दिल्ली. राजा से रंक की बैठकों, चौपालों एवं महफिलों की जान माने जाने वाले हुक्के से अब तहजीब और सदभाव नहीं खतरनाक लत और बीमारियां पसर रही है।
परम्परागत हुक्कों का स्थान अब आधुनिक हुक्कों ने ले लिया है और हुक्के अब चौपालों एवं महफिलों से उठकर क्लबों, बारों, रेस्तराओं एवं कैफे में पहुंच चुके हैं। हमारे देश में दिल्ली, मुंबई, जयपुर, बेंगलूर, चंडीगढ और लखनउ जैसे महानगरों एवं बडे शहरों में ही नहीं बल्कि छोटे शहरों एवं कस्बों में भी हुक्का क्लबों, पार्लरों, रेस्तराओं आदि का जाल तेजी से फैल रहा है जिनकी गिरफ्त में स्कूल और कालेज के लडके-लडकियां तेजी से आ रहे हैं और हुक्का क्लबों के नाम पर धूम्रपान और नशे का जाल फैल रहा है।
श्वसन रोग विशेषज्ञ डा. दीपक तलवार बताते हैं कि हुक्कों के सेवन से सांस की दिक्कतें बढती है तथा ब्रोंकाइटिस का खतरा दोगुना हो सकता है। साथ ही हुक्के के अधिक सेवन से पेट एवं यूरिनरी ब्लैडर के कैंसर का खतर बढ जाता है।
मेट्रो हास्पीटल्स एंड हार्ट इंस्टीच्यूट के निदेशक डा. पुरूषोत्तम लाल बताते हैं कि आम धारणा है कि सिगरेट की तुलना में हुक्के कम हानिकारक होते हैं लेकिन हुक्के में निकोटीन, कार्बन डाईआक्साइड एवं कैंसर जन्य रसायन होते हैं जो सिगरेट के धुएं में मौजूद रसायनों से अधिक हानिकारक होते हैं१ साथ ही हुक्के में सिगरेट की तुलना में अधिक टार एवं भारी धातु होते हैं।
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