नई दिल्ली. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा स्वाइन फ्लू को महामारी घोषित करने और इसकी दवा को भंडारित करने की सलाह के पीछे दवा कंपनियों के हित जुड़े थे। इस वजह से विभिन्न देशों के अरबों रुपए बर्बाद हो गए। यह दावा एक ताजा रिपोर्ट में किया गया है। हालांकि डब्ल्यूएचओ ने इस आरोप को नकारते हुए कहा कि स्वाइन फ्लू पर लिया गया निर्णय किसी भी दवा कंपनी से प्रभावित नहीं था।
रिपोर्ट के मुताबिक, डब्ल्यूएचओ ने जिन वैज्ञानिकों के कहने पर स्वाइन फ्लू जैसी बीमारी को महामारी घोषित कर विभिन्न देशों को इसकी दवाओं का भंडार करने की सलाह दी थी वे सभी उन दवा कंपनियों से पैसे लेकर काम कर रहे थे, जो स्वाइन फ्लू की दवा बनाती हैं। यह बात शोध पत्रिका ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) और लंदन स्थित खोजी पत्रकारों के संगठन द ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्निलिज्म की छानबीन के बाद तैयार रिपोर्ट में कही गई है।
45 अरब की बिक्री :
एक आंकड़े के मुताबिक स्वाइन फ्लू की दवा टेमीफ्लू का भंडार करने की डब्ल्यूएचओ की सलाह के बाद पिछले साल इसकी बिक्री एक अरब डॉलर (करीब 45 अरब रुपए) से भी अधिक हो गई थी। अकेले भारत ने करीब दो करोड़ टेमीफ्लू के कैप्सूल जमा कर रखे हैं, जिसकी अनुमानित कीमत करीब 160 करोड़ रुपए है।
बीएमजे के ताजा अंक में छपी इस रिपोर्ट के अनुसार, 2004 में डब्ल्यूएचओ ने एच1एन1 यानि स्वाइन फ्लू की दवा को भंडारित करने के दिशानिर्देश दिए थे। इसमें कहा गया था कि देशों को फ्लू की दवा को तत्काल जमा करना शुरू कर देना चाहिए क्योंकि इनकी आपूर्ति काफी कम है। डब्ल्यूएचओ ने ये दिशानिर्देश इनफ्लूएंजा के उस विशेषज्ञ से तैयार कराए थे, जिसे स्वाइन फ्लू की दवा टेमीफ्लू (ओसेल्टामिविर) बनाने वाली कंपनी रोश और रिलेंजा (जानामिविर) बनाने वाली कंपनी जीएसके से राशि मिली थी। इस विशेषज्ञ को इन कंपनियों ने यह राशि इन दवाओं पर लेक्चर देने और सलाहकार सेवाएं देने के बदले दिए थे। रोश स्विट्जरलैंड की कंपनी है, जबकि जीएसके इंग्लैंड की। इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दो और वैज्ञानिक जिन्होंने 2004 में जारी डब्ल्यूएचओ के दिशार्निदेश के अनुछेद तैयार किए थे, वे भी रोश से कुछ समय पहले तक वित्तीय रूप से जुड़े हुए थे।
सदस्यों के नाम का खुलासा नहीं : रिपोर्ट में बताया गया कि डब्ल्यूएचओ ने एच1एन1 को महामारी घोषित करने के लिए जिस आपातकालीन समिति का हवाला दिया था, उसके 16 सदस्यों का नाम सार्वजनिक नहीं किया गया है। डब्ल्यूएचओ की महा निदेशक मारर्गेट चान ने इसी समिति के कहने पर स्वाइन फ्लू को महामारी घोषित किया था। सिर्फ डब्ल्यूएचओ के अधिकारियों को इस समिति के सदस्यों के नाम मालूम हैं और इन सदस्यों का दवा कंपनियों के साथ क्या रिश्ता है अभी पता नहीं चल पाया है। रिपोर्ट में दावा किया गया कि इन 16 सदस्यों में से एक ने 2009 में जीएसके से राशि ली थी।
‘यह रिपोर्ट पूरी तरह सही नहीं हो सकती, क्योंकि स्वाइन फ्लू एक बड़ी बीमारी थी, जिससे बड़ी संख्या में मौतें हरुई। हमारे यहां लोगों की जागरूकता और सरकार के प्रयासों के चलते समय रहते इस पर नियंत्रण पा लिया गया।’ - विश्वमोहन कटोच, निदेशक, आईसीएमआर (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च)
No comments:
Post a Comment