਯ ਮਹਾਰਾਜ ਜੀ ਦੀ ਭਾਰਤੀ ਪਰਜਾ ਜੋ ਹੁਣ ਅੰਤਰਰਾਸ਼ਟਰੀ ਮਹਾਂਨਗਰ ਦੇ ਵਾਸੀ ਹਾਂ ਇਹ ਦੱਸਣਾ ਆਪਣਾ ਕਰਤੱਵ ਤੇ ਫਰਜ਼ ਸਮਝਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਜੋ ਸਾਡਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ਼ ਹੈ ਉਹੀ ਸਾਰੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਵਿਆਪਕ ਭਾਵਨਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਹੈ ਜੰਗ ਵਿਚ ਬਰਤਾਨਵੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਜਿੱਤ ਦੀ ਸੁਹਿਰਦ ਤਾਂਘ। ਇਸ ਤੋਂ ਅਗਾਂਹ ਸਾਨੂੰ ਇਸ ਵਿਚ ਰਤੀ ਭਰ ਵੀ ਸ਼ੱਕ ਨਹੀਂ ਕਿ ਪਹਿਲੇ ਮੌਕਿਆਂ ਵਾਂਗ ਹੀ, ਜਦ ਬਰਤਾਨਵੀ ਸੈਨਾਵਾਂ ਸਲਤਨਤ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਵਿਚ ਜੁਟੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ, ਹੁਣ ਵੀ ਭਾਰਤ ਦੇ ਮਹਾਰਾਜੇ ਤੇ ਲੋਕ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਸਭ ਵਸੀਲੇ ਮਹਾਰਾਜ ਅਧਿਰਾਜ ਦੀ ਸੇਵਾ ਵਿਚ ਹਾਜ਼ਰ ਕਰਨ ਲਈ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਅਨੁਸਾਰ ਪੂਰਾ ਤਾਣ ਲਾ ਦੇਣਗੇ…..ਅਮਨ ਦੇ ਸਮਿਆਂ ਵਿਚ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਅੰਦਰੂਨੀ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸਵਾਲਾਂ ਬਾਰੇ ਕੋਈ ਵੀ ਮਤਭੇਦ ਪਿਆ ਹੋਵੇ ਪਰ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਦੁਸ਼ਮਣ ਦੇ ਰੂ-ਬ-ਰੂ ਭਾਰਤੀ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਸ਼ਾਹੀ ਤਖਤ ਪ੍ਰਤੀ ਸ਼ਰਧਾ ਅੰਦਰੂਨੀ ਸ਼ਾਂਤੀ ਤੇ ਤਾਲਮੇਲ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਲਈ ਅਜਿਹੇ ਰੰਗ ਲਿਆਏਗੀ ਕਿ ਸਲਤਨਤ ਦੀ ਛੇਤੀ ਤੋਂ ਛੇਤੀ ਜਿੱਤ ਨੂੰ ਯਕੀਨੀ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਪੂਰੇ ਤਨ ਮਨ ਨਾਲ ਬਰਤਾਨਵੀ ਕੌਮ ਨਾਲ ਇਕਮੁੱਠਤਾ ਦੀ ਸਿਰਜਣਾ ਹੋ ਜਾਵੇਗੀ।‘ ਸਾਂਝੇ ਬਿਆਨ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਬਰਤਾਨਵੀ ਸਲਤਨਤ ਦੀ ਜਿੱਤ ਲਈ ਪ੍ਰਮਾਤਮਾ ਤੋਂ ਆਸ਼ੀਰਵਾਦ ਮੰਗੀ ਗਈ ਸੀ।
ਜਦੋਂ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਬਰਤਾਨਵੀ ਸਲਤਨਤ ਦੀ ਜਿੱਤ ਲਈ ਪ੍ਰਮਾਤਮਾ ਤੋਂ ਆਸ਼ੀਰਵਾਦ ਮੰਗ ਰਿਹਾ ਸੀ, ਉਸ ਵੇਲੇ ਗ਼ਦਰੀ ਬਾਬੇ ਇਸ ਸਲਤਨਤ ਨੂੰ ਤਬਾਹ ਕਰ ਸੁੱਟਣ ਲਈ ਥਾਂ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਬਗਾਵਤਾਂ ਖੜ੍ਹੀਆਂ ਕਰਨ ਵਿਚ ਜੁੱਟ ਗਏ ਸਨ।
ਆਓ, ਹੁਣ ਵੱਖ ਵੱਖ ਗ਼ਦਰੀ ਬਾਬਿਆਂ ਦੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਬਾਰੇ ਵਿਚਾਰ ਜਾਣੀਏ।
ਲਾਲਾ ਹਰਦਿਆਲ ਤੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰਤਾਰ ਸਿੰਘ ਸਰਾਭਾ
ਲਾਲਾ ਹਰਦਿਆਲ ਤੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰਤਾਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਅੰਦਰ ਸਿਆਸੀ ਚੇਤਨਾ ਫੈਲਾਉਣ ਅਤੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਲਈ ਬਗਾਵਤ ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਵਜੋਂ ਇਕ ਹਫ਼ਤਾਵਾਰ ਪੇਪਰ ‘ਗਦਰ‘ ਕੱਢਿਆ ਸੀ। ਇਸ ਪਰਚੇ ਦੇ 23 ਦਸੰਬਰ 1913 ਦੇ ਅੰਕ ਵਿਚ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੂੰ ‘ਸਰਕਾਰੀ ਟੱਟੂ‘ ਕਰਾਰ ਦਿਤਾ ਗਿਆ ਸੀ। ਜਿਹੜੇ ਪਾਠਕ ਵੀਰ ਇਸ ਲਿਖਤ ਨੂੰ ਆਪ ਪੜ੍ਹਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ਉਹ ਪੰਜਾਬੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਪਟਿਆਲਾ ਵੱਲੋਂ ਛਾਪੀ ਗਈ ਪੁਸਤਕ ‘ਗਦਰ ਲਹਿਰ ਦੀ ਵਾਰਤਕ‘ ਦੇ ਸਫ਼ਾ 192 ਤੋਂ ਪੜ੍ਹ ਸਕਦੇ ਹਨ।
ਭਾਈ ਸੰਤੋਖ ਸਿੰਘ
ਗਦਰ ਲਹਿਰ ਦੇ ਅਨਮੋਲ ਹੀਰੇ ਭਾਈ ਸੰਤੋਖ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਦੋ ਲਿਖਤਾਂ ਅੰਦਰ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦਾ ਜਿਕਰ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਇਕ ਜਦੋਂ ਉਹਨਾਂ ਸ਼ਹੀਦ ਭਾਈ ਬਲਵੰਤ ਸਿੰਘ (ਖੁਰਦਪੁਰ) ਨੂੰ ਸਰਧਾਂਜਲੀ ਭੇਟ ਕਰਦਿਆਂ ਇਕ ਲੇਖ ਲਿਖਿਆ ਸੀ ਅਤੇ ਦੂਜਾ ਜਦੋਂ 1925 ਵਿਚ ਕਾਨਪੁਰ ਵਿਖੇ ਹੋਏ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਸੰਮੇਲਨ ਦੀ ਰਿਪੋਰਟ ਲਿਖੀ ਸੀ। ਇਸ ਵਿਚ ਬੋਲਦਿਆਂ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੇ ਗਦਰੀ ਬਾਬਿਆਂ ਦੀਆਂ ਕੁਰਬਾਨੀਆਂ ਨੂੰ ਤੁੱਛ ਬਣਾ ਕੇ ਪੇਸ਼ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਸੀ। ਭਾਈ ਜੀ ਲਿਖਦੇ ਹਨ, ‘ਇਥੇ ਆਣ ਕੇ ਲਾਲਾ ਜੀ ਆਪਣਾ ਸੁਭਾਉ ਜ਼ਾਹਰ ਕਰਨ ਤੋਂ ਨਾ ਰੁਕ ਸਕੇ ਅਤੇ ਕਹਿਣ ਲੱਗੇ ਕਿ ਕੌਮ ਦੀ ਖਾਤਰ ਜੀਵਨ ਬਤੀਤ ਕਰਨ ਨਾਲੋਂ ਕੌਮ ਦੀ ਖਾਤਰ ਮੌਤ ਕਬੂਲ ਕਰਨੀ ਸੌਖੀ ਹੈ। ਬਿਰਧ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਇਕ ਪਾਸੇ ਦਾ (ਭਾਵ ਜਿਉਣ ਦਾ) ਹੀ ਤਜਰਬਾ ਹੈ। ਦੂਸਰੇ ਪਾਸੇ ਦਾ (ਭਾਵ ਦੇਸ਼ ਲਈ ਜਾਨ ਕੁਰਬਾਨ ਕਰ ਦੇਣ ਦਾ) ਤਜਰਬਾ ਕਰਨ ਤੋਂ ਅਜੇ ਤੱਕ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੇ ਪਰਹੇਜ਼ ਹੀ ਕੀਤਾ ਹੈ।‘ (ਕਿਰਤੀ ਫਰਵਰੀ 1926, ਨੋਟ: ਭਾਵ ਸਪਸ਼ਟ ਕਰਨ ਲਈ ਬਰੈਕਟਾਂ ਵਿਚਲੇ ਸ਼ਬਦ ਮੇਰੇ ਵੱਲੋਂ ਸ਼ਾਮਲ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਨ-ਰਾਹੀ)
ਸ਼ਹੀਦ ਭਾਈ ਬਲਵੰਤ ਸਿੰਘ (ਖੁਰਦਪੁਰ) ਨੂੰ ਸਰਧਾਂਜਲੀ ਭੇਟ ਕਰਦੇ ਆਪਣੇ ਲੇਖ ਵਿਚ ਭਾਈ ਸੰਤੋਖ ਸਿੰਘ ਨੇ ਲਿਖਿਆ ਸੀ, ‘ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀਆਂ ਦੀ ਮੰਗ ਸੀ ਕਿ ਘਟ ਤੋਂ ਘਟ ਜੋ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀ ਕੈਨੇਡਾ ਵਿਚ ਆ ਚੁੱਕੇ ਹਨ ਉਹ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਵਾਪਸ ਜਾ ਕੇ ਮੁੜ ਕੈਨੇਡਾ ਆ ਸਕਣ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਮੰਗਵਾ ਲਿਆ ਸਕਣ… ਆਖਰ ਦੋ ਸਾਲ ਹਰ ਇਕ ਸੰਭਵ ਅਤੇ ਯੋਗ ਵਸੀਲਾ ਆਪਣੇ ਸਵਾਲ ਨੂੰ ਹੱਲ ਕਰਨ ਲਈ ਵਰਤ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਨਿਸਫਲ ਹੁੰਦਾ ਦੇਖ ਕੇ ਕੈਨੇਡਾ ਨਿਵਾਸੀ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀਆਂ ਨੇ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਕਿ ਇਸ ਸਵਾਲ ਨੂੰ ਨਜਿੱਠਣ ਵਾਸਤੇ ਇਕ ਆਖਰੀ ਕੰਮ ਹੋਰ ਭੀ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ। ਉਹ ਇਹ ਕਿ ਕੈਨੇਡਾ ਨਿਵਾਸੀ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀਆਂ ਦਾ ਸਵਾਲ ਇੰਗਲਿਸ਼ਤਾਨ ਦੀ ਗੌਰਮੈਂਟ ਅਤੇ ਇੰਗਲਿਸ਼ਤਾਨ ਦੀ ਪਬਲਿਕ ਅਰ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਦੀ ਗੌਰਮਿੰਟ ਅਤੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਦੀ ਪਬਲਿਕ ਪਾਸ ਇਕ ਵੇਰੀ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ। ਇਸ ਮਹਾਨ ਕੰਮ ਲਈ 1913 ਵਿਚ ਇਕ ਡੈਪੂਟੇਸ਼ਨ ਇੰਗਲਸਤਾਨ ਅਤੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਭੇਜਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਸ ਡੈਪੂਟੇਸ਼ਨ ਵਿਚ ਫਿਰ ਸੇਵਾ ਭਾਈ ਸਾਹਿਬ ਭਾਈ ਬਲਵੰਤ ਨੂੰ ਦਿਤੀ ਗਈ।….. ਗੌਰਮਿੰਟ ਦੇ ਅਫਸਰਾਂ ਵੱਲੋਂ ਜੋ ਨਿਰਾਸ਼ਤਾ ਹੋਣੀ ਸੀ ਉਹ ਤਾਂ ਹੋਈ ਪਰ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਕੌਮੀ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਵੀ ਚੰਗੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿਤੀ। ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਜਿਹੇ ਭੱਦਰ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਨੇ ਜੋ ਇਹ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਅਸੀਂ ਕਿਵੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਆਗੂ ਅਖਵਾ ਸਕੀਏ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਪਾਸੋਂ ਨਾ ਕੇਵਲ ਸਹੈਤਾ ਦੇਣ ਤੋਂ ਹੀ ਕੋਰਾ ਜਵਾਬ ਮਿਲਿਆ ਸਗੋਂ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਕਮੀਨੀ ਸ਼ਰਤ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਕੋਈ ਸਿੱਖ ਹਿਰਦਾ ਮੰਨਣਾ ਤਾਂ ਇਕ ਪਾਸੇ ਰਿਹਾ ਸੁਣ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ। ਇਹ ਸ਼ਰਤ ਲਾਉਣ ਵੇਲੇ ਆਪ ਨੇ ਇਹ ਕਹਿ ਦਿਤਾ ਕਿ ਇਹ ਮਾਮਲਾ ਕੇਵਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਹੈ ਇਸ ਵਿਚ ਅਸੀਂ ਸਹੈਤਾ ਤਦ ਕਰਾਂਗੇ ਜੇਕਰ ਸਾਡੀ ਫਲਾਨੀ (ਕਮੀਨੀ) ਸ਼ਰਤ ਪੂਰੀ ਕਰੋਗੇ। (ਕਿਰਤੀ ਅਕਤੂਬਰ 1926)
ਬਾਬਾ ਸੋਹਣ ਸਿੰਘ ਭਕਨਾ
ਬਾਬਾ ਸੋਹਨ ਸਿੰਘ ਭਕਨੇ ਨੇ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿਚ ਹੀ ਆਪਣੀ ਸਵੈ-ਜੀਵਨੀ ‘ਮੇਰੀ ਰਾਮ-ਕਹਾਣੀ‘ ਲਿਖ ਲਈ ਸੀ ਜੋ 1930 ਵਿਚ ਮਹੀਨੇਵਾਰ ਕਿਰਤੀ ਅਤੇ ਰੋਜਾਨਾ ‘ਅਕਾਲੀ ਤੇ ਪ੍ਰਦੇਸੀ‘ ਵਿਚ ਛਪੀ ਸੀ। 30 ਮਾਰਚ 1930 ਦੇ ‘ਅਕਾਲੀ ਤੇ ਪ੍ਰਦੇਸੀ‘ ਵਿਚ ਛਪੀ ਕਿਸ਼ਤ ਵਿਚੋਂ ਸਪਸ਼ਟ ਸੰਕੇਤ ਮਿਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ‘ਦਾੜ੍ਹੇ ਕੇਸਾਂ ਤੇ ਦਸਤਾਰਿਆਂ’ ਵਾਲੇ ਸਿੱਖ ਕਾਮਿਆਂ ਪ੍ਰਤੀ ਕਿੰਨੇ ਤੁਅੱਸਬੀ ਵਿਚਾਰ ਰਖਦਾ ਸੀ। ਬਾਬਾ ਜੀ ਨੇ ਲਿਖਿਆ ਸੀ:
‘ਵਪਾਰ ਤੇ ਵਾਹੀ ਤੋਂ ਛੁਟ ਹੁਣ ਸਾਡੀ ਮਜ਼ੂਰੀ ਵੀ ਅਮਰੀਕਣਾਂ ਦੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਦਾ ਕੰਡਾ ਬਣ ਗਈ। ਉਥੋਂ ਦਾ ਮਜ਼ੂਰ ਧੜਾ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀਆਂ ਨੂੰ ਅਮਰੀਕਾ ਵਿਚੋਂ ਕੱਢਣ ਲਈ ਹਥ ਪੈਰ ਧੋ ਕੇ ਪਿਛੇ ਪੈ ਗਿਆ। ਅਖੀਰ ਵਿਚ ਦੋ ਲੱਕੜੀ ਦੇ ਕਾਰਖਾਨਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਮਜ਼ਦੂਰੀ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਹਿੰਦੀਆਂ ਨੂੰ ਰਾਤ ਸਮੇਂ ਮਾਰ ਮਾਰ ਕੇ ਕੱਢ ਦਿਤਾ। ਸ਼ਾਇਦ ਪਾਠਕ ਇਹ ਖਿਆਲ ਕਰਨਗੇ ਕਿ ਇਹਨਾ ਕਾਰਖਾਨਿਆਂ ਵਿਚ ਦਸਤਾਰਿਆਂ ਵਾਲੇ ਪੰਜਾਬੀ ਸਿੱਖ ਹੋਣਗੇ ਜਿਹਨਾਂ ਨੂੰ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਆਦਿਕਾਂ ਦੇ ਖਿਆਲ ਅਨੁਸਾਰ, ਅਮਰੀਕਨ ਇਸ ਵਾਸਤੇ ਹੋਛੀ ਨਿਗਾਹ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਸਨ ਦੇਖਦੇ ਕਿ ਦਾੜ੍ਹੇ ਕੇਸ ਤੇ ਦਸਤਾਰਿਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ (ਉਹ) ਮੈਲੇ-ਕੁਚੇਲੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ, ਦੂਜੇ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਚਾਲ ਚਲਨ ਵੀ ਦਸਤਾਰਿਆਂ (ਪਗੜੀਆਂ) ਵਾਲੇ ਨਹੀਂ ਸਨ ਸਗੋਂ ਟੋਪੀਆਂ ਵਾਲੇ ਜੈਂਟਲਮੈਨ ਹਿੰਦੀ ਸਨ ਜਿਹਨਾਂ ਦੀ ਇਹ ਦੁਰਗਤ ਹੋਈ।‘
ਬਾਬਾ ਗੁਰਦਿੱਤ ਸਿੰਘ ਕਾਮਾਗਾਟਾ-ਮਾਰੂ
ਬੱਜ ਬੱਜ ਘਾਟ ਦੇ ਸਾਕੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਬਾਬਾ ਜੀ ਲੁਕ-ਛਿਪ ਕੇ ਜੀਵਨ ਬਿਤਾਉਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਗਏ। ਇਸ ਸਮੇਂ ਇਕ ਵਾਰ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤਰਾਏ ਨਾਲ ਮੇਲ ਹੋ ਗਿਆ। ਪਰ ਲਾਲਾ ਜੀ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਕਿਸੇ ਕਿਸਮ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰਨ ਤੋਂ ਟਾਲ-ਮਟੋਲਾ ਕਰ ਗਏ। ਇਸ ਬੇਸੁਆਦੀ ਮੁਲਾਕਾਤ ਬਾਰੇ ਬਾਬਾ ਜੀ ਤੋਂ ਸੁਣੋ:
ਇਕ ਵਾਰ ਮੈਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਗਿਆ ਕਿ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਬੰਬਈ ਆਇਆ ਹੋਇਆ ਹੈ…. ਮੈਂ ਉਸ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਗਿਆ… (ਦੋ ਘੰਟੇ ਦੀ ਉਡੀਕ ਬਾਅਦ) ਮੈਂ ਇਕ ਚਿੱਟ ਲਿਖੀ, ‘ਮੈਂ ਕਾਮਾਗਾਟਾ ਮਾਰੂ ਵਾਲਾ ਗੁਰਦਿੱਤ ਸਿੰਘ ਹਾਂ‘ ਅਤੇ ਗੇਟ-ਕੀਪਰ ਨੂੰ ਦੇ ਦਿਤੀ ਅਤੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਦੇ ਦਿਓ। ਮੈਂ ਗੇਟ ਕੀਪਰ ਦੇ ਇਕ ਇਕ ਕਦਮ ਨੂੰ ਇਹ ਜਾਨਣ ਲਈ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਜਦੋਂ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਚਿੱਟ ਦਿਤੀ ਜਾਵੇਗੀ ਤਾਂ ਉਸ ਦਾ ਕੀ ਪ੍ਰਤੀਕਰਮ ਹੋਵੇਗਾ। ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਜਦੋਂ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਚਿੱਟ ਫੜਾਈ ਗਈ ਤਾਂ ਉਸ ਨੇ ਇਹ ਸੋਚਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਕਿ ਗੁਰਦਿੱਤ ਸਿੰਘ ਤਾਂ ਮਰ ਚੁੱਕਾ, ਇਸ ਨੂੰ ਪਾਸੇ ਰੱਖ ਦਿਤਾ। ਜਿਉਂ ਹੀ ਮੈਂ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਚਿੱਟ ਤਾਂ ਪਾਸੇ ਸੁੱਟ ਦਿਤੀ ਗਈ ਹੈ, ਮੈਂ ਭੱਜ ਕੇ ਅੰਦਰ ਚਲਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਚੁੱਕ ਲਿਆ ਤਾਂ ਕਿ ਹੋਰ ਕਿਸੇ ਨੂੰ ਪਤਾ ਨਾ ਲਗ ਸਕੇ ਕਿ ਮੈਂ ਵੀ ਉਥੇ ਪਹੁੰਚਿਆ ਹੋਇਆ ਹਾਂ। ਜਦੋਂ ਲਾਲਾ ਜੀ ਗੇਟ ਵਿਚੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲੇ ਮੈਂ ਉਸ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਬਾਂਹ ਫੜ ਕੇ ਕਿਹਾ, ‘ਮੈਂ ਤੁਹਾਡੇ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕਰਨ ਲਈ ਉਡੀਕਦਾ ਉਡੀਕਦਾ ਥੱਕ ਗਿਆ ਹਾਂ, ਮਿਹਰਬਾਨੀ ਕਰਕੇ ਮੈਨੂੰ ਗੱਲ ਕਰਨ ਲਈ ਸਮਾਂ ਦਿਓ। ਮੈਂ ਉਸ ਨੂੰ ਚਿੱਟ ਦਿਖਾਈ ਕਿ ਜੇ ਇਹ ਪੁਲਿਸ ਦੇ ਹੱਥ ਲਗ ਜਾਂਦੀ ਤਾਂ ਕੀ ਹੁੰਦਾ। ਇਸ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਵੀ ਉਸ ਨੇ ਮੇਰੇ ਮਾਮਲੇ ਵੱਲ ਕੋਈ ਬਹੁਤਾ ਧਿਆਨ ਨਾ ਦਿਤਾ। ਉਸ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਕਿਹਾ ਲਾਹੌਰ ਜਾ ਕੇ ਮਾਸਟਰ ਸੁੰਦਰ ਸਿੰਘ ਲਾਇਲਪੁਰੀ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕਰ… ਜੇ ਉਹ ਕਹੇਗਾ ਤਾਂ ਹੀ ਮੈਂ ਤੇਰੇ ਕੇਸ ਨੂੰ ਹੱਥ ਲਵਾਂਗਾ।‘
