Thursday, July 15, 2010

संन्यास से ज्यादा कठिन होता है दांपत्य जीवन

जीवन में श्रेष्ठ क्या है इसकी सबकी अपनी-अपनी परिभाषा होती है। किसी धार्मिक आदमी से पूछो तो वह कहेगा श्रद्धा के बिना धर्म बेकार है। किसी आध्यात्मिक व्यक्ति से पूछें तो वह प्रेम पर टिक जाएगा। कोई योद्धा हो और लंबे समय से रणक्षेत्र में हो तो उसके लिए घर से बढ़कर और कुछ नहीं होगा। व्यापारी व्यवसाय को उत्तम बताएगा।

ऐसे जीवन के अनेक क्षेत्र हैं जिनमें सबकी अपनी-अपनी राय होगी। कल्पना करिए ये सब एक जगह मिल जाएं तो जीवन का दृश्य क्या हो? और इसका नाम है दृष्टि। दांपत्य एक तरह का कोलाज है। यहां धर्म, प्रेम, श्रद्धा, शांति, अशांति, लोभ सब एक साथ मिल जाएगा। जोगी, यति, तपस्वी, फकीर, महात्मा, सफल व्यवसायी, उच्च शिक्षाविद सबकुछ इस एक छत के नीचे घट सकता है। इसलिए दांपत्य को संन्यास से भी कठिन माना है।

इसमें धर्य और दूसरे के लिए जीने की तमन्ना रखनी पड़ती है। गृहस्थी से गुजरे हुए लोग स्वतंत्र जीवन जीने वाले लोगों के प्रति परिपक्व और गंभीर नजर आते हैं। परमात्मा की खोज में निकलने वाले लोग केवल पहाड़ों, जंगलों से निकलेंगे ऐसा नहीं है। चूल्हा, चौका, शयनकक्ष और आंगन को भी परमात्मा ने अपना स्थान बनाया है। भगवान ने अपने लिए एक नाम रखा है ब्रह्मा। इसका अर्थ है जो सदा विस्तार की ओर चले, हमेशा विराट होने की संभावना अपने अंदर रखे, जो अनंत हो। और यह भाव गृहस्थी में बड़ा काम आता है क्योंकि भीतर से विशाल हुए बिना बाहर का विराट कैसे उपलब्ध होगा?

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