Tuesday, November 16, 2010

दिल्ली: कई बार जेल जा चुका है बिल्‍डर, जिसकी इमारत ढहने से 66 मरे और 80 घायल

दिल्ली. अवैध निर्माण का गढ़ बन चुकी राजधानी दिल्‍ली के लक्ष्‍मीनगर इलाके में पांच मंजिला इमारत ढहने से मरने वालों की संख्‍या 66 पहुंच गई है। 80 लोग जख्‍मी हैं। कई लोगों को अब भी मलबे से निकाला नहीं जा सका है। सरकार ने सारा दोष एमसीडी और बिल्‍डर पर मढ़ कर पल्‍ला झाड़ने की कोशिश की है।

घटना के करीब 12 घंटे बाद, मंगलवार सुबह दिल्‍ली की मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित घटनास्‍थल पर पहुंचीं। वहां उन्‍होंने लोगों से हमदर्दी दिखाने की कोशिश की, पर लोग भड़क गए और बचाव के नाकाफी इंतजाम पर गुस्‍सा उतारा।

पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर इलाके में सोमवार रात करीब 8 बजे एक पांच मंजिला रिहाइशी इमारत पूरी तरह ढह गई। इसमें कोई 400 लोग रहते थे। इनमें से ज्‍यादातर मजदूर थे।

बताया गया है कि पिछले दिनों यमुना में आई बाढ़ के पानी से इमारत की नींव कमजोर हो गई थी, जिसे हादसे की वजह माना जा रहा है। मामले की मजिस्‍ट्रेट से जांच के आदेश दिए गए हैं।

दिल्‍ली की मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित ने सारा दोष एमसीडी और बिल्‍डर पर मढ़ते हुए कहा कि आखिर इस मकान को अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) किस आधार पर दे दिया गया। यह तो एमसीडी की घोर लापरवाही का नमूना है। एमसीडी (म्‍यूनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफ डेल्‍ही) दिल्‍ली की स्‍थानीय निकाय संस्था है और इस पर दीक्षित की विरोधी पार्टी भाजपा का कब्‍जा है। एमसीडी से कुछ कहते नहीं बन रहा। वह यही कह रही है कि जांच रिपोर्ट आने दीजिए।


बिल्डिंग का 'हिस्‍ट्रीशीटर' फरार
जो मकान ढहा, उसका मालिक बिल्‍डर अमृत सिंह फरार है। उसके खिलाफ लापरवाही की वजह से कई लोगों की मौत होने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। पर सूत्र बताते हैं कि उस पर पहले से कई गंभीर अपराधों के आरोप में मुकदमे हैं। उसे कुख्‍यात अपराधी बताया जाता है। वह पिछले कुछ सालों में कई बार‍ तिहाड़ जेल में भी रह चुका है। अब सवाल यह भी उठेगा कि एक 'हिस्‍ट्रीशीटर' को बिल्डिंग बनाने का लाइसेंस कैसे मिल गया।

उसने हर मंजिल पर आठ कमरे बनवाए हुए थे। इन सभी कमरों में किराएदार रहते थे, जो मजदूरी करते हैं। ज्यादातर लोग बिहार, पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं। अमृत पाल सिंह के खिलाफ पहले से ही 6 मामले दर्ज हैं। इमारत के अंदर तीन उद्योग भी अवैध रूप से चल रहे थे। घटना के समय भी वहां कई मजदूर काम कर रहे थे।

अमृत ललिता पार्क में जो मकान ढहा, उससे करीब ही, आर ब्लॉक में दूसरे मकान में रहता है। बताया जाता है इस इलाके में उसके कई मकान हैं। वह परिवार सहित फरार बताया जा रहा है।

देर से पहुंची मदद

इस बीच मरने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। इतने बड़े हादसे के बावजूद सरकारी मदद पहुंचने में घंटों लग गए। इलाके की गलियां संकरी होने के चलते जेसीबी मशीन को घटनास्थल तक पहुंचने में लगभग दो घंटे का समय लगा। शुरुआत में स्थानीय लोगों ने करीब तीन दर्जन लोगों को मलबे से निकालकर अस्पताल पहुंचाया।

सोमवार रात करीब 8.15 बजे पुलिस को सूचना मिली कि ललिता पार्क में एन-85 नंबर का मकान ढह गया है। कुछ देर बाद पुलिस भी पहुंच गई और मामले की जानकारी दमकल विभाग व डिजास्टर मैनेजमेंट को दी गई। इसके बाद दमकल की तीन गाड़ियां व एंबुलेंस भी पहुंच र्गई। घायलों को लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल, लोक नायक अस्पताल व आसपास के अस्पतालों में ले जाया गया। दिल्ली सरकार ने मृतकों के परिजन को दो-दो लाख और घायलों को पचास पचास हजार रुपयों का मुआवजा दिया है।

दिल्ली में 1369 कॉलोनियां अवैध
दिल्ली में निर्माण से जुड़े कानूनों का बड़े पैमाने पर उल्‍लंघन होता है। 90 फीसदी से ज्‍यादा रिहाइशी निर्माण किसी न किसी नियम की अनदेखी कर किए जाते हैं। हालत यह है कि यहां अवैध रूप से सैकड़ों कॉलोनियां तक बस गई हैं। 1369 ऐसी कॉलोनियों को तो सरकार नियमित करने की कोशिश भी कर रही है।

सरकार से जनता करें सवाल : आखिर सरकार ने कदम क्यों नहीं उठाया?

इमारते के गिरने के बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अपने बयान में माना है कि यह इमारत अवैध थी और इस बात की सूचना उनकों थी। ऐसे में सवाल उठता है कि समय रहते दिल् ली सरकार ने कदम क्यों नहीं उठाए? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर दिल्ली के लोग तो जरूर जानना चाहेंगे। दिल्‍ली में अवैध निर्माण की जानकारी मुख्यमंत्री से लेकर आला अधिकरी और नगर निगम तक को है। फिर भी अभी तक कोई ठोस कार्रवाई सरकार ने आखिर क्यों नहीं की?

क्यों लक्ष्मीनगर जैसे हादसें का इंतजार किया जाता है? जिंदगी को सवारने वाली इमारतों को इस तरह से मौत के मलबे में बदल जाने के लिए आखिर कौन है दोषी? आखिर कब तो हम कुछ लोगों की गल्तियों के चलते बहुमूल्यों जिंदगियों को मौत के मुंह में जाते देखते रहेगें? क्या हमारे देश में जिंदगी की इतना सस्ता समझ लिया गया है ? आखिर यह सब है क्या और क्यों सच को जान लेने के बाद भी हाथ पर हाथ धरे बैठ जाती है सरकार?

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