(ੜੋੇਅਗੲ ੋਾ ਖਅਮਅਗਅਟਅਮਅਰੁ, ਪਪ। 198-99)
ਪ੍ਰੋ. ਬਰਕਤ ਉਲ੍ਹਾ
ਗਦਰ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਆਗੂ ਪ੍ਰੋ. ਬਰਕਤ ਉਲ੍ਹਾ ਨੂੰ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨਫ਼ਰਤ ਨਾਲ ‘ਬਗਲੋਲ’ ਕਹਿੰਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਜਿਸ ਦਾ ਭਾਵ ਸੀ ਮੂਰਖ।‘ ਲਾਲੇ ਨੂੰ ਰੰਜ਼ਸ਼ ਸੀ ਕਿ ਬਰਕਤ ਉਲ੍ਹਾ ‘ਮੈਨੂੰ ਬੁਜ਼ਦਿਲ ਕਹਿੰਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸ ਨੇ ਮੇਰੇ ਨਾਲ ਕੋਈ ਵੀ ਭੇਦ ਸਾਂਝਾ ਕਰਨ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿਤਾ ਸੀ‘। ਇਹ ਗੱਲ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੀ ਕਿਤਾਬ ‘ਸਟੋਰੀ ਆਫ਼ ਮਾਈ ਲਾਈਫ‘ ਦੇ ਸਫ਼ਾ 199 ‘ਤੇ ਦਰਜ ਹੈ।
ਭਾਈ ਪਰਮਾਨੰਦ ਲਾਹੌਰ
ਭਾਈ ਪਰਮਾਨੰਦ ਲਾਹੌਰ ਨੂੰ ਗਦਰੀ ਬਾਬਿਆਂ ਨਾਲ ਫਾਂਸੀ ਦਾ ਹਕਮ ਹੋਇਆ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਉਮਰ ਕੈਦ ਵਿਚ ਬਦਲ ਦਿਤਾ ਗਿਆ। ਭਾਈ ਜੀ ਨੇ ਰਿਹਾਅ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ 22 ਫਰਵਰੀ 1928 ਦੇ ਆਪਣੇ ਪਰਚੇ ‘ਹਿੰਦੂ‘ ਵਿਚ ਲਿਖਿਆ ਸੀ ਕਿ ਅਮਰੀਕਾ ਨਿਵਾਸੀ ਹਿੰਦੀ ਦੇਸ਼ ਭਗਤਾਂ ਨੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੂੰ- ਜਦੋਂ ਉਹ ਅਮਰੀਕਾ ਗਏ ਹੋਏ ਸਨ ਤੇ ਭਾਈ ਜੀ ਅੰਡੇਮਾਨ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿਚ ਕੈਦ ਸਨ- ਭਾਈ ਜੀ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ 11000 ਰੁਪਏ ਭੇਜੇ ਸਨ ਜੋ ਪਰਿਵਾਰ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਮਿਲੇ।
ਬਾਬਾ ਗੁਰਮੁੱਖ ਸਿੰਘ ਲਲਤੋਂ
ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਉਘੇ ਨਾਵਲਕਾਰ ਸ.ਜਸਵੰਤ ਸਿੰਘ ਕੰਵਲ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ‘ਪੁੰਨਿਆ ਦਾ ਚਾਨਣ‘ ਦੇ ਸਫ਼ਾ 23 ‘ਤੇ ਇਕ ਘਟਨਾ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਰਦੇ ਹਨ :
‘ਪਿੰਡ ਵਿਚ ਇਕ ਦਿਨ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਕਾਨਫਰੰਸ ਆ ਗਈ। (ਗ਼ਦਰੀ) ਬਾਬਾ ਗੁਰਮੁੱਖ ਸਿੰਘ ਮੇਰੇ ਘਰ ਹੀ ਮੇਰੇ ਦੁਆਲੇ ਖੂੰਡਾ ਚੁੱਕ ਖਲੋਤਾ। ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਸੁਤੰਤਰ ਤੇ (ਅਵਤਾਰ ਸਿੰਘ) ਮਲਹੋਤਰਾ ਸਾਡਾ ਤਮਾਸ਼ਾ ਵੇਖਦੇ ਮਿੰਨਾ ਮਿੰਨਾ ਮੁਸਕਾਈ ਜਾ ਰਹੇ ਸਨ। ਬਾਬਾ ਮਿਲਦੇ ਸਾਰ ਹੀ ਚੜ੍ਹ ਪਿਆ।
‘ਓਏ ਕੰਵਲਾ! ਖੋਟੇ ਲਾਲੇ ਦਿਆ ਝੋਲੀਚੁੱਕਾ! ਤੈਨੂੰ ਯਾਦਗਾਰਾਂ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਫਾਂਸੀ ਚੜ੍ਹਨ ਵਾਲੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਨਾ ਦਿਸੇ? ਗ਼ਦਰ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਫੰਡ ਹਜ਼ਮ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਲਾਲਾ ਅਸਮਾਨੇ ਚਾੜ੍ਹ ਛੱਡਿਆ?‘
ਮੈਂ ਹੀ ਨਹੀਂ, ਸਾਰਾ ਹਿੰਦੋਸਤਤਾਨ ਬਾਬਾ ਗੁਰਮੁਖ ਸਿੰਘ ਦੀ ਬੱਤੀ ਵਰ੍ਹੇ ਕੱਟੀ ਸਖ਼ਤ ਜੇਲ੍ਹ ਦਾ ਸਤਿਕਾਰ ਕਰਦਾ ਸੀ। ਮੈਂ ਬਾਬਾ ਜੀ ਦੇ ਸਖ਼ਤ ਖਿੰਗਰ ਸੁਭਾਅ ਨੂੰ ਸਤਿਕਾਰਤ ਮਖਣੀ ਲਾਇਆ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਲਾਲੇ ਦਾ ਨਾਂ ਵਰਤਣ ‘ਤੇ ਮੈਨੂੰ ਬਾਬੇ ਦੇ ਔਖੇ ਹੋਣ ਦਾ ਪਹਿਲੋਂ ਹੀ ਪਤਾ ਸੀ। ਇਸ ਗੱਲ ‘ਤੇ ਇਕ ਵਾਰ ਜਲੰਧਰ ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਯਾਦਗਾਰ ਹਾਲ ਵਿਚ ਵੀ ਉਹ ਮੇਰੇ ਗਲ਼ ਪਿਆ ਸੀ। ‘ਮੈਂ ਨਿਮਰਤਾ ਨਾਲ ਬੇਨਤੀ ਕੀਤੀ, ‘ਬਾਬਾ ਜੀ…ਲਾਲੇ ਦੇ ਨਾਂਅ ਨਾਲ ਸਰਕਾਰੀ ਮੱਝ ਪਸਮਦੀ ਸੀ, ਅਸਾਂ ਚਾਟ ਪਾ ਕੇ ਚੋ ਲਈ ; ਕੀ ਬੁਰਾ ਕੀਤਾ? ਅਸਾਂ ਕਾਲਜ ਤੱਕ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਖੜ੍ਹੀਆਂ ਕਰ ਲਈਆਂ ; ਕੀ ਮਾੜਾ ਕੀਤਾ ?…. ਗਾਂਧੀ ਤੁਹਾਡੇ ਬਹੁਤਿਆਂ ਸਿਆਣਿਆਂ ਨਾਲ ਕਿਵੇਂ ਠੱਗੀ ਮਾਰ ਗਿਆ? ਜੇਲ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਖਤ ਕੁੱਟ ਤੁਸਾਂ ਖਾਧੀ ; ਚੂਰੀ ਖਰੀ ਬਾਹਮਣ ਤੋਤੇ ਮੁਫ਼ਤ ਵਿਚ ਹੀ ਖਾ ਗਏ‘, ਮੈਂ ਬਾਬੇ ਦਾ ਸਖਤ ਰਵੱਈਆ ਤਾੜ ਗਿਆ ਸੀ, ਜੇ ਬਹੁਤਾ ਨਰਮ ਨਾ ਪਿਆ ਆਪਣੇ ਘਰ ਵਿਚ ਹੀ ਬਾਬੇ ਤੋਂ ਕੁੱਟ ਖਾਵਾਂਗਾ।
‘ਹੁਣ ਬੱਚੂ ਤੂੰ ਸਾਨੂੰ ਮੱਤਾਂ ਦੇਵੇਂਗਾ।‘ ਬਾਬੇ ਦਾ ਢਲਦਾ ਗੁੱਸਾ ਜਾਚ ਕੇ ਮੈਂ ਸ਼ੁਕਰ ਮਨਾਇਆ।
ਸਾਕਾ ਨਨਕਾਣਾ ਸਾਹਿਬ ਦੌਰਾਨ
ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦਾ ਸਿੱਖ-ਦੁਸ਼ਮਣ ਰੋਲ
ਜਦੋਂ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਅੰਦਰ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਜਨਮ ਅਸਥਾਨ ਸ੍ਰੀ ਨਨਕਾਣਾ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਮਹੰਤ ਨਰੈਣ ਦਾਸ ਦਾ ਕਬਜਾ ਤੋੜ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਪੰਥਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਹੇਠ ਲਿਆਉਣ ਦੀ ਗੱਲ ਚੱਲੀ ਤਾਂ ਜਿਹੜੇ ਜਿਹੜੇ ਵਿਅਕਤੀ ਮਹੰਤ ਦੀ ਮਦਦ ਅਤੇ ਪੰਥ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਵਿਚ ਆ ਨਿਤਰੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਵੀ ਸੀ। ਸ. ਗੁਰਬਖਸ਼ ਸਿੰਘ ‘ਸਮਸ਼ੇਰ‘ ਝੁਬਾਲੀਏ ਨੇ ਸਾਕਾ ਨਨਕਾਣਾ ਸਾਹਿਬ ਬਾਰੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਤਿਆਰ ਕੀਤੀ ਇਕ ਖੋਜ ਭਰਪੂਰ ਰਿਪੋਰਟ, ਜੋ 1938 ਵਿਚ ਕਿਤਾਬ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਛਪੀ ਸੀ ਅਤੇ ਜਿਸ ਨੂੰ ਪਿੱਛੇ ਜਿਹੇ ਮੁੜ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਕਮੇਟੀ ਨੇ ਛਾਪਿਆ ਹੈ, ਵਿਚ ਇਹ ਖੁਲਾਸਾ ਕੀਤਾ ਸੀ :
‘(ਮਹੰਤ ਨਰੈਣ ਦਾਸ ਵੱਲੋਂ) ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ‘ਬੰਦੇ ਮਾਤਰਮ‘ ਅਖ਼ਬਾਰ ਨੂੰ 50000 ਰੁਪਿਆ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਸੀ। ਜਿਸ ਦੇ ਕਾਰਨ ਉਸ ਨੇ ਗਲਤ ਫਹਿਮੀ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਨੋਟ ਲਿਖੇ। ਦੂਜਾ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨਾਲ ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਹੋਇਆ ਸੀ ਕਿ (ਜਨਮ ਅਸਥਾਨ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਲਈ) ਇਕ ਟਰੱਸਟ ਬਣਾਇਆ ਜਾਵੇਗਾ ਜਿਸ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਲਾਲਾ ਜੀ ਹੋਣਗੇ। ਮਹੰਤ ਨੂੰ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਦੇ ਕੇ ਬਾਕੀ ਰੁਪਿਆ ਨੈਸ਼ਨਲ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਤੇ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਕੰਮਾਂ ‘ਤੇ ਖਰਚ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇਗਾ।‘ (ਸਫ਼ਾ 129)
ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੇ ਉਚ ਕੋਟੀ ਦੇ ਕਾਂਗਰਸੀ ਨੇਤਾਵਾਂ ਨੂੰ ਮਹੰਤ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿਚ ਲਿਆਉਣ ਦੀਆਂ ਕੋਸ਼ਿਸਾਂ ਵੀ ਕੀਤੀਆਂ। (ਇਸ ਕੰਮ ਵਿਚ ਉਸ ਨੂੰ ਕਿੰਨੀ ਕੁ ਸਫ਼ਲਤਾ ਮਿਲੀ, ਇਹ ਵੱਖਰਾ ਵਿਸ਼ਾ ਹੈ) ਇਸਦਾ ਸਬੂਤ ਉਹ ਤਾਰ ਹੈ, ਜੋ ਸਾਕਾ ਵਾਪਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮਹੰਤ ਨਰੈਣ ਦਾਸ ਦੀ ਗ੍ਰਿਫਤਾਰੀ ਸਮੇਂ ਉਸ ਦੀ ਘਰ ਦੀ ਤਲਾਸ਼ੀ ਲੈਣ ਵੇਲੇ ਮਿਲੀ ਸੀ। ਭਾਈ ਗੁਰਬਖਸ਼ ਸਿੰਘ ‘ਸਮਸ਼ੇਰ‘ ਆਪਣੀ ਰਿਪੋਰਟ ਵਿਚ ਦੱਸਦੇ ਹਨ, ਇਕ ਤਾਰ ਮਿਲੀ ਜੋ ਮਹੰਤ ਨਰੈਣ ਦਾਸ ਦੇ ਨਾਮ ‘ਤੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਵੱਲੋਂ ਲਿਖੀ ਗਈ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਲਿਖਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ਕਿ ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ ਜੀ ਨਨਕਾਣੇ ਸਾਹਿਬ ਨਹੀਂ ਆ ਸਕਦੇ‘ (ਉਪਰੋਕਤ)
ਗਿਆਨੀ ਕਰਤਾਰ ਸਿੰਘ ਕਲਾਸਵਾਲੀਏ ਨੇ ਵੀ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ਇਸ ਰੋਲ ਦੀ ਚਰਚਾ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ‘ਸ਼ੁਧਾਰ ਖਾਲਸਾ‘ ਵਿਚ ਕੀਤੀ ਹੈ। ਗਿਆਨੀ ਕਲਾਸਵਾਲੀਆ ਜੀ ਪਹਿਲਾਂ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਗ੍ਰੰਥੀ ਅਤੇ ਫਿਰ ਮੁੱਖ ਗ੍ਰੰਥੀ ਰਹੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਕਮੇਟੀ, ਸ੍ਰੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਨੇ ਦਰਬਾਰ ਸਾਹਿਬ ‘ਤੇ ਫੌਜੀ ਹਮਲੇ ਦੀ 25ਵੀਂ ਵਰ੍ਹੇਗੰਢ ਸਮੇਂ ਮੁੜ ਛਾਪੀ ਸੀ। ਮਹੰਤ ਨਰੈਣ ਦਾਸ ਦੀ ਗ੍ਰਿਫਤਾਰੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੇ ਦ੍ਰਿਸ਼ ਨੂੰ ਬਿਆਨ ਕਰਦਿਆਂ ਕਲਾਸਵਾਲੀਆ ਜੀ ਨੇ ਮਹੰਤ ਦੇ ਕੁਝ ਯਾਰਾਂ ਦੇ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਾਂਅ ਗਿਣਾਏ ਹਨ :
ਮੁਖੀਏ ਪੰਥ ਦੇ ਕਾਜ ਸੰਭਾਲ ਬੈਠੇ
ਮਹੰਤ ਸਣੇ ਮਹੰਤ ਦੇ ਯਾਰ ਗਏ।
ਕਬਜ਼ਾ ਪੰਥ ਦਾ ਜਨਮ ਅਸਥਾਨ ਉੱਤੇ
ਬੜੇ ਬਾਵੇ ਭੀ ਕਿਧਰੇ ਸਿਧਾਰ ਗਏ।
ਸੰਤ ਸੇਵਕ ਹੋਰੀਂ ਕਿਤੇ ਜਾ ਛੁਪੇ,
ਲੜੇ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਪਧਾਰ ਗਏ।
ਸਾਥ ਬੜੇ ਮਹੰਤ ਭੀ ਛੱਡ ਗਏ,
ਹੋ ਅੜੇ ਉਦਾਸੀ ਉਡਾਰ ਗਏ।
ਬੈਠਾ ਜੇਹਲ ਅੰਦਰ ਜਾ ਪਾਪੀ
ਘੁਸੜ ਸਾਰੇ ਹੀ ਬੜੇ ਹੰਕਾਰ ਗਏ (ਸਫ਼ਾ 186)
ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ਨਾਂਅ ਨਾਲ ਸਟਾਰ ਲਾ ਕੇ ਹੇਠਾਂ ਇਹ ਫੁੱਟ ਨੋਟ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ :
‘ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਹੋਰਾਂ ਦੀ ਮਨਸ਼ਾ ਸੀ ਕਿ ਮਹੰਤ ਨੂੰ ਅਪਨੇ ਕਾਬੂ ਕਰਕੇ ਏਥੋਂ ਦੇ ਕਾਰਕੁਨ ਅਸੀਂ ਬਣ ਜਾਈਏ ਤੇ ਏਸ ਪੰਥ ਦੀ ਜਾਇਦਾਦ ਪਾਸੋਂ ਪੰਥ ਘਾਤੀ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਦਾ ਕੰਮ ਲਈਏ ਤੇ ਇਕ ਨੈਸ਼ਨਲ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਕਾਇਮ ਕਰੀਏ ਤੇ ਬਾਕੀ ਦਾ ਪੈਸਾ ਪੋਲੀਟੀਕਲ ਕੰਮਾਂ ਵਿਚ ਖਰਚ ਕਰੀਏ।‘
ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਆਪਣੀ ਅਖ਼ਬਾਰ ‘ਬੰਦੇ ਮਾਤਰਮ‘ ਵਿਚ ਨਨਕਾਣਾ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਗੁਰਦੁਆਰੇ ਬਾਰੇ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀਆਂ ਲਿਖਤਾਂ ਲਿਖਦੇ ਰਹੇ, ਇਸ ਦੀ ਇਕ ਮਿਸਾਲ ਡਾ. ਕੁਲਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਬਾਜਵਾ (ਜੋ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਖੋਜ ਵਿਭਾਗ, ਖਾਲਸਾ ਕਾਲਜ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੇ ਮੁਖੀ ਰਹੇ ਹਨ) ਨੇ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ‘ਅਕਾਲੀ ਦਲ : ਸੱਚਾ ਸੌਦਾ ਬਾਰ‘ ਦੇ ਸਫ਼ੇ 44-45 ‘ਤੇ ਦਿੱਤੀ ਹੈ। ਇਹ ਕਿਤਾਬ ਵੀ ਸ਼੍ਰੋਮਣੀ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਕਮੇਟੀ, ਸ੍ਰੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਨੇ ਮਾਰਚ 2000 ਵਿਚ ਛਾਪੀ ਸੀ।
ਡਾ. ਬਾਜਵਾ ਮੁਤਾਬਕ, ‘16 ਨਵੰਬਰ 1921 ਦੇ ‘ਬੰਦੇ ਮਾਤਰਮ‘ ਵਿਚ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਬਚਪਨ ਨਾਲ ਜੁੜੀ ‘ਸੱਚਾ ਸੌਦਾ’ ਦੀ ਸਾਖੀ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਨਾਲ ਲਿਖਿਆ, ‘ਜਿਸ ਸ਼ਖਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਕੇ ਸਰਮਾਇਆ ਕੋ ਸਾਧੂਓਂ ਕੋ ਖਿਲਾ ਦੀਆ ਅਬ ਉਸ ਕੇ ਨਾਮ ਕੇ ਮੰਦਰ ਮੇਂ ਜਾਇਦਾਦ ਆਮਦਾਨਾਓ ਕੇ ਅਖਤਿਆਰ ਕਾ ਝਗੜਾ ਹੋ ਰਹਾ ਹੈ।‘
ਦੇਖੋ, ਆਰੀਆ ਸਮਾਜ ਦੀ ਬੋਲੀ ਬੋਲਦਾ ਹੋਇਆ ਲਾਲਾ ਸ਼ਰਾਰਤ ਤੇ ਸ਼ੈਤਾਨੀ ਨਾਲ ਜਗਤ ਗੁਰੂ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ‘ਸ਼ਖਸ‘ ਕਹਿਣ ਦੀ ਗੁਸਤਾਖੀ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਗੁਰਦੁਆਰਾ ‘ਜਨਮ ਅਸਥਾਨ‘ ਨੂੰ ‘ਮੰਦਰ’ ਦਾ ਨਾਂਅ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ‘ਜਨਮ ਅਸਥਾਨ‘ ਅੰਦਰ ਪ੍ਰਚਲਤ ਹਿੰਦੂਵਾਦੀ ਰਸਮਾਂ ਨੂੰ ਬੰਦ ਕਰਵਾਕੇ ਪੰਥਕ ਮਰਿਆਦਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾਉਣ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤਕ ਮਾਮਲੇ ਨੂੰ ‘ਆਮਦਾਨਾਓ ਦੇ ਅਖਤਿਆਰ ਦਾ ਝਗੜਾ’ ਕਰਾਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ!
ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਤੇ ਸਾਥੀਆਂ ਦੀਆਂ ਨਜ਼ਰਾਂ ਵਿਚ ਲਾਲ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ
ਸ਼ਹੀਦ ਸੁਖਦੇਵ
ਸ਼ਹੀਦ ਸੁਖਦੇਵ ਸਿੰਘ ਦੇ ਛੋਟੇ ਭਰਾ ਮਥਰਾ ਦਾਸ ਥਾਪਰ ਨੇ ‘ਜੀਵਨ ਗਾਥਾ: ਅਮਰ ਸ਼ਹੀਦ ਸੁਖਦੇਵ‘ ਨਾਂਅ ਦੀ ਇਕ ਕਿਤਾਬ ਲਿਖੀ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਉਸ ਨੇ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਦੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਬਾਰੇ ਵਿਚਾਰ ਦਰਜ ਕੀਤੇ ਹਨ। ਮਥਰਾ ਦਾਸ ਮੁਤਾਬਕ, ਸਾਈਮਨ ਕਮਿਸ਼ਨ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਵਿਚ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਪੁਲੀਸ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਗਏ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਦੀ ਵਜ੍ਹਾ ਕਰਕੇ ‘ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ (ਲਾਠੀ ਦੀ) ਸੱਟ ਖਾ ਕੇ ਫੌਰਨ ਗਰਜ ਕੇ ਬੋਲੇ, ‘ਪੁਲਿਸ ਦੀ ਇਸ ਜ਼ਾਲਮਾਨਾ ਹਰਕਤ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਮੁਜਾਹਰੇ ਨੂੰ ਮੁਅੱਤਲ ਕਰ ਦਿਤਾ ਜਾਵੇ‘। ਨੇਤਾ ਦੀ ਇਸ ਗਰਜ ਨੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਨਿਰਉਤਸ਼ਾਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਤੇ ਉਸ ਦਿਨ ਦਾ ਉਹ ਜੋ਼ਰਦਾਰ ਮੁਜ਼ਾਹਰਾ ਰੱਦ ਕਰ ਦਿਤਾ ਗਿਆ… ਸਟੇਸ਼ਨ ਵਾਲੇ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਦਾ ਅਚਾਨਕ ਮੁਅੱਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਣਾ ਸੁਖਦੇਵ ਨੂੰ ਚੰਗਾ ਨਹੀਂ ਲੱਗਾ ਸੀ। ਇਸ ਨਾਲ ਉਸ ਦੇ ਮਨ ਵਿਚ ਲਾਲਾ ਜੀ ਪ੍ਰਤੀ ਕੋਈ ਚੰਗੀ ਰਾਇ ਨਹੀਂ ਬਣੀ ਸੀ। ਉਂਝ ਵੀ ਪੰਜਾਬ ਕੇਸਰੀ ਦੇ ਬਦਲਦੇ ਹੋਏ ਚਰਿਤਰ ਨੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਨਿਰਾਸ਼ ਕਰ ਦਿਤਾ ਸੀ। ਉਹ (ਲਾਲਾ ਜੀ) ਇਨਕਲਾਬੀਆਂ ਤੋਂ ਚਿੜ੍ਹੇ ਹੋਏ ਸੀ ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਡਰਦੇ ਸੀ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਤਾਂ ਇਥੋਂ ਤਕ ਵੀ ਕੀਤਾ ਸੀ ਕਿ ਕਾਕੋਰੀ ਕੇਸ ਦੀ ਮਦਦ ਵਾਸਤੇ ਧਨ ਦੇ ਕੇ ਵਾਪਸ ਮੰਗ ਲਿਆ….।‘ (ਸਫ਼ਾ 84)
ਸ਼ਿਵ ਵਰਮਾ
ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਇਕ ਹੋਰ ਨੇੜਲੇ ਸਾਥੀ ਸ਼ਿਵ ਵਰਮਾ ਜੀ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਬਾਰੇ ਲਿਖਦੇ ਹਨ, ‘ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸੁਖਦੇਵ ਵਾਸਤੇ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਬੰਗਲੇ ਦੇ ਫਾਟਕ ਹਮੇਸ਼ਾ ਲਈ ਬੰਦ ਕਰਵਾ ਦਿਤੇ ਸਨ। ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਫਿਰਕੂ ਪੁਣੇ ਦਾ ਸਾਥ ਦੇਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿਤਾ ਸੀ।‘ (ਉਪਰੋਕਤ) ਏਨੇ ਵੱਡੇ ਮੱਤਭੇਦਾਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸਕਾਟ ਨੂੰ ਮਾਰਨ ਦਾ ਕਿਉਂ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ। ਇਸ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਸ਼ਿਵ ਵਰਮਾ ਜੀ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਰਦੇ ਹਨ, ‘ਪਰ ਇਹ (ਮੱਤਭੇਦ) ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਅੰਦਰ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ। ਦੇਸ਼ ਦੇ ਬਾਹਰ ਲੋਕ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਾਡੇ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਅੰਦੋਲਨ ਦੀ ਮੂਹਰਲੀ ਕਤਾਰ ਦੇ ਨੇਤਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਹੀ ਜਾਣਦੇ ਸੀ। ਇਸ ਨਾਤੇ ਲਾਲਾ ਜੀ ‘ਤੇ ਵਾਰ ਸਮੁੱਚੇ ਦੇਸ਼ ਉੱਤੇ ਵਾਰ ਸੀ। ਉਹ ਸਾਡੀ ਮਰਦਾਨਗੀ ਨੂੰ ਲਲਕਾਰ ਸੀ ਤੇ ਅਸੀਂ ਉਸ ਨੂੰ ਮੰਨ ਲਿਆ‘‘ (ਉਪਰੋਕਤ)
‘ਲਾਲੇ ਨੇ ਹਿੰਦੂ-ਮੁਸਲਿਮ ਫਸਾਦਾਂ ਦਾ ਮੁੱਢ ਬੰਨ੍ਹਿਆ’
-ਛੇ ਸੰਪਾਦਕਾਂ ਦਾ ਫਤਵਾ
18 ਸਤੰਬਰ 1927 ਨੂੰ ਛੇ ਸੰਪਾਦਕਾਂ ਅਤੇ 16 ਹੋਰ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੇ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਕਈ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਨੇੜੇ ਸਨ, ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ਨਾਂਅ ਇਕ ਖੁੱਲ੍ਹੀ ਚਿੱਠੀ ਜਾਰੀ ਕੀਤੀ ਸੀ ਜਿਸ ਵਿਚ ਲਾਲੇ ਦੇ ਕੁਝ ਕੰਮਾਂ ਨੂੰ ਕਮੀਨੀਆਂ ਕਾਰਵਾਈਆਂ ਕਰਾਰ ਦਿਤਾ ਸੀ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਅੰਦਰ ਹਿੰਦੂ-ਮੁਸਲਿਮ ਫਸਾਦ ਕਰਵਾਉਣ ਦਾ ਮੁੱਢ ਬੰਨਣ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਠਹਿਰਾਇਆ ਗਿਆ ਸੀ। (ਇਹ ਚਿੱਠੀ ਪੂਰੀ ਦੀ ਪੂਰੀ, ਇਸ ਲਿਖਤ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਨਾਲ ਅਟੈਚ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ)।
ਸੋਹਨ ਸਿੰਘ ਜੋਸ਼
ਕਾਮਰੇਡ ਸੋਹਨ ਸਿੰਘ ਜੋਸ਼ ਦਾ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਕੁਝ ਸਮਾਂ ਨੇੜ ਰਿਹਾ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਹੀ ਆਪਣੇ ਪਰਚੇ ‘ਕਿਰਤੀ‘ ਦੇ ਨਵੰਬਰ 1927 ਦੇ ਅੰਕ ਵਿਚ ਸ਼ਹੀਦ ਦੇ 22 ਸਾਥੀਆਂ ਦੀ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ਨਾਂਅ ਇਕ ਖੁੱਲ੍ਹੀ ਚਿੱਠੀ ਛਾਪੀ ਸੀ। ਇਸ ਚਿੱਠੀ ਨੂੰ ਛਾਪਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਜੋਸ਼ ਜੀ ਨੇ ਲਿਖਿਆ ਸੀ:
‘ਜਿਹਨਾ ਸੱਜਣਾਂ ਨੂੰ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਦੇ ਨਾਲ ਰਾਜਸੀ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਰਤਣ ਦਾ ਅਵਸਰ ਮਿਲਿਆ ਹੈ, ਉਹ ਤਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੀ ਲੀਡਰੀ ਦੀ ਫੋਕੀ ਇੱਛਾ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਖਾਤਰ ਸਵਾਏ ਟੱਰਾਂ ਟੱਰਾਂ ਤੇ ਹੋਰ ਕੁਝ ਨਾ ਕਰਨ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਣਦੇ ਹਨ। ਪ੍ਰਦੇਸੀ ਵੀਰ ਖਾਸ ਕਰ ਅਮਰੀਕਾ ਤੇ ਕੈਨੇਡਾ ਨਿਵਾਸੀ ਸਿੱਖ ਭਾਈਆਂ ਦਾ ਤਾਂ ਲਾਲਾ ਜੀ ਤੋਂ 1914 ਤੋਂ ਹੀ ਵਿਸ਼ਵਾਸ਼ ਉੱਡ ਚੁੱਕਾ ਸੀ ਜਦੋਂ ਕਿ ਆਪ ਕੈਨੇਡਾ ਅਮਰੀਕਾ ਗਏ ਸਨ ਅਤੇ ਆਪ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀ ਭਾਈਆਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਗਾੜ੍ਹੀ ਕਮਾਈ ਦਾ ਕਮਾਇਆ ਹੋਇਆ ਚੋਖਾ ਰੁਪਇਆ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਵਿਚ ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਕਾਜ਼ ਲਈ ਦਿਤਾ ਸੀ ਅਤੇ ਆਪ ਨੇ ਉਹ ਰੁਪਿਆ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਹੇ ਅਨੁਸਾਰ ਨਹੀਂ ਸਗੋਂ ਆਪਣੀ ਮਰਜ਼ ਨਾਲ ਖਰਚ ਕੀਤਾ ਸੀ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰਾ ਆਪ ਹੀ ਹਜ਼ਮ ਕਰ ਗਏ। ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੀਆਂ ਆਪ ਹੁਦਰੀਆਂ ਅਤੇ ਟੇਢੀਆਂ ਚਾਲਾਂ ਨੇ ਹਿੁਦੁਸਤਾਨ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਅਤੇ ਰਾਜਸੀ ਹਲਕਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਵੀ ਆਪਣਾ ਭਰੋਸਾ ਗਵਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ।‘
ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ
‘…. 1924 ‘ਚ ਕੇਂਦਰੀ ਐਸੰਬਲੀ ਦੀਆਂ ਚੋਣਾਂ ਹੋਈਆਂ। ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੇ ਇੰਡੀਪੈਂਡੈਂਟ ਕਾਂਗਰਸ ਵਲੋਂ ਚੋਣ ਲੜੀ। ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੇ ਧਰਮ ਨਿਰਪੱਖ ਚਰਿਤਰ ਉਤੇ ਕੱਟੜ ਹਿੰਦੂਵਾਦੀ ਸੋਚ ਛਾ ਗਈ ਸੀ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਵਿਚ ਦੀਵਾਨ ਚਮਨ ਲਾਲ ਉਮੀਦਵਾਰ ਸੀ। ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਇਨਕਲਾਬੀ ਟੋਲੀ ਨੇ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੇ ਖਿਲਾਫ ਚੋਣ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ। ਮਾਲਵੀਅ ਜੀ ਦੇ ਜਲਸੇ ਵਿਚ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਲੋਂ ‘ਲੌਸਟ ਲੀਡਰ‘ ਦੇ ਸਿਰਲੇਖ ਵਾਲਾ ਇਕ ਪਰਚਾ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ। ਜਿਸ ਵਿਚ ਲਾਲਾ ਜੀ ਬਾਰੇ ਲਿਖਿਆ ਸੀ ਕਿ ‘ਪੰਜਾਬ ਕੇਸਰੀ ਦੇ ਸੀਨੇ ਵਿਚ ਹੁਣ ਸ਼ੇਰ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਮੁਰਗੀ ਦਾ ਦਿਲਬਾਕੀ ਰਹਿ ਗਿਆ ਹੈ’।
ਇਹ ਪਰਚਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਕਵੀ ਬ੍ਰਾਉਨਿੰਗ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਵਿਤਾ ‘ਲੌਸਟ ਲੀਡਰ‘ ਤੇ ਅਧਾਰਤ ਸੀ। ਪਰਚੇ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ‘ਚ ਹੀ ‘ਸਿਰਫ ਮੁੱਠੀ ਭਰ ਸੋਨੇ ਲਈ ਉਹ ਸਾਨੂੰ ਛੱਡ ਗਿਆ’ ‘ਆਪਣੇ ਕੋਟ ਤੇ ਬੈਜ ਲਟਕਾਉਣ ਲਈ ਉਹ ਸਾਨੂੰ ਛੱਡ ਗਿਆ‘ ਵਰਗੇ ਵਾਕਾਂ ਨਾਲ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਦੀ ਪੁਰਜ਼ੋਰ ਨਿੰਦਿਆ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸੀ।‘
-ਰਘਬੀਰ ਸਿੰਘ: ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਜੀਵਨ ਪਰੀਚੈ
ਉਤਰਾਰਧ (ਹਿੰਦੀ ਪਰਚਾ ਸੰਪਾਦਕ ਸਵੈਸਾਚੀ)
1988-ਅੰਕ 33-34
ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੀ ਮੌਤ ਦਾ ਸਬੱਬ ਕੀ ਬਣਿਆ?
ਕੀ ਲ਼ਾਲਾ ਜੀ ਦੀ ਮੌਤ ਵਾਕਿਆ ਹੀ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਦੌਰਾਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਿਰ ਜਾਂ ਸੀਨੇ ਉਤੇ ਵੱਜੀਆਂ ਦੱਸੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆ ਲਾਠੀਆਂ ਦੀਆਂ ‘ਡੂੰਘੀਆਂ ਸੱਟਾਂ’ ਦੀ ਵਜ੍ਹਾ ਕਰਕੇ ਹੋਈ ਸੀ? ਇਸ ਬਾਰੇ ਮੌਕੇ ਦੇ ਚਸ਼ਮਦੀਦ ਗਵਾਹਾਂ ਦੀਆਂ ਰਾਵਾਂ ਹੀ ਵੱਧ ਪ੍ਰਮਾਣੀਕ ਮੰਨੀਆਂ ਜਾ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਹੇਠਾਂ ਕੁੱਝ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਮਵਰ ਦੇਸ਼ਭਗਤਾਂ ਦੀਆਂ ਗਵਾਹੀਆਂ ਪੇਸ਼ ਕਰ ਰਹੇ ਹਾਂ, ਜੋ ਕਿ ਨਾ ਸਿਰਫ ਉਸ ਦਿਨ ਖੁਦ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ਸਗੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਲਾਲਾ ਜੀ ‘ਤੇ ਹੋਏ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਨੇੜਿਓਂ ਦੇਖਿਆ ਸੀ।
ਗਿਆਨੀ ਗੁਰਮੁਖ ਸਿੰਘ ਮੁਸਾਫਰ
ਗਿਆਨੀ ਗੁਰਮੁਖ ਸਿੰਘ ਮੁਸਾਫਰ, ਜੋ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੁੱਖ ਮੰਤਰੀ ਵੀ ਬਣੇ ਸਨ, ਲਾਹੌਰ ਵਿਖੇ ਸਾਈਮਨ ਕਮਿਸ਼ਨ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ। ਉਹ ਦਸਦੇ ਹਨ, ‘ਮੈਂ ਹਾਲੇ ਨਜ਼ਮ ਪੜ੍ਹਕੇ ਹਟਿਆ ਹੀ ਸੀ ਕਿ ਸਾਰਾ ਹਜੂਮ ਹੀ ਇਕ ਪਾਸੇ ਨੂੰ ਦੌੜ ਪਿਆ ਕਿ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੀ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ। ਫਿਰ ਜਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੋਤੀ ਦਰਵਾਜੇ ਜਾ ਕੇ ਤਕਰੀਰ ਕੀਤੀ ਕਿ ‘ਇਹ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਗੌਰਮਿੰਟ ਦੀ ਇਕ ਇਕ ਲਾਠੀ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਗੌਰਮਿਟ ਦੇ ਕਫਨ ਵਿਚ ਕਿੱਲ ਹੋਵੇਗੀ‘ ਫਿਰ ਪਤਾ ਲਗਿਆ ਕਿ ਉਹ ਜਿੰਦਾ ਨੇ। ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਸਾਰੇ ਕਹਿੰਦੇ ਸੀ ਕਿ ਲਾਲਾ ਜੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਏ। ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੇ ਸੋਚਿਆ ਕਿ ਇਹ ਲਾਠੀਆਂ ਮੇਰੇ ਦਿਲ ਤੇ ਮਾਰੀਆਂ ਗਈਆਂ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਬੇਇਜ਼ਤੀ ਸਮਝਿਆ। ਮੇਰਾ ਖਿਆਲ ਹੈ ਕਿ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਤਾਂ ਬਹੁਤਾ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਉਂਜ ਮੈਂ ਕੁਛ ਦੂਰ ਵੀ ਸਾਂ ਪਰ ਅਸਰ ਇਹ ਹੋਇਆ ਕਿ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੇ ਮਨ ‘ਤੇ ਸੱਟ ਲੱਗੀ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਨੇ ਮੇਰੀ ਬੇਇਜ਼ਤੀ ਕੀਤੀ ਐ। ਅਗਰ ਕੋਈ ਐਸਾ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਇਹ ਦਿਲ ਦੀ ਚੋਟ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ।’
(ਪੰਜਾਬ ਯਾਦਾਂ ਦੇ ਝਰੋਖੇ ‘ਚੋ, ਸੰ. ਨਵਤੇਜ ਸਿੰਘ, ਸਫ਼ਾ 45)
ਗਿਆਨੀ ਕਰਤਾਰ ਸਿੰਘ
‘ਦਰਵੇਸ਼ ਸਿਆਸਤਦਾਨ‘ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਜਾਣੇ ਜਾਂਦੇ ਅਕਾਲੀ ਆਗੂ ਗਿਆਨੀ ਕਰਤਾਰ ਸਿੰਘ, ਜੋ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਕਾਂਗਰਸ ਸਰਕਾਰ ਵਿਚ ਮੰਤਰੀ ਵੀ ਰਹੇ, ਮੌਕੇ ਦੇ ਗਵਾਹ ਹਨ। ਉਹਨਾਂ ਮੁਤਾਬਕ, ‘ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿਚ ਛਤਰੀ ਸੀ ਜਿਸ ਦੇ ਇਕ ਪਾਸੇ ‘ਸਾਈਮਨ ਗੋ ਬੈਕ, ਸਾਈਮਨ ਗੋ ਬੈਕ‘ ਲਿਖਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਉਸ ਛਤਰੀ ‘ਤੇ ਲਿਖੇ ਨਾਅਰੇ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਗੋਰਾ ਪੁਲਸ ਕਪਤਾਨ ਭੜਕ ਉੱਠਿਆ। ਉਸ ਨੇ ਦੌੜ ਕੇ ਆ ਕੇ ਪੁਲਿਸ ਵਾਲਿਆਂ ਕੋਲ ਜੋ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਡੰਡਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨਾਲ ਦੋ ਡੰਡੇ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਮਾਰੇ। ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਲਾ ਜੀ ਸ਼ਹਿਰ ਆਪਣੀ ਕੋਠੀ ਨੂੰ ਵਾਪਸ ਚਲੇ ਗਏ। ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਗੋਲ ਬਾਗ ਵਿਚ ਬੜਾ ਭਾਰੀ ਜਲਸਾ ਹੋਇਆ ਜਿਸ ਵਿਚ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੇ ਗੂੰਜ ਪਾ ਦੇਣ ਵਾਲਾ ਲੈਕਚਰ ਕੀਤਾ… ਲੈਕਚਰ ਦੇ ਕੇ ਲਾਲਾ ਜੀ ਵਾਪਸ ਘਰ ਚਲੇ ਗਏ। ਜੇ ਮੈਂ ਗਲਤੀ ਨਹੀਂ ਖਾਂਦਾ ਤਾਂ 17 ਸਿਤੰਬਰ ….. ਰਾਤ ਨੂੰ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੀ ਆਪਣੀ ਕੋਠੀ ਵਿਚ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ। ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੀ ਮੌਤ ਦਾ ਫੌਰੀ ਕਾਰਨ ਦਿਲ ਫੇਲ੍ਹ ਹੋ ਜਾਣਾ ਸੀ…. ਕਈ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਗਲਤ ਫਹਿਮੀ ਹੈ ਕਿ ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਜਲੂਸ ਵਿਚ ਮਾਰਿਆ ਤੇ ਲਾਲਾ ਜੀ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਮਰ ਗਏ….‘
(ਉਪਰੋਕਤ ਸਫ਼ਾ 187)
ਪ੍ਰੋ. ਅਬਦੁੱਲ ਮਾਜਿਦ ਖਾਂ
ਪ੍ਰੋ. ਐਮ.ਐਸ. ਚੀਮਾ ਨੇ ਪ੍ਰੋ. ਅਬਦੁੱਲ ਮਾਜਿਦ ਖਾਂ ਨਾਲ ਇਕ ਇੰਟਰਵਿਊ ਕੀਤੀ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਜਲੰਧਰ ਦੂਰਦਰਸ਼ਨ ਨੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੀ 53ਵੀਂ ਬਰਸੀ ਮੌਕੇ (17 ਨਵੰਬਰ 1981) ਪ੍ਰਸਾਰਤ ਕੀਤਾ ਸੀ। ਇਸ ਇੰਟਰਵਿਊ ਸਮੇਂ ਪ੍ਰੋ. ਮਾਜਿਦ ਖਾਂ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਲਾਹੌਰ ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਦੇ ਬਾਹਰ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ਨਜ਼ਦੀਕ ਖੜਾ ਸੀ ਜਦੋਂ ਕਿ ਸੁਪਰਡੈਂਟ ਪੁਲਿਸ ਅਤੇ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦਰਮਿਆਨ ਗਰਮਾ-ਗਰਮ ਤੂੰ-ਤੂੰ, ਮੈਂ-ਮੈਂ ਹੋਈ ਸੀ। ਪ੍ਰੋ. ਮਾਜਿਦ ਮੁਤਾਬਕ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਕੋਈ ਗੰਭੀਰ ਸੱਟ ਨਹੀਂ ਸੀ ਲੱਗੀ।
ਯਸ਼ਪਾਲ
ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਥੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹਿੰਦੀ ਸਾਹਿਤਕਾਰ ਸ੍ਰੀ ਯਸ਼ਪਾਲ ਲਾਹੌਰ ਵਿਚ ਹੋਏ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਸਮੇਂ ਮੌਕੇ ‘ਤੇ ਹਾਜ਼ਰ ਸਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਦਾ ਅੱਖੀਂ ਡਿੱਠਿਆਂ ਹਾਲ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ਵਿਚ ਇਸ ਤਰ੍ਰਾਂ ਬਿਆਨ ਕੀਤਾ ਹੈ:
‘ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਏਨੀ ਭੀੜ ਸੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਪਿੱਛੇ ਹਟਣ ਦਾ ਕੋਈ ਮੌਕਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਸਾਹਮਣਿਓਂ ਪੁਲਿਸ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਕਰ ਰਹੀ ਸੀ। ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੇ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਚਾਰੇ ਪਾਸਿਓਂ ਘੇਰ ਕੇ ਸੱਟਾਂ ਲੱਗਣੋਂ ਬਚਾਇਆ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਪੁਲਿਸ ਦੀ ਮਾਰ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਇਹ ਮੋਰਚਾ ਟੁੱਟ ਨਹੀਂ ਸੀ ਰਿਹਾ। ਭਗਵਤੀ ਚਰਨ ਵੋਹਰਾ (ਸ਼ਹੀਦ), ਸੁਖਦੇਵ (ਸ਼ਹੀਦ) ਤੇ ਮੈਂ ਉਥੇ ਹੀ ਇਕ ਪਾਸੇ ਖੜ੍ਹੇ ਸਾਂ। ਸਾਥੀ ਧਨਵੰਤਰੀ ਅਤੇ ਅਹਿਸਾਨ ਅਲੀ ਆਦਿ ਮੋਰਚੇ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ। ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਘੇਰੀ ਖੜ੍ਹੇ ਇਸ ਮੋਰਚੇ ਦੇ ਨਾ ਟੁੱਟਣ ਕਾਰਨ ਪੁਲਿਸ ਸੁਪਰਡੈਂਟ (ਐਸ ਪੀ) ਸਕਾਟ ਨੇ ਇਸ ਟੋਲੀ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦੇ ਦਿੱਤਾ। ਡੀ ਐਸ ਪੀ ਸਾਂਡਰਸ ਆਪ ਹੱਥ ਵਿਚ ਇਕ ਛੋਟੀ ਲਾਠੀ ਅਤੇ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਉਸ ਟੋਲੀ ‘ਤੇ ਟੁੱਟ ਪਿਆ। ਉਸ ਦੀ ਇਕ ਲਾਠੀ ਨਾਲ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੇ ਸਿਰ ਉਪਰ ਤਾਣੀ ਹੋਈ ਛਤਰੀ ਟੁੱਟ ਗਈ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕੰਧੇ ਉਪਰ ਚੋਟ ਲੱਗੀ। ਨੌਜਵਾਨ ਸਾਥੀ ਅਜੇ ਵੀ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਘੇਰੇ ਵਿਚ ਲੈ ਕੇ ਡਟੇ ਰਹਿਣ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਸਨ, ਪ੍ਰੰਤੂ ਚੋਟ ਲੱਗਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੇ ਹੁਕਮ ਦੇ ਦਿੱਤਾ, ਪੁਲਿਸ ਦੀ ਇਸ ਜਾਲਮਾਨਾ ਹਰਕਤ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਨੂੰ ਮੁਅੱਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ।‘
(ਸਿੰਘਅਵਲੋਕਨ, ਸਫ਼ਾ 124)
ਪੰਡਤ ਕਿਸ਼ੋਰੀ ਲਾਲ
ਪੰਡਤ ਕਿਸ਼ੋਰੀ ਲਾਲ ਜੀ ਵੀ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਬਹੁਤ ਨੇੜਲੇ ਸਾਥੀਆਂ ਵਿਚੋਂ ਸਨ। ਉਹ ਵੀ ਸਾਈਮਨ ਕਮਿਸ਼ਨ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਹੋਏ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ। ਉਹ ਵੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਸਮੇਂ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੇ ਸਰੀਰ ‘ਤੇ ਕੋਈ ਬਹੁਤੀ ਸਿੱਧੀ ਸੱਟ ਨਹੀਂ ਸੀ ਲੱਗੀ। (ਦੇਖੋ ਫਰੋਚੲੲਦਨਿਗਸ : ਫੁਨਜਅਬ ੍ਹਸਿਟੋਰੇ ਛੋਨਾੲਰੲਨਚੲ ੰਅਰਚਹ 1985 ਵਿਚ ਛਪਿਆ ਪ੍ਰੋ. ਹਜ਼ਾਰਾ ਸਿੰਘ ਦਾ ਲੇਖ)
ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦਾ ਆਪਣਾ ਬਿਆਨ
ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੇ ਜੋ ਬਿਆਨ ਜਾਰੀ ਕੀਤਾ ਉਹ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਟਾਈਮਜ਼ (1 ਨਵੰਬਰ 1928) ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਸਫ਼ੇ ‘ਤੇ ਛਪਿਆ ਸੀ। ਇਸ ਬਿਆਨ ਮੁਤਾਬਕ, ‘ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਬੇਵਜ੍ਹਾ ਤੇ ਬੇਲੋੜਾ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਦੋਸ਼ ਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਖੁਦ ਸੁਪਰਡੈਂਟ ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ। ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਮੈਨੂੰ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੇ ਮੇਰੀ ਛਾਤੀ ਉਤੇ ਦੋ ਡੰਡੇ ਮਾਰੇ ਅਤੇ ਕੁੱਝ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੇ ਵੀ ਕੁੱਝ ਡੰਡੇ ਮਾਰੇ, ਖੁਸ਼ਕਿਸਮਤੀ ਨਾਲ ਜੀਹਨਾਂ ਦੀ ਸੱਟ ਬਹੁਤੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਸੱਟਾਂ ਨਾਲ ਮੈਨੂੰ ਮਾਮੂਲੀ ਜਿਹਾ ਬੁਖਾਰ ਤੇ ਸੋਜਸ਼ ਹੋਈ।‘
ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੀ ਮੌਤ ਬਾਰੇ ਜੋ ਖਬਰ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੀ ਮਸ਼ਹੂਰ ਪੰਜਾਬੀ ਅਖ਼ਬਾਰ ‘ਅਕਾਲੀ ਤੇ ਪ੍ਰਦੇਸੀ‘ (19 ਨਵੰਬਰ 1928) ਨੇ ਦਿਤੀ, ਉਹ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੀ:
‘ਲਾਹੌਰ ਤੋਂ ਨਿਹੈਤ ਹੀ ਰੰਜ ਭਰੀ ਖ਼ਬਰ ਪੁਜੀ ਹੈ ਕਿ ਅਜ ਸਵੇਰੇ ਲਾਲ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਜੀ ਅਚਾਨਕ ਹੀ ਦਿਲ ਦੀ ਹਰਕਤ ਬੰਦ ਹੋ ਜਾਣ ਕਾਰਨ ਚਲ ਵਸੇ ਹਨ।‘
ਦੋ ਦਿਨ ਬਾਅਦ ਮੌਤ ਬਾਰੇ ਵਿਸਥਾਰ ਵਿਚ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦੇਂਦਿਆਂ ਅਖ਼ਬਾਰ ਨੇ ਮੁੜ ਲਿਖਿਆ:
‘ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੀ ਹਾਲਤ ਕਲ੍ਹ ਤੱਕ ਚੰਗੀ ਸੀ। ਕਲ੍ਹ ਅਚਾਨਕ ਹੀ ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਆਪ ਦੀ ਛਾਤੀ ਦੇ ਖੱਬੇ ਪਾਸੇ ਦਰਦ ਹੋਣ ਲੱਗਾ। ਉਸ ਵੇਲੇ ਡਾਕਟਰ ਨੂੰ ਬੁਲਾਇਆ ਗਿਆ ਜੋ ਰਾਤ ਦੇ 11 ਵਜੇ ਤੱਕ ਆਪਦੇ ਪਾਸ ਰਿਹਾ ਪਰ ਦਰਦ ਵਿਚ ਕੁਝ ਘਾਟਾ ਨਾ ਪਿਆ। ਅੱਜ ਸਵੇਰੇ ਆਪ ਤੋਂ ਦਰਦ ਦੀ ਹਾਲਤ ਬਾਬਤ ਪੁੱਛਿਆ ਗਿਆ ਤਾਂ ਕਹਿਣ ਲੱਗੇ ਕਿ ਦਰਦ ਅਜੇ ਤੱਕ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ। ਦੁਬਾਰਾ ਜਿਸ ਵੇਲੇ ਮੰਜੇ ਪੁਰ ਲੇਟੇ ਤਾਂ 7 ਵਜੇ ਦੇ ਕਰੀਬ ਦਿਲ ਦੀ ਹਰਕਤ ਬੰਦ ਹੋ ਜਾਣ ਨਾਲ ਆਪ ਚਲਾਣਾ ਕਰ ਗਏ।‘ (ਅਕਾਲੀ ਤੇ ਪ੍ਰਦੇਸੀ 21 ਨਵੰਬਰ 1928)
ਸੋ ਅਖ਼ਬਾਰ ਦੇ ਮੁਤਾਬਕ 17 ਨਵੰਬਰ ਤਕ, ਅਰਥਾਤ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਤੋਂ 17 ਦਿਨ ਬਾਅਦ ਤਕ ‘ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੀ ਹਾਲਤ ਚੰਗੀ ਭਲੀ ਸੀ।‘ ਸਵਾਲ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇ 17 ਦਿਨਾਂ ਤੱਕ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਚੰਗੀ ਭਲੀ ਸੀ ਤਾਂ ਉਹ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਦੇ ਬਾਅਦ ਦੇ ਦਿਨੀਂ ਕੀ ਕਰਦੇ ਰਹੇ? ਇਸ ਬਾਰੇ ਕੁਝ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰੋ. ਹਜਾਰਾ ਸਿੰਘ, ਜੋ ਐਗਰੀਕਲਚਰ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵਿਖੇ ਪੱਤਰਕਾਰੀ, ਭਾਸ਼ਾ ਅਤੇ ਸਭਿਆਚਾਰ ਵਿਭਾਗ ਦੇ ਮੁਖੀ ਰਹੇ ਹਨ, ਨੇ ਪੰਜਾਬੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਪਟਿਆਲਾ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਪੰਜਾਬ ਹਿਸਟਰੀ ਕਾਨਫਰੰਸ (ਮਾਰਚ 1985) ਸਮੇਂ ਪੜ੍ਹੇ ਅਤੇ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰਾਂ ਵੱਲੋਂ ਵਿਚਾਰੇ ਗਏ ਆਪਣੇ ਪਰਚੇ ਵਿਚ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਿਤੀ ਹੈ:
‘30 ਅਕਤੂਬਰ 1928 ਦੀਆਂ ਘਟਨਾਵਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਲਾ ਜੀ ਆਮ ਵਰਗੀ ਜਿੰਦਗੀ ਜਿਊ ਰਹੇ ਸਨ। ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਉਸੇ ਸ਼ਾਮ ਡਾਕਟਰ ਧਰਮਵੀਰ ਵੱਲੋਂ ਚੈਕ-ਅਪ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ, ਇਕ ਰੋਸ ਮੀਟਿੰਗ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਿਤ ਕੀਤਾ ਸੀ। ਉਸ ਨੇ ਆਲ ਇੰਡੀਆ ਕਾਂਗਰਸ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਦਿੱਲੀ ਸੈਸਨ ਵਿਚ ਸਰਗਰਮੀ ਨਾਲ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਹਫਤਾਵਾਰ ਅਖਬਾਰ ‘ਦ ਪੀਪਲ‘ ਵਿਚ ਲਿਖਦੇ ਰਹੇ ਸਨ।‘
ਕਿਉਂਕਿ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇਸ ਪੱਧਰ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਲੀਡਰ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਮੌਤ ਬਾਰੇ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਕਈ ਆਗੂਆਂ ਨੇ ਲਿਖਿਆ ਹੈ। ਪੰਡਤ ਜਵਾਹਰ ਲਾਲ ਨਹਿਰੂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸਵੈ-ਜੀਵਨੀ, ਜੋ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਅੱਠ ਸਾਲ ਬਾਅਦ ਲੰਡਨ ਵਿਚ ਛਪੀ ਸੀ, ਵਿਚ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੱਸਿਆ ਹੈ:
ਸਰੀਰਕ ਸੱਟਾਂ ਉਸ ਦੀ ਕੁਝ ਕੁ ਹਫ਼ਤੇ ਬਾਅਦ ਹੋਈ ਮੌਤ ਦਾ ਕਿੰਨਾ ਕੁ ਕਾਰਨ ਬਣੀਆਂ, ਇਸ ਬਾਰੇ ਪੱਕ ਨਾਲ ਕੁਝ ਕਹਿਣਾ ਬਹੁਤ ਮੁਸ਼ਕਲ ਹੈ। (ਸਫ਼ਾ 173)
‘ਮੈਂ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੂੰ ਨਫ਼ਰਤ ਕਰਦਾ ਹਾਂ’ : ਜਸਵੰਤ ਸਿੰਘ ਕੰਵਲ
ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਨਾਵਲਕਾਰ ਸ. ਜਸਵੰਤ ਸਿੰਘ ਕੰਵਲ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ‘ਪੁੰਨਿਆ ਦਾ ਚਾਨਣ‘ ਦੇ ਸਫ਼ਾ 126 ‘ਤੇ ਲਿਖਦੇ ਹਨ :
‘ਮੈਂ ਆਪਣੇ ਪਿੰਡ (ਢੁੱਡੀਕੇ) ਵਿਚ ਜੰਮੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੂੰ ਇਸ ਲਈ ਨਫ਼ਰਤ ਕਰਦਾ ਸੀ, (ਕਿਉਂਕਿ) ਪਹਿਲਾਂ ਉਸ ਗ਼ਦਰ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਫੰਡ ਨੱਪਿਆ। ਦੂਜਾ ਮਾਂਡਲੇ ਜੇਲ੍ਹ ਤੋਂ ਛੁੱਟਣ ਲਈ ਵਾਇਸਰਾਏ ਨੂੰ ਮੁਆਫ਼ੀਨਾਮੇ ਦੀਆਂ ਚਿੱਠੀਆਂ ਲਿਖੀਆਂ। ਤੀਜਾ ਕਾਂਗਰਸ ਨੂੰ ਵੀ ਲੱਤ ਮਾਰ ਕੇ ਹਿੰਦੂ ਮਹਾਂ ਸਭਾ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਜਾ ਬਣਿਆ। ਚੌਥੇ ਛਾਤੀ ‘ਤੇ ਕਾਲੀ ਛਤਰੀ ਤੋਂ ਤਿਲਕੇ ਤਿੰਨ ਡੰਡੇ ਜ਼ਰੂਰ ਵੱਜੇ ; ਪਰ ਸਤਾਰਾਂ ਦਿਨ ਬਾਅਦ ਪਲੂਰਸੀ ਦੀ ਬੀਮਾਰੀ ਨਾਲ ਮਰਿਆ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਤਾਰਾਂ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚੋਂ ਦਿੱਲੀ ਜਾ ਕੇ ਇਕ ਮੀਟਿੰਗ ਤੇ ਨਹਿਰੂ ਨਾਲ ਲੜ ਕੇ ਆਇਆ। ਸਤਾਰਾਂ ਦਿਨ ਮਗਰੋਂ ਮਰਨ ਵਾਲਾ ਸ਼ਹੀਦ ਕਿਵੇਂ ਹੋ ਗਿਆ? ਇਹ ਪ੍ਰਾਪੇਗੰਡਾ ਹਿੰਦੂ ਪ੍ਰੈਸ ਦੇ ਝੂਠ ਦਾ ਸੀ‘
ਸ.ਕੰਵਲ ਇਸੇ ਕਿਤਾਬ ਵਿਚ ਇਕ ਥਾਂ ਹੋਰ ਲਿਖਦੇ ਹਨ :
ਇਕ ਵਾਰ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ਸਾਥੀ ਮੋਹਨ ਲਾਲ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਪੁੱਛਿਆ, ‘ਤੂੰ ਤਾਂ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਐਂ, ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਕਿਵੇਂ ਬਣ ਗਿਆ?‘ ‘’ਮੈਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਰਾਜਸੀ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਮੈਂਬਰ ਨਹੀਂ। ਨਾ ਹੀ ਕਿਸੇ ਦਾ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਆਂ, ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹਿੱਤ ਨਾਲ ਖਲੋਤਾ ਰਿਹਾ ਆਂ।’ ਮੈਂ ਸਪੱਸ਼ਟ ਜਵਾਬ ਮੋੜਿਆ। ‘ਮੈਂ ਤਾਂ ਦੇਸ਼ ਭਗਤਾਂ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਰਹੇ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਜਾਗਰਤ ਕਰਨ ਲਈ ਇਹ ਬੀੜਾ ਚੁੱਕਿਆ ਏ। ਕਿਉਂਕਿ ਫਿਰਕੂ ਤੇ ਮੁਤੱਸਬੀ ਸਰਕਾਰ ਗ਼ਦਰੀ ਬਾਬਿਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ‘ਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਛੜਾਂ ਮਾਰਦੀ ਐ ਤੇ ਫਿਰਕੂ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ਨਾਂ ‘ਤੇ ਦੁੱਧ ਦੀਆਂ ਧਾਰਾਂ ਦੇਂਦੀ ਐ। ਮੈਂ ਤਾਂ ਪਿੰਡ ਨੂੰ ਜਾਗਰਤ ਕਰਨ ਲਈ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ਨਾਂ ਦੀ ਨੀਤੀ ਵਰਤੀ ਹੈ। ਊਂ ਮੈਨੂੰ ਚੱਜ ਨਾਲ ਪਤਾ ਹੈ ਕਿ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਕਾਂਗਰਸ ਛੱਡ ਕੇ ਫਿਰਕੂ ਹਿੰਦੂ ਮਹਾਂ ਸਭਾ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਜਾ ਬਣਿਆ ਸੀ। ਪਿੰਡ ਦੀ ਤਰੱਕੀ ਲਈ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦਾ ਨਾਂ ਵਰਤਣ ਤੇ (ਗ਼ਦਰੀ) ਬਾਬਾ ਗੁਰਮੁਖ ਸਿੰਘ ਮੈਨੂੰ ਮੇਰੇ ਘਰ ਬੈਠਾ ਇਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਗਾਲ੍ਹਾਂ ਦੇ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਬਾਪ ਵਰਗੇ ਬਾਬੇ ਦਾ ਮੈਂ ਗੁੱਸਾ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ। ਜੇ ਦੁਸ਼ਮਣ ਤੋਂ ਲੋਕ ਭਲੇ ਦਾ ਕੰਮ ਲੈ ਲਿਆ ਜਾਵੇ, ਨੀਤੀ ਸ਼ਾਸਤਰ ਇਸ ਨੂੰ ਮਾੜਾ ਨਹੀਂ ਸਮਝਦਾ। ਮੋਹਨ ਲਾਲ ਜੀ, ਦੁਸ਼ਮਣ ਦੇ ਹਥਿਆਰ ਨਾਲ ਵੈਰੀ ਮਾਰਿਆ ਜਾਵੇ; ਇਹ ਸਹੀ ਨੀਤੀ ਨਹੀਂ?
ਮੇਰੀ ਪੂਰੀ ਗੱਲ ਸੁਣ ਕੇ ਮੋਹਨ ਲਾਲ ਐਨਾ ਹੱਸਿਆ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਹੁੱਥੂ ਆ ਗਿਆ। (ਸਫ਼ਾ 125-126)
ਜਸਵੰਤ ਸਿੰਘ ਕੰਵਲ ਦੇ ਇਸ ਹਵਾਲੇ ਤੋਂ ਢੁਡੀਕੇ ਪਿੰਡ ਦੀ ਪੰਚਾਇਤ ਤੇ ਕੁੱਝ ਹੋਰਨਾਂ ‘ਜ਼ੋਸ਼ੀਲੇ ਦੇਸ਼ਭਗਤਾਂ’ ਵੱਲੋਂ ਬੱਬੂ ਮਾਨ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਪਾਏ ਜਾ ਰਹੇ ਖਰੂਦ ਦੀ ਅਸਲੀਅਤ ਆਪਣੇ ਆਪ ਉਘੜ ਆਉਂਦੀ ਹੈ, ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਪਿੰਡ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਇਤਿਹਾਸਕ ਸੱਚਾਈ ਨਾਲੋਂ ਵੱਧ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ! ਅਜਿਹੀ ਗਰਜ਼ਮੁਖੀ ਸੋਚ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਅਚੇਤ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਹੀ ਅਨੈਤਿਕਤਾ ਦੇ ਕੁਰਾਹੇ ਪਾ ਦਿੰਦੀ ਹੈ।
ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ
ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਜਾਂ ਹਿੰਦੂ ਭਗਤ ?
ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਬਾਰੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਇਕ ਉਚ ਕੋਟੀ ਦੇ ਦੇਸ਼ ਭਗਤ ਸਨ। ਸਕੂਲਾਂ, ਕਾਲਜਾਂ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਵਿਚ ਇਹੀ ਲਿਖਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਮੀਡੀਏ ਰਾਹੀਂ ਵੀ ਇਹ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਪਰ ਜੇ ਲਾਲੇ ਦੀਆਂ ਸਿਆਸੀ ਸਰਗਰਮੀਆਂ ਅਤੇ ਲਿਖਤਾਂ ਨੂੰ ਨੀਝ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹਿਆ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਤਸਵੀਰ ਕੁਝ ਹੋਰ ਹੀ ਉਭਰਦੀ ਹੈ।
ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਆਪਣੀ ਸਵੈ ਜੀਵਨੀ ਦੇ ਸਫ਼ਾ 80 ‘ਤੇ ਲਿਖਦੇ ਹਨ : ‘ਹਿੰਦੀ ਅਤੇ ਉਰਦੂ ਦੇ ਰੱਫੜ ਨੇ ਮੈਨੂੰ ਹਿੰਦੂ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਸ਼ਬਦ ਸਿਖਾਇਆ।’ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਥੇ ਉਹ ਭਾਰਤੀ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦ ਦੀ ਨਹੀਂ ਹਿੰਦੂ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਅਸੀਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੇਖ ਆਏ ਹਾਂ ਕਿ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਾਥੀ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਹਿੰਦੂ ਫਿਰਕਾਪ੍ਰਸਤੀ ਫੈਲਾਉਣ ਲਈ ਜਿੰਮੇਵਾਰ ਠਹਿਰਾਉਂਦੇ ਰਹੇ ਹਨ। ਲਾਲਾ ਜੀ ਲਈ ਸਵਰਾਜ ਨਾਲੋਂ ਹਿੰਦੂ ਹਿੱਤਾਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਵੱਧ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ। ਉਹ ਵਾਰ ਵਾਰ ਕਿਹਾ ਕਰਦੇ ਸਨ, ‘ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਸਵਰਾਜ ਦਾ ਕੋਈ ਅਰਥ ਨਹੀਂ‘
1927 ਨੂੰ ‘ਦ ਟ੍ਰਿਬਿਊਨ’ ਵਿਚ ਹੀ ਲਿਖੇ ਇਕ ਲੇਖ ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੂੰ ਸਲਾਹ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ਕਿ ਤੁਹਾਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪਣੇ (ਹਿੰਦੂ) ਭਾਈਚਾਰੇ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਸਵਰਾਜ ਦਾ ਕੋਈ ਅਰਥ ਨਹੀਂ‘
1927 ਨੂੰ ‘ਦ ਟ੍ਰਿਬਿਊਨ’ ਵਿਚ ਹੀ ਲਿਖੇ ਇਕ ਲੇਖ ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੂੰ ਸਲਾਹ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ਕਿ ਤੁਹਾਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਆਪਣੇ (ਹਿੰਦੂ) ਭਾਈਚਾਰੇ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦਾ ਖਿਆਲ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਫਿਰ ਰਾਸ਼ਟਰ ਦਾ‘
(ਪੰਜਾਬ ਪਾਸਟ ਐਂਡ ਪ੍ਰੈਜੈਂਟ, ਅਪ੍ਰੈਲ 1898, ਸਫ਼ਾ 191)
ਦੇਸ਼ ਨਾਲੋਂ ਹਿੰਦੂ ਹਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਪਹਿਲ ਦੇਣ ਦੇ ਇਸ ਵਿਚਾਰ ਨੂੰ ਅਮਲੀ ਜਾਮਾ ਪਹਿਨਾਉਣ ਲਈ ਹੀ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਕਾਂਗਰਸ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਹਿੰਦੂ ਮਹਾਂ ਸਭਾ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਬਣ ਗਏ ਸਨ। ਹਿੰਦੂ ਹਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਨਾਲੋਂ ਪਹਿਲ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਨੂੰ ‘ਹਿੰਦੂ ਭਗਤ’ ਕਿਹਾ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਜਾਂ ‘ਦੇਸ਼ ਭਗਤ’, ਇਸ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਪਾਠਕ ਆਪ ਹੀ ਕਰ ਲੈਣ।
20ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਨੂੰ ਇਕ ਪੱਖੋਂ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਮਾਮਲੇ ਤੇ ਰੱਫੜਾਂ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੂੰ ਹਿੰਦੀ ਨਾਲ ਜੋੜਨ ਲਈ ਬਹੁਤ ਜੋਰ ਮਾਰਿਆ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਲਿਖਿਆ ਹੈ : ‘ਮੇਰੇ ਮਾਪਿਆਂ ਨੇ ਜਿਹੜੀ ਮੈਨੂੰ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ਸੀ, ਉਹ ਮੰਗ ਕਰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਮੈਂ ਉਰਦੂ ਦਾ ਪੱਖ ਲਵਾਂ…। ਮੈਂ ਫਾਰਸੀ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਨ ‘ਤੇ ਕਈ ਸਾਲ ਲਾਏ ਅਤੇ ਉਰਦੂ ਸਾਹਿਤ ਨਾਲ ਮੇਰੀ ਚੰਗੀ ਵਾਕਫ਼ੀ ਸੀ। ਹਿੰਦੀ ਦਾ ਤਾਂ ਮੈਨੂੰ ਕਾ ਖਾ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ਆਉਂਦਾ। ਪਰ ਜਦੋਂ ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਗੱਲ ਜਚ ਗਈ ਕਿ ਸਿਆਸੀ ਇਕਮੁੱਠਤਾ (ਫੋਲਟਿਚਿਅਲ ਸੋਲਦਿਅਰਟਿੇ) ਮੰਗ ਕਰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਹਿੰਦੀ ਅਤੇ ਦੇਵਨਗਰੀ ਦਾ ਪਸਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਮੈਂ… ਹਿੰਦੀ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਜਦੋਂ ਇਸ ਕੰਮ ਲਈ ਮੈਂ ਅੰਬਾਲੇ ਗਿਆ ਅਤੇ ਹਿੰਦੀ ਦੀ ਵਕਾਲਤ ਕਰਦਿਆਂ… ਪਬਲਿਕ ਵਿਚ ਭਾਸ਼ਨ ਦਿੱਤਾ, ਉਸ ਸਮੇਂ ਵੀ ਮੈਨੂੰ ਹਿੰਦੀ ਦੀ ਕੋਈ ਜਾਣਕਾਰੀ ਨਹੀਂ ਸੀ।‘ (ੰਟੋਰੇ ੋਾ ੰੇ ਼ਾਿੲ, ਫ।80)
ਲਾਲਾ ਜੀ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀ ਜਥੇਬੰਦੀ ਆਰੀਆ ਸਮਾਜ ਨੇ ਹਿੰਦੀ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿਚ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਕੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਜਿਹੇ ਜਹੇ ਕੰਡੇ ਬੀਜ ਦਿੱਤੇ ਸਨ, ਉਸ ਬਾਰੇ ਪਾਠਕ ਭਲੀਭਾਂਤ ਜਾਣਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਬਾਰੇ ਵਿਸਥਾਰ ਵਿਚ ਜਾਣ ਦੀ ਬਹੁਤ ਲੋੜ ਨਹੀਂ ਜਾਪਦੀ।
ਇਤਿਹਾਸ ਨੂੰ ਵਿਗਾੜਨ ਦਾ ਬੌਧਿਕ ਕੁਕਰਮ: ਦੋ ਉਘੜਵੇਂ ਨਮੂਨੇ
ਅਸੀਂ ਦੇਖ ਲਿਆ ਹੈ ਕਿ ਇਤਿਹਾਸ ਦੇ ਪ੍ਰਮਾਣਿਕ ਸੋਮਿਆਂ ਤੋਂ ਇਹ ਗੱਲ ਮੁਕੰਮਲ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਸਾਬਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਪੁਲੀਸ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੇ ਗਏ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਨਾਲ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਦੇ ਸਿਰ ਤੇ ਤਾਣੀ ਛਤਰੀ ਮਚਕੋੜੀ ਗਈ ਸੀ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਪੁਲਸ ਅਫਸਰ ਦੇ ਡੰਡੇ ਦੀਆਂ ਸੱਟਾਂ ਨਾਲ ਉਸ ਦੇ ਮੋਢੇ ਤੇ ਸੀਨੇ ਉਤੇ ਵੀ ਦੋ ਮਮੂਲੀ ਜਿਹੇ ਜ਼ਖ਼ਮ ਹੋ ਗਏ ਸਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲਾਸਾਂ ਜਾਂ ਝਰੀਟਾਂ (ਬਰੁਸਿੲਸ) ਕਹਿਣਾ ਵੱਧ ਠੀਕ ਹੈ। ਪਰ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੂੰ ਹੀਰੋ ਤੇ ‘ਸ਼ਹੀਦ’ ਬਣਾ ਕੇ ਪੇਸ਼ ਕਰਨ ਲਈ ਬਿਹਵਲ ਲੇਖਕਾਂ ਨੇ ਇਸ ਇਤਿਹਾਸਕ ਤੱਥ ਨੂੰ, ਗਿਣੇ ਮਿਥੇ ਰੂਪ ਵਿਚ, ਕਿੰਨਾ ਤੋੜ ਮਰੋੜ ਕੇ ਤੇ ਵਧਾ ਚੜ੍ਹਾ ਕੇ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਨਾਮਵਰ ਪੰਜਾਬੀ ਪੱਤਰਕਾਰ ਕੁਲਦੀਪ ਨਈਅਰ ਦੀ ‘ਇਤਿਹਾਸਕ’ ਰਚਨਾ ਇਸ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਭੱਦਾ ਨਮੂਨਾ ਹੈ। ਖਾੜਕੂ ਸਿੱਖ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਦੋ ਗੌਰਵਮਈ ਸ਼ਹੀਦਾਂ-ਸ਼ਹੀਦ ਭਾਈ ਹਰਜਿੰਦਰ ਸਿੰਘ ਜਿੰਦਾ ਤੇ ਸ਼ਹੀਦ ਭਾਈ ਸੁਖਦੇਵ ਸਿੰਘ ਸੁੱਖਾ-ਵੱਲੋਂ ਕੁਲਦੀਪ ਨਈਅਰ ਨੂੰ ਲਿਖੇ ਗਏ ਇਕ ਪੱਤਰ ਦੇ ਜੁਆਬ ਵਿਚ ਨਈਅਰ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਬਾਰੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿਚ ਇਕ ਪੂਰੀ ਕਿਤਾਬ ( ਠਹੲ ੰਅਰਟੇਰ ਭਹਅਗਅਟ ੰਨਿਗਹ-ਓਣਪੲਰਮਿੲਨਟਸ ਅਨਦ ੍ਰੲਵੋਲੁਟੋਿਨ) ਲਿਖ ਮਾਰੀ ਸੀ, ਜਿਸ ਨੂੰ ‘ਅਜੀਤ’ ਅਖਬਾਰ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਚ ਤਰਜਮਾ ਕਰਕੇ ਪੂਰੀ ਦੀ ਪੂਰੀ ਲੜੀਵਾਰ ਛਾਪਿਆ ਸੀ। ਇਸ ਕਿਤਾਬ ਵਿਚ ਕੁਲਦੀਪ ਨਈਅਰ ਨੇ ਲਾਲੇ ਨੂੰ ਵੱਜੇ ਦੋ ਮਾਮੂਲੀ ਡੰਡਿਆਂ ਦੇ ਤੱਥ ਨੂੰ ਵਧਾ ਕੇ ‘ਵਹਿਸ਼ੀਆਨਾ ਲਾਠੀਚਾਰਜ’ ਦਾ ਨਾਉਂ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਅਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੇ ‘ਲਹੂ-ਲੁਹਾਣ’ ਤੇ ‘ਬੇਹੋਸ’਼ ਹੋ ਜਾਣ ਦੀ ਮਨਘੜਤ ਕਹਾਣੀ ਵੀ ਜੋੜ ਦਿਤੀ ਸੀ। ਕੁਲਦੀਪ ਨਈਅਰ ਦੇ ਲਿਖਣ ਅਨੁਸਾਰ ਵਰ੍ਹਦੀਆਂ ਲਾਠੀਆਂ ਦੀ ਮਾਰ ਨਾਲ ਡਿੱਗੇ ਪਏ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੇ ਬੇਹੋਸ਼ ਹੋਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗਰਜ਼ ਕੇ ਕਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਮੇਰੇ ਜਿਸਮ ਉਤੇ ਵੱਜੀ ਇਕ ਇਕ ਲਾਠੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਕਫ਼ਨ ਵਿਚ ਕਿੱਲ ਸਾਬਤ ਹੋਵੇਗੀ। (ਦੇਖੋ ਸਫੇ 33-34) ਐਨਾ ਨੰਗਾ ਚਿੱਟਾ ਝੂਠ ਬੋਲਣ ਵੇਲੇ ਬਜ਼ੁਰਗ ਪੱਤਰਕਾਰ ਨੂੰ ਇਹ ਵੀ ਚੇਤੇ ਨਾ ਰਿਹਾ ਕਿ ‘ਕਫ਼ਨ ਵਿਚ ਕਿੱਲ’ ਵਾਲੀ ਗੱਲ ਤਾਂ ਲਾਲੇ ਨੇ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਦੀ ਘਟਨਾ ਤੋਂ ਕਈ ਘੰਟੇ ਬਾਅਦ ਉਸੇ ਦਿਨ ਸ਼ਾਮ ਨੂੰ ਇਕ ਰੋਸ ਜਲਸੇ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਨ ਕਰਦਿਆਂ ਕਹੀ ਸੀ। ਐਨਾ ਨੰਗਾ ਚਿੱਟਾ ਝੂਠ ਬੋਲਣ ਲਈ ਜਿਥੇ ਕੁਲਦੀਪ ਨਈਅਰ ਦੀ ‘ਦਲੇਰੀ’ ਦੀ ਦਾਦ ਦੇਣੀ ਬਣਦੀ ਹੈ, ਉਥੇ ਨਾਲ ਹੀ ਪੰਜਾਬੀ ਦੇ ਦਾਨਸ਼ਵਰ ਵਰਗ ਦੇ ‘ਹਾਜ਼ਮੇ’ ਉਤੋਂ ਵੀ ਅਸ਼ਕੇ ਜਾਣ ਨੂੰ ਚਿੱਤ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੇਂ ਇਸ ਬੱਜਰ ਝੂਠ ਨੂੰ ਪੂਰੇ ਸ਼ਰਧਾ ਭਾਵ ਨਾਲ ਸੱਤ ਵਚਨ ਕਹਿਕੇ ਪਰਵਾਨ ਕਰ ਲਿਆ ਅਤੇ ਇਸ ਬੌਧਿਕ ਕੁਕਰਮ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਉਂਗਲ ਖੜ੍ਹੀ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਈ ਲੋੜ ਮਹਿਸੂਸ ਨਾ ਕੀਤੀ।
ਖੈਰ ਕੁਲਦੀਪ ਨਈਅਰ ਵਰਗੇ ਵਿਅਕਤੀ ਵੱਲੋਂ ਅਜਿਹੀ ਹੋਛੀ ਤੇ ਗੈਰ-ਜੁੰਮੇਵਾਰ ਹਰਕਤ ਕਰਨਾ ਬਹੁਤੀ ਓਪਰੀ ਗੱਲ ਨਹੀਂ। ਅਜਿਹੇ ਮਨਘੜਤ ਝੂਠ ਬੋਲਣਾ ਉਹ ਆਪਣਾ ‘ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀ ਧਰਮ’ ਸਮਝਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਦਾ ਸਬੂਤ ਉਸ ਵੱਲੋਂ 1971 ਦੀ ਹਿੰਦ-ਪਾਕਿ ਜੰਗ ਨਾਲ ਸਬੰਧਤ ਲਿਖੀਆਂ ਯਾਦਾਂ ਤੋਂ ਮਿਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਥੇ ਉਸ ਨੇ ਰਾਸ਼ਟਰ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲਈ ਗਿਣ ਮਿਥ ਕੇ ਝੂਠ ਬੋਲਣ ਦੇ ਇਕ ਉਘੜਵੇਂ ਤੱਥ ਦਾ ਖੁਲ੍ਹੇਆਮ ਇਕਬਾਲ ਕੀਤਾ ਹੈ। (ਦੇਖੋ ‘ਅਜੀਤ’, ਕੁਲਦੀਪ ਨਈਅਰ, ‘ਮੇਰੀਆਂ ਯਾਦਾਂ’ ) ਪਰ ਮੈਨੂੰ ਪ੍ਰੋ: ਮਲਵਿੰਦਰਜੀਤ ਸਿੰਘ ਵੜੈਚ ਦੀ ਇਕ ਲਿਖਤ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਬਹੁਤ ਦੁੱਖ ਵੀ ਹੋਇਆ ਤੇ ਹੈਰਾਨੀ ਵੀ ਹੋਈ ਕਿ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦ ਦਾ ਜਨੂੰਨ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਸ ਵਰਗੇ ਜ਼ਹੀਨ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਵੀ ਗਿਣਿਆ ਮਿਥਿਆ ਝੂਠ ਬੋਲਣ ਲਈ ਉਤੇਜਿਤ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਇਕ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਿਤਾਬ- ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਅਮਰ ਵਿਦਰੋਹੀ- ਵਿਚ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਉਤੇ ਹੋਏ ਲਾਠੀਚਾਰਜ ਦੀ ਘਟਨਾ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਥੀ ਯਸ਼ਪਾਲ ਦੀ ਹਿੰਦੀ ਵਿਚ ਲਿਖੀ ਇਕ ਲਿਖਤ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਨਾਲ ਦਿਤਾ ਹੈ। ਪਰ ਪ੍ਰੋ: ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਹਿੰਦੀ ਵਿਚੋਂ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਚ ਤਰਜਮਾ ਕਰਨ ਵੇਲੇ ਤੱਥਾਂ ਦਾ ਮੂੰਹ-ਮੱਥਾ ਹੀ ਵਿਗਾੜ ਦਿਤਾ ਹੈ। ਯਸ਼ਪਾਲ ਲਿਖਦਾ ਹੈ ਕਿ ‘ਡੀ ਐਸ ਪੀ ਸਾਂਡਰਸ ….. ਦੀ ਇਕ ਲਾਠੀ ਨਾਲ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੇ ਸਿਰ ਉਪਰ ਤਾਣੀ ਹੋਈ ਛਤਰੀ ਟੁੱਟ ਗਈ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕੰਧੇ ਉਪਰ ਚੋਟ ਲੱਗੀ। ਨੌਜਵਾਨ ਸਾਥੀ ਅਜੇ ਵੀ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੂੰ ਘੇਰੇ ਵਿਚ ਲੈ ਕੇ ਡਟੇ ਰਹਿਣ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਸਨ, ਪ੍ਰੰਤੂ ਚੋਟ ਲੱਗਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਾਲਾ ਜੀ ਨੇ ਹੁਕਮ ਦੇ ਦਿੱਤਾ, ਪੁਲਿਸ ਦੀ ਇਸ ਜਾਲਮਾਨਾ ਹਰਕਤ ਦੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਮੁਜ਼ਾਹਰੇ ਨੂੰ ਮੁਅੱਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ।‘ ਹੁਣ ਦੇਖੋ ਪ੍ਰੋ: ਸਾਹਿਬ ਇਸ ਗੱਲ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਪੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਉਹ ਲਿਖਦੇ ਹਨ: ‘ਏ ਐਸ ਪੀ ਸਾਂਡਰਸ ਨੇ ਨਾ ਸਿਰਫ ਆਪਣੇ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੂੰ ਲਾਠੀਆਂ ਵਰਸਾਉਣ ਲਈ ਹੀ ਉਕਸਾਇਆ, ਸਗੋਂ ਉਹ ਆਪ ਵੀ ਹੱਥ ਵਿਚ ਡੰਡਾ ਲੈ ਕੇ ਵਾਰ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਿਆ। ਫਿਰ ਇਕ ਡੰਡਾ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੇ ਸਿਰ ਉਪਰ ਲੱਗਿਆ, ਜਿਹੜਾ ਛਤਰੀ ਨੂੰ ਤੋੜਦਾ ਹੋਇਆ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਛਾਤੀ ਵਿਚ ਜਾ ਵੱਜਾ’। ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੇ ‘ਸਿਰ ਉਤੇ ਡੰਡਾ’ ਵੱਜਣ ਵਾਲੀ ਗੱਲ ਯਸ਼ਪਾਲ ਜੀ ਨੇ ਕਿਤੇ ਵੀ ਨਹੀਂ ਲਿਖੀ। ਇਹ ਪ੍ਰੋ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਆਪਣੀ ਘਾੜਤ ਹੈ। ਏਥੇ ਹੀ ਬੱਸ ਨਹੀਂ। ਪ੍ਰੋ: ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਮਾਮੂਲੀ ਜ਼ਖ਼ਮ ਨੂੰ ਵਧਾ ਕੇ ‘ਗਹਿਰਾ ਜ਼ਖ਼ਮ’ ਬਣਾ ਦਿਤਾ ਅਤੇ ਇਸ ਝੂਠ ਨੂੰ ਪ੍ਰਮਾਣੀਕ ਬਨਾਉਣ ਲਈ, ਇਸ ਨੂੰ ਧੱਕੇ ਨਾਲ ਹੀ ‘ਯਸ਼ਪਾਲ ਵੱਲੋਂ ਦਰਜ ਕੀਤੇ ਵਿਵਰਣ’ ਦੇ ਖਾਤੇ ਵਿਚ ਪਾ ਦਿਤਾ। (ਦੇਖੋ ਸਫਾ 77) ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ਵਿਚ ਲਾਲਾ ਜੀ ਦੇ ਜ਼ਖ਼ਮਾਂ ਦੀ ਤਸਵੀਰ ਛਾਪਣ ਵੇਲੇ ਪ੍ਰੋ: ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਜ਼ਖ਼ਮਾਂ ਦਾ ਵੱਧ ਗੰਭੀਰ ਪਰਭਾਵ ਦੇਣ ਲਈ, ਤਸਵੀਰ ਵਿਚ ਸਾਫ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦੀਆਂ ਝਰੀਟਾਂ ਨੂੰ ‘ਫੱਟ’ ਕਹਿਣ ਦੀ ਅਤਿਕਥਨੀ ਤੋਂ ਗੁਰੇਜ਼ ਨਾ ਕੀਤਾ, ਜਦੋਂ ਕਿ ਕਾਬਲ ਵਕੀਲ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਤੇ ਉਹ ‘ਫੱਟ’ ਲਫ਼ਜ਼ ਦੇ ਪ੍ਰਚਲਤ ਅਰਥਾਂ (ਚੋਨਨੋਟਅਟੋਿਨ) ਤੋਂ ਅਨਜਾਣ ਨਹੀਂ ਹਨ।
‘ਸ਼ੇਰੇ-ਪੰਜਾਬ’ ਦਾ ਗੀਦੀਪੁਣਾ!
ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਤੋਂ ਮੁਆਫ਼ੀ ਲਈ
ਮਾਂਡਲੇ ਜੇਲ੍ਹ ਤੋਂ ਲਿਖੇ ਦੋ ਪੱਤਰ
ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਪੱਤਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਖੋਜੀ (ਮਰਹੂਮ) ਭਾਈ ਨਾਹਰ ਸਿੰਘ ਐਮ ਏ ਨੇ ਲੱਭੇ ਸਨ ਤੇ ਦਿੱਲੀ ਤੋਂ ਛਪਦੇ ਰਹੇ ‘ਆਰਸੀ’ ਨਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਮਾਸਕ ਰਸਾਲੇ ਨੇ ਆਪਣੇ ਫਰਵਰੀ 1969 ਦੇ ਅੰਕ ਵਿਚ ਛਾਪੇ ਸਨ। ਜਦੋਂ ਪੰਜਾਬੀ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਪਟਿਆਲਾ ਦੇ ਪ੍ਰੋ. ਸੱਤਿਆ ਐਮ ਰਾਏ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪੱਤਰਾਂ ਬਾਰੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਗ਼ਦਰੀ ਬਾਬੇ ਗੁਰਮੁਖ ਸਿੰਘ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕੀਤੀ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਲਹਿਰ ਨਾਲ ਗ਼ਦਾਰੀ ਅਤੇ ਨੰਗਾ ਚਿੱਟਾ ਮੁਆਫ਼ੀਨਾਮਾ ਕਰਾਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ। ਸ. ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ (ਚਾਚਾ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ) ਨੇ ਵੀ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਵੱਲੋਂ ਲਿਖੇ ਗਏ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪੱਤਰਾਂ ਦਾ ਬੇਹੱਦ ਬੁਰਾ ਮਨਾਇਆ ਸੀ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਪੱਤਰਾਂ ਦੀ ਪੂਰੀ ਇਬਾਰਤ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ:
ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ,
ਹਿਜ਼ ਐਕਸੀਲੈਂਸੀ ਵਾਇਸਰਾਏ
ਤੇ ਗਵਰਨਰ ਜਨਰਲ ਆਫ਼ ਇੰਡੀਆ
ਤੇ ਅਧੀਨ ਦੇਸ
ਹਜ਼ੂਰ ਦੀ ਸੇਵਾ ਵਿਚ ਨਿਵੇਦਨ ਹੈ : ਤੁਹਾਡਾ ਨਿਮਾਨਾ ਫਰਿਆਦੀ ਇਕ ਸਰਕਾਰੀ ਕੈਦੀ ਹੈ, ਜੋ ਮਾਂਡਲੇ (ਅਪਰ ਬਰਮਾ) ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿਚ ਬੰਦੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਵਿਚ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ਤੇ ਤੁਹਾਡੇ ਹੁਕਮ ਨਾਲ ਜਲਾਵਤਨ ਕਰ ਕੇ ਇਸ ਥਾਂ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ। ਇਹ ਹੁਕਮ ਹਜ਼ੂਰ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਹੇਠ 7 ਮਈ 1907 ਨੂੰ ਕੱਢਿਆ ਗਿਆ।
ਤੁਹਾਡੇ ਇਸ ਫਰਿਆਦੀ ਨੂੰ ਨਾ ਤਾਂ ਉਦੋਂ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਹੁਣ ਤੱਕ ਉਸ ਦੂਸ਼ਣ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੂਸ਼ਣਾਂ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਆਧਾਰ ਬਣਾ ਕੇ 1818 ਦੀ ਧਾਰਾ 3 ਦੇ ਅਧੀਨ ਹਜ਼ੂਰ ਵੱਲੋਂ ਕਾਰਵਾਈ ਕੀਤੀ ਗਈ, ਦੇ ਸੁਭਾਵ ਤੇ ਵੇਰਵੇ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ ਗਿਆ।
ਤੁਹਾਡਾ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਕਦੇ ਵੀ ਅਜਿਹਾ ਕੁਝ ਕਰਨ ਲਈ ਤਾਂਘ ਨਹੀਂ ਸੀ ਰੱਖਦਾ, ਜਿਸ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸ਼ਹਿਨਸ਼ਾਹ ਦੀ ਸਲਤਨਤ ਦੇ ਕਿਸੇ ਹਿੱਸੇ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹੁੱਲੜ ਮਚਾਣਾ ਹੋਵੇ। ਤੁਹਾਡਾ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਬੜੇ ਸਤਿਕਾਰ, ਪਰ ਜ਼ੋਰ ਨਾਲ ਤਰਦੀਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਕਦੇ ਵੀ ਅਜਿਹੀ ਕੋਈ ਗੱਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਜਿਸ ਸਦਕਾ ਇਹ ਧਾਰਾ ਉਸ ਵਿਰੁੱਧ ਲਾਗੂ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੋਵੇ।
ਤੁਹਾਡਾ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਬੜੇ ਸਤਿਕਾਰ ਨਾਲ ਤਰਦੀਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਦੇ ਗ੍ਰਿਫਤਾਰ ਕਰਨ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਂ ਉਸ ਤੋਂ ਕੁਝ ਪਹਿਲਾਂ ਜਾਂ ਫਿਰ ਕੁਝ ਪਿੱਛੋਂ, ਕਦੇ ਵੀ, ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਸਲਾਮਤ ਦੀ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਦੇ ਸਲਤਨਤ ਦੇ ਕਿਸੇ ਹਿੱਸੇ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਭਾਂਤ ਦਾ ਉਚਿਤ ਸੰਸਾ ਨਹੀਂ ਸੀ, ਜਿਸ ਤੋਂ ਬਚਾਓ ਲਈ ਤੁਹਾਡੇ ਇਸ ਫਰਿਆਦੀ ਦੀ ਗ੍ਰਿਫਤਾਰੀ ਤੇ ਜਲਾਵਤਨੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਜਾਂ ਦਲੀਲ ਪੂਰਬਕ ਹੋਵੇ।
ਤੁਹਾਡੇ ਇਸ ਫਰਿਆਦੀ ਦਾ ਯਕੀਨ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਵੱਲੋਂ ਪਹੁੰਚਾਈ ਗਈ ਝੂਠੀ ਤੇ ਮੰਦਭਾਵਨਾ ਵਾਲੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਬਣਿਆ ਰਿਹਾ ਹੈ ਤੇ ਬਣਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਜਾਂ ਫਿਰ ਉਸ ਵਿਰੁੱਧ ਰਿਪੋਰਟਾਂ ਪੱਖਪਾਤੀ ਜਾਂ ਗ਼ਲਤਫਹਿਮੀ ਵਿਚ ਪਏ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਦੇ ਕਿਸੇ ਭੁਲੇਖੇ ਜਾਂ ਸੰਸੇ ‘ਤੇ ਆਧਾਰਤ ਹਨ।
ਤੁਹਾਡਾ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਬੜੇ ਸਤਿਕਾਰ ਨਾਲ ਅਰਜ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਨਸਾਫ਼ ਤੇ ਹਕ-ਨਿਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਉੱਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਉਸ ਵਿਰੁੱਧ ਲਗਾਏ ਗਏ ਦੋਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਜਾਣੂ ਕਰਵਾਇਆ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਜੋ ਉਹ ਹਜ਼ੂਰ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਗੋਚਰੇ ਆਪਣਾ ਪੱਖ ਰੱਖ ਸਕੇ।
ਤੁਹਾਡਾ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਹਮੇਸ਼ਾ ਹੀ ਆਪਣੇ ਨਿਮਾਣੇ ਜਿਹੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਸਦਾ ਸ਼ਾਂਤਮਈ ਕੰਮਾਂ ਵਿਚ ਰੁਝਿਆ ਰਿਹਾ ਹੈ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਵਸੀਲਿਆਂ ਤੇ ਗਿਆਨ ਅਨੁਸਾਰ ਵਿਭਿੰਨ ਢੰਗਾਂ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਦੇਸ਼ ਵਾਸੀਆਂ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਜਿਹਾ ਕਿ ਸਿਖ਼ਸ਼ਾ ਨੂੰ ਫੈਲਾਣ ਦਾ ਕੰਮ, ਯਤੀਮਾਂ ਜਾਂ ਵਿਧਵਾਵਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਲਈ ਦਾਨ ਇਕੱਤਰ ਕਰਨਾ, ਕਾਲ ਦੇ ਸਮੇਂ ਕਾਲ ਪੀੜਤਾਂ ਲਈ ਦਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਤੇ ਵੰਡਣਾ ਅਤੇ 1905 ਦੇ ਭੂਚਾਲ ਸਮੇਂ ਬਣੀ ਵੱਡੀ ਭੀੜ ਵੇਲੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸਹਾਇਤਾ ਦੇਣੀ। ਤਿੰਨ ਸਾਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਤੱਕ ਉਹ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਕ ਨਗਰ ਵਿਚ ਮਿਊਂਸਪਲ ਕਮਿਸ਼ਨਰ ਰਿਹਾ। ਪਿਛਲੇ 25 ਸਾਲਾਂ ਦੇ ਲੰਮੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਉਸ ‘ਤੇ ਕਦੇ ਵੀ ਹਿਜ਼ ਮੈਜਸਟੀ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਵਿਰੁੱਧ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕੋਈ ਵੀ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦਾ ਦੋਸ਼ ਨਹੀਂ ਲਗਾਇਆ ਗਿਆ ਜਾਂ ਸੰਦੇਹ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ। ਤੁਹਾਡੇ ਇਸ ਫਰਿਆਦੀ ਵਰਗੀ ਨਿਮਾਣੀ ਥਾਂ-ਥਿਤ ਵਾਲੇ ਸ਼ਖਸ ਲਈ ਇਸ ਤਰ੍ਰਾਂ ਇਕ ਦਮ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਵਾਰ ਤੋਂ ਵੱਖ ਹੋ ਜਾਣ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੇ ਵਸੀਲਿਆਂ ਤੋਂ ਵਾਂਝੇ ਜਾਣ ਨਾਲ ਬੜੀ ਦੁਖਦਾਈ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘਣਾ ਪੈ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਵੱਡੀ ਗੱਲ ਤਾਂ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਪਤਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ਕਿ ਉਸ ਨਾਲ ਕਿਉਂ ਇਉਂ ਹੋਇਆ ਤੇ ਫਿਰ ਉਸ ਨੂੰ ਜਵਾਬ ਦੇਹੀ ਦਾ ਮੌਕਾ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ। ਤੁਹਾਡਾ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਤਾਂ ਅਸਾਧ ਅਪਚ ਦਾ ਰੋਗੀ ਹੈ, ਉਸ ਦਾ ਜਿਗਰ ਅਤੇ ਮੇਹਦਾ ਖਰਾਬ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਤਿਲੀ ਵਧੀ ਹੋਈ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਯਰਕਾਨ ਵੀ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਕਈ ਕਈ ਮਹੀਨੇ ਨਿਸੱਤਾ ਹੋ ਕੇ ਪਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਇਹ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਸਚਾਈ ਹੈ ਜਿਸ ਦੀ ਤਸੱਲੀ ਲਾਹੌਰ ਵਿਚ ਉਸ ਦੇ ਇਲਾਜ ਕਰਦੇ ਡਾਕਟਰਾਂ ਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ। ਤੁਹਾਡਾ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਇਸ ਸਮੇਂ ਉਨੀਂਦਰੇ ਦੀ ਬੀਮਾਰੀ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੈ। ਇਕ ਓਪਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਲੰਮੇ ਸਮੇਂ ਤੱਕ ਦੀ ਕੈਦ, ਤੇ ਇਕ ਅਜਿਹੇ ਜਲਵਾਯੂ ਵਿਚ ਜੋ ਉਸ ਲਈ ਓਪਰੀ ਹੈ ਤੇ ਜਿਥੇ ਕਸਰਤ ਲਈ ਚੋਖੇ ਮੌਕੇ ਨਹੀਂ, ਜਿਥੇ ਘਰ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਨਹੀਂ, ਅਜਿਹੇ ਜੀਵਨ ਦੀ ਸੁੰਞ ਤੇ ਅਕਾ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਇਕਸਾਰਤਾ ਸੇਹਤ ‘ਤੇ ਕਾਫ਼ੀ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਪਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਤੁਹਾਡਾ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਅਰਜ਼ ਗੁਜ਼ਾਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਹਿਜ਼ ਐਕਸੀਲੈਂਸੀ ਇਨ ਕੌਂਸਲ ਉਸ ਦੀ ਰਿਹਾਈ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦੇਣ, ਜਾਂ ਉਸ ਵਿਰੁੱਧ ਲਗਾਏ ਗਏ ਦੂਸ਼ਣ ਜਾਂ ਦੂਸ਼ਣਾਂ ਤੋਂ ਉਸ ਨੂੰ ਜਾਣੂ ਕਰਾਣ, ਜੇ ਕਿਸੇ ਕਾਰਨ ਹਜ਼ੂਰ ਮੇਰੀ ਇਹ ਨਿਮਾਣੀ ਅਰਜ਼ ਪ੍ਰਵਾਨ ਨਾ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹੋਣ, ਤਾਂ ਹਜੂਰ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਕੇ ਇਸ ਨਿਮਾਣੀ ਫਰਿਆਦ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸ਼ਹਿਨਸ਼ਾਹ ਮੁਹਤਮਿਮ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਗੋਚਰਾ ਰੱਖਣ।
ਜਦੋਂ ਤੱਕ ਇਸ ਫਰਿਆਦ ‘ਤੇ ਵਿਚਾਰ ਨਹੀਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀ, ਉਦੋਂ ਤੱਕ ਹਜ਼ੂਰ ਇਸ ਫਰਿਆਦੀ ਉੱਤੇ ਕ੍ਰਿਪਾ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਕਰਦਿਆਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਗੱਲਾਂ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦੇਣ।
(ੳ) ਇਥੋਂ ਦੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਨਿੱਜੀ ਨੌਕਰ ਦੀ ਸੇਵਾ ਤੇ ਸਾਥ ਦੀ ਸਹੂਲਤ
(ਅ) ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਤੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀ ਅਖ਼ਬਾਰ ਪੜ੍ਹਨ ਦੀ ਆਗਿਆ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਬਿਨ੍ਹਾਂ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਬਹੁਤ ਇਕੱਲਤਾ ਜਿਹੀ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਫਰਿਆਦੀ ਉੱਤੇ ਕ੍ਰਿਪਾ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਕਰਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ ਇਹ ਵੀ ਦੱਸਣ ਦੀ ਮਿਹਰਬਾਨੀ ਕਰਨੀ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਕਦੋਂ ਤੱਕ ਇਥੇ ਕੈਦ ਰੱਖਿਆ ਜਾਵੇਗਾ। ਇਹ ਮਿਹਰਬਾਨੀ ਤੇ ਹੱਕ-ਨਿਆਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਤੁਹਾਡਾ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਹਜ਼ੂਰ ਦੀ ਦੀਰਘ ਆਯੂ ਲਈ ਪ੍ਰਾਰਥਨਾ ਕਰਨਾ ਆਦਿ, ਆਦਿ, ਆਪਣਾ ਫਰਜ਼ ਸਮਝੇਗਾ।
ਮਾਂਡਲੇ ਫ਼ੋਰਟ ਡਫ਼ਰਿਨ ਹਜ਼ੂਰ ਦਾ ਨਿਮਾਣਾ ਫਰਿਆਦੀ
29 ਜੂਨ 1907 ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਆਫ਼ ਲਾਹੌਰ
ਮੇਜਰਨਾਮਾ
ਸੇਵਾ ਵਿਖੇ, ਆਦਰਯੋਗ
ਇੰਡੀਅਨ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ ਸਬੰਧੀ ਸਕੱਤਰ
ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਪਾਰਲੀਮੈਂਟ, ਲੰਡਨ।
ਹਜ਼ੂਰ ਦੀ ਸੇਵਾ ਵਿਚ ਨਿਵੇਦਨ ਹੈ :
1. ਤੁਹਾਡਾ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਸਰਕਾਰੀ ਕੈਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਮਾਂਡਲੇ (ਬਰਮਾ) ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿਚ ਬੰਦ ਹੈ। ਇਸ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਵਿਚ ਗ੍ਰਿਫਤਾਰ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ਤੇ ‘ਵਰੰਟ ਆਫ਼ ਕਮਿਟਮੈਂਟ‘ ਦੀ ਤਹਿਮੀਲ ਵਿਚ ਇਸ ਥਾਂ ਜਲਾਵਤਨ ਕਰਕੇ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ। ਸੁਣਵਾਈ ਦੀ ਮਿਤੀ 7 ਮਈ 1907 ਸੀ, ਤੇ ਇਹ ਵਰੰਟ 1818 ਦੀ ਧਾਰਾ 3 ਦੇ ਅਧੀਨ ਹਜ਼ੂਰ ਗਵਰਨਰ ਜਨਰਲ ਆਫ਼ ਇੰਡੀਆ ਇਨ ਕੌਂਸਲ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਹੇਠ ਜਾਰੀ ਕੀਤੇ ਗਏ।
2. ਇਸ ਫਰਿਆਦੀ ਨੂੰ ਨਾ ਤਾਂ ਗ੍ਰਿਫਤਾਰੀ ਸਮੇਂ ਅਤੇ ਨਾ ਹੀ ਪਿੱਛੋਂ ਉਸ ਦੂਸ਼ਣ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੂਸ਼ਣਾਂ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ ਗਿਆ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਉਪਰੋਕਤ ਧਾਰਾ ਦੇ ਅਧੀਨ ਉਸ ਵਿਰੁਧ ਕਾਰਵਾਈ ਕੀਤੀ ਗਈ।
3. ਤੁਹਾਡੇ ਇਸ ਫਰਿਆਦੀ ਨੇ ਅੱਗੇ ਇਕ ਬਿਨੈਪੱਤਰ ਵਿਚ, ਜੋ ਹਜ਼ੂਰ ਵਾਇਸਰਾਏ ਤੇ ਗਵਰਨਰ ਜਨਰਲ ਆਫ਼ ਇੰਡੀਆ ਨੂੰ ਘਲਿਆ ਗਿਆ, ਲਿਖਿਆ ਸੀ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਅਜਿਹਾ ਕੋਈ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਉਪਰੋਕਤ ਧਾਰਾ ਨਿਆਂ-ਪੂਰਵਕ ਉਸ ਉੱਤੇ ਲਾਗੂ ਹੋ ਸਕੇ, ਉਸ ਨੇ ਕਦੇ ਅਜਿਹੀ ਕੋਈ ਕਾਰਵਾਈ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਜਿਸ ਨਾਲ ਹਜ਼ੂਰ ਦੀ ਭਾਰਤ ਦੀ ਸਲਤਨਤ ਦੇ ਕਿਸੇ ਹਿੱਸੇ ਵਿਚ ‘ਹੁੱਲੜ‘ ਮਚਿਆ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਮਚਣ ਦੀ ਸੰਭਾਵਨਾ ਹੋਵੇ। ਹਕੀਕਤ ਤਾਂ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਫਰਿਆਦੀ ਦੀ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰੀ ਸਮੇਂ ਅਜਿਹੇ ਕਿਸੇ ‘ਹੁੱਲੜ‘ ਮਚਣ ਦਾ ਕੋਈ ਡਰ ਨਹੀਂ ਸੀ। ਤੁਹਾਡਾ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਝੂਠੀ ਸੂਹ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਬਣਿਆ ਹੈ, ਜੋ ਉਸ ਦੇ ਵਿਰੁਧ ਉਸ ਦੇ ਦੁਸ਼ਮਣਾਂ ਜਾਂ ਪੱਖਪਾਤੀ ਸਰਕਾਰੀ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੇ, ਆਪਣਾ ਪੱਖ ਪੂਰਨ ਲਈ ਦਿੱਤੀ ਅਤੇ ਕਿ ਜੇ ਉਸ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨਿਕਾਲੇ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਬਾਰੇ ਆਪਣੀ ਜਵਾਬਦੇਹੀ ਹਜ਼ੂਰ ਤੇ ਕੌਂਸਲ ਦੀ ਤਸੱਲੀ ਲਈ ਦੇਂਦਾ।
4. ਫਰਿਆਦੀ ਨੂੰ ਉਸ ਵਿਰੁੱਧ ਲਗਾਏ ਗਏ ਦੂਸ਼ਣਾਂ ਤੋਂ ਬਿਲਕੁਲ ਅਗਿਆਤ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਕੋਈ ਨਿਸਚਿਤ ਬਿਆਨ ਦੇਣ ਤੇ ਆਪਣੀ ਨਿਰਦੋਸ਼ਤਾ ਦੇ ਸਬੂਤ ਦੇਣ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਕਿਉਂ ਜੋ ਅਖ਼ਬਾਰ ਪੜ੍ਹਨ ਦੀ ਆਗਿਆ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤੀ ਗਈ। ਇਸ ਲਈ ਤੁਹਾਡਾ ਫਰਿਆਦੀ ਗਵਰਨਮੈਂਟ ਆਫ਼ ਇੰਡੀਆ ਦੇ ‘ਕਿਆਸੇ ਆਧਾਰਾਂ‘ ਦੀ ਖੰਡਨਾ ਜਾਂ ਜਵਾਬਦੇਹੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚ ਨਹੀਂ। ਪ੍ਰੰਤੂ ਉਹ ਆਦਰ ਨਾਲ ਇਹ ਦੁਹਰਾਣ ਦੀ ਖੁੱਲ੍ਹ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਗਵਰਨਮੈਂਟ ਆਫ਼ ਇੰਡੀਆ ਦੀ ਕਾਰਵਾਈ, ਜੋ 1818 ਦੀ ਧਾਰਾ 3 ਦੇ ਅਧਾਰ ‘ਤੇ ਉਸ ਵਿਰੁਧ ਕੀਤੀ ਗਈ, ਉਹ ਅਨਿਆਂ ਪੂਰਬਕ ਤੇ ਬੇਲੋੜੀ ਹੈ, ਅਜਿਹੀ ਕਾਰਵਾਈ ਲਈ ਅਵਸਰ ਬਣਿਆ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ਅਤੇ ਇਹ ਧਾਰਾ ਟਿਕਵੇਂ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਦਿਨਾਂ ਲਈ ਅਤੇ ਤੁਹਾਡੇ ਇਸ ਫਰਿਆਦੀ ਜਿਹੇ ਸ਼ਖਸ ਲਈ ਜੋ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਨਿਮਾਣੀ ਥਾਂ ਰੱਖਦਾ ਹੈ, ਨਹੀਂ ਮੰਨੀ ਗਈ ਸੀ।
5. ਤੁਹਾਡਾ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਇਹ ਵੀ ਬਿਨੈ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਜਾਂ ਰਾਵਲਪਿੰਡੀ ਦੇ ਫਸਾਦਾਂ ਵਿਚ ਕੋਈ ਭਾਗ ਨਹੀਂ ਲਿਆ, ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਧੇ ਜਾਂ ਪਰੋਖੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕਿਸੇ ਸ਼ਖਸ ਨੂੰ ਗੜਬੜ ਮਚਾਣ ਲਈ ਉਤਸ਼ਾਹ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ, ਉਸ ਨੇ ਕੋਈ ਰਾਜ ਧਰੋਹ ਵਾਲਾ ਭਾਸ਼ਣ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ, ਅਤੇ ਸਰਕਾਰ ਵੱਲੋਂ ਚੁੱਕੇ ਕੁਝ ਕਦਮਾਂ, ਜੋ ਉਸ ਦੀ ਗ੍ਰਿਫਤਾਰੀ ਦੇ ਝਟ ਕੁ ਪਹਿਲਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹੀਂ ਦਿਨੀਂ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਦਿਲ ਮੱਲੀ ਬੈਠੇ ਸਨ, ਦਾ ਖੰਡਨ ਕਰਦਿਆਂ ਉਸ ਨੇ ਕਾਨੂੰਨ ਤੇ ਵਿਧਾਨ ਦੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਨਹੀਂ ਉਲੰਘੀਆਂ, ਉਸ ਨੇ ਕਦੇ ਵੀ ਨਵਿਰਤੀ ਲਈ ਅਹਿੰਸਕ ਜਾਂ ਗੈਰਕਾਨੂੰਨੀ ਵਿਧੀਆਂ ਅਪਨਾਣ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ, ਨਾ ਹੀ ਉਸ ਨੇ ਕਦੇ ਅਜਿਹੇ ਸ਼ਖਸ ਨਾਲ ਸਬੰਧ ਰੱਖੇ ਹਨ, ਜੋ ਉਸ ਦੀ ਸਮਝ ਅਨੁਸਾਰ ਅਜਿਹੀਆਂ ਵਿਧੀਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਦਾ ਹੋਵੇ। ਉਸ ਵਿਰੁਧ ਜੋ ਇਹ ਸੰਦੇਹ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਹਜ਼ੂਰ ਦੀ ਭਾਰਤੀ ਫੌਜ ਦੇ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਨੂੰ ਹਜ਼ੂਰ ਦਾ ਵਫ਼ਾਦਾਰ ਨਾ ਰਹਿਣ ਲਈ ਵਰਗਲਾਇਆ ਹੈ, ਇਹ ਬਿਲਕੁਲ ਨਿਰਮੂਲ ਹੈ, ਤੁਹਾਡੇ ਫਰਿਆਦੀ ਨੂੰ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਸੰਚਾਰ ਰੱਖਣ ਦਾ ਕਦੇ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਅਵਸਰ ਹੀ ਨਹੀਂ ਬਣਿਆ।
6. ਫਰਿਆਦੀ ਬੜੇ ਆਦਰ ਨਾਲ ਇਹ ਬਿਨੈ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਸ਼ਖਸੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਤੋਂ ਵਾਂਝਿਆ ਰੱਖ ਕੇ, ਅਜਿਹੀ ਕਾਰਵਾਈ ਦੇ ਆਧਾਰ ਕਾਰਨ ਨੂੰ ਦੱਸੇ ਬਿਨਾਂ, ਉਸ ਨੂੰ ਸੁਣੇ ਬਿਨਾਂ ਤੇ ਆਪਣੀ ਰੱਖਿਆ ਵਿਚ ਕੁਝ ਕਹਿਣ ਦਾ ਕੋਈ ਹੱਕ ਦਿੱਤੇ ਬਿਨਾਂ, ਉਸ ਨੂੰ ਰੱਦ ਕੇ, ਉਸ ਜਾਣਕਾਰੀ ਉੱਤੇ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨੀ ਜੋ ਉਸ ਦੀ ਪਿੱਠ ਪਿੱਛੇ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਕਾਨੂੰਨੀ ਸਲਾਹ ਲੈਣ ਲਈ ਸਹੂਲਤਾਂ ਨਾ ਦੇ ਕੇ ਗਵਰਨਮੈਂਟ ਆਫ਼ ਇੰਡੀਆ, ਇਸ ਅਵਸਰ ਉੱਤੇ, ਇਨਸਾਫ਼ ਤੇ ਹੱਕ-ਨਿਆਂ ਦੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਚੱਲਤ ਅਸੂਲਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨੋਂ ਅਸਮਰਥ ਰਹੀ ਹੈ, ਜਿਹੜੇ ਬਰਤਾਨਵੀ ਰਾਜ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਸਾਧਾਰਨ ਗੁਣ ਮੰਨੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਇਹ ਸੋਚਣ ਲਈ ਸਮਰੱਥ ਹੈ ਕਿ ਜਿਹੜੀ ਧਾਰਾ ਉਸ ਵਿਰੁਧ ਲਗਾਈ ਗਈ ਹੈ ਉਹ ਹੁਣ ਖਤਮ ਹੋ ਚੁੱਕੀ ਈਸਟ ਇੰਡੀਆ ਕੰਪਨੀ ਦਾ ਇਕ ਗੈਰ ਸੰਵਿਧਾਨਕ ਕਾਨੂੰਨ ਸੀ, ਅਤੇ ਚਾਰਟਰ ਅਨੁਸਾਰ ਮਿਲੀ ਸ਼ਕਤੀ ਤੋਂ ਬਾਹਰਾ ਸੀ, ਅਤੇ ਬਰਤਾਨਵੀ ਵਿਧਾਨ ਤੇ ਬਰਤਾਨਵੀ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਅਨੁਸਾਰ ‘ਅਧਿਕਾਰੋਂ ਬਾਹਰਾ‘ ਸੀ ਅਤੇ ਬਰਤਾਨਵੀ ਲੋਕ ਸਭਾ ਵੱਲੋਂ ਕਦੇ ਵੀ ਸਵੀਕਾਰ ਜਾਂ ਪ੍ਰਵਾਨ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ, ਉਪਰੋਕਤ ਧਾਰਾ ਅਨੁਸਾਰ ਐਗਜ਼ੈਕਟਿਵ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾ ਲਈ ਇਹ ਸਦੀਵੀ ਸ਼ਕਤੀ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰ ਦੇਣੀ ਕਿ ਉਹ ਬਰਤਾਨਵੀ ਪਰਜਾ ਨੂੰ ਅਦਾਲਤ ਵਿਚ ਬਿਨਾਂ ਯੋਗ ਢੰਗ ਨਾਲ ਮੁਕੱਦਮਾ ਚਲਾਏ ਦੇ, ਸ਼ਖਸੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਤੋਂ ਵਾਂਝਿਆਂ ਕਰ ਦੇਵੇ, ਸੁਭਾਵਕ ਨਿਆਂ ਤੇ ਕਾਨੂੰਨ ਅਨੁਸਾਰ ਚੱਲ ਰਹੀ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਭ ਸੰਕਲਪਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹੈ।
7. ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਬੜੇ ਆਦਰ ਨਾਲ ਬਿਨੈ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਪਰੋਕਤ ਧਾਰਾ ਅਨੁਸਾਰ ਜਿਹੜੇ ਸ਼ਖਸੀ ਬੰਧੇਜ ਵਰਨਣ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਨ, ਉਹ ਪ੍ਰਸਤਾਵਨਾ ਵਿਚ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਮੰਤਵਾਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖ ਕੇ, ਉਸ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਨਹੀਂ ਸੋਚੇ ਜਾ ਸਕਦੇ, ਅਤੇ ਉਪਰੋਕਤ ਧਾਰਾ ਜ਼ਾਹਿਰੀ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਸਿਰਫ਼ ਨਿਰੋਧ ਲਈ ਹੈ ਨਾ ਕਿ ਉਸ ਸ਼ਖ਼ਸ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ ਦੇਣ ਲਈ ਜਿਸ ਉੱਤੇ ਮੁਕੱਦਮਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ਚਲਾਇਆ ਗਿਆ। ਇਸ ਰੌਸ਼ਨੀ ਵਿਚ ਵੇਖਿਆ ਗਵਰਨਮੈਂਟ ਆਫ਼ ਇੰਡੀਆ ਦਾ ਇਹ ਫੈਸਲਾ ਕਿ ਫਰਿਆਦੀ ਨੂੰ ਅਖਬਾਰਾਂ ਨਾ ਪਹੁੰਚਾਈਆਂ ਜਾਣ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਇਕ ਆਪਣਾ ਨਿੱਜੀ ਨੌਕਰ ਜਾਂ ਆਪਣੀ ਕੌਮੀਅਤ ਦਾ ਇਕ ਬਾਵਰਚੀ ਰੱਖਣ ਦੀ ਆਗਿਆ ਨਾ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇ, ਨਿਆਂਪੂਰਬਕ ਤੇ ਲੋੜੀਂਦਾ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ, ਇਹ ਗੱਲ ਵੀ ਨਿਆਂ ਪੂਰਵਕ ਨਹੀਂ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਕਿਸੇ ਮਿੱਤਰ ਨਾਲ ਬਿਲਕੁਲ ਹੀ ਨਾ ਮਿਲਣ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ਤੇ ਇਹ ਗੱਲ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇ ਕਿ ਸਿਰਫ਼ ਉਹੀ ਸਬੰਧੀ ਉਸ ਨੂੰ ਮਿਲ ਸਕਦਾ ਹੈ ਜਿਸਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਤੋਂ ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਆਗਿਆ ਲੈ ਲਈ ਹੋਵੇ, ਤੇ ਉਹ ਸਿਰਫ਼ ਸਰਕਾਰੀ ਅਧਿਕਾਰੀ ਦੀ ਹਾਜ਼ਰੀ ਵਿਚ, ਨਿਕਟ ਬਹਿ ਕੇ ਮਿਲੇ। ਇਹ ਬੰਦਸ਼ਾਂ ਬਰਤਾਨੀਆ ਵਿਚ ਰਾਜਸੀ ਕੈਦੀ, ਜਾਂ ਲੋਕ ਸਭਾ ਦੇ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਾਨੂੰਨ ਅਧੀਨ, ਬਿਨਾਂ ਮੁਕੱਦਮਾ ਚਲਾਏ ਬੰਦੀ ਵਿਚ ਪਾਏ ਗਏ ਬੰਦੀਵਾਨਾਂ ਨਾਲ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਲੂਕਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹੈ। ਤੁਹਾਡੇ ਇਸ ਫਰਿਆਦੀ ਦੀ ਇਕ ਪਤਨੀ ਤੋਂ ਕਈ ਬੱਚੇ ਹਨ (ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਇਕ ਜਵਾਨ ਵਿਧਵਾ ਲੜਕੀ ਤੇ ਉਸ ਦੀ ਬੱਚੀ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਹੈ) ਉਸ ਦੀ ਸੰਭਾਲ, ਸਿਖਸ਼ਾ ਤੇ ਪਾਲਣ ਪੋਸਣ ਦੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਹੈ ਤੇ ਕਿਸੇ ਹਾਲਤ ਵਿਚ ਵੀ ਫਰਿਆਦੀ ਨੂੰ ਬੰਦੀ ‘ਚ ਰੱਖੀ ਰੱਖਣਾ ਨਿਆਂ ਪੂਰਵਕ ਨਹੀਂ, ਜਦੋਂ ਕਿ ਕਿਆਸ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹੁੱਲੜ ਦਾ ਡਰ ਹੁਣ ਖਤਮ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ।
8. ਤੁਹਾਡਾ ਇਹ ਫਰਿਆਦੀ ਬੜੇ ਸਤਿਕਾਰ ਨਾਲ ਬਿਨੈ ਕਰਦਾ ਤੇ ਦਿਲੋਂ ਉਮੀਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਹਜ਼ੂਰ ਦੀ ਵੱਡੇ ਪ੍ਰਤਾਪ ਵਾਲੀ ਸਰਕਾਰ ਉਸ ਇਨਸਾਫ਼ ਤੇ ਨਿਆਂ ਹੱਕ ਤੋਂ ਫਰਿਆਦੀ ਨੂੰ ਵਾਂਝਿਆਂ ਨਹੀਂ ਰੱਖੇਗੀ ਜਿਸ ਲਈ ਬਰਤਾਨਵੀ ਕੌਮ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਫਰਿਆਦੀ ਨੂੰ ਰਿਹਾਅ ਕਰਨ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦੇਵੇਗੀ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਘਰ ਵਾਪਸ ਜਾਣ ਅਤੇ ਜਿੰਦਗੀ ਵਿਚ ਆਪਣਾ ਸਾਧਾਰਨ ਪੇਸ਼ਾ ਕਰਨ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦੇਵੇਗੀ।
9. ਅਖ਼ੀਰ ਵਿਚ ਜੇ ਹਜ਼ੂਰ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਫਰਿਆਦੀ ਨੂੰ ਬਿਨਾਂ ਸ਼ਰਤ ਰਿਹਾ ਤੇ ਵਾਪਸ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿਚ ਜਾ ਕੇ ਰਹਿਣ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦੇਣਾ ਅਸੰਭਵ ਸਮਝੇ ਤਾਂ ਉਹ ਬੜੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਕਰਦਿਆਂ ਉਸ ਨੂੰ ਉਸ ਸਮੇਂ ਤੱਕ ਲਈ ਭਾਰਤ ਛੱਡ ਦੇਣ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦੇਵੇ। ਜਿਹੜਾ ਸਰਕਾਰ ਉਸ ਬਦਲੇ ਵਿਚ ਨੀਯਤ ਕਰਨਾ ਠੀਕ ਸਮਝਦੀ ਹੋਵੇ, ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਗਰੇਟ ਬ੍ਰਿਟੇਨ ਜਾਂ ਯੂਰਪ ਦੇ ਮਹਾਂਦੀਪ ਜਾਂ ਅਮਰੀਕਾ ਵਿਚ ਆਜ਼ਾਦੀ ਨਾਲ ਰਹਿਣ ਦੀ ਖੁੱਲ੍ਹ ਦੇਵੇ। ਤੁਹਾਡੀ ਇਸ ਮਿਹਰਬਾਨੀ ਲਈ ਤੁਹਾਡਾ ਫਰਿਆਦੀ ਫਰਜ਼ ਵਿਚ ਬੱਝਿਆ ਹੋਇਆ ਹਜ਼ੂਰ ਤੇ ਹਜ਼ੂਰ ਦੇ ਮੰਤਰੀਆਂ ਲਈ ਪ੍ਰਾਰਥਨਾ ਕਰੇਗਾ।
ਮਾਂਡਲੇ, ਫੋਰਟ ਡਫ਼ਰਿਨ ਤੁਹਾਡਾ ਫਰਿਆਦੀ
22 ਸਤੰਬਰ 1907 ਹਜ਼ੂਰ ਦਾ ਨਿਮਾਣਾ ਦਾਸ
ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਆਫ਼ ਲਾਹੌਰ
ਚਿੱਠੀ 3
ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਵੱਲੋਂ
ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਨਾਉਂ ਖੁੱਲ੍ਹੀ ਚਿੱਠੀ
ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਇਕ ਬਜ਼ੁਰਗ ਨੇਤਾ ਮੰਨਦੇ ਹੋਏ ਵੀ, ਇਨਕਲਾਬੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕੁਝ ਵਿਚਾਰਾਂ ਨਾਲ ਅਸਹਿਮਤੀ ਰੱਖਦੇ ਸਨ। ਲਾਲਾ ਜੀ ਅਤੇ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਵਿਚ ਇਕ ਬਹਿਸ ਚੱਲ ਪਈ ਸੀ। ਨਵੰਬਰ 1927 ਵਿਚ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਜੀ ਦੇ ਨਾਂ ਇਕ ਖੁੱਲ੍ਹੀ ਚਿੱਠੀ ਛਾਪੀ ਗਈ ਸੀ। ਇਸ ਚਿੱਠੀ ‘ਤੇ ਦਸਤਖਤ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਨਾਲ ਸ਼ਹੀਦ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਨਜ਼ਦੀਕੀ ਸਬੰਧ ਸੀ। 22 ਸੱਜਣਾਂ ਵੱਲੋਂ ਜਾਰੀ ਕੀਤੀ ਗਈ ਇਸ ਚਿੱਠੀ ਦਾ ਅਨੁਵਾਦ ਹੇਠਾਂ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
ਲਾਹੌਰ, 18 ਸਤੰਬਰ, 1927
ਪਿਆਰੇ ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ ਜੀ!
ਜਦੋਂ ਅਸੈਂਬਲੀ ਦੀ ਚੋਣ ਲਈ ਜਲਸੇ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ਤਾਂ ਆਪ ਨੇ ਇਕ ਵਾਰੀ ਦਸ ਹਜ਼ਾਰ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਜਲਸੇ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਸਿਪਾਹੀ ਹੋਣ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕੀਤਾ ਸੀ। ਇਕ ਦੂਸ਼ਣ ਦੇ ਉਤਰ ਵਿਚ ਕਿ ਆਪ ਇਕ ਮਰ ਚੁੱਕੇ ਲੀਡਰ ਹੋ, ਆਪ ਨੇ ਕਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਬੇਸ਼ੱਕ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੇ ਹੱਥੋਂ ਇਕ ਲੀਡਰ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਪਰ ਲੀਡਰ ਦੀ ਥਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਕ ਸਿਪਾਹੀ ਮਿਲ ਗਿਆ ਹੈ। ਆਪ ਜੀ ਦੇ ਇਸ ਐਲਾਨ ਨੂੰ ਸੁਣ ਕੇ ਅਸੀਂ ਵੀ ਬੜੇ ਪ੍ਰਸੰਨ ਹੋਏ ਸਾਂ ਕਿਉਂਕਿ ਅਸੀਂ ਵੀ ਅਜਿਹੇ ਲੀਡਰਾਂ ਪਾਸੋਂ, ਜੋ ਕਿ ਰਾਜਸੀ ਮਸਲਿਆਂ ਸਬੰਧੀ ਬੜੀਆਂ ਸੌਖੀਆਂ ਸੌਖੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਕਰਿਆ ਕਰਦੇ ਸਨ, ਤੰਗ ਆਏ ਹੋਏ ਸਾਂ। ਪਿਛਲੇ ਭਲੇ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਜਦੋਂ ਆਪ ਬਾਦਲੀਲ ਲੈਕਚਰਾਂ ਵਿਚ ਇਹੋ ਆਖਦੇ ਨਹੀਂ ਥੱਕਦੇ ਸੋ ਕਿ ‘ਮੈਂ ਤਾਂ ਤਖਤ ਲਵਾਂਗਾ ਜਾਂ ਤਖ਼ਤਾ‘ ਲਾਹੌਰ ਦੇ 16 ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੇ ਜੋ ਐਲਾਨ ‘ਨੌਜਵਾਨ ਪੰਜਾਬ ਅੱਗੇ ਅਪੀਲ‘ ਦੇ ਸਿਰਲੇਖ ਹੇਠਾਂ ਕੀਤਾ ਸੀ, ਉਸ ਦੇ ਜਵਾਬ ਵਿਚ ਆਪ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਪਰ ਇਹ ਦੋਸ਼ ਲਾਇਆ ਸੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪ ਪਰ ਇਕ ਗ਼ਲਤ ਧੱਬਾ ਲਾ ਕੇ ਆਪ ਨੂੰ ਇਕ ਰਾਜਸੀ ਮੈਦਾਨ ਵਿਚੋਂ ਕੱਢਣ ਦਾ ਯਤਨ ਕੀਤਾ ਹੈ।
ਇਹ ਦੂਸ਼ਣ ਵੇਖਣ ਤੋਂ ਵੀ ਕੋਝਾ ਜਾਪਦਾ ਸੀ। ਅਸੀਂ ਆਪ ਨੂੰ ਮੁੜ ਮੈਦਾਨ-ਏ-ਜੰਗ ਵਿਚ ਲਿਆਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਾਂ ਅਤੇ ਆਪ ਵਿਚ ਇਹ ਸ਼ਤਰੰਜੀ ਚਾਲਾਂ ਖੇਡਣ ਦੀ ਜੋ ਚਾਅ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਈ ਹੈ, ਇਸ ਨੂੰ ਤਬਾਹ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਾਂ। ਆਪ ਨੇ ਕਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਤਾਂ ਬਲਾਸ਼ਵਿਕ ਹਨ ਅਤੇ ਆਪਣਾ ਆਗੂ ਲੈਨਿਨ ਮੰਨਦੇ ਹਨ। ਬਾਲਸ਼ਵਿਕ ਹੋਣਾ ਕੋਈ ਗੁਨਾਹ ਨਹੀਂ ਹੈ ਅਤੇ ਅੱਜ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਨੂੰ ਲੈਨਿਨ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਲੋੜ ਹੈ। ਕੀ ਆਪ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਸੀ ਆਈ ਡੀ ਦੀਆਂ ਮਿਹਰ ਦੀਆਂ ਨਜ਼ਰਾਂ ਵਿਚ ਲਿਆਉਣ ਦੀ ਕਮੀਨੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ? ਆਪ ਦੀ ਇਸ ਬੁਰੀ ਇੱਛਾ ਨੂੰ ਫ਼ਲ ਲੱਗ ਗਿਆ ਅਤੇ ਆਪ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਇਸ ਸਫ਼ਲਤਾ ਦੀ ਵਧਾਈ ਦੇ ਸਕਦੇ ਹੋ। ਆਪ ਨੇ ਲੰਗੇ ਮੰਡੀ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਉਪਰ ਕੇਵਲ ਇਸ ਲਈ ਚਿੱਕੜ ਸੁੱਟਿਆ, ਕਿਉਂਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਅਸਲੀ-ਅਸਲੀ ਹਾਲਾਤ ਦੱਸਣ ਦਾ ਹੌਂਸਲਾ ਕੀਤਾ। ਇਸ ਦਿਨ ਆਪ ਦੀ ਚੋਣ ਸਬੰਧੀ ਲੜਾਈ ਦਾ ਆਰੰਭਿਕ ਦਿਨ ਸੀ, ਪੰਡਿਤ ਮਾਲਵੀਆ ਜੀ ਨੂੰ ਸ਼ੁਭ ਆਰੰਭਿਕ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਸੱਦਿਆ ਗਿਆ ਸੀ ਅਤੇ ਆਪ ਨੇ ਕੁਝ ਥੋੜੇ ਜਿਹੇ ਪ੍ਰਧਾਨਗੀ ਸ਼ਬਦ ਹੀ ਉਚਾਰਨੇ ਸਨ। ਆਪਣੇ ਬੁਰੇ ਕਾਰਨਾਮਿਆਂ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਆਪ ਆਪਣਾ ਆਪ ਭੁੱਲ ਗਏ। ਪੰਡਿਤ ਮਾਲਵੀਆ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਸੁਭਾਵਿਕ ਲੰਬੀ ਤਕਰੀਰ ਕਰਨ ਦਾ, ਜਿਸ ਲਈ ਕਿ ਉਹ ਤਿਆਰ ਹੋ ਕੇ ਆਇਆ ਸੀ, ਸਮਾਂ ਨਾ ਮਿਲਿਆ। ਆਪ ਨੇ ਦੋ ਘੰਟੇ, ਸਗੋਂ ਇਸ ਤੋਂ ਵੀ ਵੱਧ ਚੋਖੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ‘ਨੌਜਵਾਨ ਪੰਜਾਬ ਅੱਗੇ ਅਪੀਲ‘ ਦੀ ਕੜਕਵੀਂ ਆਵਾਜ਼ ਵਿਚ ਵਿਰੋਧਤਾ ਕੀਤੀ। ਆਪ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਪਰ ਦਿਲ ਖੋਲ੍ਹ ਕੇ ਦੂਸ਼ਣ ਲਾਏ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਤਬਾਹ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ। ਆਪਣੀ ਸਾਰੀ ਤਕਰੀਰ ਵਿਚ ਹੀ ਆਪ ਨੇ ਦਲੀਲਬਾਜ਼ੀ ਨੂੰ ਉੱਕਾ ਹੀ ਲਾਂਭੇ ਛੱਡ ਛੱਡਿਆ। ਅਸੀਂ ਆਪ ਪਰ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਦੂਸ਼ਣ ਲਾਉਂਦੇ ਹਾਂ :
1. ਰਾਜਸੀ ਥਿੜਕੇਵਾਂ।
2. ਕੌਮੀ ਵਿੱਦਿਆ ਨਾਲ ਗ਼ਦਾਰੀ।
3. ਸਵਰਾਜ ਪਾਰਟੀ ਨਾਲ ਗ਼ਦਾਰੀ।
4.ਹਿੰਦੂ ਮੁਸਲਿਮ ਖਿੱਚੋਤਾਣ ਦਾ ਵਧਾਉਣਾ।
5. ਮੋਡਰੇਟ ਬਣ ਜਾਣਾ।
ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੂਸ਼ਣਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਦੀ ਵੀ ਆਪ ਨੇ ਬਾਦਲੀਲ ਤਰਦੀਦ ਅੱਜ ਤੱਕ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ। ਜਦੋਂ ਚੋਣ ਦਾ ਜੋਸ਼ ਮੱਠਾ ਪੈ ਗਿਆ ਅਤੇ ਅਸੈਂਬਲੀ ਦਾ ਸਮਾਗਮ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਬੜੀ ਚਿੰਤਾ ਨਾਲ ਫਿਰ ਇਹ ਸੁਣਿਆ ਕਿ ਆਪ ਦੇ ਜਿਸਮ ਨੂੰ ਫਿਰ ਕੋਈ ਨਾ ਕੋਈ ਬੀਮਾਰੀ ਹੋ ਗਈ ਹੈ।
ਅਫ਼ਸੋਸ ! ਭੈੜੀ ਸਿਹਤ ਸਾਡੇ ਲੀਡਰਾਂ ਦਾ ਇਕ ਆਮ ਅੰਗ ਹੈ। ਉਹ ਭੈੜੀ ਸਿਹਤ ਹੋਣ ਦੀ ਉਸ ਸਮੇਂ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕਰਨ ਲੱਗ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਦੋਂ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਪਤਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਕਿ ਕੋਈ ਨਾ ਕੋਈ ਹੁਣ ਅਸਾਥੋਂ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਉਸਾਰੂ ਅਤੇ ਜਥੇਬੰਦੀ ਦੇ ਇਕਰਾਰਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਸਬੰਧੀ ਪੁੱਛਣਾ ਕਰੇਗਾ। ਇਹ ਇਕਰਾਰ ਅਜਿਹੇ ਹਨ, ਜੋ ਕਿ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਵਾਰੀ ਕੀਤੇ ਗਏ, ਪ੍ਰੰਤੂ ਪੂਰੇ ਕਦੇ ਨਹੀਂ ਕੀਤੇ।
ਹਿੱਕਮਤ ਵਿੱਦਿਆ ਦਾ ਕਾਨੂੰਨ ਇਹ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਭੈੜੀ ਸਿਹਤ ਦੀ ਬੀਮਾਰੀ ਕੇਵਲ ਯੂਰਪ ਦੇ ਸਿਹਤਗਾਹਾਂ ਪਰ ਹੀ ਠੀਕ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਕੀ ਇਹ ਗੱਲ ਸੱਚੀ ਨਹੀਂ? ਬੀਮਾਰੀ ਦੇ ਰੋਕਣ ਲਈ ਜੋ ਰਾਏ ਡਾਕਟਰ ਦੇਣ ਉਸ ਨੂੰ ਮੰਨਣੋਂ ਕੌਣ ਇਨਕਾਰੀ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਇਕ ਬੱਦਖ਼ਤ ਦੇਸ਼ ਹੈ ਅਤੇ ਜੰਗਲਾਂ ਅਤੇ ਦਲਦਲਾਂ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੈ। ਇਥੇ ਕੋਈ ਪਹਾੜੀ ਸਥਾਨ ਨਹੀਂ ਹਨ ਅਤੇ ਨਾ ਕੋਈ ਸਿਹਤਗਾਹ ਹੈ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੀਡਰਾਂ ਦਾ ਕਸ਼ਮੀਰ ਕੇਵਲ ਇਟਲੀ ਦੇ ਉਤਰ ਵਿਚ ਹੀ ਹੈ। ਮਰੀ, ਮਸੂਰੀ ਅਤੇ ਨੈਨੀਤਾਲ ਵੀ ਯੂਰਪ ਵਿਚ ਹੀ ਮਿਲਦੇ ਹਨ, ਆਪ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ਕਿ ਆਪਣੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਸੇਵਾ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਜਿਊਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ। ਜਿੰਦਗੀ ਕੀਮਤੀ ਹੈ। ਇਹ ਵੀ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਸਿਪਾਹੀ ਲਈ ਕੋਈ ਆਰਾਮ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਉਹ ਮਰਨ ਖ਼ਾਤਰ ਹੀ ਜਿਊਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਕਿ ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾ ਦੁੱਖ ਝੱਲ ਰਹੀ ਕੌਮ ਦੀ ਸੇਵਾ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦਾ ਹੋਇਆ ਹੀ ਮਰੇ ਅਤੇ ਦੁਖੀ ਕੌਮ ਦੇ ਵਾਸਤੇ ਮਰਨ ਖ਼ਾਤਰ ਕਮਰਕੱਸੇ ਹੋਏ ਹੀ ਜੰਗ ਵਿਚ ਮਰਨਾ ਉਸ ਦੀ ਭਾਰੀ ਇੱਛਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।
ਪ੍ਰੰਤੂ ਯੂਰਪ ਨੂੰ ਤੁਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਜਦੋਂ ਕਿ ਆਪ ਅਜੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਦੀ ਹਵਾ ਹੀ ਖਾ ਰਹੇ ਸੀ ਅਤੇ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨ ਦੀ ਧਰਤੀ ਪਰ ਚੱਲ ਫਿਰ ਰਹੇ ਸੀ, ਤਾਂ ਆਪ ਦੇ ਅਤੇ ਆਪ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਦੇ ਬੀਜੇ ਹੋਏ ਕੰਡੇ ਉਗ ਪਏ। ਆਪ ਨੇ ‘ਹਿੰਦੂਓ, ਮਾਰੋ।‘ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ਸੀ ਅਤੇ ਹਿੰਦੂ ਹੀ ਮਾਰੇ ਗਏ।
ਆਪ ਜੈਸੇ ਹੀ ਹੋਰ ਸੱਜਣਾਂ ਨੇ ‘ਮੁਸਲਮਾਨੋਂ, ਮਾਰੋ!‘ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ, ਜਦੋਂ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਮਾਰੇ ਜਾਣ ਦਾ ਸਮਾਂ ਆਇਆ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲੀਡਰਾਂ ਨੇ ਵੀ ਇਹ ਬੁਜਦਿਲੀ ਦਿਖਾਈ ਕਿ ਉਹ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਵਾਲਾ ਕੰਮ ਨਾ ਕਰ ਸਕੇ ਅਤੇ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਕਾਫ਼ੀ ਮਾਰ ਪਈ। ਪ੍ਰੰਤੂ ਅਸਾਡਾ ਸਿਪਾਹੀ ਉਸ ਵੇਲੇ ਬੁਜ਼ਦਿਲੀ ਦਿਖਾਉਣ ਵਿਚ ਬਹਾਦਰ ਨਿਕਲਿਆ। ਜਦੋਂ ਹਿੰਦੂ ਮਾਰੇ ਜਾਣ ਦਾ ਆਪਣਾ ਹਿੱਸਾ, ਸਗੋਂ ਹਿੱਸੇ ਤੋਂ ਵੱਧ ਲੈਣ ਲੱਗੇ ਤਾਂ ਆਪ ਨੇ ਫਸਟ ਕਲਾਸ ਦੇ ਗਦੈਲਿਆਂ ਪਰ ਬੈਠ ਕੇ ਯੂਰਪ ਨੂੰ ਤੁਰ ਜਾਣਾ ਹੀ ਚੰਗਾ ਸਮਝਿਆ। ਆਪ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀ ਇਸ ਮੁਸੀਬਤ ਸਮੇਂ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਨੋਂ ਅਸਮਰੱਥਤਾ ਪ੍ਰਗਟ ਕੀਤੀ। ਚੋਣ ਦੇ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਹੱਥੋਂ ਰੱਖਿਆ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਡੀਂਗਾਂ ਮਾਰਿਆ ਕਰਦੇ ਸਨ।
ਪ੍ਰੰਤੂ ਅਫ਼ਸੋਸ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਸਭ ਕੁਝ ਆਪ ਦਾ ਚੋਣ ਦੀ ਸਫ਼ਲਤਾ ਤੱਕ ਹੀ ਮਹਿਦੂਦ ਸੀ। ਇਸ ਦੇ ਸਬੂਤ ਵਿਚ ਅਸੀਂ ਕੇਵਲ ਇੰਨਾ ਕਹਿਣਾ ਹੀ ਕਾਫ਼ੀ ਸਮਝਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਆਪ ਨੇ ਯੂਰਪ ਤੋਂ ਵਾਪਸ ਆ ਕੇ ਵੀ ਲਾਹੌਰ ਦੇ ਗਰੀਬ ਅਤੇ ਦੁਖੀ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀ ਮਦਦ ਲਈ ਲਾਹੌਰ ਪੁੱਜਣ ਦੀ ਵੀ ਖੇਚਲ ਨਹੀਂ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਸਾਨੂੰ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਕਿ ਆਪ ਨੇ ਸਰਹੱਦ ਤੋਂ ਪਾਗ਼ਲ ਪਠਾਣਾਂ ਦੇ ਕੱਢੇ ਹੋਏ ਹਿੰਦੂਆਂ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਕੀ ਤਰੀਕੇ ਵਰਤੇ ਹਨ। ਇਸ ਦੇ ਉਲਟ ਆਪ ਸਿੱਧੇ ਹੀ ਸ਼ਿਮਲੇ ਨੂੰ ਅਸੈਂਬਲੀ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਣ ਲੲਂੀ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਸਾਥੀਆਂ ਪਰ ਤਕਰੀਰਾਂ ਦਾ ਅਸਰ ਪਾਉਣ ਲਈ ਚਲੇ ਗਏ। ਬਿਪਤਾ ਸਮੇਂ ਅੱਡਾ ਰਹਿਣਾ ਆਪਦੀ ਬਹਾਦਰੀ ਦਾ ਵੱਡਾ ਹਿੱਸਾ ਹੈ।
ਕਈ ਨੌਜਵਾਨ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੇ ਸਿਰਾਂ ਦੇ ਸਾਈਂ ਮਰ ਜਾਣ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਾਰੀ ਉਮਰ ਦੁੱਖ ਭਰੀ ਅਤੇ ਇਕੱਲੀ ਹੋ ਗਈ, ਕਈ ਕਵਾਰੀਆਂ ਦੇ ਸਤਿ ਭੰਗ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਕਰਕੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਹੰਝੂਆਂ ਨਾਲ ਰੋ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਕਈ ਮਾਸੂਮਾਂ ਦਾ ਕਤਲ ਕੀਤਾ ਗਿਆ, ਤੀਹ ਲੱਖ ਜਾਨਾਂ ਭਿਆਨਕ ਨਰਕ ਵਿਚ ਦੀ ਲੰਘ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਲਾਟ ਪੰਜਾਬ ਵੀ ਆਪਣੀ ਪਹਾੜੀ ਅਰਾਮਗਾਹ ਛੱਡ ਕੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਬੀਜੇ ਹੋਏ ਕੰਡਿਆਂ ਨੂੰ ਵਢਾਉਣ ਲਈ ਲਾਹੌਰ ਪੁੱਜਦਾ ਹੈ, ਪ੍ਰੰਤੂ ਸਾਡਾ ਸਿਪਾਹੀ (ਲਾਲਾ ਲਾਜਪਤ ਰਾਏ) ਇੰਨਾ ਬੀਮਾਰ ਹੈ ਕਿ ਆਪਣੀ ਡਿਊਟੀ ਪਰ ਨਹੀਂ ਪੁੱਜ ਸਕਦਾ ਅਤੇ ਕਹਿ ਛੱਡਦਾ ਹੈ : ਲਾਹੌਰ ਜਾਣ ਲਈ ਗਰਮੀ ਬਹੁਤ ਹੈ ਅਤੇ ਰੇਲ ਦੀਆਂ ਸੀਟਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਰੋਕੀਆਂ ਜਾ ਚੁੱਕੀਆਂ ਹਨ, ਰੋਣ ਦਿਓ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਧਵਾ ਹੋ ਚੁੱਕੀਆਂ ਇਸਤਰੀਆਂ ਨੂੰ ਅਤੇ ਯਤੀਮ ਹੋ ਚੁੱਕੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ, ਸਾਨੂੰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਕੀ ਹੈ। ਤੰਗੀ ਅਜੀਬ-ਅਜੀਬ ਆਦਮੀਆਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠੇ ਕਰ ਦਿੰਦੀ ਹੈ। ਖ਼ਲਕਤ ਸਾਹਮਣੇ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਪਰ ਆਪ ਇਹ ਦੂਸ਼ਣ ਲਾਉਂਦੇ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਲੋਕੀਂ ਆਮ ਜਨਤਾ ਦੇ ਇਤਬਾਰਯੋਗ ਨਹੀਂ ਹਨ, ਕੀ ਹੁਣ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦਰ ਤੋਂ ਮੰਗਣਾ ਬਹੁਤ ਨਿੱਘ ਦਿੰਦਾ ਹੈ? ਹੁਸ਼ਿਆਰ ਰਹੋ ਕਿ ਆਦਮੀ ਆਪਣੇ ਸਾਥੀਆਂ ਤੋਂ ਹੀ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਕੀ ਇਹ ਕੋਈ ਹੈਰਾਨੀ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਆਪ ਇਕ ਮੌਡਰੇਟ ਗਿਣੇ ਜਾਣ ਲੱਗ ਪਏ ਹੋ ਜਦੋਂ ਕਿ ਆਪ ਜੀ ਹਜ਼ੂਰੀਆਂ ਅਤੇ ਝੋਲੀਚੁੱਕਾਂ ਨਾਲ ਬਾਂਹ ਵਿਚ ਬਾਂਹ ਪਾ ਕੇ ਤੁਰਦੇ ਹੋ।
1. ਕੇਦਾਰ ਨਾਥ ਸਹਿਗਲ (ਮੈਂਬਰ ਸਰਬ ਹਿੰਦ ਕਾਂਗਰਸ ਕਮੇਟੀ, ਪ੍ਰਧਾਨ ਪੰਜਾਬ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਸਫ਼ਰਰਜ਼ ਕਾਨਫਰੰਸ)
2. ਮੇਲਾ ਰਾਮ ਵਫ਼ਾ (ਐਡੀਟਰ), ਬੰਦੇ ਮਾਤਰਮ ਅਤੇ ਨੈਸ਼ਨਲ ਕਾਲਜ ਦਾ ਪੁਰਾਣਾ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ।
3. ਪ੍ਰੇਮ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੇਵੀਸ਼ਵਰ, ਜਨਰਲ ਸਕੱਤਰ ਪੰਜਾਬ ਸਨਾਤਨ ਧਰਮ ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਕਾਨਫਰੰਸ।
4. ਅਬਦਲ ਮਜੀਦ ਸਕੱਤਰ, ਪੰਜਾਬ ਪ੍ਰੈਸ ਵਰਕਰਜ਼ ਯੂਨੀਅਨ।
5. ਭਗਵਾਨ ਚਰਨ ਕੌਮੀ ਬੀ.ਏ., ਸਕੱਤਰ, ਕੌਮੀ ਗਰੈਜੂਏਟਸ ਯੂਨੀਅਨ।
6. ਨਰਿੰਦਰਾ ਨਾਥ, ਕੌਮੀ ਬੀ.ਏ. ਲੇਟ ਜੁਆਇੰਟ ਐਡੀਟਰ, ਭੀਸ਼ਮ।
7. ਧਰਮ ਚੰਦ ਕੌਮੀ, ਬੀ.ਏ.
8. ਗਨਪਤ ਰਾਏ ਕੌਮੀ, ਬੀ.ਏ.
9. ਬਾਬੂ ਸਿੰਘ ਕੌਮੀ, ਬੀ.ਏ.
10. ਜੀ.ਆਰ. ਦਰਵੇਸ਼ੀ, ਐਡੀਟਰ ਮਿਹਨਤਕਸ਼
11. ਕਰਮ ਚੰਦ ਐਡੀਟਰ, ਲਾਹੌਰ
12. ਮੁਹੰਮਦ ਯੂਸਫ਼ ਕੌਮੀ, ਬੀ.ਏ. ਜੁਆਇੰਟ ਐਡੀਟਰ, ਅਕਾਲੀ
13. ਸੀਤਾ ਰਾਮ ਮਾਸਟਰ, ਪੁਲੀਟੀਕਲ ਵਰਕਰ ਪੰਜਾਬ
14. ਹਰਦਿਆਲ ਹਿੰਦੀ, ਸਾਹਿਤਆ ਭਵਨ
15. ਧਰਮਿੰਦਰਾ ਕੌਮੀ, ਬੀ.ਏ.
16. ਸਰਿੰਦਰਾ ਨਾਥ
17. ਐਨ. ਕਾਲਮ ਉੱਲਾ
18. ਪਿੰਡੀਦਾਸ ਸੋਢੀ, ਲੇਟ ਮੈਨੇਜਰ ਭੀਸ਼ਮ ਲਾਹੌਰ।
19 ਧਰਮਿੰਦਰਾ ਠਾਕਰ, ਲੇਟ ਉਪਦੇਸ਼ਕ ਹਿੰਦੂ ਸਭਾ।
20. ਡਾਕਟਰ ਇੰਦਰ ਲਾਲ ਕਪੂਰ।
21. ਲੱਧਾ ਰਾਮ ਲੇਟ, ਐਡੀਟਰ ਸਵਰਾਜੀਆ ਅਲਾਹਾਬਾਦ।
22. ਵੇਦ ਰਾਜ ਭੱਲਾ, ਕੌਮੀ ਬੀ.ਏ